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चोटी चोर: कितनी हकीकत, कितना फसाना?

मीडिया में कवरेज बढ़ने के साथ ही चोटी कटने की रोजाना नई घटनाएं और शिकार सामने आ रहे हैं

Mahendra Saini

व्हाट्सऐप पर एक मैसेज मिला, '21वीं सदी का इतिहास लिखते समय ये भी जिक्र होगा कि जब दक्षिण-पूर्व एशिया के छोटे देश भी आर्थिक जगत में लंबी छलांग लगा रहे थे. जब चीन अपने नागरिकों को हर साल 1.25 करोड़ नौकरियां बांट रहा था. तब भारत में लोग एक-दूसरे को चोटी चोर के कारनामों से डरा रहे थे.'

वाकई, पिछले कई महीनों से जो सबसे ज्यादा चर्चा में है वह है महिलाओं की चोटी काटे जाने की खबरें. अप्रैल-मई में राजस्थान के पाकिस्तान से लगते इलाकों में ये खबर फैली कि कोई अज्ञात 'शक्ति' महिलाओं की चोटी काट ले जाती है. इसके बाद पीड़ित महिला लगातार बेहोश और बीमार रहने लगती है.


फ़र्स्टपोस्ट में ही हमने पुलिस-प्रशासन और मनोचिकित्सकों के हवाले से बताया था कि कैसे ये केवल अफवाह, मन का वहम और दिमागी बीमारी का मामला है और कुछ नहीं.

लेकिन पश्चिम से पूर्व की ओर ये अफवाह लगातार आगे बढ़ रही है. राजस्थान में थार से अरावली के इस पार, फिर हरियाणा, दिल्ली-एनसीआर और अब उत्तर प्रदेश में चोटी चोर एक खौफ बन गया है.

आदमखोर चोटी चोर!

राजस्थान में भी जब तक चोटी चोर खबरों में बना रहा, तब तक अफवाहें रही कि ये चोर कभी बिल्ली तो कभी कुत्ता या कभी मोर और कभी चुड़ैल के रूप में आता है. अब ऐसी ही अफवाहें दिल्ली-गुरुग्राम और आसपास के इलाकों में उड़ रही हैं.

मीडिया में कवरेज बढ़ने के साथ ही चोटी कटने की रोजाना नई घटनाएं और शिकार सामने आ रहे हैं. आगरा में तो चोटी काटे जाने की अफवाह को लेकर एक महिला की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई.

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अकेले मथुरा में ही 21 महिलाओं ने चोटी कटने की शिकायत की है. हत्या और मारपीट की घटनाओं के बाद उत्तरप्रदेश पुलिस ने अलर्ट जारी कर अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ सख्ती से निपटने के आदेश जारी किए हैं.

इट हैपन्स ओनली इन इंडिया!

भारत में इस तरह की घटनाएं कोई नई नहीं हैं. 1994-95 में भगवान गणेश की मूर्तियां एकाएक दूध पीने लगी. अफवाह इतनी तेजी से पूरे देश मे फैली कि लोग अपना काम-धाम छोड़ कर मंदिरों की और दौड़ पड़े. बाजार से दूध का स्टॉक खत्म हो गया, कीमत की तो पूछिए ही मत.

दिल्ली में कुछ साल पहले मंकी मैन का खौफ भी इतना फैला था कि लड़कियां बाहर निकलते डरने लगी थी. न किसी ने मंकी मैन को आते देखा था, न किसी ने जाते हुए. लेकिन सैकड़ों महिलाओं ने खुद को इसका शिकार बनने का दावा उसी तरह किया था जैसा कि अब चोटी चोर का.

इसी तरह 2005-06 में अचानक ही मुंबई में समंदर का पानी मीठा हो जाने की अफवाह फैली. लोग पानी भरने के बर्तन ले-ले कर समंदर की और दौड़ पड़े। पूरे मुंबई में अफरातफरी भरा माहौल हो गया.

अभी कुछ महीने पहले ही नोटबंदी के दौरान अचानक खबर उड़ी कि नमक खत्म हो गया है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुस्लिम बहुल इलाकों में तो 500 रुपए किलो नमक बिकने की खबर भी आई. सरकार को बयान जारी करना पड़ा कि देश मे नमक का पर्याप्त स्टॉक मौजूद है.

राजस्थान में लोग चोटीकटवा के डर से घर के बाहर नींबू-मिर्च लटका रहे हैं

खौफ की उम्र कितनी?

देखा गया है कि ऐसे मामले जितना जल्दी फैलते हैं उतनी ही जल्दी गायब भी हो जाते हैं. गणेश मूर्तियों के दूध पीने से लेकर मंकी मैन या समंदर का पानी मीठा होने की अफवाहें कुछ दिन या ज्यादा से ज्यादा कुछ महीने तक ही अपना वजूद रख पाती हैं.

ये जरूर है कि फिल्मकारों को ये कहानी का एक प्लॉट जरूर दे जाती हैं. 'दिल्ली-6' से लेकर 'OMG' तक फिल्मों में हम ये एपिसोड देख चुके हैं. अब कोई चोटी चोर पर भी फिल्म बना सकता है.

लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि इन घटनाओं के पीछे सच्चाई क्या है? पुलिस और प्रशासन की मानें तो ये अफवाह मात्र हैं जिनका कोई आधार नहीं. लेकिन फिर वही सवाल कि अगर ऐसी घटनाओं का कोई आधार नहीं तो फिर इनका दायरा लगातार बढ़ता ही क्यों जाता है?

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

राजस्थान विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र की एसोसिएट प्रोफेसर मधु जैन का कहना है कि आमतौर पर ऐसी घटनाएं पिछड़े इलाकों या पिछड़े समाजों में ही होती हैं, जो विकास की मुख्यधारा से दूर रह जाते हैं. इसकी वजह है- शिक्षा की कमी, बेरोजगारी, उत्पीड़न और बहुधा हीनभावना भी क्योंकि भारत मे आमतौर पर महिला सशक्तिकरण की कमी है तो ऐसी समस्याओं में महिलाएं सीधे तौर पर पर प्रभावित होती हैं.

मनोचिकित्सक डॉक्टर गोविंद पारीक का कहना है कि कई बार किसी न किसी रूप में उत्पीड़न की शिकार महिलाएं भी अपने इर्द-गिर्द एक आभासी वातावरण निर्मित कर लेती हैं. इसमें वे अपनी मुसीबतों का हल किसी पारलौकिक शक्ति में ढूंढ़ने लगती हैं. अकेलेपन का शिकार लोग भी दूसरों का ध्यान खींचने के लिए कई बार ऐसी कोई कहानी गढ़ लेते हैं.

डॉक्टरों का ये भी मानना है कि इस तरह की घटनाओं के कथित शिकार बहुधा दिमागी रूप से कमजोर भी होते हैं. लेकिन ये लोग यह मानने को तैयार नहीं होते कि उन्हें दिमागी बीमारी है. इसी का फायदा नीम-हकीम या झाड़-फूंक करने वाले उठाते हैं. झाड़-फूंक करने वाले लोग पीड़ितों को बेवकूफ बनाकर पैसा तो ऐंठते ही हैं, उनके गुर्गे लगातार ये कोशिश भी करते हैं कि ऐसी अफवाहें रुक न जाएं.

कई बार बाजार भी ऐसी अफवाह का कारण बनता नजर आता है. गणेश जी के दूध पीने और नमक खत्म होने की अफवाह के वक्त देखा गया कि चीजों के दाम एकाएक कई गुणा बढ़ गए. अब चोटी चोर के समय भी घरों के बाहर मेहंदी के छापे या लहसुन की माला की बातें हो रही हैं. हो सकता है कि जल्द ही इनके दाम भी बढ़ जाएं.

कुल मिलाकर बात ये कि बिना तथ्यों के ऐसी किसी खबर पर भरोसा नहीं करना चाहिए. न ही इनका हल झाड़ फूंक या जादू टोने में ही ढूंढना चाहिए.