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'ब्रांड इमेज' से बड़े नेता बन सकते हैं अखिलेश

समाजवादी पार्टी अंतत: टूट गई. अब सवाल यह है कि पार्टी और अखिलेश का भविष्य क्या होगा?

Krishna Kant

लंबे समय तक चले संघर्ष के बाद अंतत: समाजवादी पार्टी टूट गई. अब सवाल यह उठ रहे हैं कि पार्टी और अखिलेश का भविष्य क्या होगा? अखिलेश मुख्यमंत्री रहेंगे या प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगेगा? उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में किसका पलड़ा भारी रहेगा? क्या अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ गठबंधन करेंगे?

अखिलेश यादव अपनी पार्टी में पहले नेता हैं जिनका यादव तबके के बाहर भी अच्छा जनाधार है. उनकी छवि साफ-सुथरी है, उनपर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है. नई पीढ़ी के एक तबके में उनको जबरदस्त समर्थन हासिल है.


अगर अखिलेश यादव की तरफ दो से तीन प्रतिशत युवा भी जाते हैं तो फिलहाल मजबूत स्थिति में चल रही भाजपा की हालत कमजोर पड़ेगी, क्योंकि भाजपा का मुख्य फोकस युवा ही हैं जिनके दम पर वह चुनाव जीतने का भरोसा रखती है.

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पार्टी में इस घमासान के बाद मुस्लिम मतदाता भ्रमित होंगे. वे ज्यादा से ज्यादा संख्या में बसपा की तरफ जा सकते हैं. इस बार यूपी में जिस तरह की स्थितियां बन रही हैं, उसमें बसपा को अगर एकमुश्त मुस्लिम वोट मिलते हैं तो मायावती जीत निश्चित है.

पार्टी की यह टूट मुलायम और अखिलेश दोनों को कमजोर करेगी. अखिलेश सरकार ने अपेक्षाकृत अच्छा काम किया था. उनकी छवि बेहतर बनी थी. पार्टी अगर संगठित होकर चुनाव लड़ती तो उनके वापसी की भी संभावना बन सकती थी.

अब पूरे यादव परिवार के लिए यह स्थिति बहुत कठिन है. इस टूट से हर हाल में समाजवादी पार्टी को कमजोर होना है. मुलायम सिंह और अखिलेश यादव अगर अलग-अलग चुनाव में उतरते हैं तो दोनों अपनी ही पार्टी का वोट बांटेंगे.

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अखिलेश अगर अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस ज्वाइन करते हैं तो वहां उनको अपनी पहचान का संकट होगा. इससे अखिलेश को नुकसान होगा.

सबसे पहले यह देखना होगा कि मौजूदा उत्तर प्रदेश सरकार रहती है या वहां पर राष्ट्रपति शासन लगता है. अगर तत्काल प्रभाव से राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो जाता है तो अखिलेश के लिए भी स्थिति बहुत कठिन होगी. सत्ता में रहकर वे जैसा प्रदर्शन कर सकते हैं, वह सत्ता से बाहर रहकर संभव नहीं है.

कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर पार्टी टूटने के साथ ही अखिलेश के संपर्क में हैं. अगर अखिलेश एक नई पार्टी बनाकर कांग्रेस से गठबंधन करते हैं तब एक स्थिति बन सकती है कि इस गठबंधन को जनता का समर्थन मिले, जैसा कि बिहार में हुआ था.

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अखिलेश की साफ सुथरी छवि और लंबे समय से सत्ता से बाहर कांग्रेस का संगठन दोनों मिलकर अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं. प्रशांत की रणनीति भी यही होगी. प्रशांत किशोर को मोदी और नीतीश को जिताने का अनुभव है. उन्हें पता है कि मौजूदा राजनीति सिर्फ छवि का खेल है जो प्रचार तंत्र, मीडिया और सोशल मीडिया पर मैनेज किया जा सकता है.

लेकिन कांग्रेस उत्तर प्रदेश में ढाई दशक से सत्ता से बाहर है. अगर कांग्रेस का उभार होता है तो भी यादव परिवार के लिए मुश्किल स्थिति खड़ी होगी. हालांकि, मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी के लिए यह खतरे की घंटी है कि अगर अखिलेश यादव अपनी छवि और अपने 'काम बोलता है' के नारे को भुनाने में कामयाब हुए तो वे राजनीति में भी कामयाबी हासिल कर सकते हैं.