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बजट 2017: राष्ट्रपति का इशारा समझिए, नहीं टलेगा बजट

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि गरीबों की पीड़ा समाप्त करने के लिए और सावधानी भरे प्रयासों की जरूरत है.

Debobrat Ghose

गुरुवार को देश भर के राज्यपालों और उपराज्यपालों को नए साल का संदेश देते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने एक खास विषय पर चिंता भी जाहिर की. उन्होंने कहा कि गरीबों की पीड़ा को खत्म करने के लिए देश को अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत है.

राष्ट्रपति का ये बयान विपक्षी दलों के नेताओं के साथ उनकी हुई बैठक के ठीक बाद आया है. दरअसल विपक्ष राष्ट्रपति के पास सरकार के उस फैसले का विरोध दर्ज कराने पहुंचा था जिसके तहत सरकार 1 फरवरी को बजट पेश करना चाहती है. गौरतलब है कि केंद्र सरकार राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के ठीक तीन दिन पहले बजट पेश करना चाहती है.


साफ है कि नोटबंदी नहीं बल्कि विपक्ष की चिंता इस बात को लेकर ज्यादा थी कि कहीं विधानसभा चुनावों से पहले पेश किए गए बजट में की गई घोषणाओं का फायदा बीजेपी को न मिल जाए.

क्या है इशारा

लेकिन क्या राष्ट्रपति - जिनका बतौर केंद्रीय वित्त मंत्री देश की तरक्की में शानदार योगदान रहा है - इस ओर इशारा करना चाहते हैं कि बजट के जल्द पेश किए जाने का लाभ देश में कमजोर तबके को मिलेगा?

इस सवाल का जवाब पाने के लिए राष्ट्रपति के शब्दों से ज्यादा उसमें छिपे मतलब को जानने की जरूरत है.

अपनी पहचान जाहिर न होने की शर्त पर एक सेवानिवृत नौकरशाह जिन्हें वित्त मंत्रालय में प्रणब मुखर्जी के साथ बेहद करीब से काम करने का तजुर्बा रहा है, ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया, 'नोटबंदी के अलावा राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में बिना बजट शब्द का इस्तेमाल किए ही इस बात को साफ कर दिया कि केंद्रीय बजट को पेश करने में 1 फरवरी से ज्यादा देरी नहीं की जा सकती है.

बजट पेश करने की तारीख का निर्धारण कई हितों को ध्यान में रखकर काफी पहले किया जाता है.

1 फरवरी को ही आएगा बजट 

उन्होंने कहा, 'वास्तव में नोटबंदी के फैसले का राष्ट्रपति ने समर्थन किया. बजट पेश करने की तारीख, विधानसभा चुनाव और नोटबंदी के मामले को एक साथ मिलाकर गलत नतीजे पर नहीं पहुंचना चाहिए.

अगर पूर्व की सरकारों ने अपने तरीके से काम किया है तो मौजूदा सरकार को भी उनके तौर तरीके से काम करने की अनुमति मिलनी चाहिए.'

केंद्र सरकार ने 28 फरवरी की जगह 1 फरवरी को बजट पेश करने के अपने फैसले के औचित्य को ये कहते हुए सही ठहराया है कि इससे वार्षिक खर्चों और कर प्रस्तावों को समय से अनुमोदित करने में आसानी होगी.

लिहाजा विधानसभा चुनावों के मद्देनजर केंद्रीय बजट पेश करने की तारीखों के विरोध को लेकर विपक्ष को आत्मचिंतन करने की जरूरत है.

पहला तो ये कि चुनाव तारीखों की घोषणा से कई महीने पहले ही बजट पेश करने की तारीख ( 1 फरवरी ) का निर्णय ले लिया गया था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 अक्टूबर 2016 को ही इस बात के साफ संकेत दे दिए थे कि बजट पेश करने की तारीख 1 फरवरी होगी. जबकि इस संबंध में औपचारिक घोषणा 16 नवंबर 2016 को की गई थी.

पहले नहीं हुआ था विरोध

दूसरा ये कि समूचा देश इस बात से अवगत था कि विधानसभा चुनाव 2017 के शुरुआती महीनों में कराए जाएंगे. दोनों ही मामलों में पहले विरोध नहीं हुआ.

लेकिन जैसे ही चुनाव की तारीखों का एलान हुआ कांग्रेस समेत विपक्ष इस बात पर लामबंद हो गए कि बजट पेश करने की निर्धारित तारीख को बदला जाए.

राजनीतिक दलों के पास चिंतित होने की अपनी वजह हो सकती है. उन्हें इस बात का भय सता रहा होगा कि ऐसा होने पर केंद्र में शासन कर रही बीजेपी सरकार को इसका सियासी लाभ मिल जाएगा.

लेकिन इन परिस्थितियों के बीच राष्ट्रपति ने एक महत्वपूर्ण बयान दिया. जिसे हो सकता है कि कई लोग अपने तरीके से परिभाषित करने की कोशिश करें.

यहां तक कि आर्थिक मामलों के जानकार भी ये मानते हैं कि बजट पेश करने की तारीखों को बदलने से किसी को कुछ खास हासिल नहीं होने वाला है.

जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रफेसर सुरजीत मजूमदार का कहना है कि बजट पेश करने की तारीख बदलने से कोई खास बदलाव नहीं होगा.

पहले बजट आने से क्या है फायदा 

जानकारों का मानना है कि बजट पेश करने की तारीख को पीछे करने की बजाए आगे करने से ये जरूर होगा कि बजट संबंधी तमाम कार्रवाई पूरी कर ली जाएगी.

साथ ही वित्त विधेयक को जून महीने की बजाए 1 अप्रैल को ही पास कर लागू किया जा सकेगा. इससे कंपनियों समेत घरवालों को अपनी बचत, निवेश और टैक्स संबंधी योजनाओं को अंतिम रूप देने में मदद मिलेगी.

वित्त विधेयक और विनियोग विधेयक जिसमें कर में बदलाव और खर्चों का विवरण शामिल रहता है उसे मई के महीने में पारित किया जाता है.

जबकि कई कर प्रस्ताव तब लागू होते हैं जब वित्त विधेयक मई महीने में पारित होता है. लेकिन बजट अगर 1 फरवरी को पेश किया जाता है तो सरकार को काफी वक्त मिल जाएगा.

प्रणब मुखर्जी जो तीन बार देश के वित्त मंत्री रहे इस बात को बेहतर जानते हैं.

अर्थशास्त्री अरुण कुमार ने कुछ दिन पहले ही इस संवाददाता से कहा था कि इसका लाभ ये होगा कि वित्त विधेयक संसद में अगले दो महीनों - फरवरी और मार्च में पारित हो जाएगा और जैसा कि अभी हो रहा है, 1 अप्रैल से खर्च शुरू हो जाएगा.

पारंपरिक तरीके के मुताबिक फरवरी महीने के अंतिम दिन संसद में बजट पेश करने के बाद कैबिनेट के पास बतौर मार्च ही अंतिम महीना शेष रह जाता है.

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जब 1 अप्रैल से नए वित्त वर्ष की शुरुआत से पहले, वार्षिक खर्च और कर प्रस्तावों के लिए विधायिका की स्वीकृति लेनी होती है. लेकिन जब बजट पहले पेश किया जाएगा तो इससे सारी कार्रवाई को 31 मार्च से पहले ही पूरा किया जा सकेगा.

साथ ही खर्च और कर प्रस्तावों को नए वित्तीय वर्ष के शुरू होते ही लागू किया जा सकेगा. नतीजतन, सभी चीजों का कार्यान्वयन बेहतर तरीके से किया जा सकेगा.'

राजनीतिक समीक्षक प्रफेसर एम डी नालापात का कहना है कि 1 फरवरी को बजट पेश करना पूरी तरह से सही है.

इससे सरकार को चीजों को लागू करने के लिए एक महीने से ज्यादा का वक्त मिल पाएगा. और जैसा कि अतीत में होता आया है इससे काम करने के दिनों की हानि भी नहीं होगी.'

कारोबारियों को ऐतराज नहीं 

औद्योगिक घराने भी बजट की तारीखों के बदलने को लेकर विरोध नहीं कर रहे हैं. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाते हैं.

फेडरेशन ऑफ इंडियन माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज के महासचिव अनिल भारद्वाज का कहना है कि बजट पेश करने की नई तारीखों को सिर्फ इसलिए नहीं बदल देना चाहिए कि चुनावों की तारीखों का ऐलान हो चुका है.

1 फरवरी की तारीख बजट पेश करने के लिए सही है. इससे समय रहते सरकार सभी सेक्टरों को फंड मुहैया करा सकेगी.

यहां तक कि कल राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि देश में गरीबों की पीड़ा को समाप्त करने के लिए सरकार को थोड़ा ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत है. इसके लिए बजट के प्रस्तावों को समय पर अमल करवाना बेहद जरूरी है.'