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गुजरात विधानसभा चुनाव 2017: तारीख का ऐलान, शुरू हुआ शह-मात का खेल

गुजरात चुनाव की तारीख के ऐलान के साथ ही पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के लिए बेहद महत्वपूर्ण टेस्ट की शुरुआत हो गई है.

Amitesh

आखिरकार गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीख का ऐलान हो ही गया. गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए 9 और 14 दिसंबर को दो चरणों में वोट डाले जाएंगे. जबकि मतगणना 18 दिसंबर को होगी. चुनाव आयोग की तरफ से गुजरात में विधानसभा चुनाव के ऐलान के साथ ही चुनाव आचार संहिता लागू हो गई है.

चुनाव आयोग के ऐलान के बाद अब सियासी बिसात बिछने लगी है. 22 साल से गुजरात की सत्ता में काबिज बीजेपी के लिए इस बार का विधानसभा चुनाव काफी अहम हो गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह दोनों गुजरात से ही हैं. ऐसे में इस बार की लड़ाई इन दोनों के लिए भी नाक का सवाल बन गई है.


प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र मोदी 2001 से 2014 तक लगातार गुजरात के मुख्यमंत्री रहे. इस दौरान पूरे गुजरात की राजनीति मोदी के ही इर्द- गिर्द घूमती रही. मोदी के समर्थन या विरोध की राजनीति ही लगातार तेरह सालों तक गुजरात में हावी रही. लेकिन, इन सबके बावजूद नरेंद्र मोदी लगातार गुजराती अस्मिता के मुद्दे को उठाकर अपने विरोधियों को पटखनी देते रहे.

2007 के विधानसभा चुनावों के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी.साथ में चुनाव प्रचार के लिए पहुंचे लालकृष्ण आडवाणी और राजनाथ सिंह. (रायटर)

मोदी लगातार अपने-आप को विरोधियों और खासतौर से कांग्रेस के षड्यंत्र से पीड़ित बताकर गुजराती मानुष के दिलों में अपने लिए सहानुभूति बटोरते रहे. दूसरी तरफ, केंद्र की यूपीए सरकार के दस साल के कार्यकाल के दौरान भी लगातार कई मुद्दे पर उनका मतभेद भी रहा. कांग्रेस इस दौरान जितना मोदी पर हमला करती रही मोदी उतना ही मजबूत होते गए.

लेकिन, 2002 के विधानसभा चुनाव के बाद यह पहली बार हो रहा है कि मोदी गुजरात से बाहर अब दिल्ली पहुंच गए हैं. यहां तक कि मोदी के करीबी अमित शाह भी बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए हैं. कांग्रेस को लग रहा है कि मोदी बिन गुजरात में बीजेपी को दो दशक बाद अब पटखनी दी जा सकती है. कांग्रेस की पूरी राजनीति बीजेपी के विकास के मॉडल की हवा निकालकर दो दशके के एंटीइंकंबेंसी फैक्टर को भुनाने पर है.

लेकिन, कांग्रेस की इस कोशिश को बीजेपी समझ रही है. प्रधानमंत्री बनने के बावजूद बीजेपी ने मोदी को ही गुजरात में चेहरे के तौर पर सामने रखने का फैसला किया है. बीजेपी को लगता है कि गुजरात में इस बार भी लड़ाई मोदी बनाम राहुल ही रहे तो पार्टी के लिहाज से बेहतर होगा. बीजेपी एक बार फिर से विकास के साथ-साथ गुजराती अस्मिता के सहारे गुजरात की लड़ाई को जीतने में लगी है.

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उधर, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अब तक सधी हुई चाल चल रहे हैं. राहुल ने अबतक बीजेपी के विकास मॉडल पर प्रहार किया है. लेकिन, राहुल की कोशिश गुजरात में सामाजिक समीकरण को भी साधने की है. पिछले पांच सालों के दौरान गुजरात में हुए बीजेपी सरकार विरोधी चेहरों को कांग्रेस चतुराई से साधने में लगी है.

गुजरात के द्वारका में राहुल गांधी

पाटीदारों के लिए आरक्षण की मांग को लेकर चले आंदोलन के बाद हार्दिक पटेल पाटीदारों के नेता के तौर पर उभर कर सामने आए थे. दूसरी तरफ, पहले से ही ओबीसी में शामिल ठाकोर जाति से अल्पेश ठाकोर ने हार्दिक पटेल के आरक्षण की कोशिश के खिलाफ अभियान चलाया था.

अल्पेश ठाकोर भी पिछड़े तबके के नेता के तौर पर सामने आए थे. लेकिन, कांग्रेस इन दोनों विरोधी आंदोलनकारियों को भी साथ करना चाहती है. ठाकोर जाति के अल्पेश ठाकोर हाल ही में कांग्रेस में शामिल हो गए हैं. जबकि, दूसरी तरफ, हार्दिक पटेल भी लगातार कांग्रेस नेताओं के संपर्क में हैं.

इसके अलावा गुजरात के उना में दलितों की पिटाई के बाद दलितों के नेता के तौर पर उभरे जिग्नेश मेवाणी को भी कांग्रेस अपने साथ लाने में लगी हुई है. कांग्रेस की रणनीति इसी बात पर टिकी है कि इन तीनों नेताओं को साधकर पाटीदार, ओबीसी और दलितों को एक साथ साधा जाए.

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कांग्रेस को लगता है कि मोदी की गुजराती अस्मिता की काट के तौर पर अलग-अलग तबकों से आने वाले इन युवाओं नेताओं को मैदान में उतारा जाना बेहतर हो सकता है.

उधर, बीजेपी की कोशिश लड़ाई को मोदी बनाम राहुल रखने की ही है. बीजेपी को लगता है कि जब लड़ाई मोदी बनाम राहुल की होगी तो गुजरात में बाजी उसके ही हाथ लगेगी.

हालांकि बीजेपी के लिए इस बार कांग्रेस से भी तगड़ी चुनौती मिल रही है. सोशल मीडिया पर कांग्रेस की सक्रियता के चलते अब सोशल मीडिया पर चल रही इस लड़ाई में भी बीजेपी को वॉक ओवर नहीं मिल रहा है.ऐसे में गुजरात चुनाव की लड़ाई इस बार काफी दिलचस्प हो गई है.

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हालांकि, हिमाचल प्रदेश चुनाव की तारीख के ऐलान के साथ गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीख का ऐलान ना होने के बाद सवाल चुनाव आयोग के ऊपर भी उठे थे. कांग्रेस ने आयोग की निष्पक्षता को सवालों के घेरे में ला दिया था.

आलोचना के बाद चुनाव आयोग की तरफ से सफाई में कहा गया था कि गुजरात में आई बाढ़ राहत कार्य में ज्यादातर सरकारी मशीनरी और कर्मचारी लगे हुए हैं. इसलिए वक्त से पहले हिमाचल प्रदेश के साथ गुजरात विधानसभा चुनाव कराना मुश्किल होता. अगर हिमाचल प्रदेश के साथ ही गुजरात में भी चुनाव की तारीख का ऐलान हो जाता तो और गुजरात में विधानसभा चुनाव दिसंबर में ही होते तो भी चुनाव आचार संहिता चुनाव की तारीख से काफी लंबे वक्त पहले से ही लग जाती.

फिलहाल यह बहस अब पीछे छूट गई है. अब गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीख का ऐलान हो चुका है. गुजरात में फिर से राजनीतिक बिसात बिछने लगी है. सभी मोहरे एक-दूसरे को मात देने की तैयारी में लग गए है.