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भारत के पास है चीन से निपटने की ताकत, डोकलाम पर बेवजह हायतौबा करने की जरूरत नहीं

भारत को हमेशा चौकस रहना होगा, सीमा पर अपनी ताकत और मोर्चेबंदी मजबूत करनी होगी, साथ ही हमें चीन से बातचीत के दरवाजे भी खुले रखने होंगे

Sreemoy Talukdar

डोकलाम में एक बार फिर तनाव बढ़ रहा है. मीडिया में आई खबरों के मुताबिक, चीन उस इलाके में मोर्चेबंदी मजबूत करने में जुटा हुआ है. हालांकि चीन ये काम अपनी सीमा के भीतर ही कर रहा है. मगर, ये काम वो उस जगह से बेहद करीब कर रहा है, जहां पर पिछले साल भारत और चीन के सैनिकों के बीच 73 दिनों तक तनातनी चली थी.

मीडिया में कुछ सैटेलाइट तस्वीरों के हवाले से ये दावा किया गया जा रहा है कि चीन की सेना ने उस जगह पर हेलीपैड, खंदक, निगरानी टॉवर बना लिए हैं. इसके अलावा चीन ने वहां तैनात सैनिकों की तादाद भी बढ़ा दी है. इलाके में चीन की गाड़ियों की आवाजाही भी बढ़ गई है.


द प्रिंट में रिटायर्ड कर्नल विनायक भट ने लिखा कि, 'नई सैटेलाइट तस्वीरें 10 दिसंबर 2017 को ली गई हैं. इनमें दिख रहा है कि चीन की सेना ने इलाके में मजबूत मोर्चेबंदी कर ली है. सड़कें बना ली हैं. चीन की बड़ी मशीनें और गाड़ियां इलाके में साफ दिखाई दे रही हैं'.

एनडीटीवी के विष्णु सोम ने बताया कि, 'चीन ने इलाके में बुनियादी ढांचे का विकास कभी रोका ही नहीं. भारतीय चौकी से महज 81 मीटर की दूरी पर चीन ने स्थायी ठिकाने बना लिए हैं.'

भारतीय मीडिया में आई ये खबरें गलत नहीं हैं. शुक्रवार को चीन के विदेश मंत्रालय ने अपनी ब्रीफिंग में सीमा पर निर्माण कार्य का बचाव किया और उसे जायज ठहराया. चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि सीमा पर गश्त करने और आवाजाही आसान बनाने के लिए सड़कें बनाई गई हैं. ताकि स्थानीय लोगों को भी सहूलत हो. चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि भारत इस पर ज्यादा शोर-शराबा न करे.

चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग ने कहा कि, 'चीन इस इलाके में अपने अधिकार का इस्तेमाल कर रहा है. ये बिल्कुल वाजिब है. अगर भारत अपनी सीमा के भीतर कोई निर्माण कार्य करता है, तो चीन उस पर टिप्पणी नहीं करेगा. इसी तरह चीन अगर अपनी सीमा में कोई काम कर रहा है, तो उस पर भी किसी को कुछ नहीं कहना चाहिए.'

साफ है कि चीन सिंचे ला इलाके में अपनी सामरिक स्थिति मजबूत कर रहा है. इस इलाके पर भूटान भी अपना दावा कर रहा है. सीमा पर बुनियादी ढांचे का विकास करके, सड़कें और सामरिक मोर्चे बनाकर चीन की कोशिश इलाके में यथास्थिति बदलने की है. ये चीन की सोची-समझी दबाव बनाने की नीति है. इसका जिक्र अरजान तारापोर और ओरियाना स्काइलर मास्ट्रो ने अपनी किताब, 'War on the Rocks' में किया है.

क्या है चीन की रणनीति?

दोनों लेखकों के मुताबिक चीन की ये रणनीति चार हिस्सों में बंटी है. पहला तो विवादित इलाके में बुनियादी ढांचे का विकास करके इलाके पर अपना कब्जा बढ़ाना. फिर दबाव की कूटनीति पर काम करते हुए दूसरे देशों को धमकी देना. दूसरे देशों के बर्ताव पर सवाल उठाना और इलाके पर अपना वाजिब हक जताना. इसके बाद चीन अपने सरकारी मीडिया के जरिए दुनिया भर में अपने नजरिए का प्रचार करता है.

इन बातों के मद्देनजर हमें भारत की चिंताओं पर गौर करना होगा. अब अगर ये बात साबित हो जाती है कि चीन दबाव की रणनीति पर अमल करके डोकलाम में हालात बदलना चाहता है, तो भारत को इसके जवाब में क्या करना चाहिए? चीन के इस कदम का मतलब क्या है? क्या इससे भारत की सुरक्षा को खतरा है? क्या चीन का ये कदम हमारी रणनीति को प्रभावित कर सकता है? भारत के पास विकल्प क्या-क्या हैं?

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72 दिनों की तनातनी के बाद डोकलाम में स्थिति तब बदली थी, जब चीन और भारत ने इलाके से अपने सैनिकों को पीछे किया था. भारत ने उस वक्त चीन को भूटान के इलाके में कच्ची सड़क बनाने से रोका था. इससे भारत के लिए रणनीतिक तौर पर अहम झम्पेरी रिज पर खतरा मंडरा रहा था. भारत तभी पीछे हटा था, जब चीन ने ये वादा किया कि वो विवादित इलाके में कोई नया निर्माण कार्य नहीं करेगा. क्योंकि इससे भारत के लिए अहम सिलीगुड़ी गलियारे को खतरा हो सकता है. इसके बाद दोनों देशों के सैनिक पीछे तो हटे थे. लेकिन उस इलाके से न तो चीन ने पूरी तरह से सैनिक हटाए थे और न ही भारत ने निगरानी कम की थी.

भारतीय सेना के जवान मुश्किल परिस्थितियों में भारत-चीन बॉर्डर की निगरानी करते हैं

फिर आखिर विवाद सुलझा कैसे था?

हालांकि दोनों देशों ने अपने सैनिक पूरी तरह से नहीं हटाए थे, लेकिन 2003 से इलाके में मौजूद कच्चे रास्ते को आगे बढ़ाने का काम रोक दिया गया था. इसके बाद जिस इलाके पर भारत का दावा नहीं है, वहां अपने सैनिक रखने की जरूरत खत्म हो गई थी.

जैसा कि अंकित पांडा ने द डिप्लोमैट में लिखा था कि, 'भारत की नजर में डोकलाम का विवाद इतना ही था कि चीन टोरसा नाला नदी से पश्चिम की तरफ से अपना दावा बढ़ा रहा था और इसे दक्षिण की तरफ आगे बढ़ाते हुए झम्पेरी रिज तक अपना हक जता रहा था. भारत और और भूटान दोनों ने कामयाबी से हालात अपने पक्ष में करते हुए स्थिति को 16 जून से पहले के हालात में वापस लाने में कामयाबी हासिल की थी.'

क्या है मौजूदा हालात?

अब इस बात की रौशनी में हमें ये देखना होगा कि क्या चीन ने सीमा पर मौजूदा हालात बदलने की फिर से कोशिश की है? क्या चीन ने फिर से दक्षिण की तरफ सड़क बनाई है? क्या चीन के सैनिक तनातनी वाले इलाके में फिर से आ गए हैं? इन सभी सवालों का जवाब ना है.

पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने जो निर्माण कार्य किया है, वो तनातनी वाले ठिकाने से उत्तर में किया है. इस इलाके पर चीन का लंबे वक्त से कब्जा है. हालांकि तकनीकी तौर पर ये इलाका विवादित है. इस पर अभी भारत-चीन और भूटान के बीच सीमा निर्धारित करने पर सहमति नहीं बनी है. लेकिन भारत इस मोर्चे पर तब तक कुछ नहीं कर सकता है, जब तक चीन 16 जून 2017 के बाद की स्थिति पैदा जैसा कुछ काम न करे.

विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में यही बात कही है कि डोकलाम इलाके में मौजूदा हालात में कोई बदलाव नहीं हुआ है. मंत्रालय ने कहा कि इस बारे में जो भी दावे किए जा रहे हैं, वो निराधार और गलत हैं.

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यहां ये समझना जरूरी है कि डोकलाम विवाद का खात्मा सियासी समझौते के तौर पर नहीं हुआ था. बल्कि ये एक सामरिक तनातनी थी, जो आपसी सहमति से खत्म की गई थी. जिस वजह से ये विवाद पैदा हुआ था, वो अब भी कायम है. भूटान और चीन के बीच उस इलाके की सीमा निर्धारित करने पर कोई सहमति नहीं बनी है. चीन ने अपना दावा नहीं छोड़ा है. ऐसे में ये कहना की चीन की मोर्चेबंदी से साफ है कि भारत ने अपने रणनीतिक हितों से समझौता कर लिया है, बिल्कुल गलत है. ये अफवाह फैलाने जैसा है.

लेकिन कांग्रेस ने यही दावा किया था. पार्टी के प्रवक्ता ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने सीमा की रखवाली की अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाई है. सरकार सो रही है और चीन की सेना ने सरहद पर विवादित इलाके पर कब्जा कर लिया है. कांग्रेस के प्रवक्ता ने आरोप लगाने के साथ सैटेलाइट तस्वीरें भी दिखाई थीं और कहा था कि चीन ने एक बार फिर से डोकलाम इलाके में अपने सैनिक तैनात कर दिए हैं.

कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने रणनीतिक रूप से बेहद अहम इस मसले पर शब्दों की बाजीगरी दिखाने वाला ट्वीट किया.

शायद राहुल गांधी को ये लगता है कि डोकलाम पठार भारत की सीमा में आता है. इसे उन्होंने 'धोखा-लाम' लिखा. उनका कहने का मतलब था कि डोकलाम में कोई संघर्ष विराम हुआ ही नहीं था. यहां राहुल गांधी को ये याद दिलाने की जरूरत है कि उस इलाके को लेकर चीन और भूटान के बीच विवाद है. भारत को कोई अधिकार नहीं है कि वो चीन को उस इलाके से निकल जाने को कहे. कांग्रेस का इस मसले पर व्यंग्य सिवा बड़बोलेपन के और कुछ नहीं.

लेकिन, एक अहम सवाल ये रह जाता है कि भारत को क्या जवाब देना चाहिए? भारत के पास विकल्प क्या हैं?

भारत का पलड़ा है भारी

इस सवाल के जवाब पर हमें सकारात्मक सोच के साथ विचार करना चाहिए. जैसा कि अजय शुक्ला ने इस मुद्दे पर लिखा था, 'सिक्किम वो जगह है जहां भारत, चीन पर हमला करता है, न की चीन, भारत पर.' अजय शुक्ला ने रणनीतिकारों के हवाले से बताया कि, 'अगर चुंबी वैली में सैनिकों को पहुंचाना मुश्किल है, तो उस इलाके में दुश्मन को भारतीय तोपखाने, वायुसेना और जमीनी हमले से खुद को बचाना और भी मुश्किल. इसके बाद दुश्मन के सामने भारत की मजबूत मोर्चेबंदी को तोड़ने की चुनौती होगी. इसके बाद कहीं वो हमले की सोच सकेगा. इन बाधाओं को पार करके ही चीन सिलीगुड़ी के घने जंगलों की तरफ बढ़ सकेगा. पूरे इलाके में भारत की सेना की मौजूदगी कहीं बेहतर है.'

हम ये मान भी लें कि चीन अपनी रणनीति से हम पर भारी पड़ेगा, तो भी ये बात ठीक नहीं लगती कि उस बंजर इलाके के लिए चीन, भारत पर हमला करेगा. इसके नतीजे भयानक हो सकते हैं. ऐसे दांव से चीन को कोई ठोस फायदा होने के आसार नहीं.

जाहिर है, फायदे और नुकसान के पैमाने पर पलड़ा चीन से ज्यादा भारत का ही भारी है. चीन को इससे नुकसान होना तय है.

आईपीसीएस के फेलो ओंकार मारवाह ने द वायर में लिखा कि, 'हिमालय के दुर्गम, पठारी और बंजर इलाके से जुड़े विवाद पर भूटान जैसा शांतिप्रिय देश दावा करता है. जमीन के इस टुकड़े के लिए चीन अगर युद्ध छेड़ता है, तो सुपरपावर बनने की ख्वाहिश रखने वाले चीन की इमेज को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत बड़ा धक्का लगेगा.'

इसका क्या मतलब है कि चीन की हरकतों पर भारत मूकदर्शक बना रहेगा? ऐसा बिल्कुल नहीं है. भारत को हमेशा चौकस रहना होगा. सीमा पर अपनी ताकत और मोर्चेबंदी मजबूत करनी होगी. साथ ही हमें चीन से बातचीत के दरवाजे भी खुले रखने होंगे.

रणनीतिकार बताते हैं कि उस इलाके में भारत भी लगातार मोर्चेबंदी मजबूत कर रहा है. जब भी चीन ने 3800 किलोमीटर लंबी सीमा में घुसने का दुस्साहस किया है, हमने उन्हें वापस जाने पर मजबूर किया है. हाल ही में अरुणाचल प्रदेश में चीन के सड़क बनाने वाले दस्ते को वापस जाने पर मजबूर किया गया था. चीन ने इस पर चूं तक नहीं की थी.

अगर हम डोकलाम पर शोर-शराबा मचाना बंद कर दें, तो ये देशहित में ही होगा.