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जम्‍मू कश्‍मीर: खोदी जाएंगी 1000 कब्रें, गुमशुदा परिजनों के मिलने की बंधी आस

सरकार ने यह मान लिया है कि पूरे जम्‍मू कश्‍मीर में ऐसी सैकड़ों ‘सामू‍हिक कब्रें’ हैं, जहां दफ्न हुए लोग अभी तक पहचाने नहीं गए हैं

Ishfaq Naseem

शाहिदा फारूख़ को वो वक्‍त अच्‍छी तरह याद है जब सुरक्षा बल उनके आतंकवादी पिता को अपने साथ ले गए थे. यह एक दिसम्‍बर,1992 का दिन था जब फारूख़ अहमद खान को एक अन्‍य स्‍थानीय निवासी मुश्‍ताक अहमद लोन के साथ बांदीपोरा में उनके घर के पास घेरेबंदी में फंसा लिया गया. लोन को तो दो साल बाद रिहा कर दिया गया लेकिन खान के परिवार को अभी तक पता नहीं चला कि वे कहां हैं. वे यह भी नहीं जानते कि खान जिंदा हैं या मर चुके हैं.

1989 के बाद से जब कश्‍मीर में आतंकवाद का दौर शुरू हुआ तब से करीब 1000 युवा पिछले 28 सालों में गायब हो चुके हैं. इनमें से कई को सुरक्षा बल अपने साथ ले गए क्‍योंकि या तो उन्‍होंने आतंकवादियों की मदद की या वे फिर वे सक्रिय काडर थे, जबकि कई लोगों को आतंकवादियों से कोई ताल्‍लुक नहीं होने के बावजूद ले जाया गया.


मानवाधिकार समूह इसका जमकर विरोध करते हैं, वे इसे कश्‍मीर में ‘बलपूर्वक गुमशुदा’ का नाम देते हैं. इन समूहों ने सरकार से भी कहा है कि वह स्‍वतंत्र आयोग बनाए जो इन लोगों की मालूमात करे और उनके मारे जाने के जिम्‍मेदार लोगों को सजा दे.

हालांकि सुरक्षा बल, खासकर सेना और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) को यह शक्ति मिली हुई है कि वे लोगों को गिरफ्तार करें और मार तक डालें, यहां तक कि स्‍थानीय अदालतों में मामला चलाए जाने पर वे साफ बच निकलते हैं, तब भी परिवार जानना चाहते हैं कि मौतों की वजह क्‍या है.

शाहिदा ये नहीं जानतीं कि क्‍या उनके पिता को उसी तरह दफनाया गया है जैसा कि इस्‍लाम की रवायत है. वो कहती हैं,’मैं सिर्फ ये जानना चाहती हूं कि मेरे वालिद कहां हैं, उन्‍हें कौन निगल गया है.?’

सरकार ने माना सैकड़ों सामूहिक कब्रें, जिनकी कोई पहचान नहीं

पिछले सप्‍ताह, अपनी तरह की स्‍वीकारोक्ति में, राज्‍य के मानवाधिकार आयोग (एसएचआरसी) ने खुलासा किया कि सरकार ने यह मान लिया है कि पूरे जम्‍मू कश्‍मीर में ऐसी सैकड़ों ‘सामू‍हिक कब्रें’ हैं, जहां दफ्न हुए लोग अभी तक पहचाने नहीं गए हैं. ऐसे सामूहिक कब्रें की सूची आयोग को सौंपी गई है और उसके बाद उसने इस मामले में स्‍वत: संज्ञान ले लिया है. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और परिवारों को भरोसा है कि, इस कदम से उन खोए हुए बेटों, भाईयों और पिता की तलाश खत्‍म हो जाएगी और परिवार को उनके शव मिल जाएंगे.

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कई बरस बीत गए हैं और इस बीच जो सरकारें बनीं चाहें वो नेशनल कांफ्रेंस-कांग्रेस की हों या फिर पीडीपी-बीजेपी की, सभी ने इस मामले की अनदेखी की है. आयोग ने निर्देश दिए हैं कि जिन सामूहिक कब्रों की पहचान की गई है उन्‍हें खोदे जाने की जरूरत है और फिर मृतक के डीएनए नमूने को परिवार के किसी व्‍यक्ति से मिलान करके पता लगाया जाए कि कब्र किसकी है.  ऐसा निर्देश इसलिए भी अहम है क्‍योंकि आयोग ने सरकार से कहा है कि आदेशों का पालन किया जाए और छह महीने के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट दाखिल की जाए.

अपर सचिव (गृह विभाग) शबी हुसैन कहते हैं कि वे आयोग के निर्देशों को कम से कम समय में लागू करेंगे. उन्‍होंने कहा कि वे इस बात को भी देखेंगे कि सामूहिक कब्र के मामले में परिवारों और कार्यकर्ताओं की मांग को पूरा करने में देरी क्‍यों हुई.

इन निर्देशों से एक और युवा शब्‍बीर अहमद डार के श्रीनगर से गुमशुदा होने की गुत्‍थी भी सुलझ सकेगी. शब्‍बीर की बहन मेहनाज जान ने कहा कि उनका भाई, सन 2005 में एक शुक्रवार के रोज कश्‍मीर के कस्‍बाई इलाकों में कपड़ों की गठरी लेकर उन्‍हें बेचने गया था पर फिर कभी लौट कर नहीं आया. परिवार ने पुलिस में मामला दर्ज कराया है पर इस 25 साल के युवा का कुछ अता पता नहीं है.

लापता लोगों को ढूंढना सरकार का काम

मानवाधिकार कार्यकर्ता मोहम्‍मद अहसान उंटू ने कहा कि गुमशुदा लोगों की तादाद 10000 से अधिक है जो और यह ‘सरकार की जिम्‍मेदारी है कि वो ये उनके परिवारों को बताए कि उनके साथ क्‍या हुआ. ये सरकार की जिम्‍मेदारी है कि वो सच का पता लगाए और लंबे वक्‍त से इंसाफ की बाट जोह रहे परिवारों को राहत दी जाए.

आयोग के अध्‍यक्ष न्‍यायमूर्ति बिलाल जकी ने हाल ही जारी एक आदेश में कहा कि दो जिलों राजौरी और पुंछ में 2,080 बेनाम कब्रें हैं और सरकार को उनका डीएनए नमूना उठाने का काम करना चाहिए.

इस पर ध्‍यान दिया जाना चाहिए कि उत्तरी कश्‍मीर के बांदीपोरा, बारामुला और कुपवाड़ा में कुछ और बेनाम कब्रें हैं, इनके लिए निर्देश दिया गया है कि उन शवों की पहचान डीएनए नमूनों के जरिए की जाए. मामले की जांच के लिए एक स्‍वतंत्र निकाय बनाए जाने की दलील के जवाब में आयोग ने यह भी‍ निर्देश जारी किए हैं कि, ‘इस मामले की देखरेख के लिए विधिवत प्रतिनिधित्‍व वाले और पर्याप्‍त विश्‍वसनीय स्‍वतंत्र निकाय का गठन किया जाना चाहिए. लेकिन उंटू कहते हैं कि ये मामला 2011 से ही लटका पड़ा है और सरकार ने पहले भी यही कोशिश की है कि इसे ‘कालीन के नीचे दबा दिया जाए’.

न पिता मिले, न मुआवजा

शाहिदा ने कहा कि सरकार ने डीएनए नमूना उठाने के लिए किसी परिवार के पास जाने की पहल नहीं की है और न ही प्रशासन ने उनके आतंकवादी पिता को ‘मृत’ घोषित करके मुआवाजा देने के आयोग के पहले दिए निर्देश का पालन नहीं किया. उन्‍होंने कहा, ‘लेकिन मैं यह जानना चाहती हूं कि मेरे पिता कहां हैं. हम लोग जानते हैं कि सुरक्षा बल उन्‍हें ले गए थे. मैं उस समय बहुत छोटी थी, लेकिन इस घटना ने हमें हमेशा के लिए तकलीफ में डाल दिया गया’.

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उंटू कहते हैं कि आयोग की जांच के बाद, उत्तरी कश्‍मीर में 2,800 बेनामी कब्रों का पता लगा. उन्‍होंने कहा, ‘सरकार को इसमें अंतरराष्‍ट्रीय मानवाधिकार संगठनों, जैसे एमनेस्‍टी इंटरनेशनल या आईसीआरसी को अवश्‍य ही शामिल करना चाहिए और निष्‍पक्ष जांच के लिए उनके सामने कब्रों को खोदना चाहिए.

श्रीनगर के युवा शब्‍बीर अहमद डार की बहन मेहनाज कहती हैं कि उन्‍होंने उच्‍च न्‍यायालय का दरवाजा खटखटाया जिससे उनका मामला तो राजबाग थाने में दर्ज हो गया, पर पुलिस के कान पर जूं नहीं रेंगी. उन्‍होंने कहा, ‘इंसाफ ने हमेशा ही हमसे फासला बनाए रखा’.