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डोकलाम में तनातनी और सारनाथ में हिंदी-चीनी, भाई-भाई

तल्‍खी में भी वाराणसी से सटे सारनाथ में चीनी पर्यटकों और स्‍थानीय लोगों के बीच आत्मीयता और परस्‍पर सहयोग का माहौल है

Shivaji Rai

गौतम बुद्ध से उनके प्रिय शिष्‍य आनंद ने पूछा, क्‍या युद्ध में शांति संभव है? तथागत ने मुस्‍कराते हुए कहा, क्‍यों नहीं… मन तटस्‍थ हो, हृदय में धर्म का अवलंबन हो और मन में भक्ति का भाव हो तो युद्ध में शांति सहज संभव है.

भूटान के डोकलाम को लेकर चीन और भारत के बीच युद्ध जैसे हालात हैं. दोनों देशों की सेना आमने-सामने हैं. चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्‍ता वू कियान बार-बार भारतीय सेना को पीछे हटने की और युद्ध की धमकी दे रहे हैं. ऐसी तल्‍खी में भी वाराणसी से सटे सारनाथ (तथागत बुद्ध की प्रथम उपदेश स्थली) में चीनी पर्यटकों और स्‍थानीय लोगों के बीच आत्मीयता और परस्‍पर सहयोग का माहौल है. यहां हिंदी-चीनी भाई-भाई का भाव मजबूती से कायम है.


सारनाथ में चीनी पर्यटक 

डोकलाम सीमा पर तनातनी के बावजूद न यहां आने वाले चीनी पर्यटकों की संख्‍या कमी आई है और ना ही बौद्ध मंदिरों में उनके अनुदान में कोई गिरावट आई है. अधीक्षण पुरातत्वविद भारतीय सर्वेक्षण सारनाथ मंडल कृष्णचंद्र श्रीवास्तव बताते हैं कि सीमा पर माहौल जो भी हो, यहां भारतीयों और चीनी पर्यटकों के बीच हमेशा भाईचारा और परस्‍पर सहयोग बना रहता है. यही वजह से दूसरे बौद्ध अनुयायी देशों के पर्यटकों की तरह ही चीनी पर्यटकों का खिंचाव भी यहां के प्रति कभी कम नहीं होता है.

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कृष्‍णचंद्र श्रीवास्‍तव बताते हैं कि चीनी पर्यटक सिर्फ यहां दर्शन-पूजन ही नहीं करते बल्कि यहां की बौद्ध धर्म से जुड़ी धरोहरों को सुरक्षित और संरक्षित करने के लिए अमूल्‍य सुझाव भी देते हैं. सारनाथ संग्रहालय के रखरखाव में जुटे कर्मचारियों का भी कहना है कि सिंह शीर्ष, धर्म चक्र, प्रवर्तन मुद्रा में बुद्ध ततः और बुद्ध मस्तक की कलाकृतियों के प्रति चीनी पर्यटकों का लगाव देखने लायक होता है.

सांस्कृतिक आदान-प्रदान का प्रतीक है यह चाइनीज मंदिर 

भारत-चीन युद्ध को अपवाद मान लें तो पुरातन आंकड़े भी बताते हैं कि संस्‍कृति, दर्शन पर सीमा की तल्‍खी का कभी प्रभाव नहीं रहा. तनातनी के दौरान भी यह निर्बाध जारी रहा है. साल 1939 में सारनाथ भ्रमण पर आए चीन के फूकियन के रहने वाले श्रीयुट्ली चूं सैंग ने यहां बौद्ध चाइनीज मंदिर का निर्माण करवाया था. इस मंदिर में चाइनीज और थाई शैली में बनी भगवान बुद्ध की तीन मूर्तियां हैं. उस दौर में भी मंदिर के निर्माण के लिए चीन के भक्तों ने दिल खोलकर चंदा दिया था.

चीन की ब्रुसनी आर्ट शैली में बने इस मंदिर को देखने से ही इसका स्‍वतः प्रमाण मिल जाता है. आज भी इस मंदिर की रखरखाव की पूरी जिम्‍मेदारी चीनी भक्‍त ही संभालते हैं. चाइनीज मंदिर सारनाथ के भंते कुल कुमार प्रदीप बताते हैं कि मंदिर के निर्माण भी चीनी भक्‍तों ने सिर्फ दान ही नहीं दिया बल्कि चीनी कारीगरों ने यहां वर्षों रूककर मंदिर का निर्माण किया और आज भी चीनी भक्‍तों की श्रद्धा में कोई कमी नहीं दिखाई देती है.

बौद्ध गलियारे का चीनियों ने किया था स्वागत 

वाराणसी जिले के पुराने गजट भी बताते हैं कि आजादी के पहले भी बड़ी संख्‍या में  चीनी यात्री सारनाथ आया करते थे. चीनी यात्री ह्वेन त्सांग का पांचवीं शताब्दी में सारनाथ का भ्रमण तो सर्वविदित है.

बीते साल सरकार ने जब बजट में भगवान बुद्ध से जुड़े पर्यटन स्‍थलों को विकसित करने की घोषणा की थी, जिसमें सारनाथ-गया-वाराणसी बौद्ध गलियारा विकसित करने का प्रस्‍ताव था तो उस प्रस्‍ताव का सारनाथ आए चीनी पर्यटकों ने दिल खोलकर स्‍वागत करते हुए पीएम के प्रति आभार जताया था.

सारनाथ की आबोहवा को देखकर ये सहज स्‍वीकार्य हो जाता है कि 'बुद्धं शरणं गच्छामि' के उच्‍चारण के बाद हिंसा और असत की जगह नहीं बचती. वसुधैव कुटुंबकम् की भावना अंकुरित हो जाती है. यही वजह है कि यहां युद्ध में भी शांति सहज सध रही है..!

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