आज की पीढ़ी के कम ही लोग यह जानते होंगे कि सोवियत संघ के शासक जोसेफ स्टालिन की बेटी स्वेतलाना भारत की बहू थीं. उनके पति ब्रजेश सिंह के असामयिक निधन के बाद उनके अस्थि भस्म लेकर वह भारत आई थीं.
वह यहीं बसना चाहती थीं. पर भारत सरकार ने उसकी इजाजत नहीं दी क्योंकि सोवियत संघ ऐसा नहीं चाहता था. उन दिनों लियोनिद ब्रेजनेव सोवियत संघ के शासक थे.
भारत सरकार अपने मित्र देश से इस सवाल पर कोई विवाद नहीं करना चाहती थी. अंततः वह पहले अमेरिका गईं. बाद में ब्रिटेन की भी नागरिक बनी. पर 2011 में आर्थिक परेशानियों के बीच अमेरिका में स्वेतलाना का 85 साल की उम्र में निधन हो गया.
स्वेतलाना की जीवनी के प्रकाशक ने स्वेतलाना को 25 लाख डॉलर दिया था. उस समय की यह बहुत बड़ी राशि थी. इसमें से अधिकांश पैसे स्वेतलाना ने बांट दिए थे. बाद में वह आर्थिक परेशानी में रहीं.
पूर्व विदेश मंत्री दिनेश सिंह के चाचा ब्रजेश सिंह कम्युनिस्ट थे और मॉस्को में रहते थे.
स्वेतलाना और ब्रजेश सिंह की शादी को नहीं मिली थी मंजूरी
उत्तर प्रदेश के मशहूर कालाकांकर राजघराने से संबंध रखने वाले ब्रजेश सिंह का कम्युनिस्ट होना उतना ही चकित करता था जितना स्टालिन की बेटी का अपने परिवार और कम्युनिस्ट विचारधारा से विद्रोह करना. स्वेतलाना ने कहा था कि ‘मुझे राजनीति से नफरत है. मैं खुले वातावरण में रहना चाहती हूं.’
खैर ब्रजेश सिंह और स्वेतलाना जब अपने-अपने इलाज के सिलसिले में क्रेमलिन के एक अस्पताल में थे तो उन दोनों के बीच प्रेम हो गया.
स्वेतलाना ने ब्रजेश से शादी कर ली. लेकिन तकनीकी तौर पर उस शादी की वहां मंजूरी नहीं मिली थी. व्यावहारिक रूप से 1964 से दोनों पति-पत्नी की तरह रहते थे.
गंभीर बीमारी के कारण जब 1966 में ब्रजेश सिंह का निधन हो गया तो स्वेतलाना भारत आईं.
स्वेतलाना पर लोकसभा में हुई थी चर्चा
भारत में शरण नहीं मिलने पर वह अमेरिका चली गईं. इस बीच वह कई देशों में घूमती रहीं.
स्वेतलाना को गुप्त तरीके से अमेरिकी दूतावास की मदद मिली और वे भारत से चली गईं जिसके बाद लोकसभा में इस मुद्दे पर गरमागरम चर्चा हुई थी.
विदेश मंत्री एम.सी.छागला ने कहा कि ‘स्वेतलाना के प्रति मेरे मन में भी गहरा सम्मान है. कानून उसे विवाहिता माने या न माने मैं उन्हें विवाहिता मानता हूं. उसकी वफादारी और उसका प्रेम किसी भी विवाहिता पत्नी से अधिक है.'
उन्होंने आगे कहा, 'लेकिन मैं यह पूरी सच्चाई के साथ कहना चाहता हूं कि उन्होंने विदेश मंत्रालय के किसी भी मंत्री या अफसर से शरण नहीं मांगी थी न ही वीजा बढ़ाने का आग्रह किया था. वह जब भी भारत आना चाहेगी, भारत उसका स्वागत करेगा.’
संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के सांसद डॉ. राम मनोहर लोहिया ने स्वेतलाना के प्रश्न को भारत की विदेश नीति के सवाल के रूप में उठाया था.
मंत्री की बात का खंडन करते हुए डॉ.लोहिया ने इलाहाबाद के देवेंद्र बाहरी को लिखे स्वेतलाना के पत्र का सदन में हवाला दिया. उस पत्र के अनुसार ‘अब मैं कालाकांकर में न रह सकूंगी क्योंकि राजा साहब यह जानकर खुश हैं कि मैं मॉस्को जा रही हूं.’
भारत में रहना चाहती थीं स्वेतलाना
स्वेतलाना ने इलाहाबाद के जजों तक से अनुरोध किया था कि वे उसे भारत में रहने की इजाजत दिलाएं.
डॉ. लोहिया ने यह भी कहा कि, ‘बेहतर होता कि अमेरिका के बजाए स्वेतलाना भारत में ही रहतीं क्योंकि अमेरिका तो स्वेतलाना को हथियार बना सोवियत संघ को खरोंचेगा.’
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कांग्रेसी सांसद लक्ष्मी कांतम्मा ने कहा, 'यदि हमारे आश्रमों और तीर्थों में सैकड़ों विदेशी स्त्रियां रह सकती हैं तो स्वेतलाना भारत में क्यों नहीं रह सकती हैं.'
प्रजा समाजवादी पार्टी के सुरेंद्र नाथ द्विवेदी के अनुसार विदेश मंत्री ने राज्यसभा में कहा है कि, 'स्वेतलाना और दिनेश सिंह के बीच व्यक्तिगत मामला है और सरकार उसमें नहीं पड़ना चाहती.'
सुरेंद्र नाथ द्विवेदी ने कहा कि यह चाची और भतीजे का झगड़ा नहीं है बल्कि एक राजनीतिक मामला है. वह सब कुछ छोड़कर भारत में रहने आई हैं और भारत सरकार ने उसे रहने की इजाजत नहीं दी.
मधु लिमये ने सदन को बताया था कि न्यूयार्क टाइम्स की एक खबर के अनुसार स्वेतलाना ने कहा था कि, 'अगर मुझे भारत छोड़ने के लिए कहा गया तो मैं यमुना में कूद जाऊंगी या कुतुब मीनार से छलांग लगा लूंगी.'
पहले ब्रिटिश फिर अमेरिकी नागरिक बनीं
सीपीएम के उमानाथ ने यह कह कर सदन में सनसनी फैला दी कि स्वेतलाना लखनऊ में सीआईए के एक एजेंट के साथ सिनेमा देखने गई थी. उसे एक अमेरिकी एजेंट ने रातोंरात भारत से बाहर जाने दिया.
भारत में अमेरिका के तत्कालीन राजदूत ने बाद में यह लिखा था कि उन्होंने स्वेतलाना को भारत से सुरक्षित बाहर भेजने का प्रबंध कर दिया था.
स्वेतलाना को 1978 में अमेरिकी नागरिकता भी मिल गयी थी. कुछ समय के लिए वह ब्रिटिश नागरिक भी रहीं.
1984 में वह सोवियत संघ वापस लौटी थीं पर फिर वह अमेरिका गई. वहीं 2011 में स्वेतलाना का निधन हो गया. कुल मिलाकर स्वेतलाना का जीवन हलचलपूर्ण और उदास ही रहा.
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