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बिहार टॉपर घोटाला: जितने घोटालेबाज कंसिस्टेंट हैं उतनी ही सरकार भी!

हाईकोर्ट के आदेश के बाद 1998 में भी बिहार में 15 प्रतिशत रिजल्ट आया था

Vivek Anand

बिहार के टॉपर्स घोटाले की बड़ी चर्चा रही. घोटाले की खबर पर तीन तरह की प्रतिक्रिया देखने को मिली.

पहली सीधी सादी वाली प्रतिक्रिया- ‘पिछले साल के टॉपर घोटाले (रूबी राय के प्रोडिगल साइंस वाला ) में छीछालेदार के बाद भी सरकार और प्रशासन ने कुछ सबक नहीं लिया.’


दूसरी प्रतिक्रिया ऐसे लोगों की तरफ से जो बिहार का नाम सुनते ही बिदक जाते हैं, ऐसे लोगों की राय में – ‘बिहार में तो ये सब चलता रहता है...सो इग्नोर इट...आगे बढ़ो...ये नहीं सुधरने वाले.’

और तीसरी प्रतिक्रिया ऐसे लोगों ने दी जो खुद बिहार से हैं और अपनी अस्मिता पर लगे कलंक से कलपित थे, सो भड़ासित होकर जवाब दे रहे थे- ‘गणेश के मुंह में माइक घुसेड़कर बिहार का गुड़-गोबर करने वाले पत्रकार पहले खुद की प्रतिभा को भी आंक लें. सरगम के सवालों से गणेश को कंफ्यूज करने वाले संवाददाता जरा संवाद और संचार के दो-चार सिद्धांत बताकर ही दिखा दें. अठारहवीं का पहाड़ा पूछने वाले लोग पहले खुद सत्रहवीं का पहाड़ा सुनाकर बताएं.’

हालांकि भिन्न-भिन्न भांति के इन तीन प्रतिक्रियाओं से अलग सरकार और प्रशासन की प्रतिक्रिया एक ही रही. पहले आर्ट्स टॉपर गणेश के पूरे बायोडाटा मीडिया में आने का इंतजार किया गया. फिर जब घर-पता, मां-बाप की गुरबत से लेकर बहन-बहनोई के झगड़े तक की पूरी जानकारी सामने आ गई तो एफआईआर दर्ज करके उसे गिरफ्तार कर लिया गया.

टॉपर घोटाले को नीतीश एक चुनौत मानते हैं

ऐसे मामलों में सरकार और प्रशासन एक ही लीक पर चलते हैं. इसका रिकॉर्ड भी है. बिहार में पिछले टॉपर घोटाले के वक्त भी बिल्कुल यही हुआ था. जब 'प्रॉडिगल साइंस' जैसे महान विषय का ईजाद करने वाली रूबी रॉय के घर-परिवार से लेकर खान-पान और पहनावे तक की सारी जानकारी मीडिया ने दे दी, तब जाकर जानकारी के पूरे पुलिंदे के साथ पुलिस उसे अपने साथ ले गई.

सरकार भी अपने पथ से बिना डगमगाए उसी लीक पर चलते हुए जांच कमेटी बना दी. मामले की निष्पक्ष जांच का भरोसा दिया और इस बड़ी चुनौती से निपटने में कोई कोर कसर न छोड़ने का यकीन दिलाया.

बिहार टॉपर गणेश कुमार

सोचिए कि सरकार अपनी सोच से बिना डगमगाए लीक पर चलने की कितनी अभ्यस्थ है कि जैसे पिछली बार वादा किया था, वैसा ही वादा इस बार भी कर रही है. जैसे पिछली बार चुनौतियों से निपटने का यकीन दिलाया था, वैसे ही यकीन इस बार भी दिला रही है.

बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने टॉपर्स घोटाले पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की है. कहा है, ‘हम इसको चुनौती के रूप में लेते हैं. पूरी चीजों का मंथन करके दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होगी.’

नेताओं के बारे में कितनी गलत धारणा रखते हैं लोग कि ये गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं, इन पर भरोसा करना मुश्किल है, पता नहीं कब किसके पलड़े में झुक जाएं. ऐसे लोगों को नीतीश कुमार के इस बयान से समझना चाहिए कि वो सालभर बीत जाने के बाद भी रत्तीभर भी नहीं बदले हैं.

जैसे पिछली बार टॉपर घोटाले को चुनौती के तौर पर लिया था, वैसे ही इस बार भी लिया है, जैसे पिछली बार कार्रवाई की थी, वैसे इस बार भी करेंगे. इतनी कंसिस्टेंसी की तारीफ कैसे न की जाए. बिहार में जितने घोटालेबाज कंसिस्टेंट हैं उतनी ही सरकार भी है.

नीतीश कुमार ने तो यहां तक कहा है कि टॉपर्स घोटाले का नाम लेकर सरकार को बदनाम करने की जो कोशिश चल रही है उनको बता दें कि इस गड़बड़ी की खोज शिक्षा विभाग ने ही की थी. फिर इस पर कार्रवाई भी की. इसलिए सरकार को घेरना ठीक नहीं है.

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बिहार की गठबंधन सरकार में शिक्षा मंत्रालय कांग्रेस के अशोक चौधरी के पास है. और हालात ऐसे हैं कि जिस तरह देश की राजनीतिक नब्ज से कांग्रेस अपनी पकड़ खोती जा रही है वैसे ही बिहार की शिक्षा व्यवस्था से मंत्रालय दूर हो रहा है. तभी तो लगातार दूसरे साल टॉपर्स घोटाले से इज्जत पर बट्टा लगा है.

हालांकि मुख्यमंत्री जब ये कहते हैं कि घोटाले की गड़बड़ी शिक्षा विभाग ने ही पकड़ी है इसलिए सरकार को कोसना ठीक नहीं, तो उनका ये तर्क बिल्कुल वैसा ही लगता है जब चारा घोटाले पर लालू यादव कुछ ऐसा ही कहते हुए बचने की कोशिश करते थे. कई मौकों पर लालू यादव ने कहा था कि उनकी सरकार ने तो घोटाले के बारे में पता लगाकर इसकी जांच शुरू करवाई थी. लेकिन कुछ कमबख्तों ने उन्हें ही उसमें फंसा दिया.

इसे नाइंसाफी कहें या फिर दर्दनाक सच कि बिहार के साथ कुछ तस्वीरें ऐसी चिपकी हैं जो तमाम कोशिशों के बाद भी लोगों के जेहन से नहीं छूटती. मसलन चारा घोटाला, जंगलराज, माफियाराज, गुंडागर्दी, परीक्षा में नकल आदि... आदि...

नीतीश कुमार करें भी तो क्या करें

पिछले साल एक नया शब्द जुड़ा है और वो है टॉपर घोटाला. हद ये है कि लगातार दूसरे साल इस शब्द ने उछाल भरकर बिहार को बदनामी के कीचड़ में डुबो दिया है.

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इंटर के रिजल्ट में ऐसा घोटाला हुआ है कि छात्र आईआईटी मेंस क्लियर कर गए लेकिन इंटर पास न कर सके. कई ऐसे छात्र हैं जिन्होंने आईआईटी मेंस में 77 अंक पाए हैं लेकिन इंटर में फीजिक्स की परीक्षा में 17 पर अटक गए. ऐसा किस चमत्कार की बदौलत हुआ है ये भारी खोज का विषय है.

इस बार भी यूपीएससी की परीक्षा में बिहार के 18 छात्रों ने मेरिट लिस्ट में आकर नाम रोशन किया है. लेकिन इंटर के रिजल्ट ने ऐसा दाग लगाया है कि उन प्रतिभावान छात्रों की मेहनत के रंग देश को दिख ही नहीं रहे हैं.

बिहार में ऐसे भी हुई थी नकल

बिहार में नकल का रोग पुराना है. दो साल पहले वैशाली के एक स्कूल में परीक्षा चल रही थी. स्कूल की बहुमंजिला इमारत में छिपकली की तरह चिपके लोग परीक्षार्थियों को नकल करवाने में लगे थे. तस्वीरें इतनी पॉपुलर हुईं कि गूगल, व्हाट्सएप्प और यूट्यूब पर बदनामियों के इश्तेहार छप गए.

सीएम नीतीश कुमार इस पर कहते हैं कि कहां की बात करते हैं अब तो गंगा में इतना पानी बह गया. सीएम ने कहा है, ‘दो साल पहले वैशाली के एक परीक्षा केंद्र में नकल करने की तस्वीरें सामने आई थी. तब से लेकर अब तक इस दिशा में काफी कार्रवाई की गई है. तंत्र में इंतजाम किया गया है कि अगर कोई धांधली करेगा तो पकड़ा जायेगा. मामले पर हमने सभी अधिकारियों को बुलाया था. गड़बड़ी करने वालों पर एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई करने को कहा.’

ये भी सच है कि नीतीश कुमार करें भी तो क्या करें. नकल हो तब बदनामी और नकल रोकने के लिए परीक्षा में कड़ाई करवाएं तो बदनामी. बिहार का इंटर रिजल्ट बेहद खराब रहा है. इसे लेकर सरकार को खूब कोसा जा रहा है.

सीएम नीतीश कुमार कहते हैं कि इंटर की परीक्षा में चोरी नहीं हुई. मूल्यांकन में गड़बड़ी नहीं हो इसे भी देखा जा रहा था. सरकार ने सेंकेंड्री और सीनियर सेकेंड्री एजुकेशन में सुधार के लिए एक्शन प्लान बना रही है. लेकिन इंटर के रिजल्ट ने प्लान पर पलीता लगा दिया है. अब बड़ी फजीहत इस बात की हो रही है कि सरकार अपने ही राज्य के बच्चों को क्या मुंह दिखाए. क्योंकि मामला सिर्फ परीक्षा में कड़ाई करने का नहीं है.

दरअसल जिस वक्त इंटर की परीक्षा की कॉपियों का मूल्य़ांकन चल रहा था उसी वक्त राज्य के टीचर्स हड़ताल पर चले गए थे. अब ये प्रश्न बड़ा गूढ़ हो चला है कि क्या ये होनहार मास्टरों की कलाबाजी है जो हड़ताल पर गए शिक्षकों के बदले में छात्रों की कॉपियां चेक कर रहे थे और जिनकी बदौलत ऐसा रिजल्ट आया है.

हद से ज्यादा लोकतांत्रिक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस सवाल को भी लोकतंत्र से जोड़ देते हैं. इंटर के रिजल्ट पर पूछे गए सवाल पर सीएम ने कहा, ‘लोकतांत्रिक व्यवस्था में सभी की भूमिका है. इंटर परीक्षा के उत्तर पुस्तिका के मूल्यांकन के लिए मुकर्रर किये गए शिक्षक उस विषय के जानकार थे.’

पिछली बार की तरह इस बार भी समाधान निकाला जा रहा है

नीतीश कुमार कहते हैं कि इसी तरह का रिजल्ट 1998 में भी आया था. जब हाईकोर्ट के आदेश पर परीक्षा में सख्ती की गई थी. उस साल सिर्फ 15 प्रतिशत रिजल्ट आया था.

खराब रिजल्ट और टॉपर घोटाले से निराश नीतीश कुमार कह रहे हैं कि बिहार की छवि को बिहार के बाहर खराब करने में यहां के लोगों की ही भूमिका है. तमिलनाडु की परीक्षा का उदाहरण देते हुये मुख्यमंत्री ने कहते हैं कि हरियाणा का लड़का तमिल विषय में अधिक अंक के साथ पास हुआ है इसकी जांच सीबीआई द्वारा की जा रही है.

उन्होंने कहा कि समाज में हरेक तरह के लोग हैं. अगली बार भी परीक्षा इतनी ही सख्त होगी. हम इसको चुनौती के रुप में लेते हैं. आदर्श व्यवस्था कायम करना संभव नहीं होता है. हमारे यहां गड़बड़ी करने पर पर्दा नहीं डाला जाता बल्कि तह में जाकर समाधान निकाला जाता है.

पिछली बार भी समाधान निकाला गया था. इस बार भी निकाला जा रहा है. रूबी राय से गणेश के बीच का फासला सिर्फ एक साल का है लेकिन बिहार और देश के दूसरे हिस्सों में फासला ज्यादा बड़ा है. कुछ धारणाएं हैं और कुछ सच्चाई और नीतीश कुमार के सामने ये मजबूरी की वो ये भी नहीं कह सकते कि वो परेशान करते रहे और हम काम करते रहे.