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भावुकता के नाम पर भारतीयों को कचरा जमा करना बंद कर देना चाहिए

हर दिन हमारे यहां 30 लाख ट्रक कचरा असंगठित तरीके से समुद्र में बहाया जाता है

Bikram Vohra

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, अगर हर भारतीय वास्तविकता को नहीं समझेगा तो आपका स्वच्छ भारत अभियान कभी सफल नहीं होगा. अगर वीआईपी झाड़ू उठाकर सुनियोजित फोटो-अप में शामिल होना चाहते हैं तो ऐसा हो.

प्रधानमंत्री कम से कम सही संदेश भेज रहे हैं, क्योंकि उन 20 मिनटों की व्यर्थता हर दिन शहरी भारत में पैदा होने वाले 65 हजार टन कचरे को साफ करने में बहुत काम नहीं आएगी.


इस साल जुलाई में टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगर गांवों में पैदा होने वाला कचरा भी इस आंकड़ें में जोड़ दिया जाए तो ये फिगर हर दिन एक लाख टन के करीब पहुंच जाता है. 30 लाख ट्रक से अधिक कचरा असंगठित और गंदे तरीके से हर दिन या तो समुद्र में बहाया जाता है या फिर उन लैंडफील्स में डाला जाता है, जिनमें अब और कचरा नहीं समा सकता.

एनवायरमेंटरल-एक्सपर्ट.कॉम  का कहना है कि हर दिन 40 हजार टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है. इनमें से 40 फीसदी फिर से रिसाइकल नहीं हो पाता. ये कचरा धरती की घुटन बढ़ा रहा है. रीसाइक्लेबल और डिग्रेडेबल सामग्री का चयन कर उसके भंडारण की अवधारणा है ही नहीं.

बिजनेस स्टैंडर्ड के एक सर्वे का संकेत है कि करीब 40 फीसदी कचरा पेपर का है और देशभर में इसकी परत बिछी रहती है. जहां तक ग्लास की बात है तो कम से कम 55 फीसदी जमीन के अंदर चला जाता है और सदियों तक वहीं पड़ा रहता है. इसलिए हमारे समुद्री तट किसी बड़े जोखिम से कम नहीं हैं.

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इस तथ्य पर गंभीर चिंतन की जरूरत है कि संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के मुताबिक, भारत में पैदा होने वाले खाद्य पदार्थों का कम से कम 40 फीसदी बर्बाद होकर कचरे में चला जाता है. अगर हम भूख.कॉम  पर विश्वास करें तो हर दिन 20 करोड़ से अधिक भारतीय भूखे सोते हैं. हर साल एक अरब से अधिक बैट्रियां खुले में फेंक दी जाती हैं. ये आंकड़ा और बढ़ सकता है क्योंकि फाइनेंशियल लिक्विडिटी और ईएमआई एक अरब से अधिक लोगों को आसानी से सामान उपलब्ध करा रहे हैं.

स्वच्छता मिशन की सफलता के लिए सबको सैनिक बनना होगा

ग्रीनसूत्रा.इन  के मुताबिक इन कोरोसिव पदार्थों के प्रति उदासीनता जमीन में एसिड, निकेल, कैडमियम, सिल्वर, कोबाल्ट, मरकरी और लीड की मात्रा बढ़ा रहे हैं. इससे प्राय पानी की आपूर्ति पर भी बुरा असर पड़ता है. यूएस एजेंसी फॉर टॉक्सिक सब्सटेंसेज एंड डिजीज रजिस्ट्री के मुताबिक, कैडमियम से फेफड़े खराब हो सकते हैं, किडनी की बीमारी और मौत सकती है. लेड किडनी, तंत्रिका और प्रजनन तंत्र को खराब कर सकता है. कैप्सूल और सिरप जैसी दवाइयां, पट्टी, गंदे लिनन, सैनेटरी नैपकिन जैसा बायो-मेडिकल कचरा पानी में मिल जाता है.

स्वच्छता से जुड़े तीन साल पुराने प्रधानमंत्री के नारे को गलत नहीं ठहराया जा सकता. जो लोग इसकी भी निंदा कर रहे हैं वे निश्चित रूप से दुश्मन हैं. इसे सफल बनाने के लिए, सोच में बड़ा बदलाव लाना होगा. लेकिन वो इस लड़ाई को अच्छे इरादे से नहीं जीत सकते और इसकी सफलता के लिए हम सबको सैनिक बनना पड़ेगा.

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स्वच्छता की दौड़ के इस तीसरे साल में हम कितने पिछड़े हैं? दुनिया में कचरे से बिजली बनाने के 2200 प्लांट हैं. हमारे यहां महज आठ ऐसे प्लांट हैं. तथ्य यह है कि हम लोग अव्वल दर्जे के सफाई पसंद हैं. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए हम अपने आस-पास गंदगी फैलाने से नहीं चूकते.

शहरी इमारतों का किनारा देखिए. वो सब कचरे से भरे पड़े हैं, जो सूरज में पकते रहते हैं और बरसात में सड़ते रहते हैं. औरतें अपने घर में मेहनत से सफाई के लिए पोंछा लगाती हैं और फिर उस पानी को सामने दीवार पर फेंक देती हैं. हम एक एग्जीक्यूटिव के साथ उसकी महंगी कार में जाते हैं और वो आधा खाया हुआ सैंडविच सड़क पर फेंकने के बारे में जरा भी नहीं सोचते.

इसके साथ वो एक्जिक्यूटिव सोडा की कैन भी फेंकता है जो पीछे से आने वाली कार को लगभग हिट कर देता है और उसका ड्राइवर खतरनाक तरीके से इससे बचने की कोशिश करता है. हाइवे पर एक ट्रक लदा हुआ सामान गिराता हुआ चलता है क्योंकि उसका कंटेनर टूटा हुआ है, कौन चिंता करता है?

हम अपने बच्चों को 'गदंगी' विरासत के तौर पर दे रहे हैं

हम अपनी नदियों, तालाबों और झीलों को साफ-सुथरा देखना चाहते हैं. सबसे पहले हम इसमें शौच जाना, नहाना बंद करें. इनसे संक्रमण फैलाने वाले जीवों को पनपने का भरपूर मौका मिलता है. न तो हमारे देवताओं और न ही प्रकृति ने हमसे कहा है कि हम अपने सगे-संबंधियों की राख और अस्थियों और मूर्तियों से बहते हुए पानी को गंदा करें. इस पर सोचें कि टीबी फिर लौट आया है और इसके इलाज में इन चीजों का ध्यान अनुभवजन्य सबूत के तौर पर सामने आया हैं.

थूकना, खांसना, पेशाब करना ये सब समस्या का हिस्सा हैं और प्रधानमंत्री मोदी के अच्छे इरादे मनुष्य की वादा तोड़ने की प्रकृति के सामने अस्वाभाविक है. सर्दी आते ही ठंड दूर भगाने के लिए अलाव जलने लगेंगे और इसका धुंआ हवा को और जहरीला बना देगा. दिवाली अब नजदीक है और अगले तीन सप्ताह में हमारे शहरों में पहले से खतरनाक स्तर पर पहुंचा वायु प्रदूषण और बढ़ जाएगा. इस दौरान बीमारियां तेजी से बढ़ेंगी.

गंदा पानी, प्रदूषित हवा, संक्रमित जगहें, ये सब हमारे बच्चों के लिए विरासत हैं. ये दिखने भी लगा है. युवाओं में अस्थमा पिछले दस सालों से तेजी से बढ़ रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक बच्चों में फेफड़े के दूसरे संक्रमण, इनफ्लुएंजा, मल्टीपल स्केलेरेसिस, सीने में भारीपन, न्यूमोनिया और गले से जुड़ी बीमारियां तेजी से बढ़ी हैं. एक अनुमान के मुताबिक तीन करोड़ भारतीय अस्थमा से पीड़ित हैं. कचरा किन चीजों से सबसे अधिक बढ़ता है.

हर आदमी अपने वजन का तीनगुना कचरा पैदा करता है

सब कुछ बर्बाद करने की हमारी आदत इसकी अहम वजह है. कचरा कैसे उपयोगी हो सकता है? न सिर्फ पानी और ऊर्जा लेकिन और भी बहुत कुछ. कचरे में जाने वाले खाने के बारे में सोचें. इंटरनेशल सॉलिड वेस्ट एसोसिएशन (आईएसडब्ल्यूए) के मुताबिक 2013 में प्रतिदिन प्रति व्यक्ति दो किलो से अधिक खाना बर्बाद होता था.

खाना बर्बाद करने वाले देशों में सबसे आगे चीन था. इसके बाद अमेरिका और भारत का स्थान था. एक अनुमान के मुताबिक हर व्यक्ति अपने वजन का तीन गुना कचरा पैदा करता था. इसका मतलब हुआ कि औसत 271.7 किलो कचरा तब हर व्यक्ति पैदा करता था. उपभोक्तावाद बढ़ने के बाद ये आंकड़ा और बढ़ा है.

अपने फ्रिज को खोलें और उन सामानों को देखें जो एक्सपायर हो चुके हैं. पता लगाएं कि आपने इनके लिए कितनी रकम चुकाई और कभी उपयोग नहीं किया. अचार और शरबत की आधी खाली बोतलें, दर्जनों सॉस, आइसक्रीम के कप, पनीर के सूखे टुकड़े, फफूंद लगे खीरे, सभी को फेंक दिया जाए, कितनी बर्बादी है.

कभी न पहने जाने वाले कपड़े आपके कपबोर्ड में भरे हैं. सजावटी सामान जो इधर-उधर पड़े हैं क्योंकि उन्हें कब का हटा दिया गया लेकिन फेंका नहीं गया. स्टोर रूम में धूंल फांकती किताबें जिन्हें कोई पढ़ता नहीं है, पुरानी मैगजीनें जो आसमान को छूती प्रतीत होती हैं, जिन्हें कभी खोला नहीं गया लेकिन जो सफेद चीटियों को आमंत्रण देती हैं.

मूर्खतापूर्ण जमाखोरी. दवाएं जो एक्सपायर्ड हो गई हैं, एक पत्ते में दो एस्प्रीन, जिनके उपयोग की तारीख 2013 में खत्म हो गई है. वीडियो मूवीज जो कभी वीसीआर से प्ले नहीं होंगी क्योंकि अब इनका उपयोग नहीं होता है. पुराने कंप्यूटर का स्क्रीन जो काम नहीं करता है. टूटे हुए मोबाइल फोन, टूटी हुई कुर्सियां, तीन पैरों वाला टेबल, उन चीजों से भरा सूटकेस जिनका अब कोई उपयोग नहीं हो सकता.

नहीं, किसी एक दिन इन चीजों की आपको जरूरत नहीं होगी. नहीं, इनका भावुक मूल्य नहीं है.

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