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'बवाली-विश्वविद्यालयों' की नींव दिल्ली पुलिस की लापरवाही की बदौलत पड़ी!

अगर समय रहते दिल्ली पुलिस का अलर्ट खुफिया तंत्र बाबा को बाहर ले आया होता, तो दिल्ली पुलिस पब्लिक की नजर में निशाने पर नहीं होती

Sanjeev Kumar Singh Chauhan

खुद को भगवान साबित करे बैठा कथित बाबा वीरेंद्र देव दीक्षित स्कॉटलैंड पुलिस की स्टाइल पर काम करने वाली दिल्ली पुलिस की करीब 80 हजार फोर्स और उसके खुफिया तंत्र पर भारी साबित हो गया.

इस दिल्ली में 13 रेंज और हर रेंज में तीन जिले हैं. पता चला है कि दिल्ली के रोहिणी इलाके सहित राजधानी में बाबा के 8 कथित मठ (ढोंग के अड्डे या आश्रम) चल रहे हैं. बाबा ने आध्यात्मिक विश्वविद्यालय भी खोल लिया. अब तक सामने आए तथ्यों से तो यही साबित हो रहा है कि ऊंची मजबूत चार-दीवारी के अंदर बाबा कई साल से तांडव मचा रहा था. मामला ब-रास्ता दिल्ली हाईकोर्ट होते हुए केंद्रीय जांच ब्यूरो (देश की इकलौती सबसे बड़ी, अनुभवी मानी जाने वाली एकलौती जाँच एजेंसी सीबीआई) के हाथों में पहुंचा दिया गया. यह सब तमाशा होने या फिर पूरा ड्रामा सामने आने तक बेचारी दिल्ली पुलिस दम साधे बैठी रही.


दिल्ली पुलिस की नाक के नीचे हो रहा था काम

इस हद के खुराफाती दिमाग बाबाजी दिल्ली पुलिस की ही छत्रछाया में 'मौज' करके कई साल से दिल्ली की सरज़मीं पर पल-पोसकर खा-कमा रहे थे. स्कॉटलैंड पुलिस के स्टाइल पर काम करने वाली स्मार्ट दिल्ली पुलिस को इतने 'कामयाब' और तिकड़मी बाबा जी की भनक तक न लगी हो, यह तथ्य आसानी से गले नहीं उतरता है.

दिल्ली पुलिस की कार्यप्रणाली पर एक अदद ढोंगी बाबा ने सौ-सौ सवाल खड़े कर दिए हैं. मसलन राजधानी क्षेत्र में बाबा के तकरीबन 8 शोषण-आश्रमों का खुलासा हुआ है. देश के कई अन्य राज्यों में भी बाबा ने अड्डे बना रखे थे. बात जब पुलिस की कार्यप्रणाली की आती है तो फिर, हम हरियाणा और उत्तर-प्रदेश की पुलिस को भी सवालों के घेरे में लाने से नहीं छोड़ सकते हैं.

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दिल्ली पुलिस बाबा ने कटघरे में सबसे पहले इसलिए लाकर खड़ी कर दी है क्योंकि उत्तर प्रदेश के बाद सबसे ज्यादा फोर्स दिल्ली पुलिस की ही है. खर्चे-पानी के लिए केंद्र सरकार सर्वाधिक सालाना बजट भी दिल्ली पुलिस की ही झोली में परोसती है. ताकि राजधानी में कानून-व्यवस्था किसी भी कीमत पर बर्बाद न हो. सप्ताह भर से देश और दिल्ली में एक अकेले बाबा को लेकर मचे बवाल ने यह साबित कर दिया है कि दिल्ली पुलिस के पास मौजूद तमाम संसाधनों और मोटे बजट के ऊपर एक अदद अदना सा बाबा पालथी मारकर बैठा रहा और पुलिस सोती रही.

बाबा सामने आया तो दिल्ली पुलिस पर भी चर्चा होने लगी. वरना बाबा और दिल्ली पुलिस चुपचाप अपना-अपना काम कर रहे थे. न बाबा को दिल्ली पुलिस और कानून की परवाह थी. न ही पुलिस को अदना से बाबा से कोई लेना-देना. वो तो भला हो पीड़ित लड़कियों के किसी परिवार वाले का. जिसने दिल्ली हाईकोर्ट के रास्ते सीबीआई के जरिये बाबा और दिल्ली पुलिस नींद में खलल डालने की जुर्रत कर डाली.

केंद्र की ओर से मिली 'सोर्स मनी' का क्या करती है दिल्ली पुलिस?

यहां मकसद यह कतई नही हैं कि दिल्ली पुलिस को निशाने पर लेना है. अगर समय रहते दिल्ली पुलिस का अलर्ट खुफिया तंत्र बाबा को बाहर ले आया होता, तो दिल्ली पुलिस पब्लिक की नजर में निशाने पर नहीं होती. जबसे बाबा के कर्मकांड की कुंडली सीबीआई और बाकी राज्यों की पुलिस ने खोलकर पढ़नी शुरू की है, दिल्ली पुलिस तो तभी से 'बेचारी' सी दिखाई दे रही है. उल्लेखनीय है कि इतने बड़े स्तर पर फ्रॉड-बाबा के अड्डों के बारे में अंदरुनी जानकारियां जुटाने की जिम्मेदारी तो दिल्ली पुलिस के खुफिया तंत्र की थी.

कहते हैं कि कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं. पुलिस के आगे भूत भी भागते हैं. बाबा जी के इस घिनौने खेल में न तो कानून (दिल्ली पुलिस) के हाथ लंबे दिखाई दिए, न ही दिल्ली पुलिस के नाम से बाबा जी को कभी पसीना आया. इसी का नतीजा रहा है कि देश की राजधानी में ही बाबा ने धीरे-धीरे आठ अड्डे तैयार कर लिए और दिल्ली पुलिस का खुफिया तंत्र करोड़ों की मोटी 'सोर्स-मनी' (मुखबिर तंत्र से खुफिया जानकारियां जुटाने के बदले उसे दी जाने वाली राशि/ बजट मतलब सोर्स मनी) पर गुलछर्रे उड़ाता रहा.

बाबा पर अब मच रहे बबंडर को देखकर तो यही लगता है कि बाबा से उस दिल्ली पुलिस का जैसे कोई वास्ता ही नहीं रहा था, जिस बाबा की तलाश में अब दिल्ली सहित कई राज्यों की पुलिस दर-ब-दर की खाक छान रही है. कहा तो यह भी जा रहा है कि दिल्ली पुलिस का खुफिया तंत्र जिम्मेदारी के प्रति ईमानदार और सजग रहता तो बाबा के दिल्ली में तो कम से कम 8 अड्डे नहीं बन पाते. तो क्या दूसरे शब्दों में यह मान लिया जाये कि बाबा के कथित सेक्स-ज्ञान-विश्वविद्यालय स्थापित कराने में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से दिल्ली पुलिस के ढीले तंत्र की भी कहीं न कहीं काफी हद तक की जिम्मेदारी तो बनती ही है.

दिल्ली पुलिस के लापरवाह अफसरों का क्या?

गंभीर तो यह है कि जब बाबा को पूरा पुलिस अमला तलाशने में जुटा है. दिल्ली के उन थानों के एसएचओ (स्टेशन हाउस ऑफिसर्स/ थाना प्रभारियों या थानाध्यक्षों) और उन बीट-अफसरों (मोटर साइकिल सवार पुलिस कर्मियों) की तलाश दिल्ली पुलिस का कोई आला-अफसर नहीं कर रहा है, जिनकी छत्रछाया में बाबा के कुकर्मों के यह कथित विश्वविद्यालय खोल लिए गए. दिल्ली पुलिस के अफसरान वाकई अगर ईमानदार हैं ( कर्तव्य के प्रति अगर ईमानदार होते तो बाबा की दुकानें खुलती ही भला क्यों?) तो बाबा से पहले उन सुस्त मातहत सिपहसलारों को खोजकर ठिकाने लगाए (दण्डित करें) जिन्होंने परोक्ष-अपरोक्ष रुप से बाबा की सेवा करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी.

जिस जिले में बाबा का अड्डा चल रहा था, उस जिले का डीसीपी (जिला पुलिस उपायुक्त) अधीनस्थ सब-डिवीजन में तैनात असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर (एसीपी) और थाना प्रभारी को क्यों नहीं तलब करते? अफसरान क्यों जिम्मेदारी के कटघरे में खड़ा नहीं कर रहे हैं, उस पुलिस बीट अफसर को, जिसकी जिम्मेदारी होती है इलाके में बाबा जैसे स्वंयभू भगवानों की घुसपैठ की जानाकारी जुटाकर स्थापित होने से पहले ही उनके संस्थापकों को नेस्तनाबूद कर देने की.

सबकुछ जानती थी दिल्ली पुलिस!

सवाल यह भी पैदा होता है कि जिस दिल्ली पुलिस के पास क्राइम ब्रांच, स्पेशल सेल, पुलिस कमिश्नर का निजी (अपने कार्यालय स्तर पर) खुफिया तंत्र, जिला स्तर का खुफिया तंत्र, स्पेशल ब्रांच, जिला स्तर पर मौजूद महिला सेल हैं. इसके बाद भी आखिर बाबा ने इतना बड़ा अम्पायर खड़ा कैसे कर लिया? इस सवाल के दो ही जवाब हो सकते हैं- पहला दिल्ली पुलिस और उसका खुफिया तंत्र सोता रहा और बाबा जी अपना काम करते रहे. दूसरा जवाब- लोकल स्तर पर दिल्ली पुलिस और उसके खुफिया तंत्र को सब कुछ पता था. बाबा के अड्डे पुलिस की मदद से (प्रत्यक्ष अप्रत्य़क्ष रुप से) खड़ी की गई नींव के ऊपर कुकर्मों के इन अड्डों की इमारतों को मजबूत करते रहे और पुलिस मूकदर्शक बनी रही.

अगर इन दोनों ही वजहों या जवाबों पर दिल्ली पुलिस या उसके किसी आला पुलिस अफसर का कोई सवाल हो तो दिल्ली पुलिस खुद तीसरा जवाब या कारण बताए कि आखिर मोटे बजट (सोर्स मनी) और स्कॉटलैंड स्टाइल पर काम करने के बाद भी देश की राजधानी में पुलिस की नाक के नीचे बाबा के इन तमाम 'बवाली- विश्वविद्यालयों' की स्थापना आखिर हो कैसे गई? आखिर क्यों सामने आना पड़ा दिल्ली हाईकोर्ट और सीबीआई को?