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LG सुप्रीम कोर्ट को भूल गए थे और केजरीवाल संसद को, अब सही राह पर आएंगे दोनों?

सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है वह दिल्ली की जनता के हित को ध्यान में रख कर दिया है. इससे दिखता है कि किसी चुनी हुई सरकार को एलजी धूल में नहीं मिला सकते

Ravishankar Singh

बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार और एलजी की लड़ाई में अपना फैसला सुना दिया है. सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट से लगता है कि कैबिनेट के कुछ फैसलों को छोड़ कर दिल्ली में एलजी की मनमर्जी अब नहीं चलेगी. सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट से साफ लगता है कि दिल्ली का असली बॉस दिल्ली की चुनी हुई सरकार का मुखिया ही होगा.

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल सहित उनके मंत्रिमंडल के सभी सहयोगियों और आम आदमी पार्टी के नेताओं ने दिल्ली के लोगों और लोकतंत्र की जीत बताया. हालांकि, सुप्रीम के इस फैसले के बावजूद दिल्ली में दिल्ली का असली बॉस कौन पर चर्चाएं नहीं थमेगी.


बता दें कि पिछले साल नवंबर में जब इस मामले पर सुनवाई हुई तो दिल्ली सरकार के समर्थन में जस्ट‍िस चंद्रचूड़ ने कहा था कि जनता ने जिस सरकार को चुना है, उस सरकार के फैसलों को एलजी की ओर से रोकना सही नहीं मान सकते. उस समय जस्टिस चंद्रचूड़ ने दिल्ली सरकार को भी नसीहत दी थी कि उसे अपनी हदों में रहकर ही काम करना चाहिए.

दिल्ली सरकार नियम बना सकती है

जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह भी कहा था कि राजकाज, पुलिस और जमीन का मसला दिल्ली सरकार के पास नहीं हैं. इन पर केंद्र का अधिकार है. चीफ जस्ट‍िस दीपक मिश्रा भी इस केस में अपनी राय दे चुके हैं. सीजेआई मिश्रा ने कहा है कि दिल्ली में कामकाज के कायदे-कानून पहले ही बने हुए हैं. सरकार तो बस उन्हें लागू करती है. जहां नियम नहीं है, वहां दिल्ली सरकार नियम बना सकती है लेकिन केंद्र यानी राष्ट्रपति की मंजूरी लेने के बाद.

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इस मामले में दिल्ली सरकार का पक्ष रखने वाले वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने राज्य सरकार का पुरजोर तरीके से पक्ष रखा. गोपाल सुब्रमण्यम इस मामले में लगातार दलील दे रहे थे कि दिल्ली सरकार को संविधान के अनुच्छेद 239A के तहत दिल्ली के लिए कानून बनाने का अधिकार है. एलजी की मदद और सलाह के लिए कैबिनेट है. कैबिनेट की सलाह को एलजी को माननी होती है.

बता दें कि संविधान के अनुच्छेद-239 एए का मसला केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच फंसा हुआ है. दिल्ली सरकार का कहना है कि इस अनुच्छेद को हल्के में परिभाषित नहीं कर सकते जिससे कि उसका मुख्य मकसद ही बेकार हो जाए. अनुच्छेद-239 एए के तहत ही दिल्ली को विशेष संवैधानिक दर्जा प्राप्त है.

मालूम हो कि बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश की अध्क्षता वाली संवैधानिक पीठ ने आदेश दिया कि एलजी हर मामले पर असहमति नहीं जता सकते. सभी मामलों में एलजी की सहमति जरूरी भी नहीं. दिल्ली में अराजकता नहीं हो सकती. दोनों को मिलकर काम करना चाहिए. इसके बाद बीजेपी और आम आदमी पार्टी की दोनों ही तरफ से इस फैसले के मायने निकाले जाने लगे हैं.

दरअसल, अनुच्छेद- 239 एए की व्याख्या से ही तय होगा कि दिल्ली में किसका राजकाज चलेगा. इसकी व्याख्या यह तय करेगी कि दिल्ली में प्रशासनिक अधिकार किसके पास रहेंगे. एलजी के पास या मुख्यमंत्री के पास. 239 एए के मुताबिक दिल्ली में चुनी हुई सरकार होगी जो जनता के लिए जवाबदेह होगी. जबकि आप सरकार की शिकायत थी कि इस अनुच्छेद के मुताबिक उसे अधिकार नहीं मिलते.

इस अनुच्छेद के मुताबिक, कैबिनेट के फैसले से अगर एलजी सहमत नहीं हों तो मामला राष्ट्रपति के पास चला जाता है. फिर फैसले लेने में एलजी ही प्रमुख की जिम्मेदारी निभाते हैं.

बता दें कि एलजी को अब दिल्ली सरकार सूचना देने की सिर्फ जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि छोटे-मोटे फैसलों पर मतभेद नहीं होने चाहिए. सरकार और एलजी के बीच राय में अंतर वित्तीय, पॉलिसी और केंद्र को प्रभावित करने वाले कारणों में होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राय में अंतर होने पर मामला राष्ट्रपति के पास भेजी जानी चाहिए.

 दिल्ली के ब्यूरोक्रेट्स को लेकर अभी भी स्थिति साफ नहीं हुई

कुल मिलाकर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद दिल्ली सरकार और एलजी के बीच द्वंद खत्म हो जाना चाहिए. लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुए ऐसा होता नहीं दिख रहा है.

अब सवाल यह उठता है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आम दिल्ली वासियों के लिए कितना अहम है? इस फैसले के बाद दिल्ली में क्या बदलाव होने वाले हैं? दिल्ली सरकार इस फैसले के बाद दिल्ली वालों के लिए क्या-क्या करने जा रही है?

जानकारों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद दिल्ली सरकार की राह अब आसान होने वाली है. लॉ एंड ऑर्डर, लैंड और पुलिस के बाद दिल्ली सरकार दिल्ली की जनता से जुड़े सभी फैसले अब ले सकेगी.

दिल्ली में अब मोहल्ला क्लिनिक, शिक्षा और राशन कार्ड से जुड़े मसले पर अरविंद केजरीवाल खुलकर फैसला ले सकते हैं. दिल्ली में गेस्ट टीचर्स को रेगुलर करने जैसे मसले पर भी अब एलजी की नहीं चलेगी. स्टेट लीस्ट में जो भी विषय हैं उन सभी विषयों पर अब दिल्ली की चुनी हुई सरकार फैसला करेगी.

इसके बावजूद अभी भी कुछ विषयों को लेकर चिंताजनक रह सकती है. दिल्ली के ब्यूरोक्रेट्स को लेकर अभी भी स्थिति साफ नहीं हुई है. केंद्र और राज्य में अगर विश्वास की कमी रहेगी तो इस पर अभी भी बुरा असर पड़ने वाला है.

दिल्ली में होती हैं दो सरकारें

कुछ जानकारों का मानना है कि ब्यूरोक्रेसी की वजह से अब भी डिलेवरी सिस्टम में समस्या आ सकती है. अगर चुनी हुई सरकार कहेगी कि हमने इस आदमी को चीफ सेक्रेटरी लगाया है और एलजी साहब कह रहे हैं कि यह आदमी मुझको पसंद नहीं है. तब ऐसे मामले को लेकर चुनी हुई सरकार फिर से सुप्रीम कोर्ट जा सकती है. तब सुप्रीम कोर्ट को फैसला लेना मुश्किल होगा. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में दिल्ली सरकार की राय को भी अहम बताया है. सुप्रीम कोर्ट ने एलजी और चुनी हुई सरकार के संबंधों को बेहतर तालमेल में काम करने को कहा है.

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दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी सियासत हावी रहेगी. यथार्थ यह भी है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिल सकता. दिल्ली में सरकार के दो केंद्र होते हैं. एक, केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त उपराज्यपाल और दूसरा राज्य के लोगों द्वारा चुनी हुई सरकार.

दूसरी तरफ, भारत में सुप्रीम कोर्ट तो है लेकिन भारत का सुप्रीम इंस्टीट्यूशन पार्लियामेंट ही है और उसी पार्लियामेंट ने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है वह दिल्ली की जनता के हित को ध्यान में रख कर दिया है. किसी चुनी हुई सरकार को एलजी धूल में नहीं मिला सकते.