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अयोध्याः राम मंदिर विवाद में नया मोड़, क्या मुस्लिम जज संविधान पीठ में शामिल होंगे?

नई बेंच के गठन के बाद मामले में अगली सुनवाई अब 29 जनवरी 2019 को होगी, चीफ जस्टिस द्वारा अपनी अध्यक्षता में पांच जजों की संविधान पीठ के गठन के बाद, बेवजह विवाद खड़े किए जा रहे हैं

Virag Gupta

अयोध्या में राम जन्म भूमि-बाबरी ढांचा विवाद मामले की सुनवाई के लिए पांच जजों की संविधान पीठ पर विवाद के बाद जस्टिस ललित बेंच से अलग हो गए हैं. नई बेंच के गठन के बाद मामले में अगली सुनवाई अब 29 जनवरी 2019 को होगी. चीफ जस्टिस द्वारा अपनी अध्यक्षता में पांच जजों की संविधान पीठ के गठन के बाद, बेवजह विवाद खड़े किए जा रहे हैं.

संविधान पीठ में क्या अब मुस्लिम जज शामिल होंगे-


कहा जा रहा है कि पिछले आठ सालों से इस मामले की सुनवाई में हमेशा मुस्लिम जज शामिल रहे हैं. यह तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच द्वारा लम्बी सुनवाई के बाद अगस्त 2015 को विस्तृत आदेश पारित किया गया था. उस बेंच में जस्टिस टीएस ठाकुर, जस्टिस वी गोपाल गौड़ा और जस्टिस आर भानुमति शामिल थे. जस्टिस भानुमति हिन्दू हैं पर चर्च जाने की वजह से, कुछ मीडिया रिपोर्टों द्वारा उन्हें ईसाई बताया जाता है. भारतीय परंपरा में न्याय देने वाले जजों को पंच परमेश्वर माना जाता है. यह मामला आम लोगों की निगाह में मन्दिर-मस्जिद का भले ही हो पर जजों को जाति और धर्म के खाने में नहीं बांटा जाना चाहिए. जस्टिस ललित के बाद अब जस्टिस नजीर को संविधान पीठ में शामिल किया जा सकता है, क्योंकि वे पहले भी सुनवाई का हिस्सा रहे हैं. जस्टिस अशोक भूषण भी पहले सुनवाई

में शामिल थे, जिनके नाम पर भी चीफ जस्टिस विचार कर सकते हैं.

प्रेस कॉन्फ्रेंस के विवाद का सही जवाब है, यह बेंच-

जनवरी 2018 में जस्टिस रंजन गोगोई समेत 4 वरिष्ठतम जजों ने ऐतिहासिक प्रेस कॉन्फेंस करके तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के ऊपर अनेक आरोप लगाए थे. उनमें से तीन जज जस्टिस चेलमेश्वर, कुरियन जोसेफ और मदन बी लोकुर अब रिटायर हो गए हैं. जस्टिस जोसेफ ने रिटायरमेंट के बाद प्रेस कॉन्फेंस के आरोपों को सही ठहराते हुए कहा कि प्रेस कान्फ्रेंस के बाद सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था में अनेक सुधार हुए हैं. प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद सुप्रीम कोर्ट में भी दिल्ली हाईकोर्ट की तर्ज पर रोस्टर प्रणाली की शुरुआत हो गई है. अयोध्या मामले पर जजों के चयन में वरिष्ठता के नए पैमाने से, बेंच गठन की व्यवस्था अधिक पारदर्शी और जवाबदेह हुई है.

पांच जजों की बेंच क्यों बनी-

इस विषय को मैंने अपनी पुस्तक 'Ayodhya’s Ram Temple in Courts'- India’s Oldest Litigation and the Road Ahead में विस्तार से बताया है. केंद्र सरकार द्वारा अयोध्या में विवादित भूमि समेत 67 एकड़ जमीन का संसद द्वारा पारित अयोध्या के कानून के माध्यम से 1993 में अधिग्रहण कर लिया गया था. इस्माईल फारुकी मामले में 1994 में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने इस पर विस्तार से फैसला दिया था. इस पृष्ठभूमि में अयोध्या विवाद पर निर्णायक सुनवाई के लिए, न्यूनतम पांच जजों की बेंच होना जरूरी है. सबरीमाला, प्रमोशन में आरक्षण, समलैंगिकता और व्यभिचार जैसे मामलों पर पांच जजों की संविधान

पीठ ने फैसला दिया, तो फिर राम मंदिर मामले की भी संविधान पीठ द्वारा सुनवाई क्यों नहीं होनी चाहिए?

ये भी पढ़ें- अयोध्या विवाद: सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच पर विवाद क्यों?

संविधान पीठ के सभी जज चीफ जस्टिस बनेंगे-

पांच जजों की बेंच की अध्यक्षता, सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई करेंगे जो नवंबर 2019 में रिटायर हो रहे हैं. कॉलेजियम के वर्तमान सिस्टम के अनुसार वरिष्ठतम जज को चीफ जस्टिस बनाया जाता है. बेंच के दूसरे जज एसए बोबड़े नवंबर 2019 से अप्रैल 2021 तक सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रहेंगे. बेंच के तीसरे जज एनवी रमन्ना अप्रैल 2021 से अगस्त 2022 तक सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रहेंगे. बेंच के चौथे जज यूयू ललित जिनके नाम पर आपत्ति हुई है वह अगस्त 2022 से नवंबर 2022 के संक्षिप्त कार्यकाल के लिए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रहेंगे. जस्टिस ललित कल्याण सिंह के वकील होने के साथ सोहराबुद्दीन मामले में अमित शाह के भी वकील रह चुके हैं. बेंच के पांचवे जज डीवाई चन्द्रचूड़ नवंबर 2022 से नवंबर 2024 तक दो साल के लिए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रहेंगे. इनके पिता वाईपी चन्द्रचूड़ भी सबसे लंबे समय तक सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रहे हैं. जस्टिस चंद्रचूड़ के बाद चीफ जस्टिस बनने वाले जज के बारे अभी अनुमान लगाना मुश्किल है, इसलिए पांचवे जज के तौर पर चीफ जस्टिस महिला जज या पुरानी सुनवाई के जजों को अब शामिल कर सकते हैं.

संविधान पीठ के लिए चीफ जस्टिस के फैसले का तकनीकी पहलू-

मस्जिद को इस्लाम का अनिवार्य अंग मानने के पहलू की सुनवाई के लिए पांच जजों की बेंच के गठन के लिए सीनियर एडवोकेट राजीव धवन ने वर्ष 2017 में मांग किया था. लंबी सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में तीन जजों की बेंच ने 27 सितंबर 2018 के आदेश से धवन की मांग को अस्वीकार कर दिया था. जस्टिस नजीर ने असहमति का आदेश पारित करते हुए पांच या सात जजों की बेंच के गठन पर सहमति व्यक्त की थी. उसके बाद 29 अक्टूबर 2018 को चीफ जस्टिस की बेंच ने नई बेंच के गठन के लिए आदेश दिया था. सुप्रीम कोर्ट नियम 2013 के आदेश 6, नियम 1 के अनुसार चीफ जस्टिस द्वारा अपील के मामलों में दो या ज्यादा जजों की बेंच का गठन किया जा सकता है. वर्तमान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच के न्यायिक आदेश को नहीं बदला. चीफ जस्टिस ने अपने प्रशासनिक अधिकार का

इस्तेमाल करते हुए पांच जजों की बेंच का गठन किया है जो सर्वथा कानून सम्मत होने के साथ जरूरी भी था.

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अयोध्या विवाद सिर्फ भूमि का विवाद नहीं है-

मीडिया रिपोर्टस में यह कहा जाता है कि अयोध्या विवाद जमीन या टाइटिल सूट का नियमित विवाद है. यह तथ्यात्मक और कानूनी तौर पर सही नहीं है. अयोध्या में विवादित स्थल को राम मंदिर हेतु सौंपने के लिए मंदिर और मस्जिद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की न्यायिक विवेचना करनी ही होगी. मंदिर और मस्जिद के समर्थक या मुकद्मेबाज खुद को राम या बाबर का कानूनी उत्तराधिकारी नहीं घोषित कर सकते. दूसरी ओर 1993 के अयोध्या कानून के अनुसार विवादित भूमि का स्वामित्व होने के बावजूद केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के सम्मुख मुकद्मों में पक्षकार नहीं हैं. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई नवंबर 2019 में रिटायर हो जाएंगे, जिसके पहले इस मामले पर फैसला आ ही जाएगा. इस मामले पर नियमित सुनवाई और चुनावों के पहले राम मंदिर पर फैसले के लिए केंद्र सरकार को पक्षकार बनकर सुप्रीम कोर्ट के सम्मुख सभी तथ्य और प्रमाण रखने ही होंगे.

(लेखक सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं. इनका Twitter हैंडल @viraggupta है)