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अब तो झारखंड सरकार को भी सताने लगा किसानों का डर!

सवाल उठता है कि क्या यह पांच हजार रुपए से किसानों की मदद हो पाएगी

Anand Dutta

हनुमान के नाम से विपक्षियों को डराने की योजना बनानेवाली बीजेपी अब परेशान है. तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणाम आने के बाद उसे साफ पता चल गया कि हनुमान से तो कोई डरा नहीं, उल्टे वह किसानों से डरने लग गई. एक तरफ जहां तीनों राज्यों में कांग्रेस सरकार ने किसानों का कर्ज माफ करने का ऐलान कर दिया. वहीं इसका सीधा असर अन्य बीजेपी शासित राज्यो में दिखाई देने लगा है. झारखंड सरकार के हालिया निर्णय में तो कम से कम यह डर साफ झलक रहा है.

शुक्रवार 21 दिसंबर की देर शाम को सरकार ने घोषणा की कि वह राज्य भर के किसानों को प्रति एकड़ पांच हजार रुपए देने जा रही है. कृषि आशीर्वाद नामक इस योजना के तहत किसानों को हर साल पांच हजार रुपए दिए जाएंगे. इसका लाभ वही किसान उठा पाएंगे जिनके पास या तो खुद की जमीन नहीं है या फिर जिनके पास अधिकतम पांच एकड़ जमीन है. योजना के तहत लगभग 2250 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे. सरकार का दावा है कि राज्य भर में लगभग 22.76 लाख किसानों को इसका लाभ मिलेगा.


पांच हजार रुपए का कितना लाभ मिल पाएगा किसानों को

अब सवाल उठता है कि क्या यह पांच हजार रुपए से किसानों की मदद हो पाएगी. रांची से 60 किलोमीटर दूर कुडू की महिला किसान नीलीमा तिग्गा बताती हैं ‘इस साल पानी कम होने की वजह से गेहूं की खेती में उन्हें लगभग 30 हजार रुपए का घाटा हुआ है. अगर इसी वक्त ये पांच हजार रुपए मिल जाते हैं तो वह कम से कम बीज, खाद और जुताई का काम कर लेंगी. अभी रवि फसल का समय है तो टमाटर, मिर्ची, फूल गोभी, पत्ता गोभी की उपज कर सकती हूं.’

घाटा होने के बाद अपने एक एकड़ में नए सिरे से खेती की तैयारी कर रही नीलीमा कहती हैं ‘मेहनत तो की थी, लेकिन ऊपरवाले ने पानी ही नहीं दिया तो फसल खराब हो गई. अब किस्मत में जितना लिखा रहेगा उतना ही मिलेगा न.’

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वहीं रांची से 26 किलोमीटर दूर ठाकुरगांव के डेढ़ एकड़ के मालिक किसान राजू साव को इस घोषणा के बारे में जानकारी नहीं थी. जब उन्हें बताया तो उन्होंने कहा कि अगर सरकार इस वक्त उनके अकाउंट में पैसा डाल देती है तो वह लगभग 40 किलो मटर का बीज खरीद लेंगे. इससे उन्हें अच्छा पैसा मिल जाएगा. अगर गेहूं उपजाते हैं तो इतने ही पैसे में लगभग पांच क्विंटल गेहूं उपजा लेंगे. अगर आलू उपजाते हैं तो लगभग 20 क्विंटल आलू की उपज हो जाएगी.

लेकिन राजू साव की चिंता दूसरी है. वो कहते हैं ‘अभी बींस चार क्विंटल बेचे हैं, मात्र सात रुपए प्रति किलो. हमलोग भगवान से मनाते रहते हैं कि कुछ भी उपज हो कम-से-कम 10 रुपए से अधिक किलो पर बिक जाए. अगर इससे कम का भाव मिला तो जीने की हिम्मत नहीं रहती.’

कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा कहते हैं कि ये मदद कम है, लेकिन शुरूआत हैं. उन्होंने कहा ‘देखिए 5,000 रुपया मतलब प्रति माह 400 रुपए. यानी एयरपोर्ट पर दो कप चाय के बराबर मदद किसानों को सरकार कर रही है. इसी से समझा जा सकता है कि किसान कितनी प्रॉब्लम में है, लेकिन सरकार के इस प्रयास को अच्छा कहा जाएगा.’ उनके मुताबिक तीन राज्यों के परिणामों का असर साफ दिख रहा है. बहुत समय बाद किसानों को उनकी ताकत का अंदाजा लगा है. वह धर्म, जाति से बाहर आकर किसानी मुद्दे पर चुनाव के वक्त एकजुट हुए हैं.

इकोनॉमिक सर्वे 2016 के मुताबिक, देश के 17 राज्यों में किसान परिवार की औसतन आय 20 हजार रुपए हैं. मतलब 1700 रुपए प्रतिमाह. कभी देश ने सोचा है कि एक किसान परिवार इतने कम पैसे में कैसे रहता है. इसमें झारखंड भी है. देविंदर शर्मा कहते हैं ‘ये एक तरह का डायरेक्ट इनकम सपोर्ट है. पिछले दस सालों से मैं इसे लागू करने के लिए कह रहा हूं, लोग मेरा मजाक उड़ाते रहे.’

किसान आंदोलनों में झारखंडियों की भूमिका कम, फिर भी दम

हाल के दिनों में हुए किसान आंदोलनों को राष्ट्रीय मीडिया में ठीक ठाक महत्व दिया गया. चाहे वह मुंबई में हुए प्रदर्शन हों या फिर दिल्ली में. लेकिन गौर करनेवाली बात ये है कि दोनों ही आंदोलनों में झारखंड के किसानों की सहभागिता बहुत कम थी. इन आंदोलनों में प्रमुख भूमिका निभानेवाले किसान नेता वीजू कृष्णन कहते हैं कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही सरकारें किसानों के दवाब में आकर ही इस तरह का फैसला ले रही है. लेकिन यह कोई खैरात नहीं है, इस हक को देशभर के किसानों ने लड़कर लिया है. इस आंदोलन से किसानों के संकट को नेशनल एजेंडा में शामिल करने में सफलता मिली है.

आनेवाले चुनाव में झारखंड के किसानों की समस्या चुनावी मुद्दे बने, इसकी भी संभावना कम ही है. देविंदर शर्मा कहते हैं कि ‘देखिये जब गांधी ने चंपारण में आंदोलन किया तब तो मुद्दे और किसान दोनों थे. आज कहां कुछ है. इसका ये तो मतलब नहीं है कि बिहार के किसान और उनके मुद्दे खत्म हो चुके हैं? झारखंड के साथ भी यही है. यही वजह है कि सरकार ने इस तरह का फैसला लिया है.’

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झारखंड में किसानों के लिए सरकार ने सिंगल विंडो सेंटर की शुरूआत की है. पूरे राज्य में 250 ऐसे सेंटर हैं जहां एक छत के नीचे खेती-किसानी संबंधी जानकारी और अन्य तरह की सुविधाएं देने का दावा सरकार कर रही है. इसके अलावा साल 2018 और 2019 के फसल बीमा का प्रीमियम भी सरकार भर रही है.

झारखंड में खेती का संभावित बाबा रामदेव फैक्टर 

बीते माह 29 और 30 नवंबर को झारखंड सरकार की ओर से लगभग 8.50 करोड़ रुपए खर्च कर ग्लोबल एग्रीकल्चर एंड फूड समिट का आयोजन किया गया था. इसमें बतौर मुख्य अतिथि पतंजलि कंपनी के कर्ता-धर्ता बाबा रामदेव भी पहुंचे थे. आयोजन के वक्त कृषि मंत्री, सीएम की बातों पर जितनी तालियां किसानों नहीं बजाई, उससे ज्यादा तो बाबा रामदेव की घोषणाओँ पर बजाई. रामदेव ने कहा कि वह यहां के किसान टमाटर, आलू, शहद, जड़ी-बूटी, धान, गेहूं, बाजरा, जौ, मक्का जो भी उगाएंगे, उसे वह पूरा खरीद लेंगे.

वह कोल्ड स्टोरेज बनाएंगे, वह सीधे खेतों से किसानों के माल उठाएंगे. तालियों की गड़गड़ाहट के बीच बाबा रामदेव ने यह भी कहा कि करोड़ों रुपए की लागत से बने मेगा फूड पार्क (फिलहाल यह लगभग बंद पड़ा है) का संचालन भी अपने हाथ में ले लेंगे. ये घोषणाएं उसी वक्त हो रही थी जिस वक्त दिल्ली में किसान आंदोलन के मंच पर शरद पवार सहित विपक्षी नेता बीजेपी सरकार पर हमले बोल रही थी.

पड़ोसी राज्य ओडिशा में किसानों के लिए कालिया

हजारों किसानों की मौत और हालिया आंदोलनों का असर ही है कि राजनीति किसानों को गंभीरता से लेने लगी है. पड़ोसी राज्य ओडिशा में सीएम नवीन पटनायक ने किसानों को राहत देने के लिए 10 हजार करोड़ रुपए के ‘कालिया’ नामक योजना की घोषणा शनिवार 22 दिसंबर को कर दी. कृषक असिस्टेंस फॉर लाइवलीहुड एंड इनकम ऑगमेंटेशन (KALIA) स्कीम नाम की इस योजना के तहत किसान और किसानी के संपूर्ण विकास के लिए पैसे खर्च किए जाएंगे. राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की ओर से अगस्त 2018 में जारी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 10.07 करोड़ किसानों में से 52.5 प्रतिशत किसान कर्ज में डूबे हुए हैं. इसमें हरेक किसान लगभग 1.05 लाख रुपए का कर्जदार है. यानी किसानों का कर्ज लगभग 15 लाख करोड़ रुपए पहुंच चुका है.