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बजट 2017: क्या बजट में बनेगी इन सेक्टर्स की बात?

यहां दो चरणों में आठ क्षेत्रों की जरूरत और बजट से उनकी डिमांड के बारे में बताया जा रहा है.

Alok Puranik

नोटबंदी के बाद अर्थव्यवस्था बेहाल है. ऐसे में आम जनता उम्मीद कर रही है कि सरकार बजट में कुछ ऐसे फैसले लेगी, जिससे उनकी मुश्किलें कम होंगी. यहां दो चरणों में आठ क्षेत्रों की जरूरत और बजट से उनकी डिमांड के बारे में बताया जा रहा है.

खेती किसानी बेहतर 


खेती ऊपर की ओर जा रही है, ऐसी खबर आ रही है. केंद्रीय सांख्यिकी संगठन ने विकास के जो आंकड़े हाल में पेश किए हैं,  उनके मुताबिक 2016-17 में कृषि में विकास की दर 4.1 प्रतिशत रहने का अनुमान है.

गौरतलब  है कि 2015-16 में कृषि की विकास दर 1.2 प्रतिशत रही थी. खेती का ऊपर जाना सिर्फ खबर नहीं, बहुत बड़ी खुशखबरी है. खासकर तब जब नोटबंदी के बाद ऐसी आशंका थी कि खेती पर बहुत खराब असर पड़ेगा.

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खेती की बेहतरी सिर्फ खेती की बेहतरी नहीं है, भारतीय अर्थव्यवस्था के एक बड़े हिस्से की बेहतरी है.

रुकी हुई रियल एस्टेट 

नोटबंदी के बाद जिन उद्योगों में मंदी का रुख देखा गया, उनमें रियल एस्टेट भी है. नाइट फ्रेंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के आठ महानगरों में 2015 के मुकाबले 2016 में प्रापर्टी की बिक्री में 9 प्रतिशत की गिरावट आई.

2015 में कुल 2,67.680 इकाइयां बिकी थीं, 2016 में इनसे कम 2,44,680 इकाइयां बिकीं.

इस दौरान कंस्ट्रक्शन में कमी देखी गई है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2016-17 में कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में कुल 2.9 प्रतिशत के विकास का अनुमान है, जबकि 2015-16 में यह विकास दर 3.9 प्रतिशत थी.

कंस्ट्रक्शन क्षेत्र का बड़ा महत्व इसलिए भी है क्योंकि इसमें रोजगार बहुत मिल जाता है. इससे उन लोगों को भी रोजगार मिलता है जिनके पास कोई विशेष कौशल नहीं है.

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खबरें हैं कि सरकार कंस्ट्रक्शन क्षेत्र को लेकर चिंतित है और इसे बढ़ावा देने के लिए बजट में होम लोन को सस्ता भी किया जा सकता है.

रुका हुआ ऑटो

ऑटोमोबाइल क्षेत्र का भी रोजगार के नजरिए से बहुत महत्व है. वाहनों की बिक्री में भारी कमी आई है.

ऑटोमोबाइल के एक संगठन के आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर 2016 में कुल 12,21,929 वाहन बिके, जो दिसंबर 2015 में बिके वाहनों के मुकाबले 18.66 प्रतिशत कम थे.

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ऑटोमोबाइल क्षेत्र की बेहतरी से रोजगार की बेहतरी और कर-संग्रह भी बेहतर हो सकता है.

रोजगार का मसला

रोजगार सिर्फ आर्थिक नहीं, राजनीतिक मसला भी है. हरियाणा का जाट आंदोलन, गुजरात का पटेल आंदोलन और राजस्थान का गुर्जर आंदोलन, इस सबके मूल में कहीं ना कहीं सिर्फ रोजगार नहीं बल्कि बेहतर रोजगार का मसला है. युवा स्टार्ट-अप शुरू करने को तैयार हैं.

उनके लिए कुछ सस्ते और आसान कर्ज होने चाहिए. बजट से उम्मीद की जानी चाहिए कि छोटे कारोबारियों के लिए सस्ते और बेहतर कर्ज का जुगाड़ होगा.

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तकनीक जिस तरह से पंख फैला रही है, उसे देखते हुए रोजगार के अवसर बहुत तेजी से बढ़ने के आसार दिखाई नहीं देते. निजी घरेलू छोटे कारोबारों को आसान शर्तों पर वित्तीय मदद दिलाने की दिशा में भी काम करना होगा.