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सरकारी फटकार नाकाफी: निजी एयरलाइंस की लूट जारी, बहिष्कार ही आखिरी विकल्प

हवाई किराए में मनमाना इजाफा करने वाली निजी एयरलाइंस में जरा भी शालीनता या शर्म नहीं होती है. प्राकृतिक आपदाओं और दुर्घटनाओं की स्थिति में भी यह यात्रियों का शोषण करने से नहीं चूकती

Bikram Vohra

भारत की निजी एयरलाइंस कंपनियों के मनमाने रवैए पर संसदीय समिति ने फटकार लगाई है. संसदीय समिति ने माना है कि, निजी एयरलाइंस कंपनियां त्योहारों, प्राकृतिक आपदाओं और अप्रिय घटनाओं के दौरान टिकट की बुकिंग में काफी मनमानी करती हैं.

उस वक्त यात्रियों से सामान्य किराए से कई गुना ज्यादा किराया वसूला जाता है. लिहाजा समिति का सुझाव है कि, अधिकतम हवाई किराया तय किया जाए और सस्ते एटीएफ का फायदा कंज्यूमर (उपभोक्ता) को मिले.


संसदीय समिति की पहल हवाई यात्रियों के लिए वाकई बहुत अच्छी बात है, लेकिन अफसोस की बात यह है कि, सरकार ने ही एविएशन सेक्टर (विमानन क्षेत्र) में डिरेगुलेशन को हरी झंडी दी थी.

एविएशन सेक्टर में डिरेगुलेशन की शुरूआत साल 1986 में हुई थी, और फिर साल 1994 आते-आते प्राइवेट कैरियर्स (निजी विमान सेवाओं) की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ. यह 'ओपन स्काई' युग की शुरूआत थी, इस दौरान हवाई यात्रियों की तादाद नौ गुना बढ़ी.

बदलते नियमों के साथ, हवाई किराए में लगातार इजाफा होता आ रहा है. एविएशन इंडस्ट्री कभी फ्लेक्सिबिल प्राइसिंग या कभी सर्ज स्ट्रेटिजी के नाम पर किराए में मनमानी वृद्धि करती रहती है.

जाहिर तौर पर, निजी एयरलाइंस तरह-तरह की बातें बनाकर और अपनी चमक-दमक दिखाकर किराए में वृद्धि को उचित ठहराती रहती हैं. लेकिन सच तो यह है कि, निजी एयरलाइंस किराए के नाम पर यात्रियों से पैसे उगाहने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं देती हैं.

प्राकृतिक आपदा, त्योहारों के समय 400 फीसदी तक बढ़ता है किराया 

त्योहारों के मौसम, स्कूल हॉलिडेज, प्राकृतिक आपदाओं, अप्रिय घटनाओं और हादसों के वक्त निजी एयरलाइंस अपने किराए में 400 फीसदी तक का इजाफा कर देती हैं.

बीते साल अगस्त में डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम को दो साध्वियों से रेप के आरोप में जैसे ही दोषी पाया गया, हरियाणा और पंजाब में कई जगह हिंसा भड़क उठी थी. उस वक्त चंडीगढ़ और अमृतसर आने-जाने वाली फ्लाइट्स (उड़ानों) के किराए में बेतहाशा उछाल आया था.

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उसी तरह गणेश चतुर्थी के दौरान मुंबई और बाढ़ की वजह से नॉर्थ-ईस्ट आने-जाने वाली फ्लाइट्स के किराए में भी जबरदस्त इजाफा हुआ था. दो बार तो नौबत यहां तक पहुंच गई थी कि, डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन (डीजीसीए) को दखल देना पड़ा था.

डीजीसीए ने तब निजी एयरलाइंस कंपनियों को किराए में बेतहाशा वृद्धि वापस लेने के निर्देश दिए थे. सच्चाई तो यह है कि, समय विशेष के लिए हवाई किराए का निर्धारण (सामान्य दिनों के मुकाबले ज्यादा किराया) अब आम बात हो गई है.

हवाई किराए में मनमाना इजाफा करने वाली निजी एयरलाइंस में जरा भी शालीनता या शर्म नहीं होती है. प्राकृतिक आपदाओं और दुर्घटनाओं की स्थिति में भी यह यात्रियों का शोषण करने से नहीं चूकती हैं.

किसी ज्वालामुखी के सक्रिय होने पर उठे राख के बादल, बाढ़, भूकंप, अकाल, दंगे और युद्ध के हालात तो निजी एयरलाइंस कंपनियों के लिए खुशखबरी की तरह होते हैं.

संसदीय समिति ने कहा निजी एयरलाइंस को यात्रियों की परवाह नहीं 

निजी एयरलाइंस कंपनियों को लेकर संसदीय समिति ने जो सुझाव दिए हैं, वह देश की जनता को यकीनन पसंद आए होंगे. लोगों को लगा होगा कि सांसदों को आम आदमी की परवाह है, लेकिन इससे निजी एयरलाइंस के कानों पर जूं रेंगेगी, इसकी संभावना न के बराबर है.

संसदीय समिति के सुझावों के बावजूद निजी एयरलाइंस का रवैया बदलने वाला नहीं है. वह झूठे वादों और प्रलोभनों के जरिए नागरिक उड्डयन मंत्रालय की नजरों में पहले की तरह ही पाक-साफ बनी रहने का ढोंग करती रहेंगी.

नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री महेश शर्मा ने कुछ अरसा पहले एक अहम बयान दिया था. उन्होंने ऐलान किया था कि, निजी एयरलाइंस के किराया वृद्धि पर नकेल कसने के लिए नागरिक उड्डयन मंत्रालय जल्द ही कदम उठाएगा. लेकिन महेश शर्मा के ऐलान के एक महीने बाद ही उनके बॉस यानी नागरिक उड्डयन मंत्री अशोक गणपति राजू ऐसा कोई भी कदम उठाने की बात से पीछ हट गए.

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वह यह कहते हुए पाए गए कि, निजी एयरलाइंस के बीच प्रतिस्पर्धा से किराए का मुद्दा अपने आप सुलझ जाएगा. मंत्री जी की बात सच साबित हो सकती है बशर्ते अगर हम एक आदर्श संसार में रहते हों.

दरअसल एविएशन सेक्टर (विमानन क्षेत्र) में कार्टेल एलिमेंट (उत्पादक या मूल्य संघ से जुड़े तत्व) का खासा महत्व है. कार्टेल एलिमेंट के सक्रिय होते ही सभी एयरलाइंस उसकी कारगुजारियों का पालन करना शुरू कर देती हैं. यही वजह है कि, ओला वृष्टि, बर्फबारी, आंधी-तूफान, विपत्तियों या त्यौहारों के वक्त वह समर्पण कर देती हैं.

विपरीत समय में एयरलाइन कंपनियां नहीं देतीं यात्रियों का साथ 

विपरीत समय में कोई भी एयरलाइन किसी यात्री से यह कहती नजर नहीं आती कि, आइए सबसे पहले हमारे साथ यात्रा करिए. भविष्य में भी ऐसा होगा, इसकी संभावना कम ही दिखाई देती है.

विडंबना यह है कि, नागरिक उड्डयन मंत्री को लगता है कि निजी एयरलाइंस अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनकर और बाजार में साख बनाने के लिए हवाई किराए को कम देंगी. लेकिन अफसोस, ऐसा होता नहीं है. यहां तक कि, सरकार के स्वामित्व वाली एयर इंडिया भी खास अवसरों पर किराया बढ़ाने से नहीं चूकती है.

दीवाली, क्रिसमस और नए साल के दौरान एयर इंडिया के किराए में जबरदस्त उछाल आ जाता है. लिहाजा, मंत्री जी का विचार एक सुनहरे ख्वाब या सब्जबाग से ज्यादा कुछ नहीं है.

वास्तविकता में ऐसे विचार का कोई आधार नहीं है. यह विचार उतना ही अव्यवहारिक है, जितना यह उम्मीद करना कि, यात्री सिर्फ यह सोचकर हवाई यात्रा करना बंद कर दें कि किराए के नाम पर उन्हें लूटा जा रहा है. किराए में मनमानी के खिलाफ निजी एयरलाइंस का बहिष्कार सुसंगत और तर्कपूर्ण नहीं है.

हालांकि, इर्मा तूफान के वक्त अमेरिका में लोगों ने ऐसा ही किया था. दरअसल इर्मा तूफान के दौरान निजी एयरलाइंस ने अपना किराया काफी बढ़ा दिया था. जिसके विरोध में लोगों ने कई निजी एयरलाइंस का बहिष्कार कर दिया था.

नागरिक उड्डयन मंत्री ने कहा 'देशभर में 32 एयरपोर्ट खराब हालत में' 

नागरिक उड्डयन मंत्री का मानना है कि, इस तरह के आदेश से क्षेत्रीय परिवहन नेटवर्क जोखिम में पड़ जाएगा. कहने की जरूरत नहीं है कि सरकार को क्षेत्रीय परिवहन नेटवर्क से विशेष लगाव है. हालांकि, इसके तहत आने वाले करीब 32 एयरपोर्ट वर्तमान में या तो जीर्ण-शीर्ण हालत में हैं या काम नहीं कर रहे हैं.

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बाजार का हवाला देकर किराया वृद्धि को जायज ठहराने की मौकापरस्ती और नए हवाई रूट (मार्ग) चुनना या अपनाना दो अलग-अलग बाते हैं. इनका आपस में कोई संबध नहीं है. सबसे अहम है, सही विमान का सही मार्ग पर पूर्व नियोजित तरीके से उड़ान भरना और पूरे देश में तेजी के साथ कनेक्टिविटी बढ़ाना. ऐसा करके हर क्षेत्र हर इलाके के लोगों तक हवाई यात्रा की सुविधा पहुंचाई जा सकती है.

इस मामले में घिसी-पिटी बहानेबाजी से लोग बखूबी वाकिफ हैं. राजनीतिक एजेंडे के अनुरूप नहीं होने की वजह से कई शहरों और कस्बों को उड़ान की सुविधा मिलना मुश्किल नजर आता है. केंद्र सरकार या कोई राज्य सरकार किसी विशेष हवाई मार्ग को लेकर किसी एयरलाइन के साथ टोकन एग्रीमेंट कर लेती है. ऐसा उस एयरलाइन को किसी विशेष कारण से नवाजने के लिए किया जाता है. इसके लिए उस एयरलाइन को अघोषित तौर पर कई रियायतें दी जाती हैं.

एयरलाइंस कंपनियां बाजार में धंधा करने उतरी हैं, लिहाजा वह मुनाफे के बारे में ही सोचेंगी. ऐसे में उन्हें किराया बढ़ाने से रोकने और उनकी मनमानी पर लगाम कसने का एक ही तरीका बचा है. यात्रियों को ऐसी एयरलाइंस कंपनियों का बहिष्कार करना होगा. यह बात बेहद अव्यावहारिक है, लेकिन डिरेगुलेटिड (नियंत्रण-मुक्त) एविएशन सेक्टर से निबटने का और कोई रास्ता अब नहीं बचा है.

ईमानदारी से कहूं तो, सरकार के पास इस मसले का कोई जवाब नहीं है. किराए के नाम पर निजी एयरलाइंस की सीजनल (मौसमी) लूट से हमें निजात नहीं मिलने वाली है, क्योंकि सांसदों की एक समिति कोई सख्त कदम उठाने के बजाए उनके खिलाफ रिरियाते नजर आई है.