राजनीति का जिक्र होते ही दबंगई, धूर्तता, मक्कारी, फरेब, रसूख, नापाक सांठगांठ और न जाने कितनी जालिम बुराइयों का बिंब आंखों के सामने तैरने लगता है.
जनता की नजर में औसतन नेताओं की नैतिक बिसात शून्य है. इस वजह से उन्हें उनके वादों पर भरोसा नहीं. मतदाताओं का एक विशाल वर्ग त्वरित सुविधाएं बटोरकर अपने वोट की कीमत वसूल लेने के पुराने फार्मूले में आज भी आस्था रखता है.
वहीं नेता भी नैतिकता का दामन पकड़कर चुनाव लड़ने के जोखिम से वाकिफ हैं. सो चिकन-दारू-कंबल का आजमाया फार्मूला चुनाव के वक्त पूरा असर छोड़ता है.
मोल-तोल के इस रिश्ते और नैतिकता के सघन सियासी धर्मसंकट को दोतरफा पत्र-व्यवहार से समझने की कोशिश की गई है.
मान्यवर नेताजी
नमस्कार !
कई राज्यों में चुनावी माहौल शबाब पर है. जाहिर है, आपकी व्यस्तता स्वभावतः और अनिर्वायतः चरम पर होगी. राजनीतिक जीवन-मरण के सवालों से टकराती इस नाजुक घड़ी में आपको खत लिखना मूर्खता, दुस्साहसपूर्ण और ढीठता भरी गुस्ताखी है.
क्षमा प्रार्थी हूं नेताजी, पर क्या करूं खाते-पीते-अघाते इस वोटतंत्र में हमारे जैसे मन-मुरादी वोटर्स भला चैन से कैसे बैठ सकते हैं?
आपको पता है कि हमारा भकोसू और भूखवर्धक भोला-भाला लोकतंत्र चुनावी मौसम में रंगरंलियों के बेपनाह हसीन मौके लेकर आता है.
ऐसे मौके, जिन्हें हाथ से निकलने देने का मतलब है, अपने जी, जीभ, तन-मन, आत्मा सभी को तृप्ति के दुर्लभ पलों से वंचित करना.
आप सबका जीवन तो सियासत, सत्ता, शासन की रासलीलाओं व रंगलीलाओं से आबाद है. पर हमारे जैसे मरियल और मटियामेट तकदीर के फटेहाल मतदाताओं के बारे में सोचिए! नारों, वादों, दिलासों के सिवाय हमें इस छलिया सियासत ने क्या दिया?
अभी तो पल-पल कदम-दर-कदम आपका दिव्य दर्शन हो रहा है. चुनाव बाद आपकी इस सर्वसुलभता का क्या भरोसा. चुनाव बाद न आप मिलेंगे, न आपके हसीन वादों पर अमल का शगुन निकलेगा.
मतलब नेताजी यह स्थिति ‘मत चूको चौहान‘ या ‘अभी नहीं तो कभी नहीं’, ‘जो नहीं खाया सो पछताया‘ वाली है.
सो हमने नैतिकता-वैतिकता व मान-मर्यादा का दामन जोर से झटककर अपने वोट की कीमत लगाने का फैसला कर लिया है. और जब आप सबने नैतिकता को धकियाकर बाहर का रास्ता दिखा दिया है, तो हम इसकी आरती क्यों उतारते रहें?
पिछले चुनाव में तो आपका काम दो बोतल देसी, ठर्रा, पाउच, अंडरवियर-बनियान और दो कंबल से चल गया था. इस बार नीलामी ऊंची है.
मामला मांग और आपूर्ति के फार्मूले पर टिक गया है. चुनावी जंग पहले से अधिक घनघोर है. नेताओं की ऊंची नाक इस बार ज्यादा खतरे में है. बाप-बेटे एक-दूसरे को बक्शने को तैयार नहीं है. चाचा-भतीजे, मां-बेटे, सास-बहू, भाई-भाई चुनावी मैदान में एक-दूसरे को केहुनिया रहे हैं.
जाहिर है, एक-एक वोट की बड़ी महिमा है नेताजी. इस गणित की अनदेखी कर कंजूसी दिखायी तो कहीं का न रहिएगा.
कैश के सुखाड़ के इस अविश्वसनीय दौर में नए दोहजरिया-पांच सौ टकिया नोट, मिंक के गुदगुदे रोएंदार कंबल, कॉस्टली वाइन और चिकन-कबाब के सपने रात भर साबूत नींद नहीं लेने देते.
इस बार इनसे कम पर तो बात नहीं ही बनेगी. किसी फुटपाथी ढाबे या रेस्तरां में मुर्गा, अंडा कड़ी और जीरा राइस खिला देने से भर से काम नहीं चलेगा. आप चुनाव के बाद मालामाल होंगे, मालामाल होते रहिए.
हमारे लिए तो मतदान-पूर्व का माहौल ही स्वर्गिक सुखों से लबालब होता है. चुनाव बाद तो फिर वही सूखी रोटी और सूखी लाल मिर्च का निवाला. आपसे मौजमस्ती के संसाधनों की लोलुप उम्मीद करना भला कहां अनैतिक है?
इस चुनाव में आप जैसे सर्वशक्तिमान नेताओं के परिवार, ससुराल, ननिहाल सभी पक्षों के लोग विधायकी के लिए किस्मत आजमा रहे हैं. एक हम हैं, उंगली पर जिद्दी स्याही के दाग के अलावा और क्या पाते हैं?
आप सबकी जुगाडू़ जमात ने राजनीति के बेलगाम मवालीकरण, लूट-खसोट, अवसरवाद की जहरीली डोज देकर हमारी तकदीर को तो कोमा में रखा है. खुद खानदान समेत सिस्टम के महावत बने बैठे हैं.
हमारे हिस्से की आजादी तो वोट मंडियों में धूल फांक रही है. आपके हिस्से की आजादी पंचतारा हवेलियों, होटलों और लकदक गाड़ियों में ऐय्याशी कर रही हैं.
नेताजी, राजनीति भी क्या जबर्दस्त जुगाड़ है. एक बार घुस जाओ तो सातों पुरखों के लिए निश्चिन्त हो जाओ. नेताओं के जो बच्चे चपरासी की योग्यता नहीं रखते वो मंत्री बनकर आईएएस अधिकारियों को अपने इशारों पर नचाते हैं. कई की चुंधा संतानें विधानसभा-संसद की धरोहर बनकर लोकतंत्र का गौरववर्धन कर रही हैं.
कोयला माफिया, रेत माफिया, शराब माफिया, एडमिशन माफिया, अपहरण माफिया, पत्थर माफिया, लकड़ी माफिया आदि-आदि बहरूपिए अवतार में आप सब अलग से चांदी काट रहे हैं. आपकी महिमा अपरम्पार व अनंत है, इसलिए इस चुनाव में हमें भी अघाने का मौका दीजिए.
बरसों शिद्दत भरे इंतजार के बाद मिलता है यह मौका. मानव जीवन बड़े जतन और तप से मिला है. आपकी अपरंपार महिमा के आगोश में पैठकर इस जीवन को धन्य कर लेना चाहता हूं.
फिलहाल यहीं विराम. कुछ कठोर, बेलौस और बेलाग उलाहनों और आरोपों के लिए पुनः क्षमाप्रार्थीं.
आपका ढीठ उत्तरापेक्षी
भोलाराम भावुक