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नीतीश कुमार के आवास में शराब माफिया को किसने एंट्री दिलाई?

एक शराब के माफिया ने सीएम नीतीश कुमार के घर में घुसकर उन्हीं के साथ सेल्फी ले ली. लेकिन कैसे?

Kanhaiya Bhelari

ये मामूली घटना नहीं है कि राकेश सिंह नाम का एक कुख्यात दारू माफिया आराम से सीएम आवास में प्रवेश पा जाए और नीतीश कुमार के साथ मुस्कुराते हुए अपनी सेल्फी खींच ले. चाहे कोई कितनी भी सफाई दे लेकिन इस घटना ने नीतीश कुमार की इमेज को लपेटे में तो ले ही लिया है.

बहरहाल, इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना में कहीं से भी नीतीश कुमार को दोषी नहीं माना जा सकता है. मानना भी नहीं चाहिए. अभी बीते 14 तारीख को एक प्रमाणित जालसाज और फरारी तिवारी ने पीएम नरेंद्र मोदी से हाथ मिलाकर एयरपोर्ट पर कानाफूसी भी कर ली. तमाम अफसर देखते रह गए. इसमें पीएम का क्या दोष हो सकता है?


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ठीक उसी तरह पिछले दिनों क्रिमिनल बैकग्राउंड के कई विषधरों की तस्वीरें तेजस्वी यादव, तेज प्रताप यादव, केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद और छोटे मोदी के साथ अखबारों में देखने को मिली हैं. कहा व माना जा सकता है कि इन फोटो सेशन के लिए इनमें से कोई भी नेता जिम्मेदार नहीं हो सकता है. आम तौर पर ऐसा देखा गया है कि मंत्रियों के साथ फोटो खिंचवाना कई लोगों के लिए शान की बात होती है. इसमें ज्यादातर अनजान होते हैं. नेता किसी को निराश करना नहीं चाहते हैं.

लेकिन राकेश सिंह वाली घटना के पीछे कोई अति विश्वासी व्यक्ति है जिसने नीतीश कुमार की छवि को दागदार करने के लिये ऐसा घृणित काम किया है. ऐसा कैसे हो सकता है कि बिना किसी के बैकग्राउंड की छानबीन किए राज्य के मुखिया के घर में एक घोषित क्रिमिनल को प्रवेश मिल जाए? जबकि सीएम गेट पर हम पत्रकारों की भी जांच इस तरह की जाती है जैसे मानो हम गब्बर सिंह गैंग के हों. राकेश को अंदर घुसाने का काम कोई विश्वासी ही करवा सकता है. कौन है व्यक्ति, इसकी गहन पड़ताल होनी चाहिए. क्या सीएम आवास में ऐसा कोई शख्स है जिसका आरा से कनेक्शन है और राकेश सिंह उसका दूर का रिश्तेदार हो?

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दूसरी बात कि राकेश सिंह संगठन में उदवंतनगर प्रखंड का अध्यक्ष कैसे बन गया? पुख्ता तौर पर बताया जाता है कि राकेश सिंह आरा के पूर्व सांसद मीना सिंह का करीबी रिश्तेदार है. क्या मीना सिंह या उनके पुत्र जो जेडीयू में हैं ने अध्यक्ष पद के लिए उसके नाम का प्रस्ताव किया था? इस लेखक को मिली जानकारी के अनुसार, राजनीति के दादा के आवास पर भी इस जेल-यात्री शराब माफिया को तकली काटते हुए मेटा में दही और बोरे में चूरा के साथ कई बार देखा गया है.

2012 में जहरीली शराब पीने से 29 लोगों की जानें गई थी. उस घटना का राकेश मुख्य आरोपी है. क्या इस बात को भोजपुर जिला के जेडीयू अध्यक्ष नहीं जानते थे? ‘बिल्कुल जानते थे. लेकिन क्या कर सकते थे, उसे अध्यक्ष बनाने के लिए ऊपर से दबाव आ रहा था. एक मंत्री भी फोन किए थे. संगठन के एक प्रभावकारी नेता ने इस लेखक को ये जानकारी दी. क्या जांच की जाएगी? वो ऊपर वाले कौन हैं? लगता तो ऐसा नहीं है.

अगर बैकग्राउंड जांचकर प्राथमिक सदस्य बनाने का काम राजनीतिक दल वाले करने लगे तो एकदम पोल खुल जाएगी. छिपाई असलियत जनता के सामने आ जाएगी. पार्टियां नेता विहीन हो जाएंगी. वैसे ये जनता है सब जानती है. लेकिन जानने से देखना सेहत के लिए खतारनाक होता है.

अब देखिए न, राष्ट्रवादी पार्टी ने सबकुछ जानते हुए भी तिवारी जी को संगठन में बड़ी जिम्मेदारी दी है. जानकारी में ही शर्मा जी को 1500 करोड़ रुपए के सृजन घोटाले में लूटने का मौका दिया. अभी भी शर्मा जी की अरेस्टिंग नहीं हुई है जबकि बंदा खुलेआम दिल्ली रहकर सत्ता के गलियारे में जलेबी छान-छानकर राज सिंह और भागलपुर वाले असलम मियां को खिला रहा है.

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आरजेडी और लोजपा तो खुल्लम-खुल्ला कानून को ठेंगा दिखने वाले सूरमाओं की पैरोकार रही हैं. मोहम्मद शहाबुद्दीन से लेकर राजवल्लभ यादव तक इस पार्टी के नवरत्न हैं. दूसरी तरफ सूरजभान सिंह और रामा सिंह जैसे तोप लोजपा के मूर्धन्य नेताओं की कटगरी में रखे गए हैं.

अलग तरह की तस्वीर पेश करने के लिए सीएम और जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष को रेडिकल कदम उठना पड़ेगा. पिछले दिनों राज्य के विभिन्न हिस्सों में कई ऐसी घटनाएं खासकर शराबबंदी से जुड़ी घटीं जिससे दल और नेता दोनों की जनता के बीच किरकिरी हुई. राकेश सिंह की घटना लापरवाही की पराकाष्ठा से हुई है. आप ही प्रवचन देते हैं, 'सावधानी हटी, दुर्घटना घटी'. लेकिन आपकी जनता को दुख इस बात का है कि आप ही लोग नियम तोड़ रहे हैं.