पद्मावती फिल्म के निर्माता को सेंसर बोर्ड की तरफ से बड़ी राहत मिली है. न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक, सीबीएफसी की जांच कमेटी ने 28 दिसंबर को पद्मावती का रिव्यू किया. जिसके बाद फिल्म को कुछ बदलाव के साथ यूए सर्टिफिकेट देने का फैसला किया है और फिल्म का नाम 'पद्मावत' करने का सुझाव भी दिया है. सेंसर बोर्ड का कहना है कि समाज और फिल्म निर्माता दोनों को ध्यान में रखते हुए फैसला लिया गया है.
सीबीएफसी ने फिल्म को सर्टिफिकेशन देने से पहले एक एक्सपर्ट पैनल को फिल्म दिखाई. सूत्रों के मुताबिक, एक्सपर्ट पैनल ने पद्मावती फिल्म में कई चीजों को लेकर ऐतराज जताया है. इस पैनल में उदयपुर के अरविंद सिंह और जयपुर विश्वविद्यालय के डॉ.चंद्रमणि सिंह और प्रोफेसर के.के. सिंह शामिल थे.
संजय लीला भंसाली की यह विवादित फिल्म 1 दिसंबर को रिलीज होनी थी लेकिन देश भर के राजपूत संगठनों के भारी विरोध के बाद इसके रिलीज पर रोक लगा दी गई थी. अब सेंसर बोर्ड के इन सुझावों के बाद फिल्म के रिलीज का रास्ता खुलता हुआ दिख रहा है.
ऐसा नहीं है कि यह फिल्म सिर्फ रिलीज से पहले विवादों के घेरे में आई और इसका विरोध शुरू हुआ, लेकिन फिल्म की जब शूटिंग शुरू हुई तब से ही इसको लेकर लगातार विरोध जारी है. हालांकि रिलीज से पहले इसका विरोध अपने चरम पर था.
आइए जानते हैं कब और कैसे विवादों के साए में समाती गई संजय लीला भंसाली की यह फिल्म पद्मावती.
राजपूत समाज शुरू से ही रहा है इस फिल्म के खिलाफ
कुछ लोगों की माने तो जब इस फिल्म को बनाने को लेकर गहमा-गहमी शुरू हुई तभी राजपूत समाज के लोगों ने फिल्म के निर्देशक से मुलाकात की थी और मांग की थी कि इसमें गलत तरीके से कुछ न दिखाया जाए और न ही इतिहास से छेड़छाड़ की कोशिश हो. बताया जाता है कि इस मुलाकात में भंसाली ने राजपूत समाज के लोगों को गंभीरता से नहीं लिया. इसके बाद से ही राजपूत समाज ने इस फिल्म की खिलाफत की तैयारी कर ली.
जयपुर में भंसाली और उनकी टीम पर करणी सेना ने किया था हमला
राजपूत समाज के लोग भंसाली के रवैए से नाराज तो थे ही, बस उन्हें मौके की तलाश थी. मौका मिला तब जब भंसाली राजपूतों के गढ़ राजस्थान में फिल्म की शूटिंग के लिए पहुंचे. साल 2017 के शुरुआत में 27 जनवरी को जब भंसाली जयपुर के आमेर पैलेस में फिल्म की शूटिंग कर रहे थे तभी करणी सेना के सदस्यों ने भंसाली की टीम पर हमला कर दिया. सेट तोड़ दिए, उनकी टीम के लोगों को भी मारा और कहा जाता है कि संजय लीला भंसाली को भी थप्पड़ जड़ा. इस घटना को काबू करने के लिए सुरक्षाकर्मियों को एहतियातन गोली भी चलानी पड़ी थी.
इस घटना की पूरे बॉलीवुड ने एक सुर में निंदा की थी और इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला करार दिया था. इसके बाद इस फिल्म को लेकर विवादों का सिलसिला कभी थमा ही नहीं.
जयपुर में पद्मावती की टीम पर हमले के बाद चर्चा में आई श्री राजपूत करणी सेना के अध्यक्ष लोकेंद्र सिंह कलवी ने सूचना प्रसारण मंत्रालय से मांग की थी कि प्री सेंसर बोर्ड भी बनाए जाए.
करणी सेना ने की थी प्री सेंसर बोर्ड बनाने की मांग
दिल्ली में 15 फरवरी को किए गए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कलवी ने साफ तौर से कहा कि फिल्म निर्माता व्यावसायिक हितों के कारण ऐतिहासिक तथ्यों को अपने हिसाब से तोड़-मरोड़ कर पेश करना चाहते हैं. उनकी ऐसी कोशिशों से राजपूत समुदाय की संवेदना आहत होती है. बॉलीवुड के फिल्मकारों द्वारा आज की पीढ़ी के सामने इतिहास की गलत तस्वीर पेश करने का सिलसिला लंबे अरसे से चला आ रहा है. इसके पक्ष में उन्होंने फिल्म जोधा-अकबर का उदाहरण भी दिया.
करणी सेना ने तोड़ दिया था चित्तौड़गढ़ के मशहूर आईने को
राजस्थान के चित्तौड़ गढ़ के पद्मिनी महल में 6 मार्च को अलाउद्दीन खिलजी और रानी पद्मावती की प्रेम कहानी का कथित हिस्सा बताए जाने वाले आईनों (कांच) को करणी सेना के कार्यकर्ताओं ने फोड़ डाला.
यह कांच महल के गोलाकार कक्ष में लगे थे और टूरिस्ट गाइड इन्हे पर्यटकों को खिलजी-पद्मिनी प्रेम प्रसंग के सबूत के तौर पर दिखाते थे. पर्यटकों को कहा जाता था कि इन्हीं कांचों में खिलजी को पद्मिनी की सूरत दिखाई गई थी.
करणी सेना ने कांचों को फोड़ने की जिम्मेदारी कबूल की थी. इस घटना के बाद करणी सेना की ओर से कहा गया था कि उनके नेतृत्व में ही कांच तोड़े गए. सेना ने कहा था कि 20 दिन पहले इस बारे में पुरातत्व विभाग को लिखित में चेतावनी दी जा चुकी थी लेकिन उन्होंने इस ओर ध्यान नहीं दिया और मजबूरन उन्हें यह कदम उठाना पड़ा.
कोल्हापुर में जला दिया गया था फिल्म पद्मावती का सेट
ऐसा नहीं है कि सिर्फ राजस्थान तक ही फिल्म का विरोध सीमित रहा. बल्कि धीरे-धीरे विरोध की यह आग पूरे देश में फैल गई. 15 मार्च 2017 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर में पद्मावती के सेट पर आग लग गई थी जिससे फिल्म मेकर्स को चार करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा था.
इस घटना के बाद पुलिस ने दंगा भड़काने जैसी धाराओं में केस दर्ज किया था. बताया गया था कि दंगाईयों ने शूट पर मौजूद लोगों को डंडों से मारा भी था. कई लोगों को गंभीर चोटें भी आई थीं. रिपोर्ट के मुताबिक हमलावरों ने पेट्रोल बम से हमला किया था जिससे पूरा सेट आग के चपेट में आ गया था.
विवादों के बीच शुरू हुआ फिल्म के पोस्टर रिलीज करने का दौर
तमाम विवादों के बीच फिल्म का पहला पोस्टर 21 सितंबर 2017 को रिलीज किया गया. पहले पोस्टर में रानी पद्मावती का किरदार निभा रही दीपिका पादुकोण नजर आई थीं. पोस्टर को फिल्म में दीपिका के को स्टार रणवीर सिंह ने अपने इंस्टाग्राम हैंडल के जरिए शेयर किया था.
महारानी पद्मावती के पोस्टर के बाद दूसरा पोस्टर 25 सितंबर 2017 को रिलीज हुआ. नए पोस्टर में शाहिद कपूर 'महारावल रतन सिंह' के अवतार में दिखाई दिए थे. कहानी के अनुसार महारावल रतन सिंह ही महारानी पद्मावती के पति थे.
तीसरा पोस्टर अलाउद्दीन खिलजी का रिलीज हुआ. यह 3 अक्टूबर 2017 को रिलीज किया गया था. खिलजी का किरदार निभा रहे रणवीर सिंह ने खुद अपने सोशल हैंडल पर इसे शेयर किया था.
पोस्टर के बाद लॉन्च हुआ था ट्रेलर
कई पोस्टर रिलीज होने के बाद फिल्म के ट्रेलर को 9 अक्टूबर 2017 को रिलीज किया गया था. फिल्म का ट्रेलर लॉन्च होने के साथ ही वायरल हो गया और इसे काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिली.
ट्रेलर लॉन्च होने के बाद फिल्म का पहला गाना रिलीज किया गया. इस गाने के रिलीज के बाद से विवाद ने और जोर पकड़ लिया. 25 अक्टूबर को रिलीज किए गए गाने 'घूमर' में दीपिका पादुकोण को डांस करते हुए दिखाया गया था. जिससे राजपूत समाज नाराज हो गया.
भंसाली को राष्ट्रद्रोही करार देने की मांग भी की गई
जैसे-जैसे फिल्म की रिलीज डेट नजदीक आती गई इस पर खतरा बढ़ता गया. राजस्थान में इसको लेकर सबसे ज्यादा विरोध हुआ. 4 नवंबर को फिल्म के विरोध के समर्थन में चितौड़गढ़ भी बंद रहा था. जिसके कारण लोगों को काफी परेशानी का सामना उठाना पड़ा.
इसके बाद बीजेपी महाराष्ट्र ने गृहमंत्री राजनाथ सिंह को चिट्ठी लिखकर फिल्म के निर्देशक संजय लीला भंसाली को राष्ट्रद्रोही घोषित करने की मांग की गई थी. 6 नवंबर को गृहमंत्री को लिखे पत्र में ये मांग की गई थी कि इसके लिए भंसाली को सजा भी दी जाए ताकि भविष्य में कोई ऐसा काम करने की जुर्रत न करे.
सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था मामला
भंसाली की फिल्म पद्मावती के रिलीज होने में कुछ ही दिन पहले इस फिल्म को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. इस याचिका में फिल्म के रिलीज पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया था. इस याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने 10 नवंबर को इसे खारिज कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस फिल्म को सेंसर बोर्ड ने अब तक सर्टिफिकेट नहीं दिया है इसलिए इस पर रोक नहीं लगाई जा सकती.
भंसाली का सिर कलम करने वाले को 5 करोड़ का इनाम
ऐसा नहीं है कि सिर्फ राजपूत संगठनों ने ही इसका विरोध किया था. बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने फिल्म को दुबई फंडेड करार दिया था. वहीं एक उत्तर प्रदेश के राजपूत नेता ने ये ऐलान कर दिया था कि भंसाली का सिर कलम करने वाले को 5 करोड़ रुपए का इनाम दिया जाएगा.
फिल्म को लेकर विवाद बढ़ता देख कई राज्यों ने सुरक्षा का हवाला देकर इसके रिलीज पर रोक लगा दी. जिसमें उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्य शामिल थे.
देश में विरोध झेल रही और रिलीज से रोकी गई फिल्म को ब्रिटिश सेंसर बोर्ड ने बिना कट के पास कर दिया था हालांकि निर्माताओं ने उसे वहां रिलीज नहीं किया.
नाहरगढ़ किले पर लटका मिला शव
इस फिल्म से जुड़ा सबसे बड़ा विवाद तब सामने आया जब जयपुर स्थित नाहरगढ़ किले पर एक युवक के शव को लटका पाया गया. शव के आस-पास किले पर कई तरह के धमकियों भरी बातें भी लिखी गई थीं.
धमकियों में लिखा गया था कि हम पुतले नहीं जलाते, लटका देते हैं. इसके साथ ही यह भी लिखा मिला कि पद्मावती का विरोध करने वालों का यहीं अंजाम होगा. हालांकि, बाद में जब इस मामले की जांच की गई तब यह बात सामने आई कि यह हत्या नहीं बल्कि आत्महत्या थी और इसकी वजह फिल्म पद्मावती नहीं बल्कि कुछ और थी.
दिल्ली हाईकोर्ट ने खारिज कर दी रिलीज रोकने की याचिका
24 नवंबर को दिल्ली हाईकोर्ट ने पद्मावती के रिलीज को रोकने वाली याचिका ख़ारिज कर दी थी. इस याचिका में पद्मावती की रिलीज से पहले एक पैनल का गठन कर यह सुनिश्चित करने की मांग की गई थी कि इसमें ऐतिहासिक तथ्यों के साथ छेड़छाड़ तो नहीं की गई है.
फिल्म पर नेताओं की बयानबाजी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने दी थी चेतावनी
संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती को लेकर हो रहे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जमकर फटकार लगाई थी. 28 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों और नेताओं के बयानों पर गहरी नाराजगी जताई जिन्होंने हाल के दिनों में पद्मावती को लेकर गैर जिम्मेदार बयान दिए. इस मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सख्त हिदायत दी कि सेंसर बोर्ड की क्लीयरेंस से पहले फिल्म के खिलाफ बयानबाजी बंद करें.
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