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26/11 हमले के 10 साल गुजर गए लेकिन 'राम भरोसे' है समुद्री सुरक्षा, फंड का नहीं हो रहा उपयोग

तटीय सुरक्षा के मामले में एक और अहम दिक्कत आड़े आ रही है. यह अलग-अलग एजेंसियों के बीच तालमेल की कमी है

Yatish Yadav

ऐसा लगता है कि कुछ नहीं करना इस दुनिया में सबसे बड़ा प्रयास है. 26/11 हमले के एक दशक बाद हमने समुद्री सुरक्षा तंत्र को चाक-चौबंद करने के लिए कुछ कोशिश तो की, लेकिन इसका अंतिम परिणाम 9 राज्यों और 4 केंद्र शासित प्रदेशों में फैले 7,516 किलोमीटर लंबे तटीय क्षेत्र को सुरक्षित करने के लिए नाकाफी नजर आ रहा है.

करीब 5 लाख में सिर्फ 2 लाख बोट रजिस्टर्ड, फंड का भी नहीं होता पूरा उपयोग


दरअसल, इस दौरान सिर्फ समुद्री ऑपरेशंस में विशेष क्षमता विकसित करने के लिए आधे-अधूरे प्रयास हुए. 26 नवंबर 2008 को पाकिस्तानी आतंकवादी हथियारों के साथ समुद्र रास्ते से बिना किसी बाधा के भारत पहुंच गए और उन्होंने मुंबई में तबाही मचा दी. इसके कई महीनों के बाद एक चौंकाने वाली घटना हुई. मुंबई सी लिंक के उद्घाटन के दौरान जून 2009 में पुलिस को उस

पेट्रोलिंग बोट का पता लगाने में तीन दिन का समय लग गया था, जिसे निगरानी संबंधी कार्यों के लिए रखा गया था.

यह काफी शर्मनाक मामला था और सीनियर अधिकारियों द्वारा इस सिलसिले में तथ्यों को गोपनीय रखा गया था, लेकिन उन्होंने आंतरिक बैठकों में साफ तौर पर बताया कि पुलिस की समुद्री क्षमता बेहद सीमित है और समुद्र में बड़े स्तर पर पकड़ बनाए रखने के लिए बेहतर प्रशिक्षण चाहिए. ऐसा लगता है कि हमने इस सिलसिले में संपूर्णता में किसी खास प्रणाली को नहीं अपनाया है और यही वजह है कि तकरीबन 4-5 लाख बोट में सिर्फ 2 लाख बोट अभी रजिस्टर्ड हैं, जबकि 26/11 के बाद केंद्र सरकार ने इसके लिए बड़े पैमाने पर जोर दिया था.

इसके अलावा, पेट्रोलिंग के लिए जरूरी पुलिस बोट की हालत भी किसी तरह से संतोषजनक नहीं है. फ़र्स्टपोस्ट को मिले दस्तावेजों के मुताबिक, पेट्रोलियम बोटों की सही समय पर मरम्मत सुनिश्चित करने के लिए सिस्टम विकसित करने की दिशा में केंद्र सरकार का गृह मंत्रालय तटीय राज्यों के साथ मिलकर काम कर रहा है. सरकार पहले ही साल 2020 तक नए बोट की खरीद के लिए 1,451 करोड़ रुपए आवंटित कर चुकी है, लेकिन पिछले कुछ साल में बजट के अधिकतम उपयोग का मामला बिल्कुल भी उत्साहजनक नहीं रहा है.

संसदीय समिति ने भी कई तरह की सिफारिश की है. सूत्रों ने बताया कि तटीय पुलिस थानों के बगल में कुल 60 मंजूर जेटी (किनारे पर बोट के रुकने के लिए जगह) में अब तक सिर्फ 23 पूरे हुए हैं और इससे जाहिर तौर पर ऑपरेशन और कार्रवाई पर बुरा असर हो रहा है. सूत्रों ने बताया, 'कुछ राज्यों ने जहां अपने पास उपलब्ध बड़े बोट के संचालन में अक्षमता जताई है, वहीं बाकी ने समुद्र में ज्यादा सक्रियता के लिए सक्षम होने की खातिर ऐसे बोट लेने की इच्छा जताई है.

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इस तरह का विरोधाभास पूरी तरह हैरान करने वाला है, क्योंकि गृह मंत्रालय ने राज्यों से सलाह के बाद ही अलग-अलग राज्यों को इन बोटों की मंजूरी दी है. यह सही है कि इस सिलसिले में मंजूर इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण में देरी हुई है, क्योंकि इस प्रक्रिया में वक्त लगता है और हमें इस काम के लिए और संसाधन उपलब्ध कराने की काफी जरूरत है.' यहां तक कि गृह मंत्रालय से संबंधित संसदीय स्थायी समिति ने पिछले साल अपनी रिपोर्ट में कहा था कि मंत्रालय इसके लिए तय समय के भीतर अहम परियोजनाओं को लागू करने में सक्षम नहीं था और इसका पूरे तटीय सुरक्षा सिस्टम पर असर पड़ना तय था.

कांग्रेस नेता और पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम की अगुवाई वाली समिति ने यह भी कहा था कि मोटर बोट की खरीद में काफी देरी हुई है. समिति ने जल्द से जल्द बोट की खरीद प्रक्रिया को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार को गंभीर प्रयास करने का सुझाव दिया था. संसद की स्थायी समिति ने कहा था, 'देश बाहरी मोर्चे पर जिस तरह की स्थितियों का सामना कर रहा है, उसमें तटीय सुरक्षा एक अहम चुनौती है. राज्यों को समुद्री पुलिसिंग और तटीय सुरक्षा के लिए फंड मुहैया कराए जा रहे हैं, लेकिन कई पूरा फंड खर्च करने में नाकाम रहे हैं, जबकि तटीय सुरक्षा स्कीम के तहत कुछ परियोजनाओं पर काम में काफी देरी हो रही है.

ऐसा लगता है कि राज्य इस चुनौती की गंभीरता या उस बड़ी जिम्मेदारी को लेकर पूरी तरह जागरूक नहीं हैं, जो उन्होंने तटीय सुरक्षा को लेकर साझा की है. राज्य सरकारों को इस मामले में संवेदनशील बनाने के लिए उनके साथ नियमित तौर पर बैठक होनी चाहिए और तटीय सुरक्षा से जुड़ी सभी परियोजनाओं की निगरानी में उन्हें केंद्र सरकार के साथ मिलकर काम करना चाहिए, ताकि हमारी सुरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाया जा सके.'

तमाम एजेंसियों के बीच तालमेल की कमी भी अहम मुद्दा

तटीय सुरक्षा के मामले में एक और अहम दिक्कत आड़े आ रही है. यह अलग-अलग एजेंसियों के बीच तालमेल की कमी है. दस्तावेजों की पड़ताल से पता चलता है कि सरकार ने हाल में इंडियन कोस्ट गार्ड, इंटेलिजेंस ब्यूरो और राज्य पुलिस के बीच मतभेद दूर करने के कार्य की जिम्मेदारी सौंपी थी. सरकार का कहना है कि तीनों पक्ष इंडियन कोस्ट गार्ड और राज्य पुलिस के बीच समन्वय की दिक्कतों के लिए समाधान तैयार करेंगे.

गौरतलब है कि भारत के समुद्री हितों और व्यापार को सुरक्षित बनाने के लिए भारतीय नौसेना प्रमुख एजेंसी है, जबकि इंडियन कोस्ट गार्ड के पास समुद्री क्षेत्रों और सामुद्रिक जोन की सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी है. मुंबई हमले के बाद इस बात को लेकर मांग की जा रही है कि तमाम संबंधित एजेंसियों और विभागों के बीच बेहतर समन्वय के लिए इंडियन कोस्ट गार्ड को गृह मंत्रालय के तहत लाया जाना चाहिए. फिलहाल यह रक्षा मंत्रालय के अधीन है. इस विकल्प की पड़ताल के लिए एक कमेटी भी बनाई गई, लेकिन रक्षा मंत्रालय ने इसी साल इस संबंध में पेश किए गए प्रस्ताव को खारिज कर दिया.

दस्तावेजों के मुताबिक, तटीय सुरक्षा को और मजबूत बनाने के लिए सरकार के पास दो विकल्प हैं- इंडियन कोस्ट गार्ड को गृह मंत्रालय के तहत लाना और विशेष तौर पर समुद्री सुरक्षा के लिए भारतीय रिजर्व बटालियन तैयार करना. दस्तावेजों में कहा गया है, 'इंडियन कोस्ट गार्ड तटीय इलाकों में काम करने वाला सक्रिय और पूरी तरह से स्थापित फोर्स है. ऑपरेशनल चुनौतियों और खतरों से निपटने में समुद्री ऑपरेशन के लिए इसके कर्मियों का बेहतर प्रशिक्षण और इसे गृह मंत्रालय के तहत लाए जाने से दोनों मंत्रालयों के बीच बेहतर समन्वय हो सकेगा.

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इसके साथ ही कोस्ट गार्ड के अधिकारों को और बढ़ाने की जरूरत है और उसे समुद्री रास्ते के जरिये घुसपैठ रोकने की पूरी जिम्मेदारी दी जानी चाहिए. इसके अलावा, उसे उथले पानी में ऑपरेट करने के लिए सक्षम बनाने, ऑनशोर और ऑफशोर ठिकानों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार बनाने और स्थानीय समुदाय से खुफिया सूचना इकट्ठा करने संबंधी अधिकार भी देने की भी बात होनी चाहिए. यह जिम्मेदारी से निपटने के मामले में आदर्श फोर्स है और इसे गृह मंत्रालय के तहत रखे जाने से इंटेलिजेंस ब्यूरो, रॉ, सीमा सुरक्षा बल, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो आदि केंद्रीय एजेंसियों और राज्य की एजेंसियों के साथ भी तालमेल और समन्वय की दिक्कतें दूर हो जाएंगी.

इंडिया रिजर्व बटालियन तैयार करने से राज्य सरकारों की क्षमता बढ़ेगी और समन्वय भी बेहतर होगा, क्योंकि इस विशेष फोर्स में स्थानीय और खुफिया के स्तर पर बेहतर संपर्क की संभावना होगी.'

2250 करोड़ से ज्यादा खर्च हो जाने पर भी समुद्री सीमाएं सुरक्षित नहीं

एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि पिछले एक दशक में कोस्ट गार्ड को मजबूत करने और तटीय पुलिस तैयार करने पर पर 2,250 करोड़ रुपए से भी ज्यादा खर्च हो चुके हैं, लेकिन अब भी देश की समुद्री सीमाएं पूरी तरह सुरक्षित नहीं हुई हैं. अधिकारी ने कहा, 'कोस्ट गार्ड की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे समुद्री तट के पास उथले पानी में काम नहीं कर सकते और पुलिस भी इस इलाके में काम करने में उतनी ही अक्षम है, जिसे उभयचरी जोन भी कहा जाता है.

समुद्री सीमा को अलग-अलग राज्यों में बांटने की बजाय इसे एक यूनिट के तौर पर माना जाना चाहिए, जैसा कि अन्य सीमाओं के मामले में किया जाता है और एक विशेष उभयचर तटीय फोर्स तैयार किया जा सकता है, जो जमीन और समुद्र दोनों में काम कर सके. अगर ऐसा नहीं होता है तो अगले 10-12 साल में भी किसी तरह का सुधार नहीं होगा.'

हमें बड़ी संख्या में एजेंसियों की जरूरत नहीं है, जिसकी बहुतायत विभिन्न पक्षों के बीच तालमेल के मामले को और जटिल बना सकती है. मौजूदा स्कीमों पर अमल के लिए तटीय सुरक्षा पर नए सिरे से जोर दिए जाने की जरूरत है जिससे मजबूत सुरक्षा तंत्र के गठन का रास्ता बनेगा.