तीन तलाक पर 11 मई से लगातार सुनवाई होने जा रही है. तीन तलाक को खत्म करने की मांग लंबे समय से हो रही है. दूसरी तरफ कट्टर मुस्लिम संगठन भी हैं जो तीन तलाक का समर्थन करते आए हैं.
चीफ जस्टिस खेहर की अध्यक्षता में तीन तलाक पर 11 मई को सुनवाई
तीन तलाक केस की सुनवाई के लिए पांच जजों की सदस्यता वाली संवैधानिक पीठ की अध्यक्षता चीफ जस्टिस (सीजेआई) जेएस खेहर करेंगे. इस पीठ में सीजेआई खेहर के अलावा जस्टिस कुरियन जोसफ, आरएफ नरीमन, यूयू ललित और अब्दुल नजीर भी शामिल हैं.
कब होगी सुनवाई
संवैधानिक पीठ गुरुवार को सुबह साढ़े 10 बजे से तीन तलाक पर सुनवाई शुरू करेगी. इसमें शामिल पांचों जज सिख, ईसाई, पारसी, हिंदू और मुस्लिम समुदायों का प्रतिनिधित्व करते हैं.
एक सप्ताह पहले वरिष्ठ वकील और पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद को इस मामले में कोर्ट की मदद के लिए अमिकस क्यूरी नियुक्त किया गया था. अब उच्चतम न्यायालय ने संवैधानिक पीठ का गठन किया है.
क्या है तीन तलाक
तीन तलाक की प्रथा मुस्लिम व्यक्ति को अपनी पत्नी को तीन बार तलाक कहकर शादी खत्म करने का अधिकार देती है. इस प्रथा को लेकर हाल ही में सार्वजनिक मंचों पर काफी बहस देखने को मिली है. मुस्लिम नेताओं का कहना है कि तीन तलाक की वैधता पर सवाल उठाना उनके धार्मिक कानून में दखल है.
'हलाला', 'हुल्ला' और 'खुला' को समझे बिना तीन तलाक को समझना है मुश्किल
तीन तलाक का कतई ये मतलब नहीं कि एक ही बार में तलाक, तलाक, तलाक बोल दो और रिश्ता खत्म.
बजाए इसके तीन तलाक होने में 3 महीने या कुछ ज्यादा वक्त लग जाता है. अगर किसी महिला और पुरुष के रिश्ते इतने बिगड़ चुके हैं कि उनमें सुधार की कोई गुंजाइश नहीं रह गई है तो वे काजी और गवाहों के सामने पुरुष महिला को पहला तलाक देता है. इसके बाद दोनों करीब 40 दिन साथ गुजारते हैं पर शारीरिक संबंध नहीं बनाते.
इस बीच अगर उनको लगता है कि उनका फैसला गलत है या जल्दीबाजी में लिया गया है तो वे सभी को ये बात बताकर फिर से साथ रह सकते हैं.
पर अगर अभी भी उनके बीच सब ठीक नहीं होता तो पुरुष उन सभी के सामने फिर दूसरा तलाक देता है और लगभग इतना ही वक्त पति-पत्नी फिर से साथ में गुजारते हैं.
इस बार भी अगर दोनों के संबंधों में सुधार नहीं होता और अभी भी वो अलग रहना चाहते हैं तो फिर तीसरे तलाक के साथ दोनों हमेशा के लिए अलग हो जाते हैं.
तीन तलाक पर सक्रिय मोदी सरकार
जब से मोदी सरकार केंद्र में आई है, बीजेपी इस मुद्दे पर मुखर हो गयी है. लेकिन ये पहला मौका है जब किसी सरकार ने और खुद मोदी ने तीन तलाक के मुद्दे पर समान रुख अपनाया है.
तीन तलाक पर योगी की ‘द्रौपदी’ वाली टिप्पणी में हैं मोदी के तेवर
सच्चाई ये है कि मोदी ने इस मसले पर विस्तार से बोलने के लिए रविवार को जिस तरह बीजेपी के सबसे महत्वपूर्ण आंतरिक फोरम को चुना, वह यह याद दिलाने के लिए था कि सत्ताधारी दल और सरकार का रुख समान रूप से सख्त है.
मोदी के आक्रामक तेवर का मकसद देशभर में बीजेपी के दूसरे और तीसरे दर्जे के नेताओं के बीच ये संदेश देना था कि यह सबसे प्रासंगिक सामाजिक और राजनीतिक मुद्दा है. जिसे सुप्रीम कोर्ट में अंतिम सुनवाई से पहले सही संदेश के साथ और एक सामाजिक आंदोलन के तौर पर उठाने की जरूरत है.
तीन तलाक के मामले में बीजेपी के विरोधी राजनीतिक दलों जैसे कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और दूसरी पार्टियों का रुख या तो अस्पष्ट है या फिर उन्होंने चुप्पी साध रखी है. जिनका दावा है कि यह मामला शरीयत के हिसाब से इस्लामिक रवायत है और इसलिए इसे समुदाय के लोगों पर छोड़ देना सबसे अच्छा होगा. बीजेपी का रुख इनके रुख से ठीक उल्टा है.
'12 साल में तीन तलाक, चौथा मिल गया तो कहां जाऊंगी'
बरेली में रह रही 35 वर्षीय तारा खान का अब तक जिंदगी में तीन बार तलाक हो चुका है. पिछले 12 सालों में तारा खान की 4 शादियां हुई हैं जिसमे से तीन शादियों मे उन्हें उनके पतियों ने तलाक दे दिया है. तारा खान का कहना है कि अब उनकी चौथी शादी भी टूटने के कगार पर है.
तारा ने अपनी जिंदगी के बारे मे बताते हुए कहा कि उनकी पहली शादी बरेली के जाहिद खान नाम के शख्स से हुई थी. जिसने उन्हें शादी के 7 साल बाद तक कोई औलाद ना होने के कारण तलाक दे दिया.
पहली शादी टूटने के बाद तारा अपने रिश्तेदारों के यहां आ गई जहां उनका दूसरा निकाह पप्पू खान नाम के शख्स के साथ पढ़ा गया. तारा ने बताया कि शादी के कुछ दिन बाद से ही वो उन्हे मारने पीटने लगा. एक दिन जब उन्होंने इसका विरोध किया तो उसने तीन बार तलाक बोलकर हमेशा के लिए छोड़ दिया.
तीन तलाक के पक्ष में क्या तर्क हैं?
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सर्वोच्च अदालत से कहा कि अगर ट्रिपल तलाक को अवैध करार दिया जाता है, तो इससे अल्लाह के आदेशों की अवमानना होगी. और तो और इसके चलते कुरान को बदलने की नौबत भी आ सकती है. इतना ही नहीं इससे मुसलमान पाप के भागी होंगे.
तीन तलाक: मुस्लिम लॉ बोर्ड की बात संविधान ही नहीं कुरान के भी खिलाफ
दूसरा, उन्होंने तर्क दिया कि मुस्लिम पर्सनल लॉ प्रोविजन्स जैसे ट्रिपल तलाक को संविधान की धारा 25 के तहत संरक्षण हासिल है. इस धारा के तहत नागरिकों को किसी भी धर्म को मानने और प्रसारित करने का मूलभूत अधिकार प्राप्त है.
भारत में समाज के लिए ये खतरा जैसा है. इससे संविधान की धारा 21 जो नागरिकों को जीवन की सुरक्षा और निजी आजादी देती है, उसका भी उल्लंघन होता है. दरअसल मौजूदा वक्त में एआईएमपीएलबी जैसे ग्रुप मुस्लिम महिलाओं की मर्यादा को चुनौती दे रहे हैं.
ट्रिपल तलाक के जरिए जिन मुस्लिम महिलाओं को तलाक दिया जा रहा है वो लगातार सुप्रीम कोर्ट पहुंच रही हैं ताकि सर्वोच्च अदालत उनकी मर्यादा और आजादी का हक बरकरार रख सके. और इसका समर्थन हर किसी को करना चाहिए.
हालांकि ट्रिपल तलाक के अभ्यास को ही खत्म कर देने भर से मुस्लिम औरतों की समस्याओं का अंत नहीं हो जाएगा. मुस्लिम महिलाओं को चाहिए कि वो अपनी बेटियों को तालीम के लिए आगे बढ़ाएं, उन्हें काम करने की अनुमति दें.