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भीमा कोरेगांव हिंसा: हजारों प्रभावितों को हुआ नुकसान, मगर मुआवजा 'अपर्याप्त', महज 260 परिवारों को मिली मदद

सरकार ने 7.97 करोड़ में से अभी तक 4.7 करोड़ की मुआवजा राशि बांटी है. लेकिन दंगा प्रभावित कई लोगों का कहना है कि उन्हें यह नहीं मिली जबकि ऐसे कुछ का कहना था कि उन्हें दी गई राशि पर्याप्त नहीं है

Parth MN

हजारों लोग भीमा कोरेगांव के दंगे की चपेट में आए और दंगे की चपेट में आए इन लोगों के लिए महाराष्ट्र सरकार ने मुआवजे के तौर पर 7.97 करोड़ रुपए देने का एलान किया लेकिन मुआवजे की यह राशि हद से हद 260 परिवारों को ही मिल सकी है.

फ़र्स्टपोस्ट ने मुआवजे की रुप में दी जा रही राशि के लाभार्थियों की सूची पुणे प्रशासन से जुटाई है. दंगे की चपेट में आए व्यक्ति को जिस किस्म की संपत्ति का नुकसान हुआ है उसे ध्यान में रखते हुए प्रशासन की सूची में मुआवजे की राशि को 14 शीर्षकों के अंतर्गत विभाजित किया गया है. इन शीर्षकों को आगे घर, होटल, दुकान, वाहन आदि उप-शीर्षकों के अंतर्गत बांटा गया है. मिसाल के लिए, मुआवजे की 1.83 करोड़ राशि कुल 138 वाहन-मालिकों के बीच बांटी जानी है. इसी तरह 1.69 करोड़ रुपए की राशि उन 47 दुकानोंदारों को दी जानी है जिनकी दुकानों में दंगे के दौरान तोड़-फोड़ हुई. दंगे के अंतर्गत क्षतिग्रस्त हुए 20 मकानों के लिए मुआवजे के तौर पर 64.5 लाख की राशि दी जाएगी और 10.3 लाख रुपए मुआवजे के तौर पर उन 2 व्यक्तियों को दिए जाएंगे जिनकी अस्पतालों को नुकसान पहुंचा है. सूची में 14 शीर्षकों के अंतर्गत कुल दर्ज संपदा की तादाद 260 है. इसका अर्थ हुआ कि जिन लोगों को मुआवजे की रकम दी जाएगी उनकी तादाद 260 या फिर इससे कम होगी क्योंकि बहुत संभव है, किसी एक परिवार को एक से ज्यादा संपदा का नुकसान हुआ हो. मिसाल के लिए 35 साल की सीमा कांबले का मामला देखा जा सकता है. भीमा कोरेगांव के दंगे में 2 जनवरी के दिन सीमा कुंबले का घर और होटल जलकर खाक हो गया.


सीमा के पति 42 वर्षीय बाबा साहेब कांबले का कहना है कि पंचनामा (जांच के दौरान मिले सबूतों को कलमबंद करना) दुर्घटना के दिन ही पूरा हुआ और पंचनामे में लिखा गया कि संपत्ति जलकर खाक हो गई है और इससे काला धुआं निकल रहा था. कांबले ने कहा कि 'हमलोगों ने जमीन पट्टे पर ली थी और 7 साल पहले उसपर होटल खोला था. हमने इस काम के लिए 1 लाख रुपए खर्च किए थे. सीमा होटल चलाती थी और मैं ट्रक ड्राइवर के रुप में काम करता हूं. हम दोनों की मिली-जुली आमदनी से घर का खर्च चला करता था.'

इसी साल 1 जनवरी को महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव में हिसा और जातीय तनाव भड़क उठा था

बीते 10-15 वर्षों से कांबले परिवार जिस घर में रह रहा था वह भी किराए का ही था. अब इस परिवार ने उसी गांव में एक अलग घर ले लिया है और परिवार को हर माह इसके लिए 5 हजार रुपए किराए के रुप देने होते हैं. बाबा साहेब ने बताया कि 'होटल होता तो हमें हर माह 15 हजार रुपए मिलते. गुजरे 7 महीने बहुत मुश्किल साबित हुए हैं. बेटे के स्कूल की फीस भरने के लिए भी मुझे लोगों से उधार लेना पड़ा. हमें अभी तक मुआवजे का एक पैसा नहीं मिला है.'

अंग्रेजी सेना की पेशवा पर एक ऐतिहासिक जीत की याद में स्मारक बनाया गया 

हर साल 1 जनवरी को पूरे महाराष्ट्र से हजारों दलित भीमा कोरेगांव के युद्ध स्मारक के पास जुटते हैं- यह स्मारक पुणे से 40 किलोमीटर दूर है. स्मारक अंग्रेजी सेना की पेशवा पर एक ऐतिहासिक जीत की याद में बनाया गया है. अंग्रेजी सेना की इस टुकड़ी में दलित जाति के सैनिकों की तादाद अच्छी खासी थी. इस साल उस लड़ाई की 200वीं वर्षगांठ थी. सो, स्मारक पर जुटने वालों की तादाद बाकी वर्षों के मुकाबले कुछ ज्यादा बढ़ी हुई थी. स्मारक पर जुटे लोगों पर हिंदुत्ववादी सवर्ण जाति की भीड़ ने हमला किया. इस हमले में कई लोग घायल हुए और एक व्यक्ति की मौके पर मौत हो गई.

पुणे जिला-प्रशासन ने पंचनामा कर रिपोर्ट सौंपा तो अगस्त माह में राज्य सरकार ने मुआवजे की राशि की घोषणा की.

पुणे के जिला कलेक्टर नवल किशोर राम ने बताया है कि मुआवजे की राशि अभी बांटी नहीं गई है. जिला कलेक्टर का कहना है कि मुआवजे की रकम 'हमें 3 हफ्ते पहले मिली. रकम मिलने के साथ हमने इससे जुड़ी प्रक्रियाओं की शुरुआत कर दी. अनुमंडल अधिकारी (सब-डिवीजनल अफसर) और तहसीलदार मामले को देख रहे हैं. अगले एक हफ्ते या 10 दिन में मुआवजे की राशि के वितरण का काम पूरा हो जाएगा.'

अनुमंडल अधिकारी (सब-डिवीजनल अफसर) गवांदे ने बताया कि सरकार ने 7.97 करोड़ में से अभी तक 4.7 करोड़ की राशि बांटी है. लेकिन दंगा प्रभावित कई लोगों का कहना है कि उन्हें मुआवजा नहीं मिला जबकि ऐसे कुछ और लोगों का कहना था कि उन्हें दी गई राशि पर्याप्त नहीं है.

दंगे में रेखा गायकवाड़ के दो कारखानों को नुकसान पहुंचा. रेखा का कहना है कि उन्हें मुआवजे के रुप में सिर्फ 1 लाख रुपए मिले हैं जबकि घाटा लगभग 3 लाख रुपए का हुआ है. रेखा का कहना है कि 'भीड़ ने 2 जनवरी को दोनों ही कारखानों पर पत्थर फेंके और उसे नुकसान पहुंचाया. कारखाने की पूरी मशीन और ऊपर की शेड बर्बाद हो गई. मुआवजे की इस छोटी सी रकम से मैं अपना कारखाना दोबारा कैसे शुरू कर पाऊंगी?'

प्रतीकात्मक

'बंद में हिस्सा लेने से मना किया तो मेरा ढाबा जला दिया'

कोरेगांव भीमा के निवासी 55 वर्षीय मंगल कांबले ने जांच आयोग के सामने गवाही देते हुए कहा कि अगड़ी जाति के लोगों ने गांव में 1 जनवरी के दिन बंद का आह्वान किया था. मैंने इस बंद में हिस्सा लेने से मना कर दिया तो उन लोगों ने मेरा ढाबा जला दिया. दंगे की जांच कर रहे आयोग को उसने बताया कि करीब 5 लाख रुपए का नुकसान हुआ है. मंगल ने कहा कि 'मेरे बेटे ने बंद रखने का आदेश मानने से इनकार कर दिया. अगली सुबह, जब कुछ ग्राहक मेरे ढाबे पर चाय-बिस्किट वैगरह खा-पी रहे थे तो 20 लोगों की भीड़ ने धावा बोला. इन लोगों ने हमसे मारपीट की. मुझे बहुत चोट आई. ग्राहक दुकान से भाग गए. हमने जो दुकान और मंडप खड़ा किया था वो इस भीड़ ने तोड़ दिया. मुझे इलाज के लिए हड़पसर के अस्पताल ले जाया गया. 2 जनवरी के दिन जब मैं डेकोरेकशन का इंतजाम करने वाले को पैसे देने के लिए लौटी तो 2000 लोगों की भीड़ ने धावा बोला और 11 बजे दिन में मेरा घर और दुकान जला दिया.'

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मंगल को मुआवजे के रूप में सिर्फ 1 लाख रुपए मिले हैं.

गवांदे का कहना है कि कलेक्टर ने एक समिति बनाई थी. इसी समिति ने पंचनामा बनाकर दर्ज किया कि किस व्यक्ति को कितना नुकसान हुआ है. गवांदे ने बताया कि 'सनसवाडी और कोरेगांव भीमा में दंगे के दौरान सबसे ज्यादा हिंसा हुई. यहां जिन लोगों को नुकसान पहुंचा था उन सबकी हमने सूची बनाई. सूची में दर्ज था कि किस व्यक्ति के किन चीजों को नुकसान पहुंचा है.' गवांदे ने कहा कि 'हमने बड़े-बड़े फ्लेक्स बोर्ड लगाए थे. इन बोर्ड्स पर लोगों को लिखकर बताया गया था कि दंगे में जो भी धन-संपत्ति का नुकसान हुआ है उसका गिनती की जा रही है. इसका मकसद दंगा-प्रभावित लोगों को आश्वस्त करना है ताकि वो आगे आएं और ग्रामसभा, स्थानीय तलाथी (प्रतिनिधि) और पुलिस को अपने नुकसान के बारे में बताएं जिससे प्रशासन की सूची में किसी का नाम आने से रह गया हो तो ऐसे व्यक्ति का नाम भी दर्ज किया जा सके.'

लेकिन भीमा-कोरेगांव के जलसे में महाराष्ट्र के अलग-अलग जगहों से लोग जुटे थे और इनमें से कई लोगों को पता नहीं चला कि पंचनामा तैयार करने का काम हो रहा है. औरंगाबाद के बाबा साहेब त्रिभुवन का घर भीमा कोरेगांव से 200 किलोमीटर दूर है. बाबा साहेब त्रिभुवन की बोलेरो कार दंगाई भीड़ ने जला दी थी. त्रिभुवन ने बताया कि 'मैं अपने दो दोस्तों के साथ भीमा कोरेगांव आया था. पहुंचने के बाद मेरे दोस्त कार से उतर गए और मैं पार्किंग की तलाश में कार लेकर आगे बढ़ गया. इसमें कुछ समय लगा. कार पार्क करने के बाद मैंने देखा कि लोग वापस जा रहे हैं और कह रहे हैं कि रैली पर पत्थर फेंके जा रहे हैं. मैंने अपने दोस्तों को पुकारा और देखा कि वो लोग भी वापस लौट रहे हैं. हम लोग वहां से भाग निकलने के इरादे से कार पर चढ़े लेकिन आगे सनसवाड़ी में जाम होने के कारण कार रोकनी पड़ी. यहां भीड़ ने पत्थरबाजी शुरू कर दी. हमलोग चोट से बचने के लिए कार छोड़कर नजदीक की एक दुकान में छिप गए. इसके बाद भीड़ ने कार को पलट दिया और उसमें आग लगा दी.'

भीमा कोरेगांव में युद्ध में जीत का बना स्मारक

प्रभावित लोग मुआवजे की प्रक्रिया पर फिर से विचार की लगा रहे हैं गुहार

त्रिभुवन ने कहा कि घटना के 8 दिन बाद वो एफआईआर दर्ज कराने के लिए गया था लेकिन लाभार्थियों की सूची में उसका नाम नहीं है. दंगे के शिकार हुए लोग हताश होकर अब सामाजिक कार्यकर्ताओं से संपर्क साध रहे हैं और अधिकारियों के पास अर्जी लगा रहे हैं कि मुआवजे की प्रक्रिया पर फिर से विचार किया जाए.

सीमा कांबले ने 5 सितंबर के दिन पुणे के कलेक्टर को लिखा कि 'भीमा-कोरेगांव दंगे के दौरान मेरा घर और होटल दोनों जलकर खाक हो गए. हमें 5 लाख रुपए का नुकसान हुआ है लेकिन पुनर्वास का हकदार मानते हुए लोगों की जो सूची तैयार की गई है उसमें मेरा नाम नहीं है. पिछले 7 महीने से हमें जो तकलीफ दी जा रही है वो सूची में नाम न होने से और ज्यादा बढ़ गई है. हम विनती करते हैं कि आप इस मामले को देखें और हमें आर्थिक मदद मुहैया कराएं.'