देहात में एक कहावत है- पुआल की आग की तरह मत धधको, वरना जितनी जल्दी धधकोगे, उतनी जल्दी बुझोगो. इस साल 24 अप्रैल को अचानक देशभर में एक खबर फैली कि आईआईटी के 50 छात्रों ने एक राजनीतिक पार्टी बनाई है. समाज को सुधारने के लिए कुछ ने चमकता करियर छोड़ दिया तो कुछ ने लाखों के पैकेज वाली नौकरी. इस पार्टी का नाम था ‘बाप’ यानी बहुजन आजाद पार्टी. दावा था कि देश के सबसे टॉप संस्थान यानी आईआईटी के 50 छात्र मिलकर इसका संचालन कर रहे हैं.
अखबारों, वेबसाइटों में जहां बड़े-बड़े आर्टिकल छपे, वहीं इनके तीन नेताओं के इंटरव्यू सभी प्रमुख हिंदी, अंग्रेजी चैनलों में प्रसारित किए गए. पार्टी का मकसद था (शायद अभी भी है) मेनस्ट्रीम पॉलिटिक्स में बहुजनों को हक दिलाना. बहुजनों के नाम पर राजनीति कर रहे रामविलास, मायावती सहित अन्य स्थापित नेताओं को इन्होंने खारिज कर दिया. आज लैंप लेकर लोग इस पार्टी को ढूंढ रहे हैं. ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर कहां गायब हो गई बाप, क्या वाकई 50 आईआईटियन इसको संचालित करने के लिए आगे आए थे, इस वक्त क्या कर रही है यह पार्टी.
संस्थापक सदस्य विक्रांत ने लगाए हैं गंभीर आरोप
महज दो महीने में ही कोर मेंबर से पार्टी छोड़ने तक का सफर तय कर चुके विक्रांत वत्सल ने कई खुलासे किए. उन्होंने कहा कि 50 आईआईटियनों के द्वारा पार्टी बनाने की बात पूरी तरह झूठी थी. एक मीडिया हाउस ने इस बात को लिखा, बाकियों ने इसको प्रचारित किया. लेकिन किसी ने उसकी लिस्ट नहीं मांगी. क्रॉस चेक नहीं किया. चूंकि उस वक्त हमें प्रचार मिल रहा था, उसका जबरदस्त फायदा मिल रहा था तो सोचा कि अभी 50 आईआईटियन नहीं हैं तो बाद में हो जाएंगे, फिलहाल इस बात का खंडन करने की कोई जरूरत नहीं है. पार्टी प्रमुख नवीन कुमार के उस दावे को भी फर्जी बताया जिसमें कहा गया था कि पार्टी के मेनिफिस्टो को बनाने में आईआईटी के एल्युमिनाई आईएएस, आईपीएस ने मदद की थी.
खुद के अलग होने के बारे में उन्होंने बताया कि शुरूआत में ही पार्टी को लगभग 20 लाख रुपए चंदे के तौर पर मिले. इस पैसों से एक स्कॉर्पियो खरीदी गई, पटना में एक भव्य पार्टी ऑफिस बनाया गया. मैंने कहा कि जो लोग फुल टाइम कार्यकर्ता हैं, उनकी रोजी रोटी के लिए पार्टी एक फंड तय करे. उन्हें एक फिक्स रकम दे, ताकि वह पैसों के लिए भ्रष्टाचार न करें. इस बात को नवीन कुमार, अखिलेश सरकार और अजीत कुमार ने नहीं माना. पैसा अखिलेश सरकार के निजी बैंक अकाउंट में ही आ रहा था.
उन्होंने यह भी बताया कि एक शुभचिंतक जो बीएसपी के बिहार प्रदेश के नेता हैं, ने मदद के लिए हाथ बढ़ाया. बिहार सरकार के एक योजना के तहत एक करोड़ रुपया दिलाने की बात हुई थी. जिससे एक पेट्रोल पंप खोलने की बात कही गई थी. ताकि पार्टी के पास एक स्थाई सोर्स ऑफ इनकम बन जाए. ये पेट्रोल पंप भी नवीन, अजीत और अखिलेश में किसी एक के नाम होना था. इस वक्त कोटा में एक कोचिंग में पढ़ाने का काम कर रहे विक्रांत के मुताबिक, पार्टी के मुखिया नवीन, अखिलेश सरकार, अजीत आपस में रिश्तेदार हैं. अखिलेश नवीन के चचेरे भाई हैं, वहीं अजीत कुमार नवीन के जीजा हैं.
विक्रांत पर पार्टी कब्जाने का आरोप
अगर ‘बाप’ के फेसबुक पेज पर नजर दौड़ाएंगे तो कुछेक सदस्यता अभियान, दलितों के उत्पीड़न वाली खबरों के लिंक और अखबारों के कटिंग ही दिखाई देंगे. वह भी बिहार के सीतामढ़ी जिले में अधिकतर. क्योंकि तीनों संस्थापक सदस्यों का घर इसी जिले में है. इसके इतर एमपी, बनारस से कुछेक लोगों के जुड़ने की सूचना मात्र है. पार्टी की वेबसाइट पर जारी मेनिफेस्टो को पहली बार अपलोड करने के अलावा कभी अपेडट नहीं किया गया है. यही वजह है कि इसमें अभी तक पार्टी के पदधारियों के नाम नहीं लिखे गए हैं.
लंबे बाल और एक खास टोपी पहनकर लोगों को संबोधित करनेवाले पार्टी के मुखिया नवीन कुमार ने भी इन आरोपों पर अपना पक्ष रखा. फिलहाल अंडरग्राउंड चल रहे और एक बॉडीगार्ड की चाहत रखनेवाले नवीन ने कॉन्फ्रेंस कॉल के जरिए अपनी बात रखी और कहा कि ‘विक्रांत पार्टी पर कब्जा करना चाहते थे, इसलिए उनको बाहर कर दिया गया.
पार्टी के पास बमुश्किल चार से पांच लाख रुपए आए हैं. जिस स्कॉर्पियो की बात कही जा रही है, वह मेरे पिताजी के नाम पर है, जिसका किस्त अभी तक भरा जा रहा है. अगर अखिलेश मेरे भाई हैं और अजीत जीजा तो इसमें कुछ गलत और छुपाने वाली बात नहीं है. रही बात आईआईटी के छात्रों से जुड़ने की तो यह पूरी तरह सही है. इस वक्त 50 से अधिक आईआईटियन जुड़ चुके हैं.’ पार्टी के काम के बारे में उन्होंने कहा कि ‘कोई रैली या बड़ा आंदोलन टाइप कुछ नहीं किया जा रहा है, क्योंकि अभी काडर निर्माण के दौर से गुजर रहे हैं. पहले बेस मजबूत करेंगे, फिर मैदान में उतरेंगे.’
गांव के ही लोग छोड़ रहे हैं पार्टी
नवीन के बचपन के दोस्त और पार्टी के शुरूआती सदस्यों में शामिल रहे ललित बताते हैं कि पार्टी छोड़ने की शुरूआत उनसे ही हुई. सीतामढ़ी जिले के रीगा ब्लॉक के संग्रामफंदह गांव के रहनेवाले ये सभी लोग पहले इस इलाके में चंदा जमा कर पार्टी चला रहे थे. जिस दिन से मीडिया में बातें आई, उसके बाद काफी पैसे आए, लेकिन कभी इसका हिसाब नहीं दिया गया. इसके साथ ही हम जाति आधारित राजनीति नहीं करना चाहते थे. वह बताते हैं गांव के कई लड़कों ने अब पार्टी छोड़ दिया है.
नवीन के भाई अखिलेश सरकार बताते हैं कि यह बात सही है कि अभी तक उनके निजी अकाउंट का इस्तेमाल अभी तक फंड जमा करने के लिए किया गया है. लेकिन बहुत जल्द ही नहीं, बल्कि फर्स्टपोस्ट के माध्यम से ही अकाउंट पब्लिक करने जा रहे हैं. उन्होंने अप्रैल से नवंबर तक के अकाउंट डिटेल साझा किए. इसमें कुल 5 लाख 62 हजार 144 रुपए जमा किए गए हैं.
विक्रांत के उस दावे पर कि 50 आईआईटियन कभी शामिल थे ही नही, पर सफाई देते हुए नवीन ने कहा कि विक्रांत झूठ फैला रहे हैं. मैं आपको उन लोगों से मिलवा सकता हूँ अगर उनके आने जाने का खर्च उठा लूं तो. लेकिन उन्होंने उन लोगों के नाम और किस आईआईटी से हैं, को बताने से साफ इंकार कर दिया. उन्होंने कहा कि वो 50 लोग मीडिया के सामने आना नहीं चाहते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि किस आधार पर दावे किए गए कि 50 आईआईटियन ने मिलकर बहुजन आज़ाद पार्टी बनाई है. खैर देश की सत्ता संभालने वाली पार्टी बीजेपी जब मिस कॉल पर पार्टी सदस्य बना सकती है तो बंकियों को क्या ही कहा जा सकता है.
जिस संगठन में 50 से अधिक आईआईटियन सीधे तौर पर शामिल हों, वो क्या एक एफआईआर के डर से अपना आंदोलन बंद कर देगी? जहां वो साल 2020 में विधानसभा चुनाव लड़ने की बात कर रही हो, वहां पार्टी ऑफिस तक बंद कर देगी? (सीतामढ़ी जिले में करंट लगने से मौत हो गई थी. उसके परिजनों को मुआवजा दिलाने के लिए कुछ दिन पहने बाप पार्टी ने आंदोलन किया था, जिसमें पुलिस से झड़प होने के बाद पार्टी के मुखिया आंदोलन छोड़ पुलिस की नजर से बचते फिर रहे हैं). ऐसा क्या हो जाता है कि कभी ट्विटर पर छठे नंबर पर ट्रेंड करने वाली पार्टी के पास कोई बड़ा मुद्दा, आंदोलन, राजनीतिक योजना नहीं होगी?
कुछ और युवा शामिल हैं राजनीतिक हलचल में
यही नहीं इस वक्त बिहार में विकासशील इंसान पार्टी को काफी मीडिया कवरेज मिल रहा है. सन ऑफ मल्लाह के नाम से प्रचारित हो रहे संस्थापक मुकेश सहनी खुद को मल्लाहों का मसीहा बता रहे हैं. भीम आर्मी की बिहार इकाई कुछ एक्टिव दिख रही है. वहीं मिथिलांचल में मिथिला स्टूडेंट यूनियन नामक एक संगठन सक्रिय दिख रहा है. राजनीतिक जागरुकता के लिहाज से देखें तो मेनस्ट्रीम पार्टियों के इतर भी युवा अलग चलने को तैयार हो रहे हैं. लेकिन जिस तरह से इनका सांगठनिक ढांचा है, उससे बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं जगा रहे हैं. यही वजह है कि मुख्य राजनीतिक पार्टियां इनको महत्व नहीं दे रही. अपने लिए खतरा तो बिल्कुल भी नहीं मान रही है.
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