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जेएनयू: वीसी साहब! टैंक से नहीं दिल से आती है देशभक्ति

दरअसल जगदेश कुमार देशभक्ति को नहीं एक खास तरह की राजनीति को जेएनयू के छात्रों के बीच प्रमोट करना चाह रहे हैं

Piyush Raj

जेएनयू के वाइस चांसलर एम. जगदेश कुमार ने जेएनयू के छात्रों के भीतर देशभक्ति का भाव जगाने के लिए केंद्रीय मंत्रियों से सेना का एक टैंक मांगा है. यह मांग उन्होंने रविवार को जेएनयू में पहली बार आधिकारिक तौर पर मनाए गए ‘करगिल विजय दिवस’ के कार्यक्रम में की.

इस कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और जनरल वीके सिंह के साथ-साथ गौतम गंभीर, मेजर जनरल जीडी बक्शी और राजीव मल्होत्रा भी शामिल हुए.


अब यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है कि पिछले साल 9 फरवरी, 2016 को हुई घटना के बाद से ही जेएनयू के छात्रों के ऊपर ‘देशद्रोही’ या ‘देशविरोधी’ का टैग लगाकर इसे आम राय बनाने की कोशिश की जा रही है.

लेकिन इसका सबसे दुखद पहलू यह है कि खुद जेएनयू के वाइस चांसलर अपने इस तरह के बयानों से इस टैग को पुख्ता करने की कोशिश कर रहे हैं. जिसे अभी तक अदालत में साबित नहीं किया जा सका है उसे खुद जेएनयू के वीसी अपने बयानों के जरिए दुनिया के सामने साबित करने में लगे हैं. ये कहना गलत नहीं होगा कि इसी माहौल की वजह से अब तक 9 फरवरी की घटना की जांच कर रहे दो चीफ प्रॉक्टर अपने पदों से इस्तीफा दे चुके हैं.

जेएनयू वाइस चांसलर का कहना है कि टैंक लगाकर भारतीय सेना के जवानों की शहादत को याद दिलाया जाएगा. जो लोग जेएनयू के छात्रों को ‘देशविरोधी’ या ‘देशद्रोही’ मानते हैं, उन्हें जेएनयू वीसी की यह बात बहुत अच्छी लगेगी. वो ये तर्क भी देंगे कि अगर छात्रों को देशभक्ति सिखाई जा रही है तो इसमें गलत क्या है?

देशभक्ति नहीं झूठे प्रचार से ऐतराज 

दरअसल देशभक्ति से किसी को ऐतराज नहीं हैं. ऐतराज है तो जेएनयू के बारे में फैलाए गए झूठ को सच बनाने की कोशिश से. जिस कार्यक्रम में जेएनयू वीसी ने यह मांग रखी उसी कार्यक्रम के वक्ताओं ने बार-बार तिरंगे और सेना का हवाला दिया और इशारों और इशारों में यह भी बताने की कोशिश की गई की जेएनयू में सेना, तिरंगे और देश का अपमान किया जाता है.

इस दौरान जेएनयू के वीसी की खामोशी और फिर इसके बाद टैंक लगाने का बयान देकर कहीं न कहीं वो ये संदेश दे रहे हैं, जैसे उनसे पहले के सारे वीसी भी छात्रों के साथ ‘देशद्रोह’ किया करते थे और अब वे उन सबकी गलतियों को सुधार रहे हैं.

उन्होंने अपने कार्यकाल में हुए ‘तिरंगा मार्च’, 'वॉल ऑफ हीरोज' की जेएनयू में स्थापना और ‘करगिल विजय दिवस’ समारोह के अपने भाषण के जरिए जेएनयू अपनी इसी कोशिश को आगे बढ़ाते दिखते हैं.

जेएनयू वीसी ये सब कहते वक्त शायद जानबूझकर भूल गए कि पूर्व राष्ट्रपति केआर नारायणन भी जेएनयू के वीसी रह चुके हैं. वे यह भी भूल गए कि 26 जनवरी और 15 अगस्त जेएनयू में उनसे पहले से भी आधिकारिक तौर से मनाया जाता रहा है और तो और जिस प्रशासनिक भवन में वो काम करते हैं, उसके ऊपर बहुत पहले से तिरंगा झंडा लहरा रहा है.

यही नहीं जिन छात्रों को वो देशभक्ति सिखाने की बात कर रहे हैं उन्हीं छात्रों द्वारा चुना गया जेएनयू छात्रसंघ पिछले 4 दशकों से छात्रसंघ भवन पर 26 जनवरी और 15 अगस्त को तिरंगा फहराता रहा है. यही नहीं जेएनयू छात्रसंघ के संविधान (जिसे छात्रों ने ही बनाया है) के तहत स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस मनाना अनिवार्य है. छात्रसंघ कार्यालय में एम. जगदेश कुमार के आने से वर्षों पहले से भगत सिंह और महात्मा गांधी समेत कई राष्ट्र निर्माताओं की तस्वीर लगी है.

ये सवाल पूछना भी देशभक्ति है 

सवाल है कि क्या वीसी एम. जगदेश कुमार से जेएनयू के छात्रों को देशभक्ति सीखने की जरूरत है? जेएनयू के छात्र इसी देश के नागरिक हैं और देशभक्ति उनके भीतर भी है. बस बात यह है कि वे ऐसे सवाल करते हैं जो किसी भी सत्ता को परेशान कर देता है.

इसी वजह से जेएनयू के पूर्व छात्र होने के नाते मुझे तो यह डर है कि आर्मी टैंक लगाने के बाद छात्र ये न पूछने लगें कि ‘जर्मनी से मंगाए इस टैंक में जो पुर्जे लगे हैं वो ‘मेड इन चाइना’ कैसे हो गए?’ या ‘करगिल विजय दिवस’ पर करगिल शहीदों के लिए मंगाए गए ताबूत में हुए घोटाले पर सरकार द्वारा की गई कार्रवाई के बारे में न पूछ लें.

जेएनयू वीसी का ऐतिहासिक कार्यकाल 

यही नहीं छात्र एम. जगदेश कुमार के इस ऐतिहासिक कार्यकाल के बारे में भी पूछेंगे कि पिछले 6 महीने से फेलोशिप क्यों नहीं आई और कोई हॉस्टल क्यों नहीं बना और एमफिल/पीएचडी की सीटों में भारी कटौती कैसे और क्यों कर दी गई?

और तो और जेएनयू से पहली बार कोई छात्र (नजीब अहमद) इन्हीं के कार्यकाल में गायब हुआ और अब तक मिला नहीं. इस लिहाज से भी जगदेश कुमार का कार्यकाल ऐतिहासिक है.

अभी हाल ही में जेएनयू छात्रसंघ ने वीसी से यह भी पूछा है कि असिस्टेंट प्रोफेसर की हुई नियुक्तियों में पीएचडी कर चुके और वर्षों के शिक्षण का अनुभव रख चुके लोगों की जगह सिर्फ एम.फिल. और एम.ए की डिग्री वालों को क्यों नियुक्त किया गया?

जबकि जेएनयू एक शोध संस्थान है और यूजीसी का नियम यह साफ-साफ है कि जिनके पास पीएचडी की डिग्री नहीं है वो शोध नहीं करवा सकता. फिर ऐसे लोगों को असिस्टेंट प्रोफेसर क्यों बनाया गया जबकि योग्य लोगों ने भी फॉर्म भरे थे.

किसे प्रमोट करना चाहते हैं जेएनयू वीसी?

ऐसा लगता है कि जेएनयू के वाइस चांसलर एक खास राजनीति का हिस्सा बनकर काम कर रहे हैं न कि जेएनयू के वीसी के तौर पर. इसी कार्यक्रम में राजीव मल्होत्रा ने बड़ी खुशी से कहा कि हम ‘जेएनयू पर कब्जा’ कर चुके हैं अब हैदराबाद यूनिवर्सिटी और जादवपुर यूनिवर्सिटी पर कब्जा करना बाकी है. यह साफ है इस ‘कब्जे’ का संबंध देशभक्ति से तो कतई नहीं है बल्कि एक खास तरह की राजनीति से है.

यहां सवाल यह है कि क्या किसी संस्थान के मुखिया को इस तरह की राजनीति को प्रमोट करना चाहिए? वह भी आधिकारिक कार्यक्रम करके. दरअसल जगदेश कुमार देशभक्ति को नहीं एक खास तरह की राजनीति को जेएनयू के छात्रों के बीच प्रमोट करना चाह रहे हैं. साथ ही छात्रों की वाजिब मांगों से देश और मीडिया का ध्यान हटाने के लिए उनमें ‘देशभक्ति की कमी’ नामक खोट निकाल रहे हैं.

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