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जनता की अपेक्षाओं पर कितनी खरी उतरी मोदी सरकार की बजट

बजट में जो भी राहत दी गई है जनता को उससे कहीं ज्यादा की अपेक्षाएं थीं

Sanjay Singh

2017 के बजट के साथ ही मोदी सरकार इस सियासी संदेश को प्रचारित करने में कामयाब रही कि केंद्र सरकार गरीबों की हितैषी है और सरकार की नीतियों के केंद्र में समाज के हाशिये पर खड़े लोग हैं.

बजट में उद्योग और कारोबार की अपेक्षा समाजिक क्षेत्र के प्रति ज्यादा सरोकार दिखा कर मोदी सरकार ने काफी बुद्धिमता से उन राजनीतिक और सामाजिक आलोचकों का मुंह बंद कर दिया है, जो अक्सर सरकार पर बड़े उद्योगपतियों और औद्योगिक घरानों को सहूलियत पहुंचाने का आरोप लगाया करते थे.


वैसे भी इस साल के बजट में जो भी राजनीति और आर्थिक संदेश निहित है वो हर लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है. क्योंकि इस बजट के साथ ही सत्ता में मोदी सरकार के तीन साल पूरे हो गए.

तो सरकार के सामने नोटबंदी की कड़वी खुराक देने के बाद जनता को राहत देने की बड़ी चुनौती सामने थी. एक तरफ जहां जनता अपेक्षा भरी नजरों से राजनीतिक नेतृत्व की ओर टकटकी लगाए खड़ी थी, तो वहीं दूसरी तरफ जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने का जिम्मा सियासी नेतृत्व पर था.

इसके अलावा ये बजट ऐसे वक्त में पेश किया गया है जब पांच राज्यों- यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में विधानसभा चुनाव सिर पर हैं, और देश के कुल मतदाताओं का करीब छठा हिस्सा इन राज्यों में सरकार का फैसला करने जा रही है.

जनता की उम्मीदें

यही वजह है कि अपने बजट भाषण के शुरुआत में ही वित्त मंत्री अरुण जेटली ने मोदी सरकार से जनता की जो उम्मीदें और आकांक्षाएं जुड़ी हैं उसकी बात की.

संसद में बजट पेश करते अरुण जेटली

जेटली ने कहा, 'हमारी सरकार को जनता ने काफी उम्मीदों से चुना है. जनता को हमसे बेहतर गर्वनेंस की उम्मीद है. यही वजह है कि अब तक हमारे देश में सरकारें जैसी चला करती थीं उसमें हमने बड़ा बदलाव किया है.

उन्होंने आगे कहा, 'हम स्वेच्छापूर्ण प्रशासन से नीतियों और सिस्टम पर आधारित प्रशासन बनने की दिशा में हैं. तो हम पक्षपाती रवैया अपनाने के बजाए निर्णय करने में पारदर्शिता बरत रहे हैं. हम इनफॉर्मल से फॉर्मल इकोनॉमी बनने की दिशा में हैं.'

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इस बात पर गौर करना दिलचस्प है कि, वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण के शुरुआती 50 मिनट तक सामाजिक क्षेत्र के बारे में भी बातें कीं. इस दौरान उन्होंने सियासी रूप से सधे हुए शब्दों को ही दुहराया. मसलन, उनके शुरुआती भाषण में किसान, गरीब, वंचित, महिला, दलित, आदिवासी, युवा, मध्यम वर्ग, वरिष्ठ नागरिक जैसे शब्दों की भरमार रही.

इस दौरान उन्होंने इन्हीं लोगों से जुड़ी उन योजनाओं का जिक्र किया जो इनके लिए फायदेमंद साबित हो सकती हैं.

पीएम की बातों का दोहराव

ऐसा लग रहा था कि 31 दिसंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुराने 500 और 1000 के नोटों को जमा करने की 50 दिन की सीमा खत्म होने पर देश के नाम अपने संबोधन में जो कहा था, वित्त मंत्री अरुण जेटली उन्हीं बातों को अपने बजट भाषण में भी दोहरा रहे थे.

जेटली ने अपने भाषण में इसका जिक्र किया था. मोदी ने देश भर में गर्भवती महिलाओं को आर्थिक सहायता देने की योजना का ऐलान किया था. इस योजना के तहत सरकार की मंशा गर्भवती महिलाओं के बैंक अकाउंट में सीधे 6000 रु. जमा कराने का है. इससे गर्भवती महिलाओं को बेहतर इलाज मिलेगा और बच्चों का टीकाकरण भी समय पर हो सकेगा. इस योजना को भी बजट में शामिल कर लिया गया है.

ऐसा कहा जा रहा है कि जेटली का भाषण मोदी के भाषण का दोहराव था

वैसे तो वित्त मंत्री के बजट पेश करने के बाद प्रधानमंत्री का बजट पर बयान देना अब तक एक सियासी परंपरा मानी जाती रही है. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टीवी पर जो संदेश दिया उसमें उन्होंने बजट पर काफी देर तक अपने विचार व्यक्त किए.

प्रधानमंत्री ने प्रत्येक सामाजिक क्षेत्र की बातें कीं जिसका मतलब साफ था प्रधानमंत्री इस बजट का पूरा जिम्मा अपने ऊपर लेते हुए दिखे.

निश्चित तौर पर इससे अच्छा कुछ और नहीं हो सकता है कि बजट में जिन आर्थिक नीतियों को शामिल किया गया है उसकी जिम्मेदारी प्रधानमंत्री खुद ले रहे हैं. प्रधानमंत्री ने पिछले साल भी ऐसा ही किया था और दूसरी बार वो फिर ऐसा ही कर रहे हैं.

किसानों पर चर्चा

अब बीजेपी और पार्टी के प्रोपगैंडा मशीनरी पर सरकार की योजनाओं और नीतियों को उन राज्यों में लोगों के बीच प्रचारित करने का जिम्मा है जहां विधानसभा चुनाव होने हैं. खास कर उत्तर प्रदेश में जहां 11 फरवरी को पहले चरण का चुनाव होना है.

लेकिन इसके बावजूद पार्टी के लिए मतदाताओं को ये भरोसा दिलाने के लिए काफी वक्त अभी बचा हुआ है कि बीजेपी गरीबों, वंचितों और समाज के पिछड़े वर्ग के लोगों का ध्यान रखती है. मोदी सरकार ने अपना काम पूरा कर लिया है. अब बारी पार्टी के पदाधिकारियों की है जिन्हें सरकार मतदाताओं तक पहुंचाने के लिए कई अहम संदेश दे चुकी है.

बजट भाषण में किसानों पर चर्चा कई दूसरे जगहों पर तो की गई है. लेकिन किसानों से संबंधित योजनाओं का जिक्र पूरे 12 पैराग्राफ में मिलता है. जेटली ने कहा कि पिछले वर्ष के मुकाबले इस साल खरीफ और रबी फसलों की बुआई ज्यादा हुई है.

इस बजट में किसानों के बारे खास ध्यान रखा गया है

ये इस धारणा को गलत बताने के लिए काफी है कि नोटबंदी के दौरान किसानों को बुआई में दिक्कत हुई थी. वित्त मंत्री ने यहां तक उम्मीद जताई है कि अगर मानसून इस बार ठीक रहा तो मौजूदा वर्ष में कृषि विकास दर 4.1 प्रतिशत के आंकड़े को छू सकता है.

ऐसा लगता है कि बजट बनाने की प्रक्रिया में इस बार पार्टी ने जो अहम इनपुट दिए थे उसे शामिल किया गया था. कुछ ही दिन पहले बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने एक रैली में डेयरी फार्मिंग के फायदे के बारे में विस्तार से बातें की थीं. उन्होंने ये भी बताया कि कैसे यूपी इस मौके को चूक गई और क्यों अमूल जैसी कंपनी यूपी में नहीं है.

अमूल जैसी श्वेत क्रांति

फिर अमूल से भी एक कदम आगे सोचने की अब क्यों जरूरत है. उन्होंने लोगों से वादा किया कि अगर बीजेपी सत्ता में आती है तो इस मुद्दे पर पार्टी विशेष जोर देगी.

अब बजट में जो कहा गया उस पर ध्यान दीजिए. 'डेयरी किसानों के लिए अतिरिक्त कमाई का बेहतर जरिया है. दूध को प्रोसेस करने और इंफ्रास्ट्रक्चर की सुविधा बढ़ने से वैल्यू एडिशन होगा जिससे किसानों को फायदा पहुंचेगा.'

ऑपरेशन फ्लड के तहत जितने डेयरी प्रोशेसिंग यूनिट लगाए गए थे वो अब पुराने पड़ गए हैं. तीन साल के दौरान नाबार्ड के साथ 8000 करोड़ फंड के साथ एक डेयरी प्रोशेसिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड बनाने का प्रस्ताव है. शुरुआत में ये फंड 2000 करोड़ की राशि से शुरू किया जाएगा.

जेटली ने यूपी में अमूल जैसी दुग्ध क्रांति की बात की

14वें पैराग्राफ में ग्रामीण भारत से संबंधित योजनाओं का जिक्र किया गया है तो 11वें पैराग्राफ में गरीब और वंचितों के लिए सरकारी स्कीमों के बारे में बताया गया है. मनरेगा के लिए 2017-18 में 48,000 करोड़ की राशि का प्रावधान किया गया है. जो अब तक सबसे ज्यादा है.

मनरेगा को प्रोडक्टिव एसेट क्रिएशन से जोड़कर मोदी सरकार ने यूपी सरकार के मुकाबले इसे ज्यादा बेहतर बनाने की कोशिश की है. इसी तरह प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना और प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए प्रस्तावित राशि में 30 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है.

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अगर मोदी सरकार ग्रामीण इलाकों में रहने वाले गरीबों के लिए घर बनाने में सफल रहती है तो जरूरतमंदों का सामाजिक और राजनीतिक समर्थन लंबे समय तक पार्टी को मिलता रहेगा.

हालांकि प्रत्यक्ष कर के दायरे में आने वाले लोगों का 90 फीसदी वेतनभोगी मध्यम वर्ग है और इस वर्ग की अपेक्षाएं मोदी सरकार से कुछ ज्यादा की थी.

लिहाजा इस बजट से उन्हें थोड़ी निराशा हुई होगी. वैसे तो बजट में जनता के लिए राहत की कई बातें हैं. लेकिन नोटबंदी की कड़वी दवा पीने के बाद सरकार से जनता को कुछ मीठी दवा की उम्मीद थी.

मतलब साफ है कि बजट में जो भी राहत दिए गए हैं जनता को उससे कहीं ज्यादा की अपेक्षाएं थीं.