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2019 चुनाव से पहले रामजन्मभूमि मुद्दे का हल और अयोध्या में भव्य राम मंदिर देखना चाहता है पूरा देश

पूरा देश लोकसभा चुनाव से पहले राम जन्मभूमि मामले को हल होकर रामलला के स्थान पर भव्य श्री राम मंदिर को देखना चाहता है. ऐसे में अब गेंद सरकार के पाले में हैं

Rajiv Tuli

राम जन्मभूमि मामले पर सुप्रीम कोर्ट के रुख के बाद एक बार फिर इस मुद्दे ने न केवल तूल पकड़ा है बल्कि आए दिन समाचार पत्रों और मीडिया की सुखिर्यों में छाया हुआ है. साल 2011 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में विवादित स्थल को तीन हिस्सों में विभाजित कर सभी पक्षों को साधने का प्रयास किया था.

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई पद से रिटायर हुए दीपक मिश्र राम जन्मभूमि मामले की दिन-प्रतिदिन की सुनवाई के लिए सहमत हुए थे. मामले के तीन पक्षों- निर्मोही अखाड़ा, श्रीरामजन्मभूमि न्यास और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का भी इस बात पर जोर था कि मामले को जितनी जल्दी हो सके समाप्त किया जाए क्योंकि पहले से ही काफी समय बीत चुका है. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.


सीजेआई दीपक मिश्र के रिटायरमेंट के बाद रंजन गोगोई ने कार्यभार संभाला और इसी दौरान एक सुनवाई में उन्होंने मात्र 3 मिनट में पक्ष-विपक्ष का तर्क सुनकर मामले की सुनवाई जनवरी, 2019 के लिए टाल दी. इस स्थिति में यह मामला एक बार फिर 2011 में जाकर टिका हुआ है, जहां से वह चला था.

लेकिन मामले की सुनवाई हर बार टलने से न केवल हिंदू समाज बेचैन है बल्कि संत समाज अपने को छला हुआ महसूस कर रहा है. देशभर में चहुंओर हर वर्ग से मंदिर निर्माण पर कानून बनाने की मांग उठ रही है. ऐसे में केंद्र सरकार पर हर दिन दबाव बढ़ता ही जा रहा है.

राम मंदिर सांस्कृतिक पुनरुत्थान और पहचान का विषय

यकीनन पूरे देश ने बाबरी ढांचे को बर्बरता के प्रतीक के रूप में देखा, जो आक्रांता बाबर और उसकी सेना द्वारा हिंदुओं पर अत्याचार करके बनाई थी. देशवासियों ने यह महसूस किया था बाबरी ढांचे का निर्माण आक्रांता बाबर ने इसलिए कराया था, ताकि वह हर पल हिंदुओं को यह एहसास करता रहे कि अब से वही हिंदुओं का रहनुमा है और उनके जीवन के हर पहलू चाहे उनके मंदिर और भगवान ही क्यों न हों, उन पर उसका नियंत्रण है. यह ढांचा सदैव हिंदुओं को आक्रांता बाबर के बर्बर कृत्यों की दर्दनाक याद दिलाता था.

यकीनन करोड़ों हिंदुओं के लिए राम जन्मभूमि मंदिर केवल इमारत या इंटों का विषय नहीं है. समूचे समाज के लिए यह सांस्कृतिक पुनरुत्थान और पहचान को संरक्षित करने का विषय है. मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम समूचे हिंदुओं के केंद्र रूप हैं. इसलिए राम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर के निर्माण के आंदोलन को हिंदू समाज की चेतना के रूप में देखना चाहिए.

भारतीय मुस्लिमों को जर्मनी और पोलैंड से सीखना चाहिए

बहरहाल, वास्तविक मुदद यह है कि भारत के मुस्लिम बाबरी ढांचे को कैसे देखते हैं? क्या वे इसे पाक जगह मानते हैं? अगर ऐसा वे मानते हैं तो वह बाबर सहित अन्य की बर्बरता के पक्षधर बन जाते हैं. मुसलमानों के लिए सही रास्ता यह है कि वे अतीत के इस कुकृत्य का विरोध करते हुए अपने को इससे दूर करें. क्योंकि जब जर्मनीवासियों से हिटलर के अपराधों के लिए माफी मांगने के लिए कहा जाता है तो वे ऐसा करने में रतीभर संकोच नहीं करते.

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वे स्पष्ट रूप में संकेत करते हैं कि वे नाजीवाद के समर्थक नहीं हैं. ऐसे में जब भारत में बाबर के कुकृत्यों की बात आती है तो भारत के मुसलमान इससे प्रेरणा क्यों नहीं लेते, जिसने करोड़ों हिंदुओं के आस्था के केंद्र श्रीराम के मंदिर को ध्वंश किया.

ऐसे ही वर्ष 1918 में पोलैंड की राजधानी वारसॉ के पहले रूसी कब्जे (1614-1915) के अंत के बाद, पोलैंडवासियों ने पहली बार आर्थोडॉक्स चर्च को जिसे रूसी लोगों द्वारा शहर के केंद्र में निर्मित किया गया था, को गिराया. इस तथ्य के बावजूद कि पोलिशवासी विश्वास से ईसाई मान्यताओं को मानते और यीशु मसीह को पूजते हैं लेकिन पोलिशवासियों ने रूसियों द्वारा निर्मित चर्च को ध्वस्त कर दिया क्योंकि वह उस चर्च के स्थान को पूजा स्थल के रूप में नहीं देखते थे बल्कि वह ढांचा उन्हें हर दम दासता की याद दिलाता था.

मुगल शासन में हजारों हिंदू मंदिरों को तोड़ा गया, ध्वस्त किया, लूटा गया

हिंदुओं ने न्यायपालिका और वार्ताओं के माध्यम से तीन पवित्र स्थलों- अयोध्या, काशी, मथुरा की शांतिपूर्ण वापसी की मांग की थी जिन्हें आक्रांताओं ने ध्वंश किया था. यकीनन मुगल शासन में देश में हजारों हिंदू मंदिरों को तोड़ा गया, ध्वस्त किया, लूटा गया और उन पर मस्जिद निर्माण किया गया लेकिन हिंदू समाज इन मंदिरों के मुआवजे या इन पर मंदिर निर्माण की बात नहीं करता. लेकिन बाबरी ढांचा स्पष्ट रूप से हिंदुओं को दासता और अपमान की याद दिलाता था. इसके अलावा इसकी और कोई दूसरी व्याख्या नहीं हो सकती.

इस बात पर अलग-अलग मत हैं कि मंदिर का निर्माण कानून को लागू करके किया जाए क्योंकि यह मामला विचाराधीन है. एक दृष्टिकोण यह भी है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है और सुप्रीम कोर्ट पहले ही यह बात कह चुका है कि संप्रभुता न्यायपालिका में नहीं और न ही विधायिका में बल्कि भारत के लोगों में है. और जैसा कि हमारे संविधान की प्रस्तावना ही ‘भारत के लोग’ से शुरू होती है.

राम मंदिर निर्माण पर गेंद अब सरकार के पाले में

कानून द्वारा स्थपित किसी भी सरकार के लिए इसके प्रश्न प्रवाह अत्यधिक महत्वपूर्ण रहेंगे. इसके साथ ही संविधान निर्माताओं ने शक्तियों का लिखित रूप में ऐसा कोई विभाजन तय नहीं किया है. वैसे न्यायाधीन विषयों के सिद्धांत संसद पर लागू नहीं होते. भारतीय संसद के इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं जब इसका प्रयोग हुआ है.

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भारतीय जनता पार्टी ने पालनपुर अधिवेशन में भव्य श्री राम मंदिर के निर्माण बनाने की बात कही थी. ऐसे में बीजेपी के खांटी कार्यकर्ताओं का दृढ़विश्वास था कि पूर्ण बहुतम की सरकार बनने पर देश को रामलला के जन्म स्थान पर भव्य मंदिर दिखाई देगा. ऐसे में सरकार के पास अब निर्णय लेने के लिए बहुत कम समय है.

पूरा देश लोकसभा चुनाव से पहले राम जन्मभूमि मामले को हल होकर रामलला के स्थान पर भव्य श्री राम मंदिर को देखना चाहता है. ऐसे में अब गेंद सरकार के पाले में हैं. अब उसे तय करना है कि वह न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा करेगी या फिर इस मामले पर अध्यादेश लाकर कानून बनाएगी.

(लेखक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, दिल्ली के प्रांत प्रचार प्रमुख हैं और यह उनके व्यक्तिगत विचार हैं)