मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जान पर गंभीर खतरे की खबर सामने आ रही है. इससे पहले महात्मा गांधी, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्याएं हो चुकी हैं. कुछ और महत्वपूर्ण जानें गई हैं.
इन हत्याओं के विस्तार में जाने पर यह साफ हो जाता है कि सुरक्षा नियमों का कड़ाई से पालन हुआ होता तो संभवतः वे जानें बचाई जा सकती थीं. पर समस्या यह है कि ऊपर लिखी गई घटनाओं के बावजूद हमारे नेता सुरक्षा नियमों का पालन करने में अक्सर कोताही बरतते हैं. लगता है कि इतिहास से नहीं सीखना हमारी आदत में शामिल है.
दिल्ली की गद्दी पर तमाम गांधीवादी बैठे हुए थे
2017 में अपने गुजरात दौरे के समय कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने एक प्राइवेट कार में यात्रा की जबकि एस.पी.जी ऐसे दुस्साहस की सख्त मनाही करता है. याद रहे कि तब एस.पी.जी द्वारा उनके लिए तय कार उनके साथ ही चल रही थी.
इस साल गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सुरक्षा नियम को नजरअंदाज करते हुए भीड़ के बीच चले गए थे. गत साल गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि राहुल गांधी लगातार सुरक्षा नियमों की अवहेलना करते रहे हैं. अपनी विदेश यात्राओं में अपने साथ सुरक्षाकर्मी नहीं ले जाते.
पटना में गत साल आयोजित चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी समारोह में एक बुजुर्ग गांधीवादी ने कहा कि ‘महात्मा गांधी पर बढ़ते खतरे की उस समय की सरकार ने अनदेखी की. हत्या से कुछ ही दिन पहले उनकी प्रार्थना सभा में बम फटा. लेकिन किसी ने सुरक्षा का पोख्ता इंतजाम नहीं किया. जबकि दिल्ली की गद्दी पर तमाम गांधीवादी बैठे हुए थे.’
यह भी पढ़ें: जून 1975: जब एक ही महीने में हुईं देश को झकझोरने वाली कई घटनाएं
आम धारणा यही है जो उस गांधीवादी ने कही. पर असलियत यह है कि तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल गांधी जी के लिए पोख्ता सुरक्षा व्यवस्था करना चाहते थे. पर महात्मा गांधी ने पटेल को यह धमकी दे दी थी कि यदि प्रार्थना सभा में आने वाले किसी भी व्यक्ति की तलाशी ली गई तो मैं उसी क्षण से आमरण अनशन शुरू कर दूंगा. ऐसे में पटेल सहित पूरी सरकार सहम गई थी.
सरकार जानती थी कि बापू जो कहते हैं, वह कर गुजरते हैं. उस उम्र में अनशन गांधी जी के लिए खतरनाक साबित हो सकता था. इसलिए उनकी इच्छा के खिलाफ जाकर गांधी की सुरक्षा की कोई विशेष व्यवस्था नहीं की गई.
याद रहे कि 30 जनवरी 1948 को नाथू राम गोडसे ने प्रार्थना सभा में गोली मारकर गांधी जी की हत्या कर दी थी. यदि तलाशी की व्यवस्था होती तो गोडसे पिस्तौल लेकर बिड़ला भवन में नहीं पहुंच पाता.
सरदार पटेल ने कहा था कि ‘20 जनवरी को हुई बम विस्फोट की घटना के पहले बिड़ला हाउस की सशस्त्र सैनिकों द्वारा घेराबंदी की गई थी. बम विस्फोट के बाद प्रत्येक कमरे में एक पुलिस अधिकारी तैनात था. मैं जानता था कि महात्मा को यह पसंद नहीं था और उन्होंने इस संबंध में कई बार मुझसे बहस की थी. अंत में गांधी जी झुके,परंतु सख्ती से जोर देकर कहा कि किसी भी परिस्थिति में उन लोगों की, जो प्रार्थना में शामिल होने आएं, तलाशी न ली जाए.’
पटेल ने कहा था कि ‘मैंने स्वयं गांधी जी से पुलिस को उनकी रक्षा के लिए कर्तव्य पालन की अनुमति देने के लिए वकालत की. परंतु हम असफल रहे.’
जब राजीव गांधी की हुई थी हत्या
ऑपरेशन ब्लू स्टार की पृष्ठभूमि में तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के आवास से सिख सुरक्षाकर्मियों को हटा दिया गया था. ऐसा इंदिरा जी की पूर्वानुमति से संबंधित अफसरों ने किया था.
खुफिया रिपोर्ट के आधार पर संबंधित अफसरों ने खुद यह कदम उठाया था. पर बाद में जब इंदिरा जी को पता चला तो उन्होंने सिख सुरक्षाकर्मियों को वापस बुला लिया. उन्हीं सुरक्षाकर्मियों के हाथों प्रधान मंत्री की हत्या हुई.
इंदिरा जी ने यह कदम तो इस दृष्टि से उठाया था कि किसी पूरे समुदाय पर अविश्वास कैसे किया जा सकता है? पर उस घटना ने देश को यह शिक्षा जरूर दे दी कि ऐसे मामलों में नेताओं को खुद निर्णय नहीं करना चाहिए. उन्हें सुरक्षा विशेषज्ञों पर यह काम छोड़ देना चाहिए.
यह भी पढ़ें: आपसी मतभेद से कांग्रेस का विकल्प नहीं बन सकी सोशलिस्ट पार्टी
इस देश की मौजूदा सरकारों के लिए भी यह एक सबक है. इस अवसर पर 21 मई 1991 की उस दर्दनाक घटना को एक बार फिर याद कर लेना मौजूद होगा.
नेताओं व सुरक्षाकर्मियों के लिए वह घटना एक सबक बन सकती है, यदि वे सबक लेना चाहें तो. उस दिन पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर गए थे.
उन्हें देखने सुनने वालों की काफी भीड़ थी. उसी भीड़ में लिट्टे आतंकवादी भी थे. मानव बम बनी धनु राजीव जी के नजदीक पहुंचना चाहती थी. सुरक्षाकर्मी अनुसूया उसे रोक रही थी. दूर खड़े राजीव गांधी यह सब देख रहे थे. उन्होंने अनुसूया से कहा कि वह उसे आने दे. धनु पास गई और सब कुछ समाप्त हो गया.
क्या ऐसा कोई कानून नहीं बन सकता कि खुद पर खतरा आमंत्रित करने वाले नेताओं के खिलाफ मुकदमा चलाया जा सके? आत्महत्या की कोशिश का मुकदमा तो हो ही सकता है. क्योंकि बड़ी हस्तियों की हत्याओं से उनके परिवार के साथ-साथ देश का भी नुकसान होता है. कभी- कभी तो ऐसी हत्या के बाद दंगे हो जाते हैं जिनमें अनेक जानें जाती हैं.