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नशामुक्ति: अंतर विभागीय समिति बनी, अब जोर जागरूक करने और हुनरमंद बनाने पर

स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन के ओएसडी के रूप में पिछले डेढ़ साल से काम कर रहे शालीन मित्रा ने नशे की समस्या पर केंद्रित ऋंखला के सिलसिले में फर्स्टपोस्ट से बात की और दिल्ली सरकार की व्यापक योजना के बारे में जानकारी दी.

Pallavi Rebbapragada

स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन के ओएसडी (ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी) के रूप में पिछले डेढ़ साल से शालीन मित्रा राजधानी में नशे की समस्या के आकलन और समाधान के मसले पर विभिन्न पक्षों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. दिल्ली में फैल रही नशे की समस्या पर केंद्रित श्रृंखला के सिलसिले में उन्होंने फर्स्टपोस्ट से बात की और दिल्ली सरकार की व्यापक योजना के बारे में जानकारी दी.

साल 2017 की शुरुआत में सरकार ने समस्या की जटिलता को स्वीकार करते हुए एक अंतर विभागीय समिति बनाई. समिति में समस्या से ताल्लुक रखने वाले अलग-अलग पक्ष जैसे कि दिल्ली पुलिस, नारकोटिक्स ब्यूरो, सामाजिक कल्याण तथा महिला एवं बाल विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं श्रम विभाग के सदस्य, इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड अलायड सायंसेज और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान(एम्स) के डाक्टर, सेव द चिल्ड्रेन और सलाम बालक ट्रस्ट तथा दिल्ली के तीन नगरनिगमों को शामिल किया गया.


इसके बाद एम्स तथा महिला एवं बाल विकास विभाग ने साथ मिलकर 2016 में एक सर्वेक्षण किया. 2017 के मार्च में फ़र्स्टपोस्ट ने सर्वेक्षण के निष्कर्षों के बारे में एक लंबी स्टोरी छापी जिसमें दिल्ली की सड़कों पर रहने वाले 70 हजार नशेड़ी बच्चों का खास जिक्र था.

एम्स के परामर्श के आधार पर दिल्ली के 159 इलाकों में एक व्यापक सर्वेक्षण जल्दी ही शुरू किया जाएगा. तथ्यगत जानकारियों का अभाव जरूर है लेकिन इससे योजना शुरू करने में हमें कोई बाधा नहीं आ रही.

दिल्ली सरकार ने नशामुक्ति की क्षमता में इजाफा करने की कोशिशें शुरू कर दी हैं और इन कोशिशों के तहत दिल्ली सरकार के छह अस्पतालों में हरेक में पांच बेड खास तौर से नशामुक्ति की सुविधाओं के साथ आरक्षित रखे गए हैं. इसके अतिरिक्त दीपचंद बंधु अस्पताल में 30 बेड वाला नशामुक्ति का एक सुविधा-केंद्र बनाया गया है.

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माननीय उप-मुख्यमंत्री ने हाल में दिल्ली के पहले आवासीय नशामुक्ति होम का उद्घाटन किया, यह होम सिर्फ लड़कियों के लिए बनाया गया है और इसे दिल्ली गेट के नजदीक दिल्ली अर्बन शेल्टर इम्प्रूवमेंट बोर्ड के हाथों संचालित किया जा रहा है. चूंकि नशे का उपचार पूर्ण रूप से स्वैच्छिक होता है सो उपचार के दौरान नशा छोड़ने के कारण मरीज कुछ ऐसी बेचैनी महसूस करता है कि दोबारा नशे की आदत पकड़ने को लेकर उसके बारे में आशंका बनी रहती है.

इस वजह से उपचार के दौरान नशेड़ियों की देखभाल के लिए उन लोगों को रखा गया है जो स्वयं नशे के आदि रह चुके हैं और अब अपनी इस आदत से उबर रहे हैं. ऐसे केयरटेकर जानते हैं कि नशामुक्ति का उपचार करा रहा मरीज किन परेशानियों से गुजरता है सो वे नशे की लत छोड़ने के लिए संघर्ष कर रहे लोगों के लिए उपचार की लंबी अवधि के दौरान एक मनोवैज्ञानिक सहारे के रूप में काम कर सकते हैं.

बहरहाल, उपचार के दौरान 5-6 दफे फिर से नशे की आदत पकड़ लेने वाले नशेड़ियों की तादाद बहुत ज्यादा है लेकिन सौभाग्य से एल्कोहल एनोनिमस और नारकोटिक एनोनिमस नाम के सहायता समूह मौजूद हैं और ये निशुल्क सहायता प्रदान करते हैं. सहायता के दौरान ये समूह उपचार करा रहे नशेड़ी और उसके परिवार-जन की मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक जरुरतों का ध्यान रखते हैं. नीति निर्माताओं से हमारा निवेदन है कि वे इस मसले को सार्वजनिक स्वास्थ्य पर मंडराते एक खतरे के रूप में देखें, इसे सिर्फ मनोरोग भर ना मानें.

नशे की समस्या का रिश्ता किसी एक विभाग से नहीं है सो वक्त की जरूरत को भांपकर दिल्ली सरकार तमाम पहलुओं जैसे कि नशा-निवारण, हानिकारक असर में कमी, नशे की वस्तुओं की आपूर्ति में कमी, नशे की वस्तुओं की मांग में कमी या पुनर्वास को ध्यान में रखते हुए इनके समाधान के गरज से एक विशेष सोसायटी की संकल्पना के साथ सामने आ रही है.

किसी भी अन्य राज्य ने दिल्ली की तरह खास मकसद वाला ऐसा समाधान प्रस्तुत नहीं किया है. रणनीति के मामले में दूसरे राज्यों से दिल्ली का एक और बड़ा अंतर यह है कि दिल्ली में बहुसंख्यक आबादी जो नशे की गिरफ्त में नहीं है, उस पर ध्यान दिया जा रहा है.

इसके लिए जमीनी स्तर पर निवारण के अनेक अभियान चलाए जा रहे हैं. मिसाल के लिए दिल्ली के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के साथ मिलकर कुछ अभियान शुरू किए गए हैं. इन अभियानों के तहत छात्रों को नशे की आदत के हानिकार प्रभाव के बारे में जानकारी दी जाती है और उन्हें मसले के बारे में संवेदनशील बनाया जाता है, यह बताया जाता है कि सिगरेट और शराब पीना क्यों नुकसानदेह है. ध्यान देने की बात है कि राहुल द्रविड़, प्रतीक बब्बर, रघु-राजीव तथा गुल पनाग जैसे सेलिब्रेटिज ने अभियान में हिस्सेदारी की है.

विश्वविद्यालय और कॉलेज परिसर के बाहर-भीतर संदेश का प्रसार करने के साथ-साथ दिल्ली विश्वविद्यालय में सक्रिय रंगकर्म के समूह (ड्रामेटिक सोसायटीज) संदेश को व्यापक समाज तक पहुंचाने में हमारी मदद कर रहे हैं. रंगकर्म के इन समूहों के साथ मिलकर हमने कई नुक्कड़-नाटक तैयार किए हैं और इन नाटकों को सामुदायिक शिक्षा तथा संवेदीकरण अभियान का हिस्सा बनाया गया है.

सरकार ने नशे की गिरफ्त में आने की सबसे ज्यादा आशंका वाले समुदायों के बीच जहां नशेबाजी का प्रचलन ज्यादा है, एक हजार से ज्यादा नुक्कड़ नाटक करने की योजना बनायी है. आगे के दिनों में दिल्ली सरकार के स्कूलों में एक बड़े आयोजन के तहत छात्रों को तंबाकू, शराब और मादक-पदार्थों के खिलाफ संवेनशील बनाने की कोशिश की जाएगी. एक बार इस तरह की सोसायटीज बन जायें तो नशे के निवारण, पुनर्वास तथा नशे की लत से मुक्त हो चुके व्यक्ति की समाज में पुनर्वासी का काम वे खुद करेंगी.

दिल्ली की एक झुग्गी बस्ती के बाहर दिल्ली विश्वविद्यालय के शिवाजी कॉलेज के छात्र नुक्कड़ नाटक कर रहे हैं

फिलहाल यमुना पुश्ता और आईएसबीटी, कश्मीरी गेट के इलाके में एक विशेष अभियान की शुरुआत की गई है. इस अभियान के तहत नशे की लत के शिकार होकर सड़कों पर बेसुध पड़े रहने वाले लोगों को इस आदत से छुटकारा दिलाकर बड़ी संख्या में उनका पुनर्वास किया जाएगा. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता में एक बैठक हुई है. बैठक में दिल्ली सरकार के ड्रग्स कंट्रोल डिपार्टमेंट और दिल्ली पुलिस के अधिकारियों समेत मसले से जुड़े कई पक्षकार(स्टेकहोल्डर्स) मौजूद थे. राष्ट्रीय कौशल विकास निगम तथा विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ मिलकर एक विस्तृत योजना का खाका तैयार किया गया.

इसमें उपचार और नशामुक्ति की रणनीति के अतिरिक्त नशे की लत से उबरने वाले लोगों को हुनर सिखाने, आधार-कार्ड देने और बैंकों में उनका खाता खोलने जैसे उपायों को शामिल किया गया है. यह अपने किस्म का पहला प्रयास है जिसे दिल्ली सरकार ने शुरू किया है और हमारा विश्वास है कि जो लोग नशे की लत के शिकार हैं उनके लिए यह जीवन को बदल देने वाला प्रयास साबित होगा.

स्वास्थ्य सुविधाओं के जरिए नशे की लत के शिकार व्यक्ति के पुनर्वास की एक विकेंद्रित योजना और बनाई गई है. इस योजना के अंतर्गत वयस्क, बच्चे तथा महिलाओं को अलग से बुनियादी ढांचा मुहैया कराया जाएगा ताकि वे खुद अपना उपचार कर सकें और नशे से बचकर रहें. समाज को अपराध और नशा मुक्त रखने के ऐतबार से नागरिकों का सतर्क होना बहुत जरूरी है.

यह एक सच्चाई है कि नशे और अपराध का चोली-दामन का साथ है. कोई आधिकारिक आंकड़ा तो मौजूद नहीं है लेकिन जिन स्रोतों पर हमारा विश्वास है उनके मुताबिक दिल्ली के विभिन्न जेलों में मौजूद 80 फीसद विचाराधीन कैदियों का कहना है कि वे रोजाना शराब पीते हैं या फिर किसी ना किसी नशे की चीज का सेवन करते हैं. एफआईआर दर्ज करते समय अगर आरोपी व्यक्ति की स्थिति के बारे में पुलिस अधिकारी ब्यौरे दर्ज करें तो ठीक-ठीक आंकड़ा बताया जा सकता है.

नशे की लत के शिकार लोगों के मसले से जुड़े मौजूदा कानूनों में भी कुछ विरोधाभास है. इन कानूनों में निर्देश है कि पुलिस किसी नशेड़ी व्यक्ति को पकड़कर जेल में डाल दे, यह नहीं कहा गया कि नशे की लत के शिकार व्यक्ति को उपचार मुहैया कराया जाएं. नशे की चीजें बचेने वाले अक्सर खुद भी जीवन को भारी नुकसान पहुंचाने वाले नशे की गिरफ्त में होते हैं. पुलिस ऐसे व्यक्तियों को इस भय से भी नहीं पकड़ती कि कहीं हिरासत में इनकी मौत ना हो जाए.

अब वक्त आ चुका है जब हम नशे के चंगुल से अपने नौजवानों को बचाएं और उनके इर्द-गिर्द एक हिफाजती नेटवर्क तैयार करें. यह नेटवर्क ऐसे ढांचे को खड़ा करके तैयार किया जाए जिसके सहारे नौजवान जिंदगी जीने के ज्यादा उत्पादक और सेहतमंद तरीकों के अपना सकें और उन्हें एक हिफाजती जीवन-परिवेश हासिल हो. बहुत संभव है अपने संगी-साथियों तथा परिवार में उन्हें ऐसा परिवेश नहीं मिलता हो. दरअसल यह नशे के लत की शुरुआती उम्र को घटाने में सबसे ज्यादा सहायक कारण है.

दिल्ली सरकार यमुना बाजार और पेटी मार्केट में नशे की लत की आशंका वाले किशोरों के बीच एक पायलट कर रही है. यहां नियमित रीति से कई घंटो तक दी जाने वाली प्रेरक राय-सलाह, नशामुक्ति और स्कूली जिंदगी से फिर जोड़ने जैसे उपायों के सहारे यंग चैंपियन बनाए जाएंगे. विभिन्न गतिविधियों, खेल तथा संगी-साथियों से हासिल सहायता के रूप में इन किशोरों को जिंदगी चलाने के लिए जरूरी सारे हुनर सिखाए जाएंगे.

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सेव द चिल्ड्रेन के साथ शुरू की गई ऐसी ही एक पहल नशे की लत के शिकार किशोरों का स्वभाव बदलने में ना सिर्फ कामयाबी हुई बल्कि ऐसे किशोर गर्वीले नागरिक बनकर उभरे हैं. इन किशोरों को आरटीआई की अर्जी लगाना सिखाया गया है और बताया गया है कि जब उनके अधिकारों का हनन हो रहा हो तो किन अधिकारियों से उन्हें संपर्क करना चाहिए. नशे की लत के शिकार किशोरों को भावनात्मक तथा शारीरिक रूप से काबिल बनाने के लिए स्वास्थ्य, साफ-सफाई, यौन-व्यवहार, मानसिक स्वास्थ्य तथा हर लिंग के लोगों के साथ समानता के बरताव जैसे मुद्दे पर जागरुक बनाया गया है.

इसी क्रम में अंतर विभागीय समिति ने फैसला किया है कि सभी एन्फोर्समेंट (प्रवर्तन) एजेंसीज चाहे वह दिल्ली पुलिस हो या फिर नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो या फिर ड्रग कंट्रोलर— मसले पर साथ मिलकर काम करेंगी और समेकित प्रयासों के जरिए पहले की तुलना में ज्यादा तादाद में छापामारी की जाएगी. रणनीतियां तय करने के लिए सभी एजेंसियां महीने में एक से ज्यादा दफे आपसी बैठक करेंगी.

दिल्ली सरकार के हम सभी लोगों का विश्वास है कि हमारे सारे प्रयास ज्यादा से ज्यादा विकेंद्रित और समुदाय-आधारित होने चाहिए न कि केंद्रीकृत और राज-आधारित. नशे की लत के शिकार होने की सबसे ज्यादा आशंका वाले समुदायों के बीच मोहल्ला क्लीनिक चलाने की योजना पर भी विचार किया जा रहा है जो ओपिऑयड सब्स्टीच्यूशन थेरेपी (ओएसटी- इस उपचार में किसी एक भारी नशे जैसे कि हिरोइन की लत के शिकार व्यक्ति को हल्के नशे की खुराक देकर ठीक किया जाता है) जैसी सुविधा फराहम करेगी.