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क्या 'सबका साथ' से बीजेपी का 'विकास' रोका जा सकता है?

नई बीजेपी को हराने के लिए महागठजोड़ का विचार कितना कारगर है?

Harshvardhan Tripathi

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर बात में सबका साथ सबका विकास कह रहे हैं. लेकिन, राजनीतिक तौर पर देखें, तो ये नारा सिर्फ और सिर्फ बीजेपी का विकास कर रहा है. अब सवाल ये है कि क्या 'सबका' साथ हो जाए, तो बीजेपी का विकास रोका जा सकता है?

यहां सबका मतलब राजनीतिक तौर पर एसपी+बीएसपी+कांग्रेस से है. दरअसल इस महागठबंधन या 'सबका साथ' का मजबूत आधार उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में पार्टियों को मिले मतों के आधार पर बनता दिख रहा है.


उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 39.7% मत मिले. बहुजन समाज पार्टी को 22.2% और समाजवादी पार्टी को 21.8% मत मिले हैं. कांग्रेस को 6.2% मत मिले हैं.

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तो अगर सीधे-सीधे इन तीनों पार्टियों के मतों को मिला दिया जाए, तो वो 50.2% बनता है. यानी बीजेपी के 39.7% मत 'सबका' साथ होते ही बहुत कम पड़ जाएंगे और बिहार की तरह तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ताकतें जीत हासिल कर लेंगी.

आसान नहीं होगी 'महागठजोड़' की राह 

ये एक सीधा आकलन हुआ. लेकिन, इसको अगर थोड़ा गहराई से समझने की कोशिश करें, तो तस्वीर इतनी साफ नहीं है. 2019 छोड़िए, भारतीय जनता पार्टी ने मुख्यमंत्री और दोनों उपमुख्यमंत्री गैर विधायक बनाकर इस 'सबका बनाम बीजेपी' का अवसर तुरंत तैयार कर दिया है.

6 महीने के भीतर गोरखपुर के सांसद आदित्यनाथ योगी, लखनऊ के मेयर दिनेश शर्मा और इलाहाबाद की फूलपुर सीट से सांसद केशव मौर्या को विधानसभा में पहुंचना होगा.

गोरखपुर से मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी सांसद हैं और अब मान लें के वो अपने संसदीय क्षेत्र की किसी विधानसभा से चुनाव लड़ेंगे. गोरखपुर संसदीय क्षेत्र में गोरखपुर शहर, ग्रामीण, कैम्पियरगंज, सहजनवा और पिपराइच विधानसभा आती हैं.

सबसे आदर्श स्थिति योगी के लिए ये होगी कि वो शहर के विधायक राधामोहन दास अग्रवाल को लोकसभा चुनाव लड़ाएं और शहर की सीट से विधायक का चुनाव लड़ें. अभी हुए चुनाव में बीजेपी के राधामोहनदास अग्रवाल 1,22,221 वोट पाकर जीते हैं. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी यहां मिलकर लड़े और राहुल सिंह को 61491 मत मिले. बहुजन समाज पार्टी के जनार्दन चौधरी को 24297 मत मिले.

अब अगर यहां तीनों मिलकर चुनाव लड़ें और मान लें कि योगी को एक भी मत ज्यादा नहीं मिलने वाले. ये मैं इसलिए कह रहा हूं योगी गोरखपुर संसदीय क्षेत्र से 5 बार से सांसद हैं और जब मुख्यमंत्री किसी विधानसभा से चुनाव लड़ता है तो जनता एकमुश्त मत उसकी झोली में डाल देती है. फिर भी मैं अभी के मत के आधार पर भाजपा के 1,22,221 और तीनों दलों के मत मिलाता हूं तो 61491+24297 मिलाकर कुल 85788 मत ही बनते हैं और बड़ी आसानी से योगी विधानसभा पहुंच जाएंगे.

गोरखपुर में योगी को कहीं से भी हराना मुश्किल

जहां तक योगी के इस्तीफा देने के बाद खाली होने वाली गोरखपुर लोकसभा सीट की बात है, तो यहां भी आंकड़े पूरी तरह से बीजेपी के पक्ष में हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में योगी 5,39,127 मत पाकर जीते थे. ये लोकसभा चुनाव में पड़े मतों का 51.80% था. समाजवादी पार्टी को 21.75%, बहुजन समाज पार्टी को 16.95% और कांग्रेस को 4.39% मत मिले थे. तीनों मिलकर चुनाव लड़ें, तो इन्हें संयुक्त रूप से 43.09% मत ही मिलते दिख रहे हैं.

इलाहाबाद की फूलपुर लोकसभा सीट से चुनकर केशव प्रसाद मौर्या आए हैं और अब उपमुख्यमंत्री बनने की वजह से उनका विधानसभा में पहुंचना जरूरी है. केशव प्रसाद मौर्या की लोकसभा सीट में 5 विधानसभाएं आती हैं.

इलाहाबाद उत्तरी, इलाहाबाद पश्चिमी, फाफामऊ, सोरांव और फूलपुर. पश्चिमी से विधायक चुने गए सिद्धार्थनाथ सिंह कैबिनेट मंत्री बनाए गए हैं. इसलिए सिद्धार्थनाथ सिंह की सीट पर चुनाव होने की बात बेमानी है.

सोरांव सीट गठजोड़ में अपना दल सोनेलाल को गई थी और अपना दल सोनेलाल के जमुना प्रसाद वहां से जीते हैं. इसलिए इस सीट पर भी दोबारा चुनाव की संभावना कम ही बनती है. अब बची तीन सीटें इलाहाबाद उत्तरी, फाफामऊ और फूलपुर.

इलाहाबाद उत्तरी से बीजेपी के हर्षवर्धन बाजपेयी 89,191 मत पाकर जीते हैं. समाजवादी पार्टी के सहयोग से कांग्रेस प्रत्याशी अनुग्रह नारायण सिंह को 54,166 मत मिले और बहुजन समाज पार्टी के अमित श्रीवास्तव को 23,388 मत मिले हैं. अब अगर यहां से केशव मौर्या अपने विधायक को इस्तीफा दिलाकर चुनाव लड़ते हैं और यही स्थिति बरकरार रहती है, तो भी बीजेपी के 89,191 के मुकाबले तीनों पार्टियों के संयुक्त प्रत्याशी के 77,554 मत ही बनते हैं.

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केशव को फूलपुर लोकसभा चुनाव 2014 में 5 लाख से ज्यादा मत मिले थे, जो कुल मतों का 52.43% था. अगर यहां एसपी+बीएसप+कांग्रेस तीनों का मत जोड़ दिया जाए, तो वो 43.43% ही बनता है. यानी संसदीय चुनाव में भी सिर्फ गठजोड़ करके जीतने का ख्वाब टूटेगा.

भारतीय जनता पार्टी के दूसरे उपमुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा लखनऊ से मेयर थे. इसलिए उनके पास कोई संसदीय क्षेत्र नहीं है और लखनऊ के ज्यादातर विधायक मंत्री हो गए हैं. विकल्प के तौर पर लखनऊ उत्तरी और पश्चिम सीट ही बचती है.

इस बात की संभावना कम ही है कि इन दोनों में से कोई अपनी सीट छोड़ेगा. हालांकि, इनमें से किसी को भी मेयर की कुर्सी देकर उस विधानसभा से दिनेश शर्मा चुनाव लड़ सकते हैं.

लखनऊ उत्तरी में बीजेपी 1,09,315 मत पाकर जीती है. अगर तीनों दलों के मत मिला जाएं, तो 82039+29955 मिलाकर 1,11,994 मत बनते हैं. लेकिन, सवाल ये है कि क्या उपमुख्यमंत्री को विधायक बनाने के नाम पर उत्तरी की जनता इसी समीकरण पर मत डालेगी?

यही हालात लखनऊ पश्चिम में भी हैं. बीजेपी को मिले 93,022 मतों के मुकाबले तीनों दलों को मिलाकर 79950+ 36247, कुल 116197 मत बनते हैं. इसलिए बेहतर ये होगा कि तुरंत होने जा रहे लोकसभा और विधानसभा के उपचुनावों में जुड़कर अपनी ताकत घटाने के बजाए समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस जमीनी स्तर पर काम करके सबका साथ लेने की कोशिश करें.

मत प्रतिशत जोड़कर हराने का पहला प्रयास असफल

मत प्रतिशत जोड़कर साथ आकर बीजेपी को हराने का पहला प्रयास बुरी तरह से असफल हो चुका है. लोकसभा चुनाव 2014 में बीजेपी को 42.30% मत मिले थे. समाजवादी पार्टी को 22.20%, बहुजन समाज पार्टी को 19.60% और कांग्रेस को 7.50% मत मिले थे.

लेकिन, जब समाजवादी पार्टी और कांग्रेस विधानसभा चुनाव में मिलकर लड़े, तो कांग्रेस को मत 7.50% से घटकर 6.2% रह गया. समाजवादी पार्टी के हिस्से आए 22.20% मत भी थोड़ा घटकर विधानसभा चुनाव में 21.8% रह गए. हां, बहुजन समाज पार्टी का मत 19.60% से बढ़कर 22.2% हुआ. इसका सीधा सा मतलब है कि मतदाता वैसे नहीं जुड़ता, जैसे नेता जुड़ जाते हैं.

इसलिए इस नई वाली भारतीय जनता पार्टी से लड़ने के लिए समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस को साथ आने से पहले खुद को ताकतवर करना होगा.