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लड़कियों की जल्दी शादी यानी तन-मन पर सिर्फ परिवार और समाज का हक

जिस लव जिहाद के खतरे के बारे में माननीय विधायक गोपाल परमार चेतावनी दे रहे हैं, वह लड़कियों की चुनने की आजादी से उपजा भय है

Dilip C Mandal

मध्यप्रदेश के आगर मालवा से बीजेपी विधायक गोपाल परमार का लड़कियों की शादी की उम्र के बारे में दिया गया एक बयान इन दिनों चर्चा में है. उन्होंने कौशल विकास कार्यक्रम को संबोधित करते हुए बचपन में तय होने वाली शादियों को बेहतर करार दिया. उनका बयान मध्य प्रदेश के तमाम अखबारों में छपा और उसका वीडियो भी वायरल हुआ.

इसमें वे कहते हैं कि-'पहले देखते थे कि समाज में जो भी शादी होती थी, हमारे बड़े-बूढ़े ही संबंध कर लेते थे, भले ही बचपन में कर लेते थे. वे संबंध ज्यादा टिके रहते थे. ज्यादा मजबूत थे. यह जबसे 18 साल की बीमारी (लड़कियों की शादी करने की) सरकार ने चालू की है, तबसे बहुत सारी लड़कियां भागने लग गई हैं और लव जेहाद का बुखार चालू हो गया है…हमारी छोरी हमें कहकर जा रही है कि पढ़ने के लिए कोचिंग क्लास जा रही हूं, लेकिन वहां शरारती और शातिर लोग कोई उपकार कर अथवा मीठा-मीठा बोलकर उन्हें बरगलाने लगते हैं और वह किसी भी लड़के के साथ भाग जाती है.'


हालांकि बाद में उन्होंने स्पष्टीकरण दिया कि उनके कहने का मतलब यह था कि सगाई बचपन में हो जानी चाहिए और 18 साल की होने पर लड़की की शादी कर देनी चाहिए.

हालांकि देश में 18 साल की होने पर ही लड़की के विवाह का कानूनी प्रावधान है, इसलिए परमार को मन की बात बोलने के बाद फिर कानून की बात ही बोलनी पड़ी. लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि वे समाज में प्रचलित एक विचार को ही स्वर दे रहे थे. ऐसा सोचने वाले वे कोई अकेले व्यक्ति नहीं हैं कि लड़कियों की शादी कम उम्र में ही तय कर देनी चाहिए या कम उम्र में ही शादी कर देनी चाहिए.

विधायक गोपाल परमार (तस्वीर: एएनआई)

कभी सख्ती से लागू नहीं हुआ है बाल विवाह का कानून

भारत में आज भी लाखों की संख्या में बाल विवाह हो रहे हैं और ऐसी शादियों की सामाजिक मान्यता है. 2011 की जनगणना के मुताबिक सिर्फ उत्तर प्रदेश में 8 लाख से ज्यादा ऐसी महिलाएं हैं, जिनका बाल विवाह हुआ है. कानून भी इन शादियों को खारिज नहीं करता. यह सही भी है. इतनी सारी गैर-कानूनी शादियों का बोझ समाज या देश नहीं उठा सकता.

भारत में बाल विवाह रोकने का कानून आजादी से पहले यानी 1929 से लागू है. तब लड़कियों और लड़कों की शादी की न्यूनतम उम्र 14 और 18 साल थी. इसे बाद में बदलकर 18 और 21 साल कर दिया गया. 1929 के कानून में ऐसी शादी करने वाले पुरुष और शादी कराने वालों के लिए भी दंड का प्रावधान था. लेकिन अंग्रेजों के समय इस कानून पर कभी भी सख्ती से अमल नहीं हुआ. ब्रिटिश सरकार को डर था कि भारत जैसे पिछड़े समाज में इसकी विपरीत प्रतिक्रिया होगी और लोग नाराज होंगे. बाल विवाह आजादी के बाद भी नहीं रुके. 2006 में बाल विवाह निरोध का सख्त कानून बनाया गया. लेकिन बाल विवाह पर रोक फिर भी नहीं लग पाई.

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नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक, देश में 20 से 24 आयु वर्ग की महिलाओं में 2005-2006 में 47.4 फीसदी की शादी 18 साल से पहले हो जाती थी. अब यह दर 26.8 फीसदी है. 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में होनी वाली 31 फीसदी शादियों में वर-वधू की उम्र कानूनी सीमा से कम होती है. यानी अमूमन देश की हर चौथी शादी बाल विवाह है. दुनिया में सबसे ज्यादा बाल विवाह भारत में होते हैं. दुनिया में प्रति मिनट 28 बाल विवाह होते हैं. उनमें से दो भारत में होते हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर फोटो सोर्स: रॉयटर्स

बाल विवाह को मिली हुई है सामाजिक और पारिवारिक स्वीकृति

महत्वपूर्ण बात यह है कि बाल विवाह निरोधक अधिनियम के तहत बिरले ही कभी कोई केस दर्ज होता है. संसद में एक सवाल के जवाब में सरकार ने जानकारी दी की 2014, 2015 और 2016 में इस कानून के तहत देश में सिर्फ 280, 293 और 326 मामले ही दर्ज हुए. यानी देश भर में होने वाले ज्यादातर बाल विवाहों को परिवार और समाज की स्वीकृति हासिल है.

यह भी दिलचस्प है कि तमिलनाडु में बाल विवाह की दर कम है और बाल विवाह की सबसे ज्यादा शिकायतें वहीं दर्ज हुईं. यानी तमिलनाडु में बाल विवाह को अच्छा नहीं माना जाता. सबसे ज्यादा बाल विवाह राजस्थान में होते हैं और वहां 2016 में सिर्फ 12 शिकायतें बाल विवाह को लेकर आईं. यह राजस्थान में बाल विवाह को मिली सामाजिक और पारिवारिक स्वीकृति को दिखाता है.

बाल विवाह की बुराइयों और खतरों के बारे में काफी कुछ लिखा जा चुका है. कम उम्र में गर्भ धारण और इस वजह से ऊंची मातृ मृत्यु दर स्थापित तथ्य है. आबादी बढ़ने, गर्भावस्था के दौरान मौत और औरतों की समाज में बुरी स्थिति से बाल विवाह का सीधा संबंध है. लेकिन इस पर रोक नहीं लग पा रही है. अच्छी बात यह है कि इसका चलन घट रहा है. कुछ राज्यों में ही यह समस्या गंभीर है. ऐसे राज्य हैं-राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, पश्चिम बंगाल और झारखंड.

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बाल विवाह के कई कारण हैं. इसमें धार्मिक और सामाजिक परंपरा, अंधविश्वास, अशिक्षा, गरीबी, समाज में महिलाओं की कमजोर हैसियत आदि को प्रमुख माना जाता है. बाल विवाह के बुरे असर के बारे में जानकारी के अभाव को भी इसकी एक वजह माना गया है.

लड़की की कम उम्र में विवाह पर क्यों दिया जाता है जोर?

मध्य प्रदेश के विधायक बचपन में शादी तय कर देने के लिए जो तर्क दे रहे हैं, उसकी वजह से भी बाल विवाह का प्रचलन है. लड़कियों को शादी की उम्र या उसके बाद तक तक कुंवारी रहने देने को एक खतरे की तरह देखने का चलन है. इसे परिवार और जाति की प्रतिष्ठा से भी जोड़कर देखा जाता है. लड़कियों में शिक्षा की दर बढ़ने और नौकरी और कामकाज के लिए घर से बाहर निकलने के साथ समाज की दृष्टि में उनके 'आवारा' हो जाने का खतरा बढ़ा है. यह एक जटिल स्थिति है.

एक तरफ लड़कियों को पढ़ाने और उन्हें स्वावलंबी बनाने का चलन बढ़ रहा है, दूसरी तरफ उन्हें 'बिगड़' जाने से भी रोकना है. इस अर्थ में भारतीय समाज आधुनिकता और परंपरा की अद्भुत खिचड़ी बना नजर आता है.

लड़की की यौनिकता यानी सेक्सुअलिटी को नियंत्रित करने के लिए समाज और परिवार कई उपाय करता है. कम उम्र में शादी कर देना या शादी तय कर देना उनमें से एक है. जिस लव जिहाद के खतरे के बारे में माननीय विधायक चेतावनी दे रहे हैं, वह लड़कियों की चुनने की आजादी से उपजा भय है.

लड़कियां अगर खुद यह तय करने लगें कि उन्हें किनके साथ परिवार बसाना है, तो समाज की पूरी संरचना बदल जाएगी. खासकर जाति संस्था तो चरमरा जाएगी. यह संस्था औरतों की यौनिकता को नियंत्रित करके ही चल सकती है. इसलिए समाज का एक तबका हमेशा चाहता है कि लड़कियों की शादी कम उम्र में कर दी जाए.

जब अंग्रेजी राज के दौरान सेक्स के लिए सहमति का कानून बना तो सबसे पहले यह उम्र 11 साल रखी गई. लेकिन 11 साल की एक लड़की की जब पति द्वारा शारीरिक संबंध बनाए जाने के कारण मौत हो गई, तो इस उम्र को बढ़ाकर 12 साल करने का प्रस्ताव आया. उस समय लोकमान्य तिलक समेत कई लोगों ने इसका विरोध किया था. इस विरोध के पीछे तर्क यही दिया गया कि ऐसा करना धर्म परंपरा में कानून का हस्तक्षेप है.

यानी, बाल विवाह के पक्षधर भारत में हमेशा रहे हैं. समाज में बाल विवाह की व्यापक स्वीकृति है. लेकिन आंकड़े एक अच्छी बात यह बता रहे हैं कि यह स्वीकृति घट रही है और बाल विवाह में साल दर साल कमी आ रही है.