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सृजन स्कैम : नीतीश सरकार के मंत्री 'दागियों' को बांट रहे हैं इनाम

सहकारिता मंत्री राणा रणधीर सिंह ने जांच के घेरे में आए भागलपुर सेंट्रल को-आॅपरेटिव बैंक के चेयरमैन जितेंद्र सिंह को 1.52 लाख रुपए देकर सम्मानित किया

Kanhaiya Bhelari

‘सृजन स्कैम की जानकारी मिलते ही हम 9 अगस्त को इसे पब्लिक डोमेन में लेकर आए. हमने तुरंत जांच अधिकारियों की टीम को हवाई जहाज से भागलपुर भेजा. हमारी सरकार ने केंद्र सरकार से फौरन सीबीआई जांच की सिफारिश की. घोटाला में शामिल कोई भी व्यक्ति बचने वाला नहीं है.’ घोटालेबाजों की पहचान कर उनको पकड़ने के लिए हम कितना व्याकुल और गंभीर हैं इसे साबित करने के किए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पिछले 17 दिनों में कई दफा उपर कही बातों को दोहराया है. शुक्रवार को भी उन्होंने विधानपरिषद में इसे कहा.

लेकिन प्रमाणिक तौर पर तो ऐसा लगता है कि उनके कैबिनेट के सहयोगी और सरकारी मुलाजिम मुख्यमंत्री की बातों को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं. तभी तो सहकारिता मंत्री राणा रणधीर सिंह ने बीते 19 अगस्त को सृजन स्कैम की जांच के घेरे में आए भागलपुर सेंट्रल को-आॅपरेटिव बैंक के चेयरमैन जितेंद्र सिंह को एक लाख 52 हजार रुपए देकर सम्मानित किया. इस अवसर पर विभाग के कई आला अधिकारी भी वहां मौजूद थे.


आखिर मंत्री महोदय ने जितेंद्र सिंह को बैंक में उनके द्वारा किए गए किन अच्छे कार्यों और योगदानों के लिए पुरस्कृत किया है?

सृजन घोटाले की किंगपिन मनोरमा देवी के सीएम नीतीश कुमार से परिचित होने की बात सामने आई है

चर्चित सृजन स्कैम से निकल रही रिपोर्ट के अनुसार 2012 से मार्च 2017 के बीच दो किस्तों में भागलपुर सेंट्रल को-आॅपरेटिव बैंक की 50 करोड़ रुपए को सृजन के खाते में ट्रांसफर किया गया है. 30 करोड़ रुपए का ट्रांसफर उस वक्त किया गया जब पंकज कुमार झा बैंक के एमडी और जिला सहकारिता पदाधिकारी थे. शेष 20 करोड़ रुपए का ट्रांसफर वर्तमान एमडी सुभाष कुमार के समय में हुआ है. संयोग की बात है कि दोनों ही समय में बैंक के चेयरमैन जितेंद्र सिंह रहे हैं.

तत्कालीन सहकारिता मंत्री ने सेवा से खुश होकर निलंबन वापस कर दी

पंकज कुमार झा की गिरफ्तारी हो चुकी है. अभी वो सुपौल जिला में तैनात थे. को-आॅपरेटिव बैंक की रकम को अवैध तरीके से सृजन के एकाउंट में डालने की बात उन्होंने पुलिस के सामने स्वीकार कर ली है. 2015 में भी पंकज कुमार झा को गबन के आरोप में निलंबित किया गया था. सहकारिता विभाग के प्रधान सचिव ने इनके खिलाफ सख्त विभागीय कार्रवाई की सिफारिश की थी. लेकिन तब के सहकारिता मंत्री ने झा की सेवा से खुश होकर निलंबन वापस कर दी.

भागलपुर सेंट्रल को-आॅपरेटिव बैंक के रिटायर्ड लेखाधिकारी हरिशंकर उपाध्याय की गिरफ्तारी के बाद ये बात सामने आई है कि बैंक का खाता इंडियन बैंक और बैंक आफ बड़ौदा में खोलने के पीछे का मकसद सृजन केा लाभ पहुंचाना था. उपाध्याय ने पुलिस के सामने दिए अपने इकबालिया बयान में इस राज का खुलासा किया है कि ‘मैं मनोरमा देवी के पेरोल पर काम करता था. उनके मरने के बाद सृजन का कामकाज उनकी बहू रजनी प्रिया और बेटे अमित कुमार के द्वारा देखा जाने लगा.’

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पुलिस को दिए अपने लिखित बयान में हरिशंकर उपाध्याय खुलासा करते हैं कि ‘प्रिया और अमित बैंक के साथ-साथ भागलपुर समाहरणालय (कलेक्टरेट), विभिन्न सरकारी कार्यालय और जिला सहकारिता ऑफिस के पदाधिकारी और कर्मचारियों को भी मैनेज करते थे. उनकी मदद से सरकारी राशि का अवैध ट्रांसफर अपने सृजन के खाता में करा लेते थे’.

बिहार से प्रकाशित होने वाले एक हिंदी अखबार में छपी तस्वीर

सबसे अहम सवाल यह है कि हरिशंकर उपाध्याय की बहाली सरकार द्वारा 1980 में भागलपुर सेंट्रल को-आपरेटिव बैंक में बतौर लिपिक हुई थी. तब से उनका तबादला कहीं नहीं किया गया. आखिर तक यहीं नौकरी करते रहे. आखिर उनमें ऐसी क्या खासियत थी कि उनका तबादला नहीं किया गया?

नियम-कानून को ताक पर रखकर संविदा पर सेवाएं लेनी जारी रखी

30 जून को उपाध्याय रिटायर हो गए लेकिन नियम-कानून को ताक पर रखकर बैंक के चेयरमैन और एमडी ने संविदा पर इनकी सेवाएं लेनी जारी रखी. हरिशंकर उपाध्याय ने 20 अगस्त को दिए अपने बयान में कबूल किया है कि ‘रिटायर्ड होने के बाद भी मैं को-आॅपरेटिव बैंक भागलपुर में काम कर रहा था.’ इस सच्चाई को तो स्वीकार करना ही था क्योंकि पुलिस ने उपाध्याय को बैंक में काम करते समय ही गिरफ्तार किया था.

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फोन से संपर्क करने पर चेयरमैन जितेंद्र सिंह और एमडी सुभाष कुमार ने कहा कि हरिशंकर उपाध्याय रिटायरमेंट के बाद बैंक में कार्यरत नहीं थे. आखिर ये दोनों लोग झूठ क्यों बोल रहे हैं? इसके पीछे कुछ रहस्य तो है. वैसे जितेंद्र सिंह और सुभाष कुमार ने फोन पर हुई बातचीत में दावा किया है कि ‘हम लोगों ने जनता की गाढ़ी कमाई की लूट को उजागर करने में पुलिस की मदद की है’. सिंह का आरोप है कि ‘इंडियन बैंक और बैंक आफ बड़ौदा के कर्मचारियों ने सृजन संस्था के लोगों से मिलकर हमारे बैंक के खातों से पैसा ट्रांसफर किया है.’

यहां याद रखना जरूरी है कि लालू यादव को चारा घोटाले में सजा होने के पीछे सबसे बड़ा सबूत था कि उन्होंने एक घोटालेबाज और पशुपालन विभाग के कर्मचारी श्याम बिहारी सिन्हा को सेवा विस्तार दिया था.