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'एक देश एक चुनाव' के दौर में सुप्रीम कोर्ट के नए CJI के सामने क्या होंगी चुनौतियां?

अयोध्या विवाद, आधार की अनिवार्यता, दिल्ली में एलजी के अधिकार और समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने जैसे अनेक मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का पूरे देश को इंतजार है

Virag Gupta

देश के 46वें चीफ जस्टिस 3 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में कार्यभार संभालेंगे. कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद से पत्र मिलने के बाद वर्तमान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा अपने उत्तराधिकारी का नाम सरकार को भेजेंगे. प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा नए चीफ जस्टिस की नियुक्ति पर मुहर लगाई जाएगी.

CJI के लिए वरिष्ठता को दो बार नजरंदाज किया गया-


तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के दौर में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की नियुक्ति में वरिष्ठता को दो बार नजरंदाज किया गया. 13 जजों की ऐतिहासिक बेंच द्वारा केशवानंद भारती फैसले के बाद अपनी सर्वोच्चता साबित करने के लिए श्रीमती गांधी ने वरिष्ठतम जज शेलेट को दरकिनार करते हुए अप्रैल 1973 में जस्टिस रॉय को चीफ जस्टिस बना दिया था. उसके बाद एडीएम जबलपुर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 1975 में जीवन के अधिकार को सरकार के हवाले करने का प्रतिगामी फैसला दिया. इस फैसले पर असहमति जताने का खामियाजा जस्टिस एचआर खन्ना को भुगतना पड़ा.

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श्रीमती गांधी ने खन्ना को दरकिनार करके जस्टिस एमएच बेग को जनवरी 1977 में नया चीफ जस्टिस बना दिया. इमरजेंसी के दौर में सरकार द्वारा जजों की नियुक्ति में हस्तक्षेप न्यायपालिका के इतिहास में काला दौर था, जिसे अब दोहराना मुश्किल ही है.

रघु राय की इस तस्वीर में उस दौर की इंदिरा गांधी की ताकत साफ दिखाई पड़ती है.

प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद नए चीफ जस्टिस पर कयास

जस्टिस गोगोई समेत सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम जजों ने जनवरी 2018 को ऐतिहासिक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके वर्तमान सीजेआई की मंशा और कार्यप्रणाली पर असंतोष व्यक्त किया था. कानून मंत्रालय की सालाना प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब रविशंकर प्रसाद से नए चीफ जस्टिस के नाम के बारे में सवाल पूछा गया तो उन्होंने नियमानुसार नियुक्ति की बात करके जवाब को टाल दिया. जस्टिस केएम जोसेफ और कुछ अन्य जजों की नियुक्ति के दौरान वरिष्ठता के पैमाने पर विवाद हुआ था. सीजेआई की नियुक्ति में वरिष्ठता को यदि नजरअंदाज किया जाना है तो इसके लिए अन्य जजों से परामर्श और उनकी सहमति जरूरी है, लेकिन जस्टिस गोगोई की वरिष्ठता पर कोई सवाल नहीं है, इसलिए नए सीजेआई के पद पर गोगोई की नियुक्ति अवश्यम्भावी दिखती है.

जस्टिस रंजन गोगोई बनेंगे अगले चीफ जस्टिस

मेमोरेण्डम ऑफ प्रोसिजर (एमओपी) में सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए पूरी प्रक्रिया निर्धारित है. एनजेएसी मामलें में पांच जजों के फैसले के बाद जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार के लिए एमओपी में बदलाव की अनेक बातें हो रही है, लेकिन वर्तमान नियमों के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम जज को ही अगला चीफ जस्टिस बनाया जा सकता है. जस्टिस गोगोई 2012 में सुप्रीम कोर्ट के जज बने थे और 65 वर्ष के उम्र में नवंबर 2019 में चीफ जस्टिस पद से वे रिटायर हो जाएंगे.

ईमानदारी, साहस और न्यायिक अनुशासन के पक्षधर जस्टिस गोगोई

जस्टिस गोगोई अपने साहस और अनुशासन के लिए न्यायिक जगत में मशहूर हैं. सौम्या मर्डर मामले में न्यायिक फैसले की आलोचना के लिए पूर्व जज मार्कंडेय काटजू को सुप्रीम कोर्ट में तलब करने वाले जस्टिस गोगोई कानून के दायरे में सख्त फैसले लेने से भी नहीं हिचकते. उन्होंने कन्हैया कुमार मामले में एसआईटी के गठन से इनकार किया तो असम में एनआरसी के फैसले को लागू करवाकर घुसपैठियों के लिए देश के दरवाजे बंद कर दिए.

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के साथ रंजन गोगोई

नए चीफ जस्टिस के सामने चुनौतियां

अयोध्या विवाद, आधार की अनिवार्यता, दिल्ली में एलजी के अधिकार और समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने जैसे अनेक मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का पूरे देश को इंतजार है. इन फैसलों के खिलाफ किसी भी रिव्यू याचिका पर बेंच का गठन नए चीफ जस्टिस गोगोई द्वारा ही होगा. सुप्रीम कोर्ट में मुकद्दमों के पारदर्शी आवंटन और मास्टर ऑफ रोस्टर के बारे में स्पष्ट नियमों को लागू करना भी जस्टिस गोगोई के सामने बड़ी चुनौती रहेगी.

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जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार के साथ लंबित केसों पर जल्द फैसलों का पूरा देश बाट जोह रहा है. जवाबदेही बढ़ाने के लिए, सुप्रीम कोर्ट में महत्वपूर्ण मामलों की कार्रवाई के सीधे प्रसारण का कोई फैसला यदि वर्तमान चीफ जस्टिस द्वारा लिया जाता है, तो उसे व्यवहारिक तौर पर लागू करने की चुनौती भी जस्टिस गोगोई के सामने होगी.

आम चुनावों के संक्रमण काल में नए चीफ जस्टिस की भूमिका 

लोकसभा के अगले आम चुनाव 2019 में प्रस्तावित हैं. ‘एक देश एक चुनाव’ के तहत राज्यों और लोकसभा के चुनाव एक साथ कराने का फैसला यदि होता है तो उसके लिए संविधान में संशोधन करना होगा. विपक्ष शासित राज्यों में जल्द चुनाव कराने के लिए यदि विधानसभा भंग करने का फैसला हुआ, तो उन्हें सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिलना स्वाभाविक है. केंद्र और राज्यों में सरकार बदलने के इस संक्रमण काल में सुप्रीम कोर्ट के नए चीफ जस्टिस की भूमिका ऐतिहासिक रहेगी. विवादों के बगैर, नए चीफ जस्टिस की नियुक्ति पर फैसला कब होगा, इस पर अब पूरे देश की निगाह है.

(लेखक सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं.)