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भारी कशमकश के बाद हुआ था प्रथम राष्ट्रपति का चुनाव

नेहरु और सरदार पटेल के बीच डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नाम पर मतभेद थे.

Surendra Kishore

अब जबकि देश के नए राष्ट्रपति के चुनाव की भूमिका तैयार होने लगी है, तो यह जानना दिलचस्प होगा कि इस देश के प्रथम राष्ट्रपति का चुनाव कैसे हुआ था.

आसानी से नहीं हुआ था देश के पहले राष्ट्रपति का चुनाव. दरअसल प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू तत्कालीन गवर्नर जनरल सी. राजगोपालाचारी को राष्ट्रपति बनवाना चाहते थे. पर कांग्रेस के अधिकतर नेता राजाजी के खिलाफ थे क्योंकि राजाजी ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया था.


सरदार पटेल तथा कई अन्य बड़े नेता डॉ. राजेंद्र प्रसाद के पक्ष में थे. पटेल गुट के लिए इस बीच  दिक्कत यह हो गई कि डॉ. प्रसाद ने यह लिख कर जवाहर लाल नेहरू को दे दिया कि मैं राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार नहीं हूं.

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इसके बाद तो लगा था कि अब राजेंद्र बाबू राष्ट्रपति नहीं बन पाएंगे. पर स्थिति संभाली पटेल गुट के नेताओं ने. उनमें प्रमुख भूमिका निभाई संविधानसभा के सदस्य महावीर त्यागी ने. त्यागी जी बाद में केंद्र में मंत्री भी बने थे. त्यागी जी की पुस्तक ‘आजादी का आंदोलन हंसते हुए आंसू’ में विस्तार से इस प्रकरण की चर्चा है.

जब जवाहर लाल नेहरू ने राज गोपालाचारी के नाम का प्रस्ताव रखा

दिवंगत त्यागी ने लिखा है कि ‘सरदार पटेल के जिंदा रहते जवाहर लाल जी की प्रवृति भी इतनी जिद्दीपन की नहीं थी जितनी कांग्रेस पार्टी के खुशामदियों ने बाद में बना दी थी. कई अवसर ऐसे आए जब उन्होंने बहुमत के सामने सर झुकाया और पार्टी के साधारण सदस्यों की भांति हंसी मजाक और ताने-वाने का स्वभाव रखा.’

राजेन्द्र प्रसाद और जवाहरलाल नेहरू (Source: Getty Images)

‘एक रात जवाहर लाल जी ने प्रस्ताव रखा कि विधान लागू होते ही भारत के राष्ट्रपति के पद पर श्री राज गोपालाचारी को नियुक्त किया जाए. हमने प्रस्ताव किया कि विधान परिषद यानी संविधान सभा के अध्यक्ष बाबू राजेंद्र प्रसाद को ही प्रथम राष्ट्रपति होना चाहिए.

इस पर कांग्रेस विधान पार्टी की बैठक में बहुत गरमा गरम बहस हुई. पट्टाभि सीता रमैया अध्यक्षता कर रहे थे. जोश में आकर जवाहर लाल जी ने खड़े होकर चुनौती के रूप में कहा कि ‘यदि राज गोपालाचारी को आप स्वीकार नहीं करते हैं तो आपको अपनी पार्टी का नेता भी नया चुनना पड़ेगा.’

मैंने उनसे सवाये जोश में चिल्लाकर सभापति महोदय से कहा कि इस प्रकार की धमकी से हमारी राय बदलने की कोशिश करना कहां तक न्यायसंगत है ?

वैसे ये त्याग पत्र  देना चाहें तो दे देंगे, हम दूसरे साथी को पार्टी का नेता चुन लेंगे. मामला इतना तेजी पकड़ गया कि पार्टी में फूट पड़ जाने के डर से सीता रमैया ने बैठक स्थगित कर दी.

कुछ दिन बाद मुझे सरदार पटेल का फोन आया कि डॉ.राजेंद्र प्रसाद ने तो जवाहर लाल जी को लिख कर दे दिया है कि वह राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार नहीं हैं.

मैं तुरंत राजेंद्र बाबू के यहां जाकर उनसे पूछा कि क्या सचमुच आप मैदान से भाग निकले ? उन्होंने कहा कि भई तुम ही बताओ मैं क्या करता ?

जवाहर लाल जी मेरे घर आए. बोले,राजेंद्र बाबू, मेरी आपसे अपील है कि आप राजा जी को निर्विरोध चुना जाने दो. बस मैं लाजवाब हो गया. उनके कहे अनुसार मैंने लिख कर दे दिया कि राज गोपालाचारी के चुने जाने में मुझे कोई आपत्ति नहीं है और मैं इसका उम्मीदवार नहीं हूं.

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वहां से मैं सीधे सरदार के घर चला गया. उनको सब हाल बताया तो उन्हें धक्का लगा. बोले कि जब दुल्हा ही पालकी छोड़कर भाग गया तो बारात कैसे बढ़ेगी ? सरदार से कुछ और बातें हुईं.

राजेंद्र प्रसाद ने राष्ट्रपति पद से अपना नाम वापस ले लिया था

एक बार फिर मैं राजेंद्र बाबू के घर गया. सरदार की बातें उन्हें बताई. राजेन बाबू दोनों हाथों से सिर थाम कर बैठ गए और बोले, ‘ ‘गांधीवादी होते हुए मेरे लिए यह संभव नहीं था कि मैं बच्चों की तरह  पद के लिए जिद करता. पर सरदार से बात जरूर करनी चाहिए थी. मुझे सुझाई नहीं दिया वर्ना मैं यह कह सकता था कि साथियों और अपने समर्थकों से पूछ कर उत्तर दूंगा. अब जो हो गया से हो गया.’

राजेन्द्र प्रसाद और वल्लभभाई पटेल (Source: Getty Images)

त्यागी लिखते हैं कि मैंने कहा कि एक बात हो सकती है कि आप जवाहर जी को एक पत्र लिख दें कि मैं अपनी बात पर कायम हूं. पर चूंकि पार्टी के साथियों से परामर्श किए बिना अपना नाम वापस लिया है, इसलिए मेरी प्रार्थना है कि आप पार्टी के प्रमुख सदस्यों को बुलाकर समझा दें कि मेरे वापस हो जाने पर निर्विरोध चुनाव हो जाने दें.

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राजेंद्र बाबू को यह सुझाव पसंद आ गया. उन्होंने तुरंत चिट्ठी भिजवा दी. अगले दिन की बैठक में जवाहर लाल जी ने जब यह कहा कि राजेंद्र बाबू ने अपना नाम वापस ले लिया है तो हमारी टोली के सदस्यों ने उनकी बात का विरोध शुरू कर दिया.

अंत में तय हुआ कि जवाहर लाल और सरदार पटेल मिलकर राष्ट्रपति के उम्मीदवार का नाम तय करेंगे. दोनों बैठे. पहले तो मतभेद रहे. पर जब सरदार राजेंद्र बाबू के नाम पर अड़े तो जवाहर लाल ने कहा कि तो ठीक है आप ही राजेंद्र बाबू का नाम घोषित कर दें. पटेल ने घोषणा कर दी. इस तरह हुए डॉ. राजेंद्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति.