वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बुधवार को केंद्रीय बजट पेश किया. बजट में बॉलीवुड को कुछ रियायत देने की बात तो दूर बजट भाषण के दौरान एक बार भी फाइनेंस मिनिस्टर ने एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री का नाम तक नहीं लिया. किसान, गरीब, मजदूर, बैंक, रेल, रक्षा, खेल, तेल सबका कुछ न कुछ ध्यान बजट में जेटली ने रखा है लेकिन हर बार की तरह इस बार भी एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री को ठेंगा दिखा दिया.
फिल्ममेकर मुकेश भट्ट ने बजट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि फिल्म इंडस्ट्री इस वक्त पायरेसी जैसे विशालकाय राक्षस से जूझ रही है, फाइनेंस मिनिस्टर का इस बारे में बजट में कोई भी जिक्र ना करना, खासकर बॉलीवुड का भी जिक्र ना करना एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री के लोगों को बहुत दुख पहुंचाने वाला है.
बॉलीवुड की जानी-मानी ट्रेड मैगजीन 'सुपर सिनेमा' के एडिटर अमूल विकास मोहन भी अरुण जेटली के बजट के काफी निराश हैं. अमूल बताते हैं कि सरकार अगर फिल्म इंडस्ट्री का ठीक से सपोर्ट करे तो 100 करोड़ की कमाई का आंकड़ा तो छोड़िए बड़ी फिल्में 1000 करोड़ रुपए तक का बिजनेस कर सकती हैं.
पहला काम अगर सरकार को इंडस्ट्री के लिए अगर कुछ करना है तो पाइरेसी को रोकने के कड़े कदम तुरंत उठाने होंगे. अमूल का ये भी मानना है कि पिछले कुछ सालों में फिल्ममेकर्स सरकार के पास दूसरे इतने मुद्दों को लेकर बात करने गए हैं कि इकॉनोमिकल रिफॉर्म्स की बातें तो काफी पीछे रह गई हैं.
फिल्ममेकर कुणाल कोहली को भी बजट में बॉलीवुड का नाम तक ना लिए जाने का दुख है. कुणाल फिल्म इंडस्ट्री से संसद में पहुंचे लोगों को जिम्मेदारी उठाने की बात करते हैं.
कई दूसरे फिल्ममेकर्स का मानना है कि बड़ी प्लानिंग, मेहनत और बहुत बड़ी टीम की मदद से एक फिल्म बनती है. फिल्में और एंटरटेनमेंट शोज ना सिर्फ जनता को एंटरटेनमेंट देते हैं बल्कि लाखों लोगों को रोजगार भी मुहैया कराते हैं. ऐसे में इतनी बड़ी इंडस्ट्री को बजट में कुछ भी ना देना काफी फिल्मेकर्स को मायूस कर गया है.
पूरी दुनिया में रिलीज होकर फिल्में ना सिर्फ भारत का नाम रोशन कर रही हैं बल्कि विदेशी मुद्रा भी सरकार को कमाकर दे रही हैं. ऐसे में सौतेला व्यवहार निराशा को और भी बढ़ा देता है.
पाइरेसी को रोकने के लिए सरकार की मदद से ही कार्यक्रम चलाए जा सकते हैं क्योंकि ज्यादातर फिल्मों की पायरेसी में दाऊद के नेटवर्क का हाथ बताया जाता है. फिल्म का पैसा तभी निकाला जा सकता है जब लोग उसे सिनेमाघरों में देखने जाएं. पर हर कोई अगर फिल्म को इंटरनेट से डाउनलोड करके देख लेगा तो थिएटर्स में कौन जाएगा.
साथ ही फिल्म रिलीज होने के बाद लोकल बाजारों में भी अगले दिन से ही फिल्म की पाइरेटेड सीडी, डीवीडी मिलने लगती हैं, उस पर भी कड़ा कानून बनाकर ही रोक लगाई जा सकती है और ये सरकार को ही करना होगा. मौजूदा कानून होने के बाद भी धड़ल्ले से इस काम को खूब अंजाम दिया जा रहा है.
बॉलीवुड में सैंकड़ों स्टार्टअप्स हर साल खुलते हैं. कुछ प्रोडक्शन का काम करते हैं तो कुछ दूसरे प्लेटाफॉर्म्स पर कंटेट मुहैया कराने का काम करते हैं. इन कामों में कंपनी को काफी कम मार्जिन पर काम करना पड़ता है.
प्रोड्यूसर्स गिल्ड की तरफ से हर साल सरकार को सुधार के काफी उपाय सुझाए जाते हैं लेकिन सुनवाई कुछ भी नहीं होती. टैक्स व्यवस्था पर तो सरकार बिल्कुल भी रियायत देने को तैयार ही नहीं है. इसी वजह से नए स्टार्टअप्स को खोलने और चलाने की हिम्मत इंडस्ट्री के लोग नहीं दिखा पा रहे हैं.
पाइरेसी और कड़े टैक्सेस की वजह से तो डिज्नी, बालाजी, स्टारफॉक्स और वायकॉम 18 जैसे बड़े प्रोडक्शन हाउसेस को काफी नुकसान उठाना पड़ा है. बड़ों का ये हाल देखकर छोटे प्रोडक्शन हाउस भी बड़ी हिम्मत दिखाने से डर रहे हैं.
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