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पद्मावत: करणी सेना के सामने झुक कर अपना सम्मान भी खो चुकी है राजस्थान सरकार

दुर्भाग्य कहिए कि मुट्ठी भर विरोधियों को देखकर कला की स्वतंत्रता और संविधान की नीति-भावना की हिफाजत की लड़ाई से भाग खड़े होने से ज्यादा बड़ा कोई अपमान नहीं है

Sandipan Sharma

वाकया सालों पहले का है. राजपूत उस वक्त राजस्थान के देवराला में पति की चिता पर जिंदा जला दी गई युवती रूपकंवर को ‘देवी’ करार देने की मांग कर रहे थे. तब कुछ गर्म तेवर के लोगों ने पूर्व उप-उपराष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत को एक रेलवे स्टेशन पर घेर लिया था. इस भीड़ के हाथों में चमकती हुई तलवारें थीं.

इन राजपूतों का उस वक्त जिन नेताओं ने समर्थन किया था वही आज धमकी दे रहे हैं कि फिल्म पद्मावत रिलीज हुई तो पूरे राजस्थान को जला देंगे. इनका तर्क है कि उस वक्त भैरोसिंह शेखावत ने हमारी मांग का समर्थन करते हुए रूपकंवर को सतीमाता यानी देवी करार दिया था.


सामने अपने ही समुदाय के नेता मुखालिफ बने खड़े थे, तलवार चमकाती भीड़ ने घेर लिया था. ऐसे हालात में शेखावत अपने लिए आसान रास्ता चुन सकते थे, वे इन धूर्त लोगों की मांग का समर्थन कर सकते थे या इससे भी दो कदम आगे बढ़ सकते थे, अपने परिजन और समुदाय के हाथों परंपरा के नाम पर मार दी गई युवती रूपकंवर को सती करार देने के लिए भड़के इस जनाक्रोश की अगुवाई अपने हाथों में ले सकते थे. लेकिन शेखावत ने हिंसा और जाति-बाहर किए जाने की धमकी की परवाह नहीं की.

सूबे की विधानसभा में नेता-प्रतिपक्ष की भूमिका निभा रहे शेखावत ने उस वक्त उत्पाती राजपूतों से कहा था- 'मेरे पिता की जब मौत हुई, मैं बहुत छोटा था. अगर मेरी मां तब सती हो गई होतीं तो मैं आज इस मुकाम पर ना पहुंचा होता. ना, मैं सती (प्रथा) का कभी समर्थन नहीं करुंगा.' शेखावत के इस तीखे जवाब के बाद उत्पाती भीड़ बिखर गई थी.

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शेखावत आज होते तो क्या करते?

अकेले दम पर दशकों तक बीजेपी को राजस्थान में जिलाए रखने वाले शेखावत सूबे में पदमावत के रिलीज होने की सूरत में दी जा रहे राजपूतों की धमकी पर क्या रुख अपनाते? मेरा दिल कहता है, वे इन धूर्तों की आंखों में सीधे झांकते, अपनी भारी-भरकम और मशहूर गूंजदार आवाज में चेतावनी देते कि सूबे में पत्ता भी खड़का तो तुमलोगों को अंजाम भुगतने होंगे.

भैरो सिंह शेखावत

शेखावत को चाहने वाले उनके बारे में गर्व से कहा करते थे कि राजस्थान में तो सिर्फ एक ही 'सिंह' हुआ है और दुर्भाग्य कहिए कि ये बात सच जान पड़ती है. शेखावत की मृत्यु के बाद सूबे में व्यापक जनाधार, नैतिक रूप से खरा और साहस का धनी नेता दूर-दूर तक नजर नहीं आता. साहस की यही कमी है जो सूबे की सरकार ने पद्मावत को प्रतिबंधित करने की गर्ममिजाज राजपूतों की मांग के आगे घुटने टेक दिए हैं.

अपना 'वकार' खो चुकी है राजस्थान सरकार

बात इतनी भर नहीं कि सूबे की सरकार किसी संशय और संकोच में है और उसने करणी सेना और उसके इशारे पर कदमताल करने वाले लोगों की अगुवाई में पद्मावत के खिलाफ चल रहे प्रदर्शन के आगे घुटने टेक दिए हैं. भारत में कहावत है कि सरकार का वकार (गरिमा) बुलंद रहना चाहिए. लेकिन विडंबना देखिए कि राजस्थान की सरकार ने एक काल्पनिक किरदार की गरिमा के नाम पर अपना वकार गंवा दिया और फिल्म प्रमाणन बोर्ड की हरी झंडी मिलने के बावजूद एक फिल्म पर रोक लगा दी. जाहिर है, उसने केंद्र में अपनी ही पार्टी की सरकार के हाथों गठित सेंसर बोर्ड के सही फैसले लेने की सलाहियत पर यकीन नहीं किया.

करणी सेना धमकी दे रही है कि राजस्थान में पद्मावत रिलीज हुई तो वह सिनेमाघरों को जला देगी. ऐसा करके करणी सेना ने एक तरह से सरकार की गर्दन पर तलवार रख दी है. कोई और लोकतांत्रिक देश होता, कोई और जगह होती जहां सुप्रीम कोर्ट और अन्य संवैधानिक संस्थाओं ने फिल्म पर रोक की मांग को नकार दिया हो, तो सरकार करणी सेना पर पूरी ताकत के साथ चढ़ दौड़ती. लेकिन यहां तो उल्टी गंगा बह रही है. सरकार ने धमकी और ब्लैकमेल (भयादोहन) के आगे घुटने टेक दिए हैं.

राजस्थान की आबादी में राजपूतों की तादाद तकरीबन दस प्रतिशत है. यह विश्वास कर पाना मुश्किल है कि सूबे के सभी राजपूत करणी सेना की हिंसा की राजनीति के समर्थक हैं. लेकिन सूबे की सरकार ने कथित तौर पर राजस्थान की गरिमा की रक्षा के लिए फिल्म पर रोक लगाई है. दुर्भाग्य कहिए कि मुट्ठी भर विरोधियों को देखकर कला की स्वतंत्रता और संविधान की नीति-भावना की हिफाजत की लड़ाई से भाग खड़े होने से ज्यादा बड़ा कोई अपमान नहीं है. राणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान और अमर सिंह की धरती पर इतना बड़ा पाखंड बहुत शर्मनाक है.

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कांग्रेस भी है चुप

कायरता दिखाते हुए घुटने टेकने और सूबे की गरिमा को चोट पहुंचाने की इस कवायद को कांग्रेस भी चुप्पी साधे देख रही है. कांग्रेस का कोई नेता फिल्म के समर्थन में या फिर अभिव्यक्ति की आजादी का तरफदार बनकर नहीं खड़ा हुआ. एक वक्त हुआ करता था जब कांग्रेस के नेता अशोक गहलोत अपने साहसी फैसलों के लिए मशहूर थे. एक बार तो उन्होंने चंद्रास्वामी की सार्वजनिक तौर पर खिल्ली उड़ाई थी जबकि उस वक्त चंद्रास्वामी को पीवी नरसिम्हाराव जैसे कांग्रेस के नेता का संरक्षण हासिल था.

कुछ साल पहले उन्होंने आसाराम और उनके अनुयायियों से सख्ती से निपटने में आश्चर्यजनक साहस दिखाया था. तब खुद को गुरुदेव बताने वाले आसाराम पर बलात्कार और ब्लैकमेल के आरोप लगे थे. लेकिन वही गहलोत अब चुप्पी साधे सबकुछ देख रहे हैं. शायद उनके जमीर पर बहुत बड़ा बोझ है. मुस्लिम कट्टरपंथियों ने मांग रखी थी कि जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में सलमान रुश्दी को बोलने की अनुमति नहीं दी जाए और कांग्रेस ने इस मांग के आगे घुटने टेक दिए थे.

मलिक मोहम्मद जायसी की रचना पद्मावत के मुताबिक रानी पद्मिनी ने जौहर किया, खुद को आग हवाले कर दिया लेकिन अलाऊद्दीन खिलजी के हाथों अपने सम्मान और गरिमा को चोट नहीं पहुंचने दी. साफ है कि कांग्रेस और बीजेपी के पास जौहर की कूबत नहीं है जो वे भारतीय लोकतंत्र की बुनियाद पर चोट करने वालों से लोहा ले सकें.

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फरमान मजाक न बन जाए

यह दूसरी दफे है जब राजस्थान में किसी फिल्म पर रोक लगी है. कुछ साल पहले राजपूतों ने फिल्म जोधा अकबर पर रोक लगवाई क्योंकि आमेर (जयपुर के निकट) की राजकुमारी से मुगल शहंशाह का विवाह देखना उन्हें गवारा नहीं था. इस वाकये के चंद सालों बाद फिल्म जोधा-अकबर टीवी चैनलों पर नियमित दिखाई जाने लगी और इस तरह उनका फरमान एक मजाक में तब्दील हो गया.

पद्मावत पर लगी मौजूदा रोक भी काम नहीं आएगी. पायरेटेड प्रिंट और फ्री डाउनलोड के इस जमाने में जो कोई फिल्म देखना चाहे अपने घरेलू इत्मीनान के बीच ऐसा कर सकता है. और ऐसे में, पद्मावती की जो कथा संजय लीला भंसाली ने दोहराई है वह घर-घर में देखी-सुनी जाएगी.

चाहे लोगों को फिल्म की याद ना रह जाय लेकिन यह बात कभी भुलायी नहीं जा सकेगी कि एक राज्य जिसकी शोहरत मान-सम्मान की रक्षा की अनगिनत लड़ाइयों के कारण है, उसी ने कायरता का सामूहिक प्रदर्शन कर अपनी विरासत से पीछा छुड़ा लिया. कल्पना के हाथों रची गई किरदार पद्मावती ही नहीं शेखावत सरीखी विभूतियां भी आज शर्मिंदा होंगी.