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मोदी-नीतीश का रिश्ता: ऊपर से ठीक-ठाक, भीतर से रामरेखा घाट

आखिर ऐसी क्या वजह थी कि बिहार सरकार की पूरी तैयारी के बावजूद केंद्रीय मंत्री राजगीर बैठक के लिए नहीं पहुंचे?

Kanhaiya Bhelari

यह महज इत्तेफाक नहीं हो सकता है कि देश के पीएम नरेंद्र मोदी अपने ‘मित्र’ और बिहार के सीएम नीतीश कुमार को पब्लिक डोमेन में वचन दें कि ‘मैं हर तरह की मदद करूंगा’ और उसे पूरा करने में कोताही बरतें. दिल्ली से लेकर पटना तक सियासी गलियारे में कानाफूसी है कि जरूर कोई राज की बात है. यही वजह है कि ऊपर वाला नीचे वाले को झटका दे रहा है.

दोनों नेताओं के बीच सुलह के बाद नव-गठबंधन हुए 100 दिन से ज्यादा हो गए हैं. बारीकी से आलोचनात्मक विश्लेषण करें तो पता चलता है कि सबकुछ ठीक नहीं है. देशज शब्दों में कहें तो ‘ऊपर से ठीक-ठाक, भीतर में रामरेखा घाट’.


कुछ तो गड़बड़ है!

नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के बीच की खटास कई मौकों पर महसूस की गई है. लेकिन 10 और 11 नवंबर को बिहार में पावर मिनिस्टर्स का अहम सम्मेलन अचानक रद्द होना इस आशंका को और बढ़ाता है.

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पिछले एक महीने से बिहार सरकार रात-दिन एक करके जरासंध की जन्मस्थली राजगीर में देशभर से जुटने वाले मंत्रियों के रहने, खाने, उठने, बैठने, सोने और घूमने की व्यवस्था में लगी रही. दस प्रदेशों के बिजली मंत्री एवं सीनियर ऑफिसर पटना में लैंड भी कर चुके थे. रात्रि को संगीतमय बनाने के लिए बॉलीवुड के सिंगर सोनू निगम भी पधार चुके थे. सारी तैयारी पूरी कर ली गई थी.

लेकिन अचानक पीएमओ से बैठक रद्द करने का मैसेज आता है. और बैठक की सारी तैयारियां धरी की धरी रह जाती हैं. मजबूरन सोनू निगम से पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में 10 नवंबर की रात में कार्यक्रम करवाकर पैसा वसूल किया गया. न चाहते हुए भी भारी मन से सीएम नीतीश कुमार और मेहमान बिजली मंत्रियों ने सोनू निगम का गाना सुना.

बिहार के एक नीतीशमय मंत्री पीएमओ के मैसेज पर कुछ इस प्रकार बमके ‘पिछले चार बार से इसी प्रकार की नौटंकी केंद्र सरकार के मुखिया कर रहे हैं. तजुर्बे के आधार पर मैं कह सकता हूं कि नीतीश कुमार की इमेज को डैमेज करने का षड़्यंत्र किया जा रहा है.'

क्या है केंद्र सरकार का मकसद?

केंद्र की पहल पर ही बिजली मंत्रियों की अंतर्राज्यीय बैठक बिहार में आयोजित की गई थी. इस प्रकार की बैठक किसी न किसी प्रदेश में हर 6 महीने पर की जाती है. पिछली बैठक मई में दिल्ली में हुई थी. उससे पहले दिसंबर में बड़ौदा में की गई थी. बीजेपी कोटे से बिहार सरकार के एक मंत्री का कहना है कि ‘10 नवंबर को 5 बजे से होने वाली केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में सारे मंत्रियों को रहना था. केंद्रीय बिजली राज्यमंत्री राजकुमार सिंह को राजगीर की बैठक का उद्घाटन करना था. वो कैबिनेट की बैठक में भाग लेने चले गए तो बैठक रद्द करना पड़ा.'

‘कैबिनेट मीटिंग के कारण राजगीर सम्मेलन रद्द किया गया’

इस थ्योरी को न तो जेडीयू के कद्दावर नेता और न ही राजनीतिक विश्लेषक पचा पाए. बिहार सरकार के एक टॉप ऑफिसर का तो यहां तक कहना है ‘हमलोगों ने राजकुमार सिंह से अनुरोध किया था कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से ही सम्मेलन का उदघाटन कर दे. यह भी नहीं हुआ. जब लंगड़ी ही मारना था तो एक सप्ताह पहले ही इन्फॉर्म कर देते. कम से कम गरीब राज्य का लाखों रुपया तो बच जाता जो तैयारी और सिंगर के पेमेंट पर खर्च हुआ’.

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बैठक रद्द करने के पीछे क्या वजह हो सकती है? राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, पीएम नरेंद्र मोदी का सिक्स सेंस बता रहा है कि सीएम नीतीश कुमार अभी भी केंद्रीय राजनीति में अपनी भूमिका तलाश रहे हैं. एनडीए से जुड़ने के बाद बाल विवाह पर रोक, दहेज उन्मूलन और सरकार के आउटसोर्सड नौकरियों में आरक्षण का मुद्दा उठाकर सीएम ने नेशनल मंच पर अपनी खोई हुई इमेज को रीस्टोर करने में आंशिक सफलता अर्जित की है.

बताया जा रहा है कि राजगीर जलसा में सीएम के लिए 90 मिनट का भाषण तैयार किया गया था. इसमें यह भी विस्तार से वर्णित था कि कैसे नरेंद्र मोदी सरकार ने नीतीश कुमार की ब्रेन चाइल्ड -‘सौभाग्य योजना, हर घर में बिजली’- को रेप्लीकेट किया. कहते हैं कि मोदी के राजनीतिक मिजाज ने यह ताड़ लिया था कि नीतीश कुमार शो को हाईजैक करके राजनीतिक रूप से मजबूत बनने की कोशिश करेंगे. इसीलिए कैबिनेट मीटिंग की आड़ में सम्मेलन को ही रद्द करवा दिया गया, ऐसा जेडीयू के एक प्रवक्ता का मानना है.

रद्द नहीं सिर्फ स्थगित किया

बहरहाल, मोदी सरकार में मानव संसाधन राज्य मंत्री उपेन्द्र प्रसाद कुशवाहा ने फोन पर बताया ‘बिजली मंत्रियों की राजगीर में होनेवाली बैठक को रद्द नहीं बल्कि स्थगित किया गया है. बैठक बाद में होगी.

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स्थगन के पीछे मूल रूप से कैबिनेट की मीटिंग है जिसमें राजकुमार सिंह की मौदूदगी जरूरी थी. पता नहीं कैसे लोग हर बात को राजनीति से जोड़ देते हैं.' कुशवाहा की बात को आगे बढ़ाते हुए एक वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं ‘नरेंद्र मोदी कभी भी अटल बिहारी वाजपेयी वाली भूल नहीं करेंगे. 2004 लोकसभा चुनाव वाजपेयी इसलिए हार गए क्योंकि उन्होंने अपने तीन सहयोगियों एम करूणानिधि, राम विलास पासवान और ओम प्रकाश चैटाला को झटक दिया था. नीतीश कुमार की अपनी पहचान है, उनके पास वोट है. मोदी कम से कम 2019 तक उनसे पंगा नहीं लेंगे.’

फिर क्या है वजह?

लेकिन ऐसी कोई वजह नहीं है कि अपने राजनीतिक कुनबे के बीच का सीएम हाथ जोड़कर कुछ मांगे और दाता मांगने वाले की तारीफ करके अंत में निराश कर दे? उसी प्रकार बाढ़ प्रभावितों की हेल्प के लिए पीएम से उनका सीएम 7000 करोड़ रुपए की मांग करे और भी तक एक पैसा भी ना मिले?

जबकि जनता जनार्दन के बीच नरेंद्र मोदी को दानवीर कर्ण की तरह अवतारी पुरुष माना जाता है. देने से पहले वो पूछते भी हैं ‘भाईयों और बहनों बोलिए कितना दूं?’ और दे भी देते हैं. 2015 में आरा में हुई एक बैठक में उन्होंने लोगों से पूछकर धन देने का ऐलान भी किया था.