हिंदुस्तान में गुस्से का इजहार हमेशा मौकापरस्ती ही रहा है. गोरखपुर में बच्चों की मौत पर जिस तरह लोग नाराजगी जाहिर कर रहे हैं, ये उसकी मिसाल है. जिन्हें भी गोरखपुर और पूर्वी उत्तर प्रदेश की जानकारी है, उन्हें पता है कि नेपाल से लगा तराई का ये इलाका गरीबी, बीमारी और अपराध के लिए बदनाम है. यहां पर सरकार का राज नाममात्र का ही है. हर साल यहां सैकड़ों बच्चे मर जाते हैं. देश का मीडिया चूं तक नहीं करता. बरसों से ऐसा ही होता आ रहा है.
इसकी वजह साफ है. पिछली सदी के 90 के दशक में वीर बहादुर सिंह की मौत के बाद पूर्वांचल में कोई ऐसा कद्दावर नेता नहीं हुआ, जो इस इलाके के मुद्दों पर ध्यान दे. कुछ दिनों के लिए राजनाथ सिंह यूपी के मुख्यमंत्री जरूर बने थे. मगर उनका कार्यकाल इतना छोटा था कि वो इस पर ध्यान नहीं दे सके.
पूर्वांचल के पिछड़ेपन को दूर करने की जरा भी कोशिश नहीं हुई
मुलायम सिंह, मायावती और अखिलेश यादव के राज में पूर्वांचल की पूरी तरह से अनदेखी की गई. इसके पिछड़ेपन को दूर करने की जरा भी कोशिश नहीं हुई. पूर्वांचल बस वोटबैंक बनकर रह गया, जहां नेताओं का ध्यान सिर्फ लोकसभा या विधानसभा का चुनाव जीतने के लिए जाता था. इसी अनदेखी का ही नतीजा है कि इस इलाके में हर साल मलेरिया, मेनिंजाइटिस, इंसेफेलाइटिस जैसी बीमारियों से सैकड़ों लोग मरते रहे. स्थानीय मीडिया ने भी इन खबरों को एक हद तक ही अहमियत दी.
संसद में योगी आदित्यनाथ ने कई बार पूर्वांचल की इन दिक्कतों का मुद्दा उठाया. वो बार-बार कहते रहे कि सरकार उस इलाके की अनदेखी करती है. कुछ खास इलाको को लेकर ही संवेदनशील है. मगर पूर्वांचल में बीमारियों से बच्चों की मौत रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. इसीलिए योगी आदित्यनाथ को तो इस इलाके की दिक्कतों की अच्छे से समझ और खबर है.
पहले जहां सांसद के तौर पर वो इन मुद्दों पर सरकार का ध्यान खींचते थे. वहीं अब मुख्यमंत्री के तौर पर ये उनकी जिम्मेदारी थी कि मॉनसून की शुरुआत से पहले जरूरी इंतजाम कर ऐसी मौतें होने से रोकते. उन्हें अच्छे से पता है कि जब मॉनसून का सीजन खत्म होने लगता है तो ये बीमारियां हमला करती हैं. लेकिन उनकी सरकार का बर्ताव भी उनसे पहले की सरकारों जैसा ही था.
गोरखपुर में हुई मौतों में केंद्र सरकार की लापरवाही भी साफ हो गई है. क्योंकि साल दर साल मौतें होने के बावजूद केंद्र ने भी इसे रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया.
साथ ही इस बात पर भी लोगों को ध्यान देना चाहिए जिस तरह गोरखपुर में बच्चों की मौत को लेकर अचानक पूरे देश के लोगों को फिक्र हो गई. समस्या तो पिछले चार दशकों से चली आ रही है. लेकिन तब कांग्रेस, बीएसपी, समाजवादी पार्टी का राज था. कुछ सालों तक बीजेपी ने भी राज किया. लेकिन किसी भी सरकार ने इस महामारी की रोकथाम के लिए कदम नहीं उठाया.
दूसरे दर्जे के नागरिक के तौर पर लोग रहने को मजबूर
राज्य की अफसशाही ने दिखावे के लिए कुछ कदम जरूर उठाए. वीर बहादुर सिंह के राज में भी स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार का कोई ठोस काम नहीं हुआ था. तब से लेकर अब तक गोरखपुर, देवरिया, सिद्धार्थनगर, कुशीनगर, बस्ती, बहराइच, गोंडा और लखीमपुर खीरी में लोग दूसरे दर्जे के नागरिक के तौर पर रहने को मजबूर थे.
इलाके के प्रतिनिधि भी इस मुद्दे को नाम के लिए विधानसभा या संसद में उठाते थे. उन्हें लोगों की दिक्कतों की कोई परवाह नहीं थी. कभी मुद्दा उठाया भी तो वो योगी की ही तरह खाना-पूरी करना ही रहा.
आज भी जो लोग गोरखपुर की त्रासदी पर अफसोस जता रहे हैं, वो सिर्फ ताजा घटना को लेकर है. हमारे देश में जिस तरह नीति-नियंता, बच्चों को लेकर संवेदनहीन हैं, वो बेहद शर्मनाक है.
गोरखपुर से सिर्फ 200 किलोमीटर दूर है बिहार का सारन जिला. यहीं धर्मस्थली गंडामन गांव में 16 जुलाई, 2013 को कीटनाशक मिला मिड-डे मील खाकर 27 बच्चों की मौत हो गई थी. इनमें से ज्यादातर की जान बचाई जा सकती थी अगर इलाके में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं होतीं. सारन के जिला अस्पताल में भी ऐसे हालात से निपटने के लिए जरूरी इंतजाम नहीं थे.
स्थाई हल तलाशने के बजाए कुछ फौरी कदम उठाए जाते हैं
ये घटना कुछ दिनों तक तो मीडिया की सुर्खियों में रही. फिर लोग इसे भूल गए. बिहार की हालत आज भी जस की तस है. स्वास्थ्य सुविधाओं का बुरा हाल है. समस्या तब और बढ़ जाती है जब केंद्र और राज्यों की सरकारें इस चुनौती को गंभीरता से नहीं लेतीं. इसका स्थायी हल तलाशने के बजाय किसी खास घटना के बाद कुछ फौरी कदम उठाए जाते हैं. फिर लोग भूल जाते हैं.
पूर्वी उत्तर प्रदेश और इससे लगा बिहार का इलाका बरसों से कुपोषण और महामारी की दिक्कतें झेल रहा है. यहां इन वजहों से भारी तादाद में बच्चों की मौत होती है. लेकिन किसी भी सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया और एहतियाती कदम नहीं उठाए.
इसीलिए गोरखपुर में हुए हादसे के बाद भी हालात सुधरने की कोई उम्मीद नहीं. फौरी गुस्सा और सियासी फायदे के लिए बयानबाजी के बाद ये मामला भी भुला दिया जाएगा. इसीलिए हालात बेहतर होने के लिए मोदी और योगी सरकार की तरफ से ठोस और स्थायी कदम उठाने की जरूरत होगी. ये इलाका कुदरती नेमतों से आबाद है. यहां की जमीन भी बहुत उपजाऊ है. लेकिन कुशासन और सत्ता के दलालों ने पूर्वांचल को बर्बाद कर दिया. इसकी भारी कीमत इस इलाके के बच्चों को जान देकर चुकानी पड़ी है.
इस इलाके की अनदेखी करेंगे तो बच्चों के साथ ये जुर्म होगा
अब अगर इस हादसे के बाद भी हम इस इलाके की अनदेखी करेंगे तो ये बच्चों के साथ जुर्म होगा. जुर्म सरकारों का होगा, अफसरों का होगा, नेताओं का होगा. हम 'अब चलता है' कह कर पल्ला झाड़ने के दौर से काफी आगे आ चुके हैं. अगर पीएम मोदी और मुख्यमंत्री आदित्यनाथ इस मामले को गंभीरता से लेकर स्थाय समाधान तलाशने के लिए कदम नहीं उठाते, तो वक्त उन्हें माफ नहीं करेगा.
मोदी और योगी दोनों को जरूरी कदम उठाकर पूर्वांचल को तमाम बुराईयों से मुक्त कराना होगा. ये वक्त विलाप का नहीं, ठोस कदम उठाने का है.
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