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यात्रीगण कृपया ध्यान देंः प्रभु की रेल देरी से चल रही है

आभासी दुनिया में सुरेश प्रभु की रेल झमाझम दौड़ रही है

Arun Tiwari

ट्वीट कीजिए और रेलवे आपकी मदद को हाजिर. ट्वीट कीजिए आपके बच्चे के लिए दूध भी हाजिर. और भी मजेदार घोषणाएं हैं. जैसे खबर आई कि ट्रेनों की सीटें चौड़ी और आरामदायक हो जाएंगी. ट्रेन के टॉयलेट ज्यादा साफ होंगे. ट्रेन से ही गरम खाना आर्डर करने की सुविधा होगी. स्टेशन की सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाएगा. मतलब एक बार ट्रेन में चढ़िए और चढ़े ही रह जाइए. भूल जाइए की गंतव्य तक जाना भी है. बस रेलवे के होकर रह जाइए.

हां बस एक बात की मनाही है. भूल से भी ये मत पूछिएगा कि ट्रेन टाइम से पहुंचेगी या नहीं. इन सब बकवास बातों के बारे में सोचने के लिए रेल मंत्री के पास टाइम नहीं है.


सुरेश प्रभु का आना जैसे...

मोदी सरकार में मंत्री बनाने के लिए शिवसेना सुरेश प्रभु का नाम नहीं दे रही थी लेकिन भाजपा की तरफ से एड़ी चोटी का जोर लगा दिया गया. शायद ही भाजपा सरकार के दूसरे किसी व्यक्ति के मंत्री बनने पर इतना माहौल बनाया गया होगा जितना सुरेश प्रभु के लिए बना. ऐसा लगा कि भारतीय रेल की तकदीर बदलने ही वाली है.

कमाल देखिए! रेल मंत्री बनने के बाद सुरेश प्रभु ने लोगों की तकलीफें दूर तो कीं लेकिन सिर्फ ट्विटर पर. बड़ी वाहवाही हुई उनकी. लगा कि कोई आया है जो भारतीय रेलवे की कायापलट करके ही मानेगा. आभासी दुनिया में भारतीय रेल झमाझम दौड़ने लगी.

रेल मंत्री सुरेश प्रभु के सपनों की रेल सारे वायदे करती है बस समय से पहुंचाने की गारंटी नहीं लेना चाहती.

जनता के हिस्से वायदे ही वायदे

जब सुरेश प्रभु को रेल मंत्री बनाया गया था तो सरकार की तरफ से ये तर्क दिए जा रहे थे कि वो रेलवे की सूरत बदल देंगे. प्रभु ने भी कई इंटरव्यू के दौरान रेलवे की स्थिति सुधारने के वायदे किए थे. 2015 में बजट पेश करने के दौरान नई ट्रेनों की घोषणा इसी आधार पर नहीं की गई थी कि हमारा जोर नई ट्रेनें चलाने पर नहीं बल्कि पहले से चल रही ट्रेनों में ही सुविधाएं बढ़ाने पर होगा.

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लेकिन ये भारतीय रेलवे की तकदीर है, जिसे बदलना किसी इंसानी प्रभु के बस की बात नहीं है. यात्री सुविधाओं के नाम पर इसमें तमाशा चलता रहता है. एनटीईएस (नेशनल ट्रेन इंक्वायरी सिस्टम) जैसी प्रणालियों के शुरू हो जाने के बाद कई लोग ये पता कर लेते हैं कि ट्रेन कितनी देर से चल रही है. पर सोचना यह भी होगा कि यह प्रणाली कितने लोगों की पहुंच तक है या कितने लोग इसका इस्तेमाल करते हैं.

लोगों की जीवन रेखा है रेलवे

पीएम मोदी कई मौकों पर कह चुके हैं कि भारतीय रेल देश के लोगों की जीवन रेखा है. पीएम के बयानों से लोगों के बीच यही संदेश गया कि वे रेल मंत्रालय में खुद दिलचस्पी ले रहे हैं.

पहले ही मंत्रिमंडल विस्तार में नरेंद्र मोदी ने तत्कालीन रेल मंत्री सदानंद गौड़ा को हटाकर सुरेश प्रभु को रेल मंत्री बनाया. उस वक्त बताया गया था कि मोदी गौड़ा के कामकाज से संतुष्ट नहीं हैं.

2014 में मोदी सरकार आने के बाद रेलवे के किराए में 14 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी. प्लेटफॉर्म का टिकट महंगा किया गया. माल भाड़े को भी महंगा कर दिया. तत्काल टिकट का दाम बढ़ा दिया गया. टिकट कैंसिलेशन का शुल्क बढ़ा दिया गया. फ्लेक्सी फेयर जैसा सिस्टम देश में पहली बार रेलवे का मुनाफा बढ़ाने के लिए लागू किया गया. सीट देने के नाम पर मनमानी किराया वसूला जाने लगा.

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मनमाना किराया वसूलने का नतीजा हाल में सामने आया जब रेलवे ने कहा कि फ्लेक्सी फेयर के तहत आने वाली ट्रेनों में अंतिम में अगर सीटें खाली रह जाती हैं तो दस फीसदी की छूट दी जाएगी. मीडिया में ये रिपोर्ट्स आईं कि सरकार ने ऐसा फ्लेक्सी फेयर सिस्टम के फ्लॉप होने की वजह से किया है क्योंकि सीटें ही खाली रह जा रही थीं.

दरअसल रेलवे में लंबे समय से यह परिपाटी रही कि यह आम लोगों की यात्रा का माध्यम है. सुरेश प्रभु ने यात्रियों की सुविधाएं बढ़ाने के नाम पर किरायों में तो मनचाही बढ़ोत्तरी की लेकिन यात्री सुविधाओं में वह फायदा दिलाने में नाकाम रहे जो उन्हें मिलना चाहिए था.

धुंध की वजह से ट्रेने पहले भी लेट होती थीं और आज भी हो रही हैं. रेलवे की तरफ से इसे लेकर कोई ठोस पहल नहीं की गई. हाल के दिनों में बड़े रेल हादसे हुए तो सरकार का वही टका सा जवाब रहा कि हम इसकी जांच कराएंगे. लेकिन वास्तविकता ये है कि सुरेश प्रभु ने लोगों से सिर्फ अभी तक वायदे ही किए हैं. उनकी ड्रीम ट्रेन सपनों में ही चल रही है. और आम यात्री उतनी मुश्किल ज्यादा पैसे खर्च करके झेल रहा है, जितनी वो यूपीए के समय में भी झेल रहा था.