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दक्षिण का सूखा (पार्ट-2): जहां सालभर पहले आई थी बाढ़, अब है पानी की मारामारी

चेन्नई में 850 मिलियन लीटर पेयजल की जरूरत है लेकिन आपूर्ति इसके आधी कर दी गई है

Anand Kumar

संपादकीय नोट: देश के दक्षिण राज्यों कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में पानी की भारी किल्लत के बीच तकरीबन आपदा की हालत आन पहुंची है. इसके विभिन्न पहलुओं पर फर्स्टपोस्ट पर एक लेखमाला प्रकाशित हो रही है. चेन्नई की झुग्गियों में रहने वाले लोग अपनी पानी की जरुरत कैसे पूरी कर रहे हैं, पढ़िए लेखमाला की इस दूसरी किश्त में!

चेन्नई के बीचो-बीच बसा है पल्लवन नगर का इलाका! और इसी इलाके की एक झुग्गी में रहती हैं 23 साल की स्टेला करुणाकरण. इलाका चेन्नई के बीचो-बीच तो बसा है लेकिन यहां रहने वाली स्टेला को पानी के लिए टकटकी लगानी पड़ती है. हफ्ते में कम से कम दो बार स्टेला और उनकी पड़ोसन को नजदीक के मध्यवर्गीय इलाके में जाकर पानी के लिए गुहार लगानी पड़ती है.


स्टेला बताती हैं, 'हमलोग टैंकर से पानी खरीदने वाले लोगों के पास जाते हैं. कुछ महिलाएं हमारी हालत पर रहम खाती हैं और दो मटकी पानी मुफ्त में दे देती हैं लेकिन कुछ महिलाएं हर मटकी पानी के लिए हमसे 2 रुपए लेती हैं. दूसरा कोई उपाय नहीं है इसलिए हमलोग उनसे पानी खरीदते हैं.'

स्टेला करुणाकरण पेरी कॉर्नर स्थित एक हार्डवेयर शॉप में काम करती हैं. उन्हें दुकान से 300 रुपए की दिहाड़ी मिलती है. हर हफ्ते सिर्फ पानी की खरीद पर उन्हें 40 रुपए खर्च करने होते हैं. वे कहती हैं, 'पानी न खरीद पाए तो पूरे एक दिन की छुट्टी लेनी होगी और पानी की तलाश में भटकना होगा. इसका मतलब हुआ कि पूरे दिन की दिहाड़ी मारी गई.'

पानी की किल्लत की चोट सबसे ज्यादा चेन्नई के बिचले इलाके के रहने वाले लोगों पर पड़ी है. 'हर गली में उन लोगों ने वाटर टैप लगाये हैं लेकिन टैप से पानी तो क्या हवा भी नहीं निकलती.' यह कहना है आर विजयलक्ष्मी का.

चालीस साल की विजयलक्ष्मी चेन्नई सेंट्रल रेलवे स्टेशन के पास बसी झुग्गी सत्यवाणी मुत्थुनगर में रहती हैं. विजयलक्ष्मी बताती हैं कि 'बीते एक महीने से यही हालत है. पहले नलके से पानी बहुत थोड़ा-थोड़ा आता था लेकिन हमें कुछ न कुछ पानी मिल जाता था लेकिन अब पानी हासिल करने के लिए हमें बड़ी जद्दोजहद करनी पड़ती है.'

स्टेला करुणाकरण की ही तरह विजयलक्ष्मी को भी नजदीक के मध्यवर्गीय घरों का दरवाजा खटखटाना होता है और वे भी उनसे पानी की गुहार लगाती हैं.

चेन्नई के एक बड़े हिस्से में बेतरतीब पसरी झुग्गी-झोपड़ियों के ज्यादतर निवासी दिहाड़ी मजदूर हैं. काम से एक दिन की छुट्टी लेना भी उनपर भारी पड़ेगा.

मुरुगय्यन लक्ष्मणन की हालत कुछ ऐसी ही है. उत्तरी चेन्नई के व्यासरपदी के एमकेबी नगर में रहने वाले लक्ष्मणन 55 साल के हैं. उन्होंने फ़र्स्टपोस्ट को बताया, 'पानी की कमी के कारण हम लोग दो दिन में एक बार स्नान कर रहे हैं. नलके में पानी नहीं आ रहा. पानी की आपूर्ति टैंकर के जरिए हो रही है. पहले पानी के टैंकर रोजाना आते थे लेकिन अब चार दिन में एक बार आते हैं.'

वह बताते हैं, 'ज्यादातर तो आधी रात के वक्त पहुंचते हैं और कभी-कभार पानी के टैंकर उस वक्त पहुंचते हैं जब हम सब लोग काम पर जा चुके होते हैं. हमलोग पानी के टैंकर के इंतजार में बैठे नहीं रह सकते, हमलोग दिदाड़ी मजदूर हैं. अगर हमें रोटी कमानी है तो फिर पानी नहीं मिलेगा और अगर पानी के इंतजार में बैठे रहते हैं तो रोज की रोटी हाथ से जाती है.'

2015 में बाढ़, 2017 में सूखा

चेन्नई में 2015 के दिसंबर महीने में बाढ़ आई और इस बाढ़ की सबसे गहरी मार दक्षिण चेन्नई की झुग्गी-बस्तियों पर पड़ी. लेकिन बाढ़ के कुछ फायदे भी हुए. भूमिगत जल का भंडार फिर से भर गया, चेन्नई और आस-पास के इलाकों में भूगर्भीय जलस्तर 2-3 मीटर ऊंचा उठ गया. चेन्नई के आस-पास के ताल-तलैया 2015 में इस वक्त पानी से लबालब भरे हुए थे और ऐसा बाढ़ के कारण हुआ था. एक साल बीतते-बीतते चेन्नई का प्यास से बुरा हाल है, पानी के लिए आपाधापी मची हुई है.

चेन्नई में रोजाना 850 मिलियन लीटर पेयजल की जरुरत है लेकिन पानी की कमी के कारण महानगर के मेट्रो वाटर बोर्ड ने पानी की आपूर्ति इसके आधी कर दी है. पानी की आपूर्ति में कमी का चेन्नई के सभी रिहाइशी इलाकों पर असर हुआ है लेकिन सबसे ज्यादा परेशानी झुग्गी-बस्तियों में रहने वालों को हुई है क्योंकि उनकी रिहाइश में पानी की आपूर्ति सरकारी पाइपलाइन से नहीं होती. झुग्गी-बस्तियों की महिलाएं खाली मटकी लेकर पानी की तलाश में गली-गली भटकती हैं.

सबसे बुरी बात तो यह है कि मदद के लिए किसके पास जाकर गुहार लगायी जाय, यह बात किसी को नहीं पता. स्थानीय निकायों के चुनाव फिलहाल रोक दिए गए हैं, नगर-निकायों में अस्थायी अधिकारियों के जरिए काम चलाया जा रहा है.

बीते समय में जो लोग नगर निगम के पार्षद रह चुके हैं या जो स्थानीय स्तर पर नेता माने जाते हैं, उनमें से कोई भी ऐसी हालत में नहीं है कि इन झुग्गी-बस्ती के निवासियों को पानी दिला सके या कुछ ऐसा कर सके कि उन्हें रोजाना की प्रशासनिक सेवाएं हासिल हों.

कन्नगी नगर के मुत्थु सेल्वी सवालिया अंदाज में कहते हैं, 'पिछले साल खूब बारिश हुई और हमलोग चारों ओर से पानी से घिरकर परेशान हुए और अब हालत यह है कि पीने के लिए भी पानी नहीं है. पहले पानी की किल्लत होती थी तो हमलोग खाली मटका लेकर स्थानीय पार्षद के आवास पर जुटकर प्रदर्शन करते थे. जब तक पानी का टैंकर आ नहीं जाता था हमलोग प्रदर्शन पर डटे रहते थे लेकिन अभी निगम-पार्षद का पद खाली पड़ा है. ऐसे में हमलोग अपनी परेशानी बताने किसके पास जाएं.'

फ़र्स्टपोस्ट ने मेट्रो वाटर बोर्ड के वरिष्ठ अधिकारियों से बातचीत की और पूछा कि झुग्गी-बस्तियों में रहने वाले लोगों की परेशानी दूर करने के लिए उनके पास क्या योजना है. बोर्ड के जनसंपर्क अधिकारी ए नीलकंदण ने बताया कि 'चेन्नई के पांच सबसे महत्वपूर्ण जलागारों में जल-स्तर बहुत नीचे चला गया है. फिलहाल हमारे पास कुल 150 टीएमसी फीट ही पानी बचा है. इसी कारण हमने शहर में की जाने वाली पानी की आपूर्ति में कमी कर दी है. शहर को 830 मिलियन लीटर पानी की रोजाना जरुरत है लेकिन हम रोजाना 550 मिलियन लीटर ही आपूर्ति कर पा रहे हैं. चूंकि पानी की कमी है इसलिए हम लोगों से कह रहे हैं कि पानी कम खर्च कीजिए और हमारी कोशिश रहेगी कि आने वाले दिनों में भी हम 550 मिलियन लीटर पानी रोजाना देते रहें.'

नीलकंदण ने यह भी बताया कि झुग्गी-बस्तियों में लगे वाटर टैप में पानी क्यों नहीं आ रहा है. उनका कहना था कि पानी की आपूर्ति कम मात्रा में की जा रही है, इस कारण पानी की पाइप में प्रेशर कम है. प्रेशर कम होने के कारण झुग्गी-बस्तियों के नलके में पानी नहीं आ रहा. ऐसे में हमलोगों ने फैसला किया है कि पानी के टैंकर ज्यादा संख्या में भेजे जाएं. हमलोगों ने 250 अतिरिक्त टैंकरों का इंतजाम किया है. पानी की आपूर्ति करने वाले टैंकर की संख्या एक बार बढ़ गई तो पानी की किल्लत भी कम होगी.'

चेन्नई मेट्रो वाटर बोर्ड के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि पानी लाने की बाकी परियोजनाएं कारगर ना हो पाईं. वाटर बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया, 'चेन्नई को 12 टीएमसी फीट पानी आंध्रप्रदेश से मिलना चाहिए था लेकिन सिर्फ 2 टीएमसी फीट पानी ही मिला. चेन्नई के जलागारों की जीवन-रेखा एकदम से सूख चुकी है. फिलहाल 31 खदानों में पानी है और इस पानी का परीक्षण किया गया है. 21 खदानों का पानी इस्तेमाल करने लायक है लेकिन चेम्बारम्बक्कम के जल-शोधन संयंत्र(वाटर ट्रीटमेंट प्लांट) में खदानों का पानी पहुंचाने का कोई इंजताम अभी नहीं हो पाया है.'

तिरुवल्लूर के 300 कुंओं से पानी चेन्नई लाने के एक सहमति-पत्र पर दस्तखत हुए हैं. इन कुओं से पानी लाया भी जा रहा है. न्येवेली थर्मल पावर प्लांट का पानी वीरानाम पाइपलाइन के सहारे चेन्नई लाया जा रहा है. लेकिन इस सारी कवायद से सिर्फ 30 मिलियन लीटर पानी ही रोजाना चेन्नई पहुंच रहा है जो कि मौजूदा हालात को देखते हुए काफी कम है.

जल-संसाधन के एक विशेषज्ञ चेन्नई निवासी एस जानकीरमण बताते हैं कि 'तात्कालिक तौर पर जब कोई बड़ी परियोजना चलाई जाती है तो साथ ही साथ एक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट भी लगाने की जरुरत होती है. जहां तक दूरगामी उपाय की बात है, चेन्नई के आस-पास के इलाके की झीलों को फिर से जिलाने की जरुरत है. इससे भूगर्भीय जल का स्तर ऊंचा उठेगा और जमीन के ऊपर मौजूद जल का भंडार भी भरा रहेगा. अगर हम ऐसा कर सके तो अगले 2-3 साल तक मॉनसून की बारिश लगातार दगा दे तो भी पानी की कमी नहीं होगी.'

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