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बिहार उपचुनाव नतीजे: क्या बीजेपी-जेडीयू के रिश्ते को स्वीकार नहीं कर पाई जनता

अररिया लोकसभा सीट उन 4 सीटों में शामिल थी, जहां पर 2014 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी को जीत मिली थी

Vivek Anand

बिहार के अररिया लोकसभा सीट पर चुनाव प्रचार के दौरान बिहार बीजेपी अध्यक्ष नित्यानंद राय ने कहा था कि अगर अररिया में आरजेडी जीतती है तो ये इलाका आईएसआईएस के लिए स्वर्ग की तरह हो जाएगा. इस बयान के बाद खूब बवाल मचा था. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष की ओर से आया ये बयान चुनावों में हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण से फायदा उठाने की नीयत से दिया गया था. जैसा कि हर बार होता है उनके इस बयान को मीडिया की सुर्खियां भी मिलीं. पुलिस में उनके खिलाफ केस भी दर्ज किया गया और चुनाव आयोग से इस बयान के लिए उनकी शिकायत भी की गई. लेकिन इस स्तर पर जाकर बदनामी लेने का भी कोई फायदा नहीं हुआ. अररिया लोकसभा सीट से आरजेडी के उम्मीदवार सरफराज आलम को जीत हासिल हुई है. उन्होंने बीजेपी के उम्मीदवार प्रदीप सिंह को 57 हजार से भी ज्यादा मतों से हराया.

नतीजे लोकतंत्र के हत्यारों के मुंह पर तमाचा है: तेजस्वी


बिहार में इस जीत से उत्साहित आरजेडी नेता और पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव का बयान आया. तेजस्वी यादव बोले कि बिहार उपचुनाव में आरजेडी की जीत नीतीश कुमार को मिला जनता का जवाब है. उन्होंने कहा कि नतीजे लोकतंत्र के हत्यारों के मुंह पर तमाचा है. निश्चित तौर पर महागठबंधन के आरजेडी से अलग होने के बाद बिहार उपचुनाव के ये नतीजे पार्टी को हौसला देने वाली हैं.

अररिया में छह विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें नरपतगंज, फारबिसगंज, अररिया, जोखीहाट और सिकटी विधानसभा सीटें शामिल हैं. ये मुस्लिम और यादव बहुल इलाका है. जो आरजेडी के कोर वोटर में आते हैं. बीजेपी ने इस समीकरण को तोड़ने के साथ ही बाकी जातियों को एकजुट करने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो पाए. इस सीट को नाक की लड़ाई बना दिया गया था. जेडीयू और आरजेडी का महागठबंधन टूटने के बाद और जेडीयू और बीजेपी की सरकार आने के बाद इसे जनता की अदालत में नए रिश्ते की परख के बतौर देखा जा रहा है. इस लिहाज से देखें तो नए रिश्ते में बंधने के बाद नीतीश कुमार की हार दिखती है.

अररिया लोकसभा सीट उन 4 सीटों में शामिल थी, जहां पर 2014 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी को जीत मिली थी. बदले समीकरण के बावजूद आरजेडी की जीत के बाद उसका हौसला बढ़ेगा.

जहानाबाद विधानसभा सीट से आरजेडी के सुदय यादव 35 हजार से ज्यादा वोटों से जीते हैं. इस सीट पर भी मुकाबला कांटे का बताया जा रहा था. आरजेडी नेता मुंद्रिका सिंह यादव के निधन से खाली हुई इस सीट पर आरजेडी ने उनके बेटे सुदय यादव को उतारा था. जबकि जेडीयू ने यहा अभिराम शर्मा को टिकट दिया था. अभिराम शर्मा यहां से 2010 के चुनाव में जीते थे. लेकिन 2015 में आरजेडी के साथ गठबंधन होने के बाद ये सीट आरजेडी के खाते में चली गई थी. जिसमें आरजेडी के मुंद्रिका सिंह यादव को जीत मिली थी.

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जहानाबाद सीट ओबीसी बहुल सीट है. आरजेडी के सुदय यादव को यहां के कास्ट फैक्टर का फायदा मिला. पिता के निधन के बाद सहानुभूति वोट भी उनके साथ था. साथ ही ये कहा जा रहा था कि अभिराम शर्मा को आखिरी वक्त में टिकट मिलने के बाद भी जेडीयू में इस सीट को लेकर अंतर्विरोध था. पार्टी के कुछ अपने लोगों ने जीत के लिए दम नहीं लगाया.

इस जिले में जनसंघ पार्टी से 1969 में चंद्रमौली मिश्र विधायक बने थे

भभुआ विधानसभा सीट से बीजेपी की रिंकी पांडेय 15 हजार से ज्यादा वोटों से जीतीं. उन्होंने कांग्रेस के शंभू सिंह पटेल को हराया. भभुआ सीट पहले भी बीजेपी के पास थी. 2015 के चुनाव में यहां से आनंद भूषण पांडेय जीते थे. उनके निधन के बाद बीजेपी ने यहां से उनकी पत्नी रिंकी पांडेय को टिकट दिया था. भभुआ सीट पर कांग्रेस ने अपना दावा जताया था. जिसकी वजह से आरजेडी ने ये सीट छोड़ दी थी. कांग्रेस के नेता सदानंद सिंह ने कहा था कि अगर महागठबंधन में कांग्रेस को भभुआ सीट नहीं मिली, तो वो तीनों उपचुनाव क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे. बाद में समझौते के बाद ये सीट कांग्रेस को मिली थी. लेकिन कांग्रेस इस सीट को हासिल नहीं कर पाई.

2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में भभुआ सीट से भाजपा के आनंद भूषण पांडे ने जीत हासिल की थी. ये जीत इसलिए भी अहम थी क्योंकि बीजेपी ने आरजेडी-जेडीयू और कांग्रेस के महागठबंधन के बावजूद इस सीट पर जीत हासिल की थी. इस जिले में जनसंघ पार्टी से 1969 में चंद्रमौली मिश्र विधायक बने थे. इसके बाद जीत के लिए बीजेपी को 46 साल तक इंतजार करना पड़ा. आनंद भूषण पांडेय इसके पहले 2005 में बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़े और हार गए थे. 2010 के चुनाव में उन्हें 400 वोटों से हार मिली थी. 2015 में जाकर उन्होंने विपरित परिस्थितियों में भी जीत हासिल की थी. अब उनकी पत्नी रिंकी रानी पांडेय इस सीट पर कब्जा जमाने में कामयाब रहीं.