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कभी बुलडोजर चलाने की धमकी देने वाली SP मूर्तियों के सवाल पर अब है मायावती के साथ

आज की राजनीति की यही ‘मूर्ति’ यानी स्वरूप है. एसपी और बीएसपी मिलकर 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में इन दिनों लगे हैं. इससे बीजेपी की परेशानियां बढ़ गई हैं

Surendra Kishore

अपनी ही मूर्तियां लगवा रही तत्कालीन उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती पर सख्त नाराज समाजवादी पार्टी (एसपी) के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने तब कहा था कि ‘जब हम सत्ता में आएंगे तो इन मूर्तियों को बुलडोजर से तोड़वा देंगे’, पर अब जब सुप्रीम कोर्ट ने उन मूर्तियों पर प्रतिकूल टिप्पणियां की हैं तो एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव दूसरे ही स्वर में बोल रहे हैं.

आज की राजनीति की यही ‘मूर्ति’ यानी स्वरूप है. एसपी और बीएसपी मिलकर 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में इन दिनों लगे हैं. इससे बीजेपी की परेशानियां बढ़ गई हैं.


हाल ही में जब जांच एजेंसियों ने मायावती और अखिलेश यादव पर अलग-अलग कार्रवाइयां शुरू कीं तो भी वो उन मामलों में भी एक दूसरे के बचाव में आ गए थे. जबकि, कभी अधिक दिन नहीं हुए कि वो एक दूसरे के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाया करते थे.

वर्ष 2012 में अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री बनने के बाद कहा था कि मायावती सरकार के बनाए गए पार्कों की खाली जमीन पर अस्पताल और शैक्षणिक संस्थान खोले जाएंगे. वहां खाली जमीन बहुत है. इस पर मायावती ने अखिलेश को धमकाते हुए कहा था कि पार्कों और स्मारकों से दूर ही रहना अन्यथा अंजाम बुरा होगा. यदि उन पार्कों को छुआ गया तो न सिर्फ उत्तर प्रदेश में बल्कि पूरे देश में काूनन-व्यवस्था को संभालना मुश्किल हो जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों अपनी टिप्पणी में कहा था कि पार्कों में मूर्तियों के निर्माण का खर्च बीएसपी और मायावती से वसूल किया जाना चाहिए

याद रहे कि 2009 में वकील रविकांत द्वारा दायर लोकहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की आठ फरवरी को टिप्पणी आई. तब तक इस बीच उत्तर प्रदेश में राजनीतिक समीकरण पूरी तरह बदल चुका है. याचिकाकर्ता ने कहा था कि सार्वजनिक धन का उपयोग अपनी मूर्तियों बनवाने और राजनीतिक दल का प्रचार के लिए किया गया.

मायावती को लेकर राजनीतिक कारणों से बीजेपी का रूख बदला नजर आ रहा 

मुलायम सिंह यादव जब बुलडोजर चलवाने की धमकी दे रहे थे तो बीजेपी मायावती के बचाव में थी. पर अब बीजेपी का रुख भी राजनीतिक कारणों से बदला हुआ नजर आ रहा है. याद रहे कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ‘ऐसा लगता है कि बीएसपी प्रमुख मायावती को लखनऊ और नोएडा में अपनी और अपनी पार्टी के चुनाव चिन्ह हाथी की मूर्तियों बनवाने पर खर्च किया गया सरकारी धन लौटा देना होगा.’

सुप्रीम कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई 2 अप्रैल को करेगी. हालांकि बीएसपी की मांग है कि सुनवाई और बाद में हो. सुप्रीम कोर्ट की ताजा टिप्पणी के बाद मूर्तियों का बचाव करते हुए मायावती ने कहा है कि स्मारकों और पार्कों से सरकार को नियमित रूप से आय हो रही है. वहां पर्यटक टिकट खरीद कर जाते हैं. इससे पहले विवाद उठने पर अगस्त, 2008 में मायावती ने कहा था कि ‘मेरी हमेशा यह राय रही है कि अपने जीवनकाल में ही महापुरुषों की मूर्तियों लगा दी जानी चाहिए. इसीलिए मैंने लखनऊ में अपने मार्गदर्शक कांसीराम की मूर्ति लगवाई.’ पर मान्यवर कांसीराम ने कहा कि ‘उनके बगल में मेरी भी मूर्ति लगनी चाहिए. इसलिए मैंने अपनी मूर्ति लगवाई.’

सबसे पहले दक्षिण भारत से यह खबर आई थी कि वहां के कतिपय नेताओं के जीवनकाल में ही उनकी मूर्तियों लग गई थीं.

बहुजन समाज पार्टी की शुरुआती सभाओं में युवा मायावती और कांसीराम

याद रहे कि 2007 से 2011 तक उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं मायावती ने अपने कार्यकाल में नोएडा और लखनऊ में दो पार्क बनवाए थे. इन पर लगभग 14 सौ करोड़ रुपए खर्च आए. हाथी की 30 पत्थर की मूर्तियों बनवाई गईं. कांसे की 22 प्रतिमाएं लगवाई गईं. इस पर 685 करोड़ रुपए खर्च हुए. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने इस पर 111 करोड़ रुपए के नुकसान का आरोप लगाते हुए मामला दर्ज किया है.

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हाथी बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) का चुनाव चिन्ह है. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले 2016 में मायावती ने कहा था कि अब जब हम सत्ता में आएंगे तो मूर्तियों नहीं लगाएंगे. सिर्फ विकास पर ध्यान देंगे क्योंकि मूर्तियां लगाने का काम पूरा हो चुका है.

मायावती को प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे कांसीराम

बुलंदशहर की मूल निवासी और स्कूल टीचर रहीं मायावती के मार्गदर्शक कांसीराम ने 1995 में कहा था, ‘मैं मायावती को प्रधानमंत्री बनाना चाहता हूं. मुख्यमंत्री के रूप में तो उसकी अभी ट्रेनिंग हो ही है.’

याद रहे कि मायावती उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं. उन्हें प्रधानमंत्री बनाने की इच्छा लिए कांसीराम 2006 में गुजर गए. अब देखना है कि 2019 में क्या होता है!