view all

गोरखालैंड आंदोलन: दार्जिलिंग का मशहूर चाय उद्योग मुश्किल में

दुनिया भर में दार्जिलिंग चाय के लिए मशहूर 87 चाय बागान भी गोरखालैंड बंद के दायरे में हैं

Birendra Shandilya

अलग गोरखालैंड की मांग को लेकर छिड़े आंदोलन ने दार्जिलिंग के मशहूर चाय उद्योग को मुश्किल में डाल दिया है. सवाल अब ये उठ रहे हैं कि सियासी उठापटक में फंसा चाय का कारोबार क्या आगे चल पाएगा? दार्जिलिंग में अनिश्चितकालीन बंद पचास से ज्यादा दिनों से चल रहा है.

अब अगर ये आंदोलन रोका भी जाता है, तो चाय के उद्योग पर सवालिया निशान हटते नहीं दिख रहे. इस साल जून से ही गोरखालैंड आंदोलन की वजह से दार्जिलिंग में हालात बिगड़े हुए हैं. 15 जून से बेमियादी बंद चल रहा है. दुनिया भर में दार्जिलिंग चाय के लिए मशहूर 87 चाय बागान भी इस बंद के दायरे में हैं. ऐसा पहली बार हुआ है कि गोरखालैंड के आंदोलन का दायरा चाय बागानों तक पहुंच गया है.


चाय का उत्पादन हुआ ठप 

आंदोलन की वजह से चाय का उत्पादन ठप है. बाजार में दार्जिलिंग चाय की भारी कमी हो गई है. 8 जून से चाय का कारोबार बंद होने से पहले से ही दार्जिलिंग के चाय बागान सालाना उत्पादन का 30 फीसदी ही चाय का उत्पादन कर पा रहे थे.

पिछले साल दार्जिलिंग चाय का उत्पादन 84.5 लाख किलोग्राम रहा था. दार्जिलिंग चाय की चार फसलें होती हैं. पहली, दूसरी, मॉनसून और पतझड़. पहली फसल फरवरी से अप्रैल के बीच होती है. दूसरी फसल मई के मध्य से जून के आखिर तक होती है. पहली और दूसरी फसल का निर्यात होता है. यही दार्जिलिंग के चाय उद्योग की आमदनी का सबसे बड़ा जरिया है.

दार्जिलिंग टी एसोसिएशन के संदीप मुखर्जी कहते हैं कि इस बार दूसरी फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई. उसे तोड़ा नहीं जा सका. उत्पादन कम होने की वजह से दुनिया भर में दार्जिलिंग टी की भारी कमी है. पुरानी खेप की पहले ही नीलामी हो चुकी है. जो थोड़ी-बहुत चाय बची भी है, उसे भारी कीमत पर बेचा जा रहा है.

उद्योग से जुड़े लोग कह रहे हैं कि गोरखालैंड आंदोलन की वजह से अब तक 250 करोड़ का नुकसान हो चुका है. ये घाटा दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है.

कलकत्ता टी ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अंशुमान कनोरिया कहते हैं कि दार्जिलिंग चाय की कीमत दोगुनी हो चुकी है. पहले जहां एक किलो दार्जिलिंग चाय की कीमत 500 रुपए थे.

यह भी पढ़ें: गोरखालैंड आंदोलन- साठ के दशक की क्यों दिलाता है याद?

वहीं, आज ये 1000 रुपए किलो के भाव से बिक रही है. ऊंचे दर्जे की दार्जिलिंग चाय की पत्ती पहले हजार रुपए किलो बिक रही थी. आज उसकी कीमत 2000 रुपए किलोग्राम है. टूटी हुई पत्तियों वाली चाय भी आज 500 से 800 रुपए किलो बिक रही है.

50 देशों में होता है दार्जिलिंग चाय का निर्यात

बंद की वजह से दार्जिलिंग चाय के निर्यात के ऑर्डर कैंसिल हो रहे हैं. विदेशी खरीदार नेपाल, चीन और श्रीलंका से चाय खरीद रहे हैं. दार्जिलिंग ब्रांड को भारी नुकसान हुआ है.

दार्जिलिंग चाय भारत का पहला ऐसा उत्पादन है जिसे जीआई मार्क मिला हुआ है. जीआई मार्क उन चीजों को मिलता है, जो किसी खास इलाके में होती हैं. जिनकी खास खूबी होती है. ऐसे उत्पादों की नकल नहीं की जा सकती. इस जीआई मार्क के मुताबिक दार्जिलिंग की पहाड़ियों में स्थित 87 चाय बागानों की चाय ही दार्जिलिंग टी कह कर बेची जा सकती है.

संदीप मुखर्जी कहते हैं कि पचास देशों में दार्जिलिंग चाय के जीआई मार्क को मान्यता प्राप्त है. इनमें यूरोपीय यूनियन भी शामिल है. मगर हड़ताल की वजह से हमें भारी नुकसान हो रहा है.

यह भी पढ़ें: बंगाल के वर्तमान को भूल अतीत के गीत गाना चाहती हैं ममता बनर्जी

आंदोलन की वजह से चाय के उत्पादकों के पास पैसे की कमी हो गई है. आज की तारीख में अगर आंदोलन खत्म भी हो जाए, तो हर चाय बागान का भविष्य अंधेरे में है. चाय के बागानों में करीब 60 हजार स्थायी मजदूर हैं. वहीं करीब 40 हजार अस्थाई मजदूर काम करते हैं. इन 87 चाय बागानों में करीब चार लाख लोग रहते हैं. दार्जिलिंग के चाय बागान करीब 17 हजार 500 हेक्टेयर इलाके में फैले हुए हैं.

अलग गोरखालैंड राज्य की मांग को लेकर 8 जून से हिंसा भड़क उठी है

आसान नहीं है चाय बागान मालिकों के मुश्किलों का हल 

दो महीने से चल रहे आंदोलन की वजह से बागानों की छंटाई नहीं हुई है. इसकी वजह से चाय की झाड़ियां, बड़े पेड़ों में तब्दील हो गई हैं. आंदोलन खत्म होने के बाद चाय बागानों के मालिकों को भारी चुनौती का सामना करना पड़ेगा. कटाई-छंटाई में ही एक महीना लग जाएगा.

आज की तारीख में पत्तियां तोड़ने का काम पूरी तरह से ठप है. फिर आगे दुर्गा पूजा, दशहरा और दीवाली जैसे त्योहारों का सीजन शुरू हो जाएगा. ऐसे में बागानों में काम करने वालों की भी कमी हो जाएगी. नवंबर में सर्दियों की वजह से चाय का उत्पादन पूरी तरह से ठप हो जाएगा. चमोंग ग्रुप के अशोक लोहिया कहते हैं कि इस साल उन्हें दस फीसदी चाय उत्पादन की भी उम्मीद नहीं है.

बागानों में काम शुरू होते ही मालिकों को कर्मचारियों को तनख्वाह, मजदूरी और राशन देना होगा. इसके अलावा दूसरी सुविधाओं का भी इंतजाम करना होगा. पैसे की किल्लत की वजह से बागान मालिकों के लिए ये इंतजाम करना बड़ी चुनौती होगी.

इसके अलावा बड़े पैमाने पर बागान से मजदूर भाग गए हैं. वो दार्जिलिंग में बंदी की वजह से काम की तलाश में दूसरे ठिकानों पर चले गए. चाय बागानों के लिए ये कमी पूरी करने की चुनौती भी होगी.

अशोक लोहिया कहते हैं कि मौजूदा समस्या सियासी है. इसका चाय उद्योग से कोई लेना-देना नहीं है. लेकिन इसकी कीमत जरूर चाय उद्योग को चुकानी पड़ रही है. इससे दार्जिलिंग के चाय उद्योग पर भी सवालिया निशान लग गया है.