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नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े राजस्थान को झकझोरते हैं

राजस्थान के लिए यह आंकड़े विशेष चिंता का विषय बनते नजर आ रहे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि राजस्थान की छवि आम तौर पर एक शांत और कानून व्यवस्था के मामले में बेहतर राज्य की मानी जाती रही है

Mahendra Saini

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के सालाना आंकड़े जारी हो चुके हैं. हर साल की तरह इस बार भी अपराध का ग्राफ बढ़ता ही दिख रहा है. इस बार एनसीआरबी ने कई नए वर्गों में भी अपने आंकड़े पेश किए हैं जैसे 20 लाख से ऊपर की आबादी वाले मेट्रो शहरों के आंकड़े, जाली मुद्रा, हथियारों की जब्ती के मामले, रेलों में हुए अपराध और गुमशुदा लोगों से जुड़े आंकड़े.

हिंदी बेल्ट के राज्यों के लिए इस बार भी रिकॉर्ड शर्मनाक ही हैं. ज्यादातर वर्गों में BIMARU राज्य (बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान) ही ऊपर के पायदानों पर हैं. राजस्थान के लिए यह आंकड़े विशेष चिंता का विषय बनते नजर आ रहे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि आम तौर पर राजस्थान की छवि एक शांत और कानून व्यवस्था के मामले में बेहतर राज्य की मानी जाती रही है.


घर के अंदर राजस्थानी ‘भयंकर’

बाहर राजस्थान की जो भी छवि हो लेकिन घर के अंदर हालात भयावह हैं. राज्य के पति देश में दूसरे सबसे ज्यादा ‘क्रूर’ हैं. एनसीआरबी के आंकड़े कहते हैं कि घरेलू हिंसा के मामलों में राजस्थान दूसरे नंबर पर है. साल 2016 के दौरान राज्य में कुल 13,811 मामले दर्ज किए गए.

राजस्थान के यह आंकड़े अपराध के मामले में आम तौर पर बदनामी झेलते रहे उत्तर प्रदेश से भी कहीं ज्यादा हैं. 2016 में उत्तर प्रदेश 11,156 दर्ज मामलों के साथ तीसरे नंबर पर है. पहले नंबर पर 19,302 मामलों के साथ पश्चिम बंगाल रहा है.

एनसीआरबी द्वारा प्रस्तुत आंकड़े में राजस्थान का नाम अपराध के हर क्षेत्र में ऊंचा उभरकर सामने आया है

यह एकदम नई बात जैसा है क्योंकि आम तौर पर राजस्थानी लोग घरेलू हिंसा जैसे मामलों के लिए नहीं जाने जाते हैं. यह सिर्फ आधुनिक समय की बात नहीं है बल्कि सदियों से ऐसा ही है. जब भी राजस्थान के इतिहास, कला-संस्कृति और रहन-सहन के बारे में पढ़ते हैं तो यह जरूर देखने को मिलता है कि सामंती काल में भी महिलाओं को घर-परिवार की इज्जत के रूप में देखा जाता था.

स्त्री सम्मान की है राजस्थानी संस्कृति

राजस्थान का इलाका पुरातन काल से ही योद्धा जातियों और एतिहासिक युद्धों के कारण अधिक चर्चित रहा है. लेकिन युद्धों में भी दुश्मन पक्ष की स्त्रियों के साथ स्थानीय लोगों द्वारा हिंसा के कोई प्रमाण नहीं मिलते हैं. कबीलाई संस्कृति के बाद भी स्त्रियों को सर्वोच्च सम्मान दिया जाता रहा है.

यह स्त्री सम्मान का ही उदाहरण है कि यहां हर जाति में कुल देवता से ज्यादा कुल देवी की मान्यता देखने को मिलती है. जीण माता, करणी माता, कैला देवी, शाकंभरी, शीतला, शिला देवी, आवड़ माता, नारायणी माता के रूप में असंख्य पूज्य देवियां राज्य के गांव-गांव में मौजूद हैं.

यही नहीं, मध्य काल में भी राज्य ने मीरा बाई और अमृता बिश्नोई जैसी महिलाओं को आदर्श मानकों पर अधिक पूजनीय पाया बजाय किन्हीं पुरुष प्रतीकों के. 21वीं शताब्दी में भी राजस्थान के लोग अरुणा राय जैसी नेत्रियों पर गर्व करते हैं जिनके प्रयासों से ही सूचना का अधिकार भारतीय नागरिकों को हासिल हो पाया.

लेकिन मौजूदा समय में जबकि शिक्षा और आधुनिकता दोनों बढ़ी हैं, तब भी आधुनिक पति अपने पुरखों के उलट पत्नियों पर अत्याचार जैसे बदनाम और बेगैरत कामों में अव्वल बन रहे हैं. वो भी तब जबकि पिछले 4 साल से राज्य में महिला मुख्यमंत्री के रूप में वसुंधरा राजे एक सख्त प्रशासक की पहचान बनाए हुए हैं.

पिछले कुछ दिनों से फिल्म पद्मावती का विरोध इस बात के लिए किया जा रहा है कि यह हमारे गौरवशाली अतीत को झूठे और विकृत रूप में प्रदर्शित करती है. लेकिन हमें क्या इस पर गौर नहीं करना चाहिए कि घरेलू हिंसा के मामले और कुछ नहीं, हमारी परंपरा को वीभत्स ही कर रहे हैं. फिर दीपिका पादुकोण की नाक काट लेने जैसे फरमान देने से पहले भी क्या हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि आने वाली पीढ़ियों के लिए हम खतरनाक उदाहरण पेश कर रहे हैं.

राजस्थान के राजपूत और करणी सेना संजय लीला भंसाली पर इतिहास से छेड़छाड़ का आरोप लगाकर फिल्म पद्मावती का पुरजोर विरोध कर रहे हैं

ये सब तब है जब स्त्री सशक्तिकरण का विषय संयुक्त राष्ट्र से लेकर राज्य सरकार तक के एजेंडे में सबसे ऊपर है. धारणीय विकास लक्ष्य (SDG-2030) में इसे लक्षित किया गया है तो बीजेपी सरकार की शुरू की गई भामाशाह योजना में भी परिवार की मुखिया के रूप में घर की सबसे बड़ी महिला को ही मान्यता दी गई है. इसके बावजूद महिलाओं से लेकर समाज के हाशिए पर पड़े तबकों तक सब अत्याचार सहने को मजबूर हैं.

डराने वाले आंकड़े अभी बाकी हैं...

घर के अंदर की तस्वीर ही नहीं बल्कि बाहर के आंकड़े भी कम खतरनाक नहीं हैं. मानव तस्करी के मामलों में देश का सबसे बड़ा राज्य सिर्फ पश्चिम बंगाल से ही पीछे है. 2016 में मानव तस्करी के कुल 8057 मामले रिपोर्ट किए गए. इनमें से 17.49 फीसदी यानी 1422 मामले राजस्थान में सामने आए हैं.

अनुसूचित जाति पर अत्याचार के मामलों में उत्तर प्रदेश और बिहार के बाद राजस्थान तीसरे नंबर पर है. यहां इस तरह के कुल 5,134 मामले दर्ज किए गए, जो कि पूरे देश का 12.6 फीसदी है. अनुसूचित जनजातियों पर होने वाले अत्याचारों में तो राजस्थान सिर्फ मध्य प्रदेश से पीछे है. पूरे देश में कुल दर्ज मामलों का 18.2 फीसदी अकेले राजस्थान में देखे गए हैं.

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इसी तरह, हथियारों की बरामदगी और आर्म्स एक्ट के मामलों में भी राजस्थान टॉप-3 राज्यों में शामिल है. पिछले साल ऐसे कुल 56,516 मामले दर्ज किए गए. इनमें से उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बाद 5,757 मामलों के साथ राजस्थान तीसरे नंबर पर रहा है.

हथियारों की बरामदगी और आर्म्स एक्ट के मामलों में राजस्थान देश के टॉप 3 राज्यों में शामिल है

एनसीआरबी ने मेट्रोपॉलिटन शहरों के अपराधों को इस बार अलग से वर्गीकृत किया है. ये वो शहर हैं, जिनकी आबादी 20 लाख से ज्यादा है. इन शहरों में आर्थिक अपराध के मामलों में जयपुर सिर्फ दिल्ली से पीछे है. दिल्ली में आर्थिक अपराध के 5,942 मामले सामने आए जबकि 4,742 मामलों के साथ जयपुर इससे थोड़ा ही पीछे है.

जारी आंकड़े सोचने को मजबूर करते हैं कि आखिर हम किस दिशा में जा रहे हैं. मानव तस्करी और आर्म्स एक्ट के मामलों में प्रशासन आम तौर पर यही दलील देता है कि अंतर्राष्ट्रीय सीमा की वजह से इनका ग्राफ ऊंचा रहता है. लेकिन जिम्मेदारों को जवाब उन सवालों का भी देना चाहिए जो घरेलू हिंसा, अनुसूचित वर्गों पर अत्याचार या खुद पुलिस फायरिंग से जुड़े हैं. जाहिर है हमें हर हाल में जागना ही होगा इससे पहले कि देर हो जाए.