त्रिपुरा से उठा पागलपन का बुखार तमिलनाडु और कोलकाता तक पहुंच चुका है. अब पता नहीं कितनी मूर्तियां तोड़ी जाएंगी, किस-किस की मूर्तियां तोड़ी जाएंगी, कितनी मूर्तियों पर कालिख मले जाएंगे? और इन सब वाहियात हरकतों को वाजिब ठहराने की दलीलें भी दी जाएंगी.
ये चिंताजनक बात है, जिसमें भीड़ के हाथों में इतनी ताकत आ गई है कि वो अपनी मर्जी से चाहे जो करे. अपनी विचारधारा को थोपने के लिए लोग लट्ठ लेकर निकल पड़े हैं. हमारी विचारधारा के हिसाब से चलो नहीं तो लट्ठ बरसेंगे, हंगामा करेंगे, हमले करेंगे, मूर्तियां तोड़ेंगे. विचारधारा से प्रेरित इस अराजक रवैये के नए चलन ने कई चिंताएं पैदा कर दी हैं. इसी का नतीजा है कि त्रिपुरा में लेनिन की मूर्ति तोड़ी जाती है फिर उसी कड़ी में तमिलनाडु के वेल्लोर में पेरियार की मूर्ति पर भी हमला होता है और इन दो घटनाओं के बदले के तौर पर कोलकाता में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मूर्ति पर स्याही पोत दी जाती है. ये सारा कुछ भीड़ के हाथों करवाया जा रहा है. जहां जिस भीड़ की ताकत ज्यादा है, वहां वो अपने हिसाब से अराजकता फैला रही है.
त्रिपुरा में बीजेपी की जीत से उत्साहित भीड़ ने लेनिन की मूर्ति तोड़ दी. भीड़ की इस कार्रवाई को किसी भी तरीके से सही नहीं ठहराया जाना चाहिए था. लेकिन सोशल मीडिया से लेकर कुछ नेताओं-विद्वानों ने भी एक खास तरह की विचारधारा को फलने-फूलने न दिए जाने के फरमान के साथ इसे सही साबित करने की कोशिश में लग गए. सवाल है कि अगर ऐसी अराजकता को जायज ठहराने की कोशिश की जाएगी तो तोड़ने-फोड़ने वाली ऐसी घटनाएं कहां जाकर रुकेंगी?
विचाराधार के विरोध का हिंसात्मक प्रदर्शन खतरनाक है
इसी कड़ी में तमिलनाडु के बीजेपी नेता एच राजा ने एक और भड़काऊ बयान दे दिया. अपने फेसबुक पोस्ट में उन्होंन लेनिन की तरह दक्षिण के नेता पेरियार की मूर्तियों को भी तोड़ डालने की बात कह डाली. उन्होंने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा, 'कौन है लेनिन? उसकी भारत में क्या अहमियत? भारत का कम्युनिज्म से क्या नाता? कल त्रिपुरा में लेनिन की मूर्ति को तोड़ा गया है. कल जातिवादी नेता पेरियार की मूर्तियों को तोड़ा जाएगा.’
पेरियार तमिलनाडु के सामाजिक कार्यकर्ता और द्रविड़ आंदोलन के नेता थे. उनकी विचारधारा को लेकर सहमति और असहमति जताई जा सकती है लेकिन इस तरह के गैरजिम्मेदार और भड़काऊ बयानों को किसी भी तरह से सही नहीं कहा जा सकता. एच राजा ने जो फेसबुक पोस्ट पर लिखा उसे कुछ लोगों ने हकीकत में अंजाम भी दे दिया.
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तमिलनाडु के वेल्लोर में तिरुपुर कॉर्पोरेशन ऑफिस में लगी पेरियार की मूर्ति को नुकसान पहुंचाया गया. प्रतिमा का कवर और नाक तोड़ दी गई. फिर पता चला कि इसी कार्रवाई के नतीजे के तौर पर बीजेपी दफ्तर में हमला हुआ है. तमिलनाडु के कोयंबटूर में बीजेपी दफ्तर को पेट्रोल बम से निशाना बनाया गया. सीसीटीवी में कैद हुई तस्वीरों में दिखा कि दो लोग रात के अंधेरे में आए और बीजेपी दफ्तर में पेट्रोल बम फेंक कर फरार हो गए. हालांकि इस हमले के वक्त बीजेपी दफ्तर के अंदर कोई कार्यकर्ता नहीं था.
अगर ऐसा ही होता रहा तो कहां जाकर रुकेंगी घटनाएं
त्रिपुरा की घटना के बाद तमिलनाडु में इससे जुड़ी दो घटनाएं हुईं. उसके बाद एक खबर कोलकाता से आई. लेफ्ट पार्टियों को निशाना बनाकर किए जा रहे हमलों के बदले के तौर पर कोलकाता के कालिघाट में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मूर्ति पर कालिख पोत दी गई. बुधवार सुबह कालिघाट इलाके में भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मूर्ति को तोड़ने की भी कोशिश हुई. कहा गया कि इस घटना के पीछे लेफ्ट पार्टी से जुड़े किसी छात्र संगठन का हाथ हो सकता है. बीजेपी ने इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए इसमें शामिल लोगों को गिरफ्तार कर उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की. मामले से जुड़े 6 लोगों को हिरासत में भी लिया गया.
पहले त्रिपुरा फिर तमिलनाडु उसके बाद कोलकाता. त्रिपुरा से बात निकलकर तमिलनाडु तक इसलिए पहुंची क्योंकि त्रिपुरा की अराजक घटना को जायज ठहराया गया. क्योंकि एच राजा जैसे नेताओं ने बिना मौके की नजाकत को समझते हुए ऐसी ही एक और अराजक घटना की राह दिखा दी. और तमिलनाडु से बात कोलकाता तक इसलिए पहुंची क्योंकि अराजकता में कोई किसी से कम साबित नहीं होना चाहता.
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भीड़ के दम पर अपनी मनमानी करने की बीमारी हर विचारधारा का झंडा उठाए समूह को लग चुकी है. और इसे जायज ठहराने के लिए बेतरतीब से तर्क भी दिए जा रहे हैं. लेफ्ट पार्टियों की राजनीतिक हार हो रही है. हर चुनाव में वो हाशिए पर जा रहे हैं. क्या इसका मतलब ये है कि कम्युनिस्ट विचारधारा के प्रतीक चिन्हों को ध्वस्त कर दिया जाए? लेनिन की विचारधारा से असहमति का मतलब ये है कि विरोध के तौर पर उनकी मूर्तियों को खंडित किया जाए?
विचारधारा का विरोध किस हद तक इस पर थोड़ा रुककर सोचना होगा
आप नेता आशुतोष ने अपने एक लेख में कुछ वाजिब सवाल उठाए हैं. उन्होंने पूछा है कि आज तो बीजेपी/आरएसएस ने लेनिन की मूर्ति गिरा दी. अगर पांच साल बाद फिर वामपंथ सरकार में आ गया तो क्या त्रिपुरा में बीजेपी/आरएसएस के हर नेता की मूर्ति को इसी तरह से ढहा कर फुटबॉल खेला जाना चाहिये? उन्होंने लिखा है कि बीजेपी/आरएसएस को ये भी नहीं भूलना चाहिए कि वाजपेयी सरकार के समय संसद में तमाम विरोध के बाद भी आरएसएस/बीजेपी के प्रतीक पुरूष विनायक दामोदर सावरकर की तस्वीर टांगी गई थी. 2004 में वाजपेयी की सरकार चली गई. पर तस्वीर टंगी रही. तो क्या कांग्रेस सरकार को सावरकर की तस्वीर को हटा देनी चाहिए थी?
इस बात में कोई दो राय नहीं हो सकती कि लोकतंत्र में अहंकार और नफरत के लिए जगह नहीं होनी चाहिए. लेकिन चिंताजनक बात यही है कि आज की राजनीति में इसे बढ़ावा दिया जा रहा है. सवाल है कि लेनिन से होते हुए पेरियार तक बात को क्यों ले जाया गया? अगर इसी सिरे को पकड़कर बात आगे बढ़ती रही तो पेरियार के बाद न जाने कितने ऐसे नेता हैं, जिनकी विचारधारा से असहमति जताई जा सकती है. तो क्या उन सब नेताओं की मूर्तियों को ध्वस्त कर दिया जाए?
दक्षिण के नेता पेरियार ने द्रविड़ आंदोलन की शुरुआत की थी. बताया जाता है कि उन्होंने भगवान की मूर्तियां और मनुस्मृति भी जलाई थी. लेकिन साथ ही उन्होंने मानवता और आत्मस्वाभिममान की बात भी कही थी. उन्होंने धर्म और जात-पात के पाखंड का विरोध किया था. वो सामाजिक बुराइयों और भेदभाव के खिलाफ लड़े थे. उन्होंने वैज्ञानिक नजरिया अपनाकर महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी थी. क्षेत्रियता के नाम हिंदी विरोध, मूर्ति पूजा विरोध के उनके नजरिए पर सवाल उठाए जा सकते हैं. लेकिन असहमति का मतलब प्रतीक चिन्हों को नेस्तानाबूद करना कतई नहीं हो सकता.
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विचारधारा के विरोध के नाम पर अराजकता फैलाने की प्रवृति बढ़ी है. इस हालात पर प्रधानमंत्री मोदी ने भी चिंता जताई है. उन्होंने गृहमंत्रालय से जानकारी मांगी है. गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी त्रिपुरा की घटना की जानकारी लेकर कानून व्यवस्था दुरुस्त रखने की ताकीद की है. संसद में इस मसले पर जोरशोर से हंगामा हो रहा है. राजनीतिक विचारधारा के विरोध को एक दायरे में सीमित रखना होगा. अगर सड़कों के विरोध को समर्थन दिया गया तो हालात हाथ से निकल सकते हैं.
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