view all

ग्राउंड रिपोर्ट: सीएम योगी गोरखपुर त्रासदी के लिए कितने जिम्मेदार हैं?

योगी अदित्यनाथ शायद डॉक्टरों और प्रिंसिपल की बातों में आकर मुख्य समस्या को समझना भूल गए?

Ravishankar Singh

पूर्वांचल के सबसे बड़े अस्पताल बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बच्चों की लगातार हो रही मौतों पर कोहराम मचा हुआ है. इंसेफेलाइटिस बीमारी के बारे में हर कोई जानना चाहता है कि आखिर हर साल हजारों बच्चों की जानें क्यों चली जाती हैं?

इस बीमारी ने न जाने कितनी माताओं की गोद सूनी कर दी है. न जाने कितने बच्चे अस्पताल से घर लौट भी आए तो आजीवन दिव्यांगता का शिकार हो गए.


वैसे तो बिहार, उड़ीसा, झारखंड, पश्चिम बंगाल और देश के पूर्वोत्तर राज्यों के लोग इस बीमारी का शिकार होते रहे हैं. लेकिन, पूर्वी उत्तर प्रदेश में यह बीमारी हर साल महामारी के रूप ले लेती है. पिछले दस दिनों में ही गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 100 से ज्यादा बच्चों की मौत इस बीमारी से हो चुकी है.

आंकड़े क्या कहते हैं?

पूर्वी उत्तर प्रदेश में 1978 में एक साथ 528 लोगों की इस बीमारी से मौत हुई थी. उसी समय यह बीमारी सरकार की नजर में आई थी. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जनवरी 2005 से अक्टूबर 2014 के बीच पूर्वी उत्तर प्रदेश में कुल 6 हजार 370 बच्चों की इस बीमारी से मौत हो चुकी है.

1978 से लेकर अब तक यहां पर 45 हजार इंसेफेलाइटिस के मरीज भर्ती हुए और इसमें से 9 हजार 286 बच्चों की मौत हो गई. बीआरडी कॉलेज गोरखपुर में तो साल 2008 से लेकर 15 अगस्त 2017 के दिन के तीन बजे तक लगभग 5 हजार 33 बच्चों की मौत हो गई है.

पिछले 24-36 घंटे में यानी 14 अगस्त से लेकर 15 अगस्त शाम तीन बजे तक 24 बच्चों की मौत हो गई है.

ये भी पढ़ें: गोरखपुर त्रासदी: पूर्वांचल हमेशा वोटबैंक ही रहा, किसी सरकार ने समस्या दूर नहीं की

9 अगस्त से लेकर 11 अगस्त दिन के 12 बजे तक तो मौत के गले लगाने वाले बच्चों के परिजनों का साफ कहना है कि ऑक्सीजन की सप्लाई में गड़बड़ी होने से ही बच्चों की मौत हुई है. हलांकि, सरकार यह मानने को तैयार नहीं है.

मुख्यमंत्री का दौरा

यह अस्पताल प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के क्षेत्र में है. पिछली 9 तारीख को खुद मुख्यमंत्री ने इस अस्पताल का दौरा किया था. उसके बाद भी इस तरह की लापरवाही सामने आई है.

जिस दिन योगी आदित्यनाथ ने अस्पताल का दौरा किया उसके अगले दिन यानी 10 अगस्त को 23 बच्चों की मौत हुई थी. 9 तारीख की रात 12 बजे से लेकर 11 तारीख तक की दोपहर 12 बजे तक यानी की 36 घंटे में जो 30 बच्चे की मौत हुई थी, उन बच्चों की मौत पर सवाल उठ रहे हैं.

हम आपको बता दें कि ऑक्सीजन की सप्लाई 9 तारीख की रात 12 बजे लेकर 10 तारीख के 12 बजे तक बंद थी. जिस दौरान ऑक्सीजन बाधित हुई थी उस दौरान 23 बच्चों की मौत हुई थी. सबसे अधिक एनएसआईयू में 14 बच्चों की मौत हुई थी.

कॉलेज और अस्पताल प्रशासन की लापरवाही

अस्पताल में मौजूद कई परिजनों का कहना है कि अस्पताल प्रशासन कोशिश कर रही है कि 9 अगस्त से 11 अगस्त तक जितनी मौतें हुई हैं उसको इंसेफेलाइटिस की तरफ मोड़ दिया जाए. जो मौतें उन 36 घंटे में हुई है वह इंसेफेलाइटिस नहीं है. वह कॉलेज प्रशासन की लापरवाही से हुई है.

जानकार भी मान रहे हैं कि अस्पताल प्रशासन और सरकार 9 अगस्त से लेकर 11 अगस्त तक बच्चों की मौतों को इंसेफेलाइटिस की तरफ मोड़कर अपना गर्दन बचाने की कोशिश कर रही है. पिछले गुरुवार को 23 बच्‍चों की जो मौत हुई थी उसमें 7 बड़े बच्‍चे थे बाकी 3 दिन और चार दिन के थे.

ये भी पढ़ें: सालाना हजारों बच्चों की मौतों का आदी हो चुका पूरा तंत्र!

ऑक्‍सीजन सप्‍लाई करने वाली कंपनी का 68 लाख से ज्‍यादा बकाया था और कंपनी ने चेतावनी दी थी कि अगर भुगतान नहीं किया गया तो सप्‍लाई बंद कर देंगे. फिर भी भुगतान नहीं किया गया. इसकी वजह से कंपनी ने सप्‍लाई बंद कर दी.

उत्तर प्रदेश के सीएम पद का बागडोर संभालने के साथ ही योगी आदित्यनाथ चिकित्सा और शिक्षा क्षेत्रों की स्थिति सुधारने पर जोर देते आए हैं. अप्रैल में योगी सरकार ने एलान किया था कि उसने राज्य में 6 एम्स और 25 नए मेडिकल कॉलेज खोलने के लिए काम चालू कर दिया है. बीजेपी ने विधानसभा चुनाव से पहले जारी लोक कल्याण संकल्प पत्र में यह वायदा किया था.

अस्पताल ने क्या-क्या छिपाया?

गोरखपुर मेडिकल कॉलेज को सीएम पहले से ही इसको लेकर संजीदा रहे हैं. सीएम योगी यूपी के मुख्यमंत्री बनने के बाद गोरखपुर में अब तक लगभग 7 बार दौरा कर चुके हैं.

इन सात दौरों में कम से कम चार बार सीएम गोरखपुर के मेडिकल कॉलेज का दौरा किया है. क्षेत्र के सांसद होने के नाते योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर मेडिकल कॉलेज की कमियों के बारे में बखूबी जानकारी है.

11 अगस्त की घटना से ठीक पहले यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ 9 अगस्त को दोपहर 3 बजे से लेकर शाम 5.30 बजे तक लगभग ढाई घंटा बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बिताया था. इस दौरान योगी आदित्यनाथ कॉलेज के मुख्य द्वार से सीधे इंसेफेलाइटिस वार्ड पहुंचे थे.

सीएम योगी आदित्यनाथ ने वार्ड में पहुंचते ही उस समय के नोडल अधिकारी डॉ कफील खान के चैंबर में गए. वहां पर योगी आदित्यनाथ ने मास्क लगाया और आईसीयू, एनएसआईयू वार्ड में दौरा करने निकल गए.

ये भी पढ़ें: गोरखपुर त्रासदी: 'मेरा बेटा मेरे सामने तड़प-तड़प कर मर गया’

सीएम वहां इलाज करा रहे परिजनों से मुलाकात की. मरीजों से पूछा कि इलाज हो रहा है कि नहीं हो रहा है, दवाई मिल रही है कि नहीं मिल रही है, मरीजों से काफी बातचीत की और वहां की समस्या से अवगत हुए.

लेकिन, इसके बावजूद भी सीएम को वहां पर मौजूद अधिकारी या डॉक्टरों ने सही जानकारी नहीं दी. योगी आदित्यनाथ को अस्पताल प्रशासन बिल्कुल अंधेरे में रखकर साफ-सफाई और अन्य सुविधाओं के बारे में बताता रहा. योगी अदित्यनाथ शायद डॉक्टरों और प्रिंसिपल की बातों में आकर मुख्य समस्या को समझना भूल गए?

एक अखबार के संवाददाता ने फ़र्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए कहा कि जिस समय सीएम आने वाले थे उसके 20 मिनट पहले ही संतकबीर नगर जिले के एक बच्चे की मौत हो गई थी. बच्चा लगभग 13-14 दिन का था. अस्पताल प्रशासन ने 10-15 मिनट तक इस घटना पर पर्दा डालने की कोशिश की. लेकिन थोड़ी देर के बाद ही उस बच्चे को वहां से आनन-फानन में निकाल दिया गया.

जैसे ही उस बच्चे को निकाला गया वैसे ही योगी जी के आने का सिग्नल हो गया. इंसेफेलाइटिस वार्ड के ठीक सामने कुछ पुलिस वाले उस बच्चे को जल्दी-जल्दी निकालने की बात कर रहे थे. तभी मीडिया की नजर उस मृत बच्चे पर पड़ी थी. कुछ मीडिया वालों ने वीडियो भी बनाया. अगर मीडिया इस घटना को सीएम के सामने उठाती तो आज बात कुछ और होती.

वार्ड दौरा करने के बाद सीएम ने डॉ कफील अहमद खान के चैंबर में लगभग आधा घंटा बिताया. इस आधे घंटे में सीएम ने डॉ कफील अहमद खान से क्या बात की इसकी कोई जानकारी नहीं है. डॉ कफील खान के चैंबर से सीएम योगी सीधे उस समय के प्रिंसिपल राजीव मिश्रा के कार्यालय पहुंचे, प्रिंसिपल के चैंबर में भी योगी ने काफी लंबे समय तक मीटिंग किया.

मीटिंग में मौजूद अधिकारियों से सीएम ने पूछा था कि क्या कमी है. किस तरह के प्रिंसिपल हों या फिर और एचओडी कैसे होने चाहिए. कॉलेज के वित्त अधिकारी से भी कॉलेज की फंड को लेकर सवाल-जवाब किया था. वित्त अधिकारी से फंड की जरूरत पर भी बात की थी.

क्या होगी कार्रवाई?

शायद राज्य के सीएम प्रिंसिपल और मीटिंग में मौजूद अन्य अधिकारियों के बहकावे में आ गए. मूल समस्या समझ नहीं पाए. अब सवाल यह उठता है कि योगी आदित्यनाथ के दौरे के समय जिले डीएम, कॉलेज के प्रिंसिपल राजीव मिश्रा सहित राज्य के डीजीएमई केके गुप्ता भी मौजूद थे.

इन सब की मौजूदगी होने के बावजूद ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी पुष्पा सेल्स के अल्टीमेटम की बात सीएम से क्यों छुपाई गई? क्यों नहीं बकाया राशि समय पर भुगतान किया गया? क्या इन बातों का जवाब संबंधित अधिकारी के पास है?

अस्पताल को ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी पुष्पा सेल्स ने 18 रिमाइंडर लेटर मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल से लेकर स्वास्थ्य विभाग के डीजीएमई केके गुप्ता तक को लिखी थी.

इस समय भले ही राज्य के डीजीएमई केके गुप्ता पिछले कई दिनों से अस्पताल में कैंप कर रहे हों, मीडिया से पूर्व प्राचार्य राजीव मिश्रा के खिलाफ जांच की बात कर रहे हों, लेकिन क्या केके गुप्ता के खिलाफ भी सीएम को अंधेरे में रखने के आरोप में कार्रवाई नहीं होनी चाहिए?