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आप में बगावत: समस्या की जड़ में अरविंद केजरीवाल खुद हैं!

केजरीवाल ऐसे मामलों में तभी दखल देते हैं जब हालात काबू से बाहर होने लगें

Akshaya Mishra

आम आदमी पार्टी को करीब से जानने वाले मानते हैं कि आप एक राजनीतिक दल नहीं भानुमती का कुनबा है. इसके पास नेता भले ही कम हों लेकिन पार्टी में जोड़तोड़ और साजिशों की भरमार है.

पार्टी में अनेक गुट हैं और हर गुट के अंदर बहुत से गुट हैं. यहां हर नेता दूसरे को काटने में लगा रहता है. सूत्र बताते हैं कि पार्टी के पास एक व्यापक जासूसी तंत्र है जो हर नेता की गतिविधियों पर नजर रखता है.


पार्टी में 'डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमेंट' भी है जो नेतृत्व और उसके करीबियों के खिलाफ समझे जाने वाले नेताओं पर सोशल मीडिया के जरिए हल्ला बोलता है.

इन बातों की सत्यता पूरी तरह प्रमाणित नहीं की जा सकती. लेकिन हाल के घटनाक्रम संकेत देते हैं कि 2015 में विधानसभा चुनाव में जीत के बाद से ही पार्टी के भीतर कटुता और अविश्वास का माहौल बना हुआ है.

आप को अलविदा कह बीजेपी का दामन थाम चुकी शाजिया इल्मी ने दो साल पहले कहा था, 'आप नेतृत्व जिस नेता से छुट्टी पाना चाहता है उसके खिलाफ मनगढ़ंत और झूठी अफवाहें फैलाई जाती हैं. आप के लिए यह कोई नई बात नहीं है. यह काम दिल्ली में सरकार बना लेने के बाद भी जारी है.'

पार्टी नेता अमानुल्लाह ने कुमार विश्वास के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था

डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमेंट

शाजिया इल्मी के मुताबिक पार्टी के अंदर एक 'डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमेंट' है जिसका काम नेतृत्व को चुनौती देने वाले नेताओं को दुरुस्त करना है.

कुमार विश्वास और अमानतुल्लाह के मसले पर छिड़ी जंग पार्टी में पहले से मौजूद गंदगी का एक उदाहरण भर है.

अगर पार्टी खुद ही विनाश की राह पर हो तो अमानतुल्लाह खान की राजनीतिक मामलों की समिति से छुट्टी होती है या कुमार विश्वास को कोई बड़ी जिम्मेदारी मिलती है इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है.

खबरों के मुताबिक कुमार विश्वास को खुश करने के लिए एक फार्मूले पर सहमति बन गई है. लेकिन अंदरुनी कलह और सिर फुटौव्वल में फंसी पार्टी के लिए यह सिर्फ फौरी राहत ही साबित होगी.

इस प्रकरण के खत्म होते ही कोई और विवाद छिड़ जाएगा. हो सकता है कि पार्टी के दूसरे नेता बीजेपी में शामिल होने की योजना बना रहे हों या पार्टी के लिए कोई और मुश्किल खड़ी करने में जुटे हों.

विडंबना यह है कि आप में अरविंद केजरीवाल के अलावा राजनैतिक कौशल रखने वाला कोई और नेता नहीं है. यह कमोबेश वैसी ही स्थिति है जैसे कि नरेंद्र मोदी ब्रांड के बगैर बीजेपी के बहुत से सांसद-विधायक अपनी जमानत भी नहीं बचा पाएंगे.

हैरान करने वाली बात है कि गिने-चुने नेताओं वाली एक नई-नवेली पार्टी इतनी जल्दी इस राह पर चली गई. लेकिन पार्टी की मौजूदा स्थिति को समझना कठिन नहीं है. किसी भी पार्टी को एक सूत्र में बांधने के लिए एक विचारधारा की जरूरत पड़ती है.

लेकिन विचारधारा का आप से कोई वास्ता नहीं है. पार्टी के लिए लोगों को साथ लेकर चलने और आदर्शवाद बीते दिनों की बातें हो गई हैं. निहित स्वार्थ और नेताओं में अपने वजूद को बनाए रखने की कला ने ही पार्टी को कायम रखा है.

ऐसी स्थिति में अविश्वास की भावना बलवती हो जाती है. अपने अस्तित्व को बरकरार रखने के लिए बड़े नेताओं को हमेशा चौकन्ना रहना पड़ता है. ऐसे में तनिक सा भी खतरा महसूस होते हीं नेताओं में सिर फुटौव्वल शुरू हो जाती है.

ज्यादातर लोग विवाद के लिए पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल को जिम्मेदार मान रहे हैं

समस्या की जड़ केजरीवाल

वरिष्ठ नेताओं में केजरीवाल से नजदीकियां बढ़ाने की होड़ मची है. इसकी वजह समझना कठिन नहीं है. अगले साल दिल्ली से राज्यसभा के तीन सांसद चुने जाने हैं. चूंकि विधानसभा में आप को बंपर बहुमत हासिल है ऐसे में राज्यसभा की इन सीटों पर उसकी जीत पक्की है.

ऐसे में राज्यसभा का सपना देखने वाले नेताओं के लिए केजरीवाल से अच्छे संबंध रखना जरूरी है. इसके लिए यह और जरूरी है कि अन्य दावेदारों को केजरीवाल से दूर रख जाए.

अगर पार्टी नेतृत्व का नजरिया साफ हो तो हालात को अब भी संभाला जा सकता है. लेकिन ऐसा लगता नहीं है. शायद केजरीवाल खुद समस्या की जड़ हैं. ऐसा नेतृत्व जो खुद को असुरक्षित महसूस करता हो और जिसे खुद की क्षमता पर भरोसा न हो हमेशा पार्टी में टकराव और झगड़े को बढ़ावा देता है ताकि उस पर सवाल न उठे.

अब तक के घटनाक्रम यही संकेत देते हैं कि केजरीवाल पार्टी नेताओं के बीच कलह को बढ़ावा देते हैं. वे पार्टी में एक गुट के करीब माने जाते हैं. यह गुट विरोधी गुट के बड़े नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाना चाहता है.

केजरीवाल ऐसे मामलों में तभी दखल देते हैं जब हालात काबू से बाहर होने लगें. कुमार विश्वास के प्रकरण में इस बात को बखूबी देखा जा सकता है. सूत्रों का कहना है कि पार्टी में मौजूदा कलह मनीष सिसोदिया और संजय सिंह के गुट में टकराव का नतीजा है.

लिहाजा भले ही पार्टी के नेता इसे मामूली बात करार दे रहे हों आप की अंदरूनी कलह खत्म नहीं होने वाली है. हो सकता है कि दूसरा पक्ष पहले से ही अगले कदम की तैयारी कर रहा हो.