view all

2019 आम चुनाव: बीजेपी के सामने अब नए राज्यों में पांव पसारने का टारगेट

चुनावों के प्रति बीजेपी का योजनाबद्ध तौर-तरीका एक केस स्टडी हो सकता है

Amitabh Tiwari

भारतीय जनता पार्टी ने ओडिशा में अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक की. पार्टी का इरादा साल 2019 में राज्य पर कब्जा करने का है. हाल ही में यहां हुए नगरपालिका चुनावों में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया.

जीत से उत्साहित पार्टी कार्यकर्ताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह, अपने 13 मुख्यमंत्रियों और अन्य शीर्ष पदाधिकारियों का जोरदार स्वागत किया.


अगले महीने केंद्र में मोदी सरकार के तीन साल पूरे हो रहे हैं. लिहाजा, राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में इस बात पर मंथन किया गया कि पार्टी को इस दौरान कितना सियासी फायदा हुआ. मोदी सरकार की उपलब्धियां क्या रहीं और 2019 का लोकसभा चुनाव जीतने के लिए क्या रणनीति अपनाई जाए.

समझा जा रहा है कि बैठक में मोदी ने पार्टी नेताओं को आगाह किया कि उन्हें सरकार और पार्टी की अब तक की अपलब्धियों से संतुष्ट होने की बजाय गरीबों और वंचितों के हित में निरंतर काम करना होगा.

तभी बीजेपी पं. दीनदलाय उपाध्याय के अंत्योदय के सपने को साकार किया जा सकता है और कतार में खड़े अंतिम आदमी को फायदा पहुंचाया जा सकता है.

साल 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी की रणनीति के पांच प्रमुख बिंदु हैं – उपलब्धि बरकरार रहे, कुछ खोएं नहीं, नये क्षेत्रों पर कब्जा, सहयोगियों का विस्तार और निरंतर संवाद.

सीटें रहें बरकरार

2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 282 सीटें मिली थीं. यह 1984 के बाद किसी राजनीतिक दल का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था. पार्टी इस स्थिति में थी कि वह बगैर एनडीए के सहयोगियों के अपने दम पर केंद्र में सरकार बना सके.

लेकिन 2019 के चुनाव में पांच साल सत्ता में रहने के बाद पार्टी के खिलाफ पैदा होने वाले असंतोष से बचना और मौजूदा सीटों पर कब्जा बरकरार रखना इसके लिए एक बड़ी चुनौती होगी.

बीजेपी की पहली रणनीति होगी अपनी जीती हुई सीटों को बरकरार रखना

बीजेपी ने 120 ऐसी सीटों की पहचान की है जहां 2014 में मामूली अंतर से उसकी हार हुई थी. वह 2019 में इन सीटों को जीत सकती है. लिहाजा सरकार और पार्टी के काम से लोगों को अवगत कराने के लिए उसने अपने मंत्रियों और सांसदों को इन क्षेत्रों में भेजा.

अगले लोकसभा चुनाव में इन क्षेत्रों में जीत के लिए पार्टी सघन रणनीति बना रही. अगर इन क्षेत्रों में वह अच्छा प्रदर्शन करती है तो उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान में अगर पार्टी को कुछ नुकसान हुआ तो इसकी भरपाई हो खुद-ब-खुद हो जाएगी.

नए राज्यों बढ़े प्रभाव

साल 2014 में केंद्र की सत्ता हासिल होने के बाद बीजेपी ने 10 राज्यों में अपनी सरकार बनाने में कामयाब रही है. अब पार्टी की रणनीति पश्चिम बंगाल, ओडीशा, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में अपना विस्तार करने की है जहां वह कभी मजबूत नहीं रही है.

साल 2019 के लोकसभा चुनाव तक पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के शासन के आठ साल हो जाएंगे जबकि ओडीशा में नवीन पटनायक के बतौर मुख्यमंत्री 19 साल पूरे कर चुके होंगे. बीजेपी का आकलन है कि सत्ता में इतने लंबे वक्त तक रहने के बाद इनके खिलाफ जनता में असंतोष जरूर पैदा होगा.

राष्ट्रीय स्तर पर वामपंथी दलों और कांग्रेस के कमजोर होने से केरल में भी बीजेपी को पांव जमाने का अवसर मिल सकता है. पार्टी जयललिता के निधन और एआईएडीएमके में विभाजन के बाद तमिलनाडु में पैदा हुए हालात को एक सुनहरा मौका मान रही है.

अरुणाचल प्रदेश की तरह तमिलनाडु में भी दूसरे दलों के विधायकों को अपनी ओर खींचा जा सकता है. इस रणनीति से दक्षिण और पूर्व के राज्यों में बीजेपी का फुटप्रिंट मजबूत होगा और राष्ट्रीय स्तर पर उसके आधार में विविधता आएगी. मौजूदा वक्त में बीजेपी का प्रभाव उत्तर, पश्चिम और मध्य भारत में केंद्रित है.

ये भी पढ़ें: मुसलमानों पर मोदी के बयान पर दिग्विजय ने कसा तंज

पार्टी का मकसद अब नए राज्यों में विस्तार करना है

एनडीए का विस्तार

पिछले तीन साल में एनडीए के सहयोगी दलों की हाल ही में दूसरी बैठक हुई. एनडीए के सहयोगी दल खासतौर से शिवसेना और टीडीपी के साथ बीजेपी का लव-हेट का संबंध रहा है. ये दल बीजेपी पर दादागीरी दिखाने और अपनी मांगे न मानने का आरोप लगाते रहे हैं.

बीजेपी को इस बात का बखूबी अहसास है कि राष्ट्रीय स्तर पर अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए उसे खासतौर से दक्षिण भारत के राजनीतिक दलों को एनडीए में शामिल करना होगा.

तेलंगाना में अपनी पकड़ बनाने के लिए वह टीआरएस की ओर देख सकती है. लेकिन इससे टीडीपी के नाराज होने का खतरा है. लिहाजा, उसे फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाना होगा.

लोकसभा सीटों के लिहाज से तमिलनाडु एक महत्वपूर्ण राज्य है. अगर बीजेपी एआईएडीएमके की फूट और सियासी अफरातफरी का फायदा उठाने में कामयाब नहीं होती तो उसे 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए राज्य में एक सहयोगी चुनना होगा.

अटल बिहारी वाजपेयी के समय डीएमके एनडीए का हिस्सा थी. राज्य के चुनावी इतिहास को देखें तो 2019 में डीएमके फायदे में रहने के पूरे आसार हैं. साल 2016 में राज्य के विधानसभा चुनावों के लिए बीजेपी और डीएमके बात भी हुई थी, लेकिन कोई समझौता नहीं हो सका था.

पूर्वोत्तर के कई छोटे दल भी बीजेपी के रडार पर हो सकते हैं. कांग्रेस का लगातार पतन, बीजेपी का चढ़ता ग्राफ और बढ़ते संसाधन पूर्वोत्तर के दलों को बीजेपी की ओर खींचने में मददगार होंगे.

एनडीए में नए दलों के शामिल होने से साल 2019 के चुनावों में अगर पुराने घटक दलों का प्रदर्शन खराब भी रहा तो पार्टी पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

उसकी कोशिश सिर्फ सीटें जीतना ही नहीं बल्कि वोट प्रतिशत बढ़ाना भी है

वोट शेयर बढ़ाने पर जोर

साल 2014 में बीजेपी को 31 फीसदी वोट मिले थे. लेकिन उसे सभी उम्र के लोगों, जातियों, वर्गों और लिंगों का एक समान समर्थन नहीं मिला था. उसे महिलाओं, दलितों, मुसलमानों, अनपढ़ युवाओं और गरीबों के कम वोट मिले.

साल 2019 में पार्टी की इन सभी वर्गों के वोटों पर खास नज़र रहेगी. हाल में हुए विधानसभा चुनावों में उसे इस दिशा में कुछ सफलता भी मिली है. बीजेपी को लगता है कि तीन तलाक पर उसके स्टैंड से उसे मुस्लिम महिलाओं का समर्थन मिल सकता है.

उसे विधानसभा चुनावों में मुस्लिम महिलाओं के कुछ वोट पड़े भी. उज्जवला स्कीम के तहत मुफ्त एलपीजी कनेक्शन के जरिए उसने ग्रामीण महिलाओं का दिल भी जीता है.

चूंकि, बीएसपी अब कमजोर हो गई है. लिहाजा पार्टी की रणनीति होगी कि कल्याणकारी योजनाओं के जरिए दलितों को अपने साथ जोड़ा जाए. साल ॉ 2014 में पूरे देश में बीएसपी को 14 फीसदी दलित वोट मिले थे.

बीजेपी को मध्यम वर्ग और अमीरों की पार्टी माना जाता है. वह अपनी इस छवि से छुटकारा पाने की पूरी कोशिश कर रही है. कुछ लोग अब यह कहते भी हैं कि बीजेपी ने वामपंथी रुख अख्तियार कर लिया है.

साल 2022 तक सबको मकान, मुफ्त स्वास्थ्य बीमा, मनरेगा के बजट में बढ़ोतरी, ग्रामीण विद्युतीकरण और जनधन जैसी योजनाएं गरीबों और निचले तबकों को ध्यान में रखकर बनाई गई हैं. इन सब से बीजेपी का वोट शेयर बढ़ सकता है.

ये भी पढ़ें: महागठबंधन की जरूरत नहीं, एसपी अकेले ही समर्थ है

अमित शाह किसी भी चुनाव को हल्के में लेने के आदी नहीं है (फोटो: पीटीआई)

आगामी चुनावों में जीत जरूरी

दिल्ली और बिहार को छोड़कर बीजेपी ने साल 2014 के बाद हुए ज्यादातर विधानसभा चुनाव जीता है. हाल में हुए पांच राज्यों के चुनावों में से बीजेपी ने चार में अपनी सरकार बनाई. मोदी की लोकप्रियता अपने शिखर पर है.

नोटबंदी से भी पार्टी को भारी मदद मिली है. गरीब लोग मानते हैं कि काले धन के मामले में मोदी की नीयत अच्छी है. कई राज्यों के नगरपालिका चुनावों में भी बीजेपी का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा.

आने वाले डेढ़ साल में छह राज्यों जिनमें गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं उनमें विधानसभा चुनाव होंगे. इनमें से चार राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं.

तीन राज्यों में बीजेपी 15 साल से ज्यादा समय से सत्ता में है. साल 2019 के लोकसभा चुनाव के लिहाज से इन चार राज्यों में अपनी सरकार बरकरार रखना और कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में सत्ता पर कब्जा बेहद महत्वपूर्ण होगा.

अगर बीजेपी को इन राज्यों में नुकसान हुआ तो लोकसभा चुनाव का उसका गणित गड़बड़ा सकता है.

उपलब्धियों का बखान जरूरी

इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि अपनी उपलब्धियों का बखान करने के मामले में बीजेपी का कोई जोड़ नहीं है. पार्टी कॉर्पोरेट हाउस की तरह सरकार चला रही है.

पार्टी अपनी जीत को प्रचार भी खूब जोर-शोर से करती है

वह आम जनता तक अपने संदेश पहुंचाने के लिए विज्ञापन के लिए निर्धारित बजट का प्रभावशाली तरीके से इस्तमाल कर रही है. डोनाल्ड ट्रंप के कैंपेन की तरह अलग-अलग वर्गों तक पहुंचने का तरीका भी अलग-अलग होना चाहिए.

युवाओं से सोशल मीडिया के जरिए संपर्क तो ग्रामीण इलाकों में पहुंचने के लिए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का इस्तेमाल किया जा रहा है. ग्रामीण क्षेत्रों में टीवी सेटों की पहुंच तेजी से बढ़ी है.

ये भी पढ़ें: लालू पर मोदी का आरोप, बिना सर्टिफिकेट बन रहा है मॉल

सांसदों को निर्देश दिये गये हैं कि वे सरकार की कल्याणकारी योजनाएं लोगों तक पहुंचाने के लिए अपने-अपने क्षेत्रों में 15 दिन गुजारें.

संवाद दोतरफा प्रक्रिया है. पार्टी ने अपने नेताओं से कहा है कि वे सरकारी योजनाओं के बारे में जनता का फीडबैक भी हासिल करें. इससे पार्टी को अपनी नीतियों में जरूरी बदलाव करने में मदद मिलेगी.

निष्कर्ष यह है कि बीजेपी ने दो साल पहले से ही लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है. अन्य दलों ने इस दिशा में अब तक या तो ध्यान नहीं दिया है या फिर वे मुद्दों की ही तलाश ही कर रहे हैं.

चुनावों के प्रति बीजेपी का योजनाबद्ध तौर-तरीका एक केस स्टडी हो सकता है जिसे दूसरे दल अपना सकते हैं.

हालांकि, ये तो वक्त ही बताएगा कि बीजेपी साल 2019 का लोकसभा चुनाव जीतने में कामयाब होती है या नहीं लेकिन आसार तो कुछ ऐसे ही दिख रहे हैं.