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बातचीत की दुहाई दे रहे पाकिस्तान से बात ही तो करता रहा है भारत, अब जरा जुबान बदल गई है

चल रहे इस संवाद को रोकने की जरूरत नहीं, ऐसी बातचीत हमेशा जारी रहनी चाहिए, बिना रुके चलते रहनी चाहिए.

Sant Kumar Sharma

पाकिस्तान तमाम सार्वजनिक मंचों से कहता आ रहा है कि वो भारत के साथ बातचीत करना चाहता है ताकि दोनों पड़ोसी मुल्कों के बीच बढ़ता जा रहा तनाव दूर हो सके. पाकिस्तान चाहता है कि कोई तीसरा पक्ष या यों कह लें कि बहुत सारे मुल्क मिलकर मध्यस्थता करें ताकि उसके गले से फंदा छूटे.

पाकिस्तान बीते तमाम सालों से भारत को सुई चुभोते आया है और अब उसे भय के मारे कंपकंपी छूट रही है कि कहीं भारत के भारी-भरकम मुक्कों की मार से वो बेदम ना हो जाए. पाकिस्तान का सियासी तबका, अवाम और वहां की तथाकथित सिविल सोसायटी (नागरिक-समाज) उसके लिए बेशकीमती दौलत साबित हो रहे हैं.


बम-बारूद-बंदूक और फिदायीनों की जबान बोलता रहा है पाकिस्तान

पाकिस्तान भारत के साथ अपनी आतंकी बम-बारूद-बंदूक और फिदायीनों की मशीनरी की जबान बोलते आया है लेकिन अब वो तमीज का चोला पहनकर अर्जी लगाने के राह पर उतर आया है- पाकिस्तान के बरताव की सूई कम्पास पर 360 डिग्री घूम गई है. और दरअसल यह दिखावा इसलिए किया जा रहा है ताकि भारत आतंकवादियों की कमर तोड़ने के अपने लौह-संकल्प से भटक जाए.

दोनों मुल्कों के बीच संवाद तो हमेशा से ही हुआ है लेकिन इस संवाद का साधन बनाया जाता था आतंकवादियों को जिनपर नियंत्रण पाकिस्तान का रहता था. इस किस्म का संवाद कम से कम एक दशक पुराना तो है ही- साल 2008 के 26/11 वाले हमले से ऐसे संवाद की शुरुआत मान सकते हैं.

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पाकिस्तान 2008 में 166 लोगों को मौत की जुबान में बोला था- भारत ने इसके जवाब में नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) बनाई! अब आप ऐसे जवाब पर रोएं चाहे हंसे लेकिन भारत में 26/11 के बाद सबसे अहम काम यही (एनआईए) किया है.

उरी, पुलवामा और बालाकोट पर क्या रहा है पाकिस्तान का जवाब?

इसके बाद सीधे चले आइए 2016 के उरी-हमले पर. उरी हमले के जरिए पाकिस्तान ने संदेशा भेजा था- जताया था कि वो किस हद तक विध्वंस करने की ताकत रखता है. भारत ने पलटवार किया, भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक के जरिए अपना जवाब भेजा. जवाब तो दिया था उस वक्त भारत ने लेकिन पाकिस्तान ने कहा कि भारत की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला, उसने ये बात मानी ही नहीं कि घात-प्रतिघात की शैली में दोतरफा बातचीत जारी है.

फिर आई 14 फरवरी यानी आशिकों का दिन- इस दिन भारत में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हुए. भारत के मिराज विमानों ने बालाकोट पर बम बरसाकर जवाब दिया. जवाब दिया जा चुका था लेकिन पाकिस्तान ने फिर से कहा कि उसे जवाब मिला ही नहीं.

जरा गौर कीजिए कि पाकिस्तान कह क्या रहा है? वो कह रहा है कि सिवाय चंद पेड़ों के कोई और नुकसान नहीं हुआ. बमबारी की घटना की कोई भी सच्ची तस्वीर, जैश-ए-मोहम्मद को हुए नुकसान की किसी भी तफसील पर पाकिस्तान इस दावे की ओट करके परदा डाल रहा है.

भारत ने पाकिस्तान ठिकानों पर एयर स्ट्राइक कर उन्हें तबाह कर दिया था

इससे भारत का क्रोध और ज्यादा बढ़ रहा है क्योंकि भारत ने बमबारी जैश-ए-मोहम्मद को नुकसान पहुंचाने की नीयत से की थी. पाकिस्तान का दावा है कि उसे नुकसान हुआ ही नहीं, सो जरूरत पाकिस्तान को दुश्मनी की राह पर अभी और आगे बढ़ाए रखने की है.

पाकिस्तान को ऐसा मौका नहीं दिया जाना चाहिए कि वो फिर से अपने इत्मीनान के उसी घोंसले में लौट जाए और आतंकवाद के संपोले जनने का उसका काम बदस्तूर जारी रहे. अगर संपोले जनना ही उसका असली काम है तो फिर जरूरत सांप की पूरी बांबी को सिरे से खत्म करने की है.

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बालाकोट को लेकर पाकिस्तान ने क्या जवाब दिया? उसने नौशेरा सेक्टर में हवाई अतिक्रमण किया और बम गिराए. यही उसका संदेशा था, भारत को संवाद भेजने की कवायद थी यह! और, भारत ने भी उसे क्या ही जोरदार जवाब दिया- अपने 2 मिलियन डॉलर के मिग-21 से पाकिस्तान का 18 मिलियन डॉलर का एफ 16 मार गिराया.

दुर्भाग्य कहिए कि, मिग-21 की चोट खाकर पाकिस्तान का एक पायलट बड़े दर्दनाक हालात में मारा गया! उसको उसके ही मुल्क के बाशिंदों ने पीट-पीटकर मार डाला. उस पायलट को वह सम्मान भी ना मिल सका जो मुल्क के लिए प्राण न्योछावर करने वाले किसी शहीद को हासिल होता है.

बीमार मानसिकता वाला मुल्क है पाकिस्तान

आखिर क्यों भला? दरअसल, पाकिस्तान बीमार मानसिकता वाला मुल्क है- वह खुलकर कह ही नहीं सकता कि अमेरिका से हासिल एफ-16 फाइटर प्लेन का इस्तेमाल उसने भारतीय सीमा के भीतर हमले में किया है. पाकिस्तान का दांव उल्टा पड़ा- उसने हमले के लिए एफ-16 का इस्तेमाल किया और अपनी पहली ही कोशिश में उसका पर्दाफाश हो गया. आने वाले वक्त में अमेरिका इस गलती के लिए उसको कभी ना कभी तगड़ी चपत लगाएगा.

पाकिस्तान के बरताव पर निर्भर करता है कि अमेरिका से उसके रिश्ते आने वाले वक्त में क्या शक्ल अख्तियार करते हैं और यह कह पाना तो बड़ा कठिन है कि अमेरिका इस बाबत कोई कदम नहीं उठाएगा. अमेरिका पाकिस्तान को एक ठगेरा समझकर उसके बरताव पर नजर रखेगा. एफ-16 के लिए हुए करार में एक बात यह भी शामिल है कि इस फाइटर प्लेन का खरीदार मुल्क अपने ऊपर होने जा रहे हमले की काट में इसका इस्तेमाल करेगा. भारत के नौशेरा सेक्टर में कायम सैन्य ठिकाने को निशाना बनाकर पाकिस्तान ने करार की इस शर्त का उल्लंघन किया है.

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एक तरह से देखें तो एफ-16 को मार गिराकर विंग कमांडर अभिनंदन ने पाकिस्तान के एफ-16 के तमाम स्क्वाड्रन को बेकाम कर दिया है! अब एफ-16 एक ऐसा युद्धक विमान बनकर रह दया है जिसे पाकिस्तान को अपनी सीमा के भीतर ही रखने होंगे- उन्हें सीमा के भीतर रखते हुए ही अपनी हिफाजत करनी होगी. अगर पाकिस्तान ने एफ-16 के बूते हमला करने का कोई मंसूबा बांधा तो फिर अमेरिका उसे सबक सिखाने के लिए तैयार खड़ा मिलेगा.

पाकिस्तान ने बस एक एफ-16 गंवाया है लेकिन एक एफ-16 गंवाना ही उसकी पूरी फौज को मनोवैज्ञानिक रुप से पंगु बना गया. नौबत ये आन पहुंची है कि पाकिस्तान को लग रहा है, उसका सबसे बेहतर युद्धक विमान बस बेकार का ‘शोपीस’ बनकर रह गया है. एफ-16 की आपूर्ति के मौजूदा नियमों के मुताबिक ये युद्धक-विमान भारत की हवाई सीमा में प्रवेश नहीं कर सकते. ऐसा करने का मतलब होगा अमेरिका के साथ हुए करार का गंभीर उल्लंघन.

दोतरफा संवाद में कई जबानें बोल रहा है भारत

तो यों कहें कि एक-दूसरे के मुखालिफ खड़े भारत-पाकिस्तान के बीच दोतरफा संवाद होता रहा है. बेशक पाकिस्तान इस संवाद के होने से इनकार करता रहा है- लेकिन ऐसा कहना सरासर झूठ है, निंदा के काबिल है, इससे ज्यादा कुछ और नहीं!

पाकिस्तान अभी तक दमदार पंजाबी में बोलता आया है- बाजवा के पिट्ठू बनकर मुरीदके और बहावलपुर पाकिस्तान से अपनी मनचाही बात बुलवाते रहे हैं. हमने शुरुआत में मीठी जुबान में बात की और अब बालाकोट और अन्य जगहों पर फ्रेंच (मिराज 2000) और रूसी (मिग 21) जबान में जवाब देना शुरू किया है.

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अब हम हेब्रोन ड्रोन, स्पाइस (मिसाइल) के रूप में पाकिस्तान के साथ इजरायली जबान हिब्रू में बात कर रहे हैं तो रूसी (आईएल 76 रिफ्यूलर) और अमेरिकन अंग्रेजी (सर्विलांस एयरक्राफ्ट) में भी. पाकिस्तान को चूंकि अब इतनी सारी जुबानों में जवाब मिल रहा है- सो वो बेचैन हो उठा है.

चल रहे इस संवाद को रोकने की जरूरत नहीं, चाहे वह जल्दी ही एकतरफा संवाद ही बनकर क्यों ना रह जाए. ऐसी बातचीत हमेशा जारी रहनी चाहिए, बिना रुके चलते रहनी चाहिए.

(लेखक जम्मू-कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार हैं.)