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ईवीएम हैकिंग: सौरभ भारद्वाज का 'डेमो' देख लिया, EC का जवाब भी जान लीजिए

जानिए आम आदमी पार्टी के ईवीएम पर उठाए गए सवालों में कितना दम है

Debobrat Ghose

मंगलवार को दिल्ली विधानसभा में जबरदस्त ड्रामा देखने को मिला. आम आदमी पार्टी के विधायक सौरभ भारद्वाज ने विधानसभा में नई बोतल में पुरानी शराब पेश की. पुरानी शराब मतलब ईवीएम से छेड़खानी का आरोप. भारद्वाज ने जो मुद्दा उठाया उसमें नई बात सिर्फ ये थी कि उन्होंने ईवीएम से छेड़खानी का डेमो विधानसभा में दिया.

वैसे भी मुख्यमंत्री केजरीवाल पर जो आरोप लगे, ये उनका जवाब नहीं था. कपिल मिश्रा के आरोपों को लेकर ऐसा लगा था कि विधानसभा में केजरीवाल कुछ बोलेंगे. मगर उन्होंने तो एकदम नया नाटक ही कर डाला. कपिल मिश्रा ने आरोप लगाया था कि उनकी मौजूदगी में केजरीवाल ने अपने स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन से दो करोड़ रुपए लिए थे.


विधानसभा में ईवीएम से छेड़खानी का प्रदर्शन करने से आम आदमी पार्टी नई मुसीबत में पड़ सकती है. सवाल ये उठ रहा है कि आखिर पार्टी को ये इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन मिली कहां से?

चुनाव आयोग के सूत्रों के मुताबिक, विधानसभा में जिस मशीन की नुमाइश की गई, वो चुनाव आयोग से नहीं ली गई. चुनाव आयोग के सूत्रों ने कहा कि वो इस ईवीएम की जिम्मेदारी नहीं लेते.

केजरीवाल ने बदला मुद्दा

कपिल मिश्रा के तमाम आरोप लगाने के बाद आज केजरीवाल ने अपनी चुप्पी तोड़ी. उन्होंने ट्विटर पर सोमवार को लिखा कि, 'जीत सत्य की होगी. कल दिल्ली विधानसभा के विशेष सत्र से इसकी शुरुआत होगी'. मगर अपने ऊपर लगे तमाम आरोपों के जवाब देने के बजाय केजरीवाल ने फिर खामोशी अख्तियार कर ली. उनके बदले दक्षिणी दिल्ली की ग्रेटर कैलाश सीट से विधायक सौरभ भारद्वाज ने विधानसभा में मोर्चा संभाला.

इंजीनियर से नेता बने भारद्वाज ने विधानसभा में ईवीएम से छेड़खानी करने का लाइव डेमो दिया. सौरभ ने अपने इस प्रदर्शन के जरिए बीजेपी की चुनावी जीतों पर सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि यूपी के चुनाव हों या दिल्ली नगर निगम के, बीजेपी की हर जीत सवालों के घेरे में है क्योंकि बीजेपी, ईवीएम में छेड़खानी की वजह से चुनाव दर चुनाव जीत रही है.

पर सौरभ भारद्वाज के इस पर्दाफाश में नया क्या है? इसमें ऐसा क्या था कि दिल्ली विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की जरूरत आन पड़ी?

सौरभ भारद्वाज ने 26 अप्रैल को फ़र्स्टपोस्ट को विस्तार से बताया था कि ईवीएम में किस तरह छेड़खानी की गई. किस तरह बीजेपी ने साजिश करके बार-बार चुनाव जीते.

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सौरभ भारद्वाज ने मंगलवार को वही बातें विधानसभा में दोहराईं. उन्होंने बताया कि किस तरह सीक्रेट कोड के जरिए बीजेपी ने दूसरी पार्टियों को मिले वोट हासिल किए. उन्होंने खुद के इंजीनियर होने के हवाले से बताया कि किस तरह ईवीएम की तकनीकी खामियों का बेजा इस्तेमाल किया गया.

हालांकि आम आदमी पार्टी के विधायक भारद्वाज अब तक ये नहीं बता पाए हैं कि आखिर ये सीक्रेट कोड किसी पार्टी को मिल कैसे गए?

जानकार क्या कहते हैं?

एक्सपर्ट कहते हैं कि ईवीएम की सुरक्षा में सेंध लगाना करीब-करीब नामुमकिन है. उनका कहना है कि जब एक बार ईवीएम का बटन दब जाता है तो फिर उसके बाद वो ब्लॉक हो जाता है. बटन दोबारा दबाकर उसमें हेर-फेर नही किया जा सकता. जैसा सौरभ भारद्वाज ने दिल्ली विधानसभा में दावा किया, वैसा हो ही नहीं सकता.

ईवीएम बनाने वाले को पता नहीं होता कि कौन का उम्मीदवार किस सीट से लड़ेगा? उम्मीदवारों की लिस्ट में वो किस नंबर पर होगा? ऐसे में जिस सीक्रेट कोड में छेड़खानी की बात सौरभ भारद्वाज कह रहे हैं, वो बेमानी है.

चुनाव आयोग का क्या कहना है?

पहले बीएसपी और फिर अरविंद केजरीवाल के आरोप लगाने के बाद चुनाव आयोग ने ईवीएम को लेकर कई बार सफाई जारी की है. आयोग का कहना है कि ईवीएम से छेड़खानी नामुमकिन है.

चुनाव आयोग के सूत्र कहते हैं, 'आयोग ने ईवीएम को लेकर तमाम सवालों के जवाब दिए हैं. ताकि मशीनों से छेड़खानी को लेकर तमाम अफवाहों पर रोक लग सके. इस मुद्दे पर जो भी सवाल आम आदमी पार्टी ने खड़े किए हैं, उनको लेकर आयोग पहले ही कह चुका है कि ईवीएम से छेड़खानी नहीं हो सकती.'

चुनाव आयोग की ईवीएम के सिक्योरिटी फीचर क्या हैं?

चुनाव आयोग ने पहली बार वोटिंग मशीनों के सिक्योरिटी फीचर्स के बारे में विस्तार से जानकारी दी है.

ईवीएम से छेड़खानी का क्या मतलब है?

छेड़खानी का मतलब है वोटिंग मशीनों की कंट्रोल यूनिट में लगी चिप के प्रोग्राम को बदलना. वायरस के जरिए इसमें हेर-फेर करना. वोटिंग मशीन की कंट्रोल यूनिट की चिप को बदलना ताकि इसके बटन ठीक से काम न कर सकें.

क्या चुनाव आयोग की ईवीएम हैक की जा सकती हैं?

नहीं. मॉडल 1 वोटिंग मशीनें 2006 तक बनाई गई थीं. उनमें सभी सुरक्षा इंतजाम थे. उन्हें हैक नहीं किया जा सकता था.

2006 में टेक्निकल इवैलुएशन कमेटी की सिफारिश के बाद ईवीएम का M2 मॉडल तैयार किया गया. 2012 तक इसी मॉडल की ईवीएम बनाई और इस्तेमाल की गईं. इनमें की-कोड हुआ करते थे. बटन दबाने के बाद बैलट यूनिट से कंट्रोल यूनिट तक संदेश या वोट जाता था और वहां दर्ज होता था. ये एनक्रिप्टेड मैसेज होता था. यानी इस संदेश से भी छेड़खानी संभव नहीं थी. अगर कोई बटन दबाने में गड़बड़ करता था, तो, वो भी पकड़ में आ जाए, इसका भी M2 मॉडल में इंतजाम था.

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सबसे बड़ी बात की चुनाव आयोग की ईवीएम कंप्यूटर से नियंत्रित नहीं होतीं. हर मशीन अलग होती है. ये इंटरनेट से एक-दूसरे से जुड़ी नहीं होती. किसी और नेटवर्क से भी ये वोटिंग मशीनें नहीं जुड़ी होतीं. इसीलिए किसी रिमोट डिवाइस से इन्हें हैक नहीं किया जा सकता.

ईवीएम में को फ्रीक्वेंसी रिसीवर या डिकोडर नहीं होता, जिससे वो वायरलेस तरीके से जुड़े हों. यानी वो सॉफ्टवेयर या हार्डवेयर के जरिए किसी और मशीन से नहीं जुड़ी होती. इसीलिए उनमें छेड़खानी नहीं की जा सकती. वोट वाली मशीन यानी बैलट यूनिट से केवल एनक्रिप्टेड मैसेज ही कंट्रोल यूनिट यानी CU को जाता है. इसके अलावा CU यानी कंट्रोल यूनिट कोई और मैसेज रिसीव ही नहीं कर सकती.

क्या मशीनें बनाने वाले इनसे छेड़खानी कर सकते हैं?

ये संभव नहीं है. मशीने बनानें वालों को एक तय सुरक्षा प्रोटोकॉल के तहत काम करना होता है. ये मशीनें अलग-अलग वक्त पर बनाई गई हैं. 2006 से बनी मशीनों का इस्तेमाल भी हो रहा है और उसके बाद बनी मशीनों से भी चुनाव कराए गए हैं. तैयार होने के बाद ईवीएम पहले राज्यों को भेजी जाती हैं. फिर वहां से जिलों को भेजी जाती हैं. मशीन के निर्माताओं को पहले से कैसे पता होगा कि ये मशीनें कहां भेजी जा रही हैं? इनका किस विधानसभा या लोकसभा क्षेत्र में इस्तेमाल होगा? उस सीट पर कितने उम्मीदवार होंगे? किस पार्टी के प्रत्याशी का नाम किस नंबर पर आएगा?

हर ईवीएम का एक सीरियल नंबर होता है. चुनाव आयोग इस सीरियल नंबर से ये पता लगा सकता है कि कोई मशीन किस जगह इस्तेमाल की जा रही है. इसलिए बनाते वक्त मशीनों में छेड़खानी मुमकिन नहीं.

क्या पुरानी ईवीएम अभी भी इस्तेमाल हो रही है?

M1 मॉडल की मशीनें 2006 तक बनाई गई थीं. इनका आखिरी बार 2014 में इस्तेमाल हुआ था. 2014 में वोटिंग मशीनों से चुनाव के 15 साल पूरे हो गए थे. M1 मॉडल वीवीपैट (voter verified paper audit trail) के साथ काम नहीं कर सकती थीं. इसलिए उन्हें हटा दिया गया.

ईवीएम के इस्तेमाल करने के तयशुदा नियम हैं. किसी ईवीएम और इसकी चिप को मुख्य चुनाव अधिकारी की मौजूदगी में नष्ट किया जाता है. मशीनों को निर्माताओं के कारखाने में ही नष्ट किया जाता है.

क्या ईवीएम या इसके उपकरणों में छेड़खानी ऐसे की जा सकती है कि किसी की नजर में ही न आए?

चुनाव आयोग ने 2013 से M3 मॉडल की ईवीएम का इस्तेमाल शुरू किया था. इसमें एक नया सिक्योरिटी फीचर जोड़ा गया था. जिससे इस मशीन में छेड़खानी किए जाने पर फौरन पता लग जाता है. जैसे ही कोई मशीन को खोलने की कोशिश करता है, तुरंत ही इसकी जानकारी मिल जाती है.

इसके अलावा इस मशीन का सेल्फ डायग्नोस्टिक फीचर हर बार मशीन ऑन किए जाने पर खुद ही इसकी पड़ताल करता है. इसके हार्डवेयर या सॉफ्टवेयर में किसी भी गड़बड़ी का इससे फौरन पता चल जाता है. M3 का नया मॉडल जल्द ही इस्तेमाल में आना शुरू हो जाएगा. इससे पहले टेक्निकल एक्सपर्ट कमेटी इस मशीन की पड़ताल करेगी. इसके बाद ही इस मशीन को बनाया जाएगा. सरकार ने इस नई मशीन के लिए दो हजार करोड़ रुपए जारी किए हैं.

ईवीएम के नए तकनीकी फीचर क्या हैं?

ईवीएम में कई बेहद खास सुरक्षा इंतजाम किए गए हैं. इसमें वन टाइम प्रोग्रामेबल माइक्रोकंट्रोलर हैं. बटन की डायनामिक कोडिंग की गई है. हर बार बटन दबाने का दिन और वक्त भी मशीन में दर्ज होता है. इसके संदेश का एनक्रिप्शन होता है. साथ ही हर मशीन में ईवीएम ट्रैकिंग सॉफ्टवेयर के जरिए हर मशीन की लोकेशन पता चलती रहती है. इससे साफ है कि मशीन में छेड़खानी नामुमकिन है. नए M3 मॉडल में टैंपर डिटेक्शन का फीचर है. साथ ही मशीन में सेल्फ डायग्नोस्टिक का भी फीचर है. इस नए मॉडल में वन टाइम प्रोग्रामेबल फीचर भी है. इस OTP को बदला या नया इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. इसी वजह से ईवीएम से छेड़खानी नहीं हो सकती. अगर कोई ईवीएम से छेड़खानी करेगा, तो वो इस्तेमाल के काबिल ही नही रहेगी.

स्थानीय निकाय चुनाव में ईवीएम में छेड़खानी के आरोपों में कितना दम है?

इस बारे में लोगों के अंदर समझ की कमी है. क्योंकि उन्हें जानकारी नहीं है. पंचायत या नगर निगम चुनाव में चुनाव आयोग की वोटिंग मशीनों का इस्तेमाल नहीं होता. इन चुनावों में राज्य चुनाव आयोग की ईवीएम का इस्तेमाल होता है. इनका केंद्रीय चुनाव आयोग से कोई ताल्लुक नहीं.

ईवीएम से छेड़खानी रोकने के लिए क्या-क्या जांच की जाती है?

सबसे पहले तो भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (ECIL) के इंजीनियर पहले इन मशीनों में सही उपकरण लगे होने की पड़ताल करके इसे प्रमाणित करते हैं. इन मशीनों की पड़ताल राजनैतिक दलों के नुमाइंदों की मौजूदगी में होती है. खराब मशीनों को वापस कारखाने में भेज दिया जाता है. जहां मशीने रखी जाती हैं, उनकी पूरी पड़ताल की जाती है. गिने-चुने लोगों को ही उस जगह जाने की इजाजत होती है. कैमरा, मोबाइल फोन और खुफिया कलम ले जाने की रोक होती है. एक हजार वोटों के जरिए वोटिंग का डेमो होता है. इसके लिए अलग-अलग ईवीएम इस्तेमाल होती हैं. इस मॉक पोल के नतीजे राजनैतिक दलों के प्रतिनिधियों को दिखाए जाते हैं. पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी होती है.

ईवीएम का चुनाव यहां-वहां से होता है. मतलब सारी मशीनों को मिलाकर कहीं से भी चुनकर उन्हें अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में भेजा जाता है. यानी ये तय नहीं होता कि किसी मशीन को किस जगह भेजा जाएगा. पोलिंग बूथ पर मॉक पोलिंग के जरिए पोलिंग एजेंटों के सामने ईवीएम के सही होने की पड़ताल होती है. वोटिंग से पहले ईवीएम को सील किया जाता है. उम्मीदवारों के पोलिंग एजेंटों की मौजूदगी में ये सील लगाई जाती है. पोलिंग एजेंट उस जगह तक जा सकते हैं जहां ईवीएम रखी जाती हैं.

स्ट्रॉन्ग रूम-जिस कमरे में ईवीएम रखी जाती हैं, वहां पर उम्मीदवारों के प्रतिनिधि अपनी सील लगा सकते हैं. उसके सामने भी वो अपनी सील लगा सकते हैं. इन स्ट्रॉन्ग रूम की चौबीसों घंटे निगरानी की जाती है.

ईवीएम को वोटिंग के बाद वोटों की गिनती के केंद्र लाया जाता है. हर मशीन से लगी यूनीक आईडी और सील वहां खोली जाती है. इसके बाद हर मशीन को कंट्रोल यूनिट उम्मीदवारों और उनके प्रतिनिधियों को दिखाया जाता है. इसके बाद ही वोटों की गिनती होती है.