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आसाराम रेप केस: फांसी नहीं, 77 साल में उम्रकैद ही है आसाराम की असली सजा

आसाराम को मिली सज़ा भी समाज के लिए एक नजीर बनेगी. कई लोगों की राय में 77 साल की उम्र में मरने तक जेल की सज़ा आसाराम के लिए फांसी से भी ज्यादा असहनीय होगी

Mahendra Saini

किसी भी न्यायिक परिसर में न्याय की देवी की मूर्ति जरूर होती है जिसमें उसके आंखों पर पट्टी बंधी होने के बावजूद तराजू के दोनों पलड़े बराबर होते हैं. ये दिखाता है कि न्याय किसी के रुतबे से प्रभावित नहीं होता और इंसाफ बराबर होता है. जोधपुर में जेल परिसर में ही बनाई गई विशेष अदालत के जज मधुसूदन शर्मा ने जब आसाराम को ताउम्र जेल में रहने की सजा सुनाई तो ये एकबार फिर साबित हो गया कि इंसाफ में देर भले ही हो सकती है लेकिन न्यायालय आपका भरोसा नहीं तोड़ता है.

अगस्त, 2013 से जेल में बंद आसाराम को अब ताउम्र जेल में ही रहना पड़ेगा. आसाराम के दो साथियों शिल्पी और शरतचंद्र को 20-20 साल की कैद मिली है जबकि 2 आरोपी प्रकाश और शिवा को बरी कर दिया गया है. संत के वेश में इस बलात्कारी बाबा ने सजा के ऐलान के समय भी कम नौटंकी नहीं की. कभी ये हंसने लगता तो कभी एकाएक रोने लगता. सज़ा सुनाए जाने के बाद इसने अपने बुढ़ापे को देखते हुए रहम करने की गुजारिश भी कर डाली.


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मजे की बात ये है कि जेल जाने से पहले तक खुद को भगवान साबित करने और शिष्यों की परेशानी दूर कर देने का दावा करने वाला आसाराम सजा सुनने से पहले और बाद में खुद राम की शरण में चला गया. कोर्ट की कार्रवाई शुरू होने पर जज साहब ने जब आसाराम के बारे में पूछा तो कहा गया कि वो पूजा कर रहा है. सजा सुनाए जाने के बाद भी आंसू भरे चेहरे के साथ उसके मुंह से निकला- जैसी राम की मर्जी.

आखिर तक निर्भय रही पीड़ित

आसाराम ने अपनी दौलत के बूते इस मामले में न्याय को प्रभावित करने की कोई कसर नहीं छोड़ी थी. साम-दाम-दंड-भेद की कोई नीति बाकी नहीं रखी गई. मामले के 9 गवाहों पर हमले कराए गए. 3 गवाहों की तो हत्या भी कर दी गई.

शाहजहांपुर की रहने वाली पीड़ित और उसके परिवार को बार-बार धमकाया गया. उन्हें बयान नहीं बदलने पर जान से मारने तक की धमकी दी गई. ये परिवार अपने मकान की चारदीवारी में सिमट कर रहने को मजबूर कर दिया गया. पीड़ित के चरित्र पर सवाल उठाए गए. उसको जबरन बालिग साबित करने की कोशिशें हुई. पीड़ित के पिता को केस लड़ने के लिए अपने ट्रक तक बेचने पड़े. अदालत को भी गुमराह करने की कोशिशें कम नहीं हुई. एक गवाह को तो 100 से भी ज्यादा बार बुलाकर परेशान करने की कोशिश हुई. जांच अधिकारी पर दबाव बनाने के लिए बार-बार अदालत में बुलाया गया.

इन सबके बावजूद सच इन पाखंडियों के सामने नहीं झुका. कानून का हर जानकार इस बात की तारीफ कर रहा है कि लगभग 5 साल के लंबे समय के बावजूद पीड़ित अपने बयान पर अडिग रही. एक बार भी उसने बयान को बदला नहीं. पीड़ित ने निर्भय रहकर 27 दिन तक लगातार जिरह की और टूटी नहीं. 94 पन्नों में दर्ज अपने बयान पर आखिर तक वह कायम रही.

पुलिस-प्रशासन का काम भी काबिले तारीफ

बहरहाल, बच्ची के यौन शोषण के दोषी आसाराम को सजा तो हो गई. लेकिन सजा सुनाए जाने के वक्त कानून और व्यवस्था को मजबूती से बनाए रखने के लिए जोधपुर का पुलिस प्रशासन भी तारीफ के काबिल है. राजस्थान पुलिस के सामने हाल ही में राम रहीम और रामपाल केस में हुई हिंसा का मामला था. इसी से सबके लेते हुए पुलिस ने कोर्ट से जेल में ही फैसला सुनाने की गुजारिश की थी.

आसाराम के समर्थकों के जोधपुर आकर हिंसा करने की आशंका को कंट्रोल करने के लिए कई उपाय किए गए थे. पूरे शहर में धारा-144 लगाई गई. जेल तक आने के रास्ते सील कर दिए गए. यहां सिर्फ मीडिया वालों को ही आने की इजाजत थी. हालांकि कोर्ट में मौजूद रहने की मीडिया की याचिका को खारिज कर दिया गया था. पुलिस को अंदेशा था कि मीडिया में खबर आते ही आसाराम के कथित भक्त उन्माद पर उतर सकते हैं.

पूरे जोधपुर शहर की होटलों को हर 4-4 घंटें के अंतराल पर चेक किया जा रहा था. किसी भी बाहरी व्यक्ति के दिखने पर उसकी जांच पड़ताल की जा रही थी. रेलवे स्टेशन और तमाम जगहों पर सादा वर्दी में फोर्स तैनात थी. प्रशासन इसलिए भी तारीफ के काबिल है क्योंकि हिंसा को रोकने के मद्देनजर इंटरनेट को शटडाउन नहीं करना पड़ा. पिछले कुछ समय में खासतौर पर राजस्थान में ये देखने को मिल रहा है कि व्यवस्था बनाए रखने के नाम पर जब-तब इंटरनेट को बंद कर दिया जाता है. अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जम्मू-कश्मीर के बाद देश में ऐसा करने वाला राजस्थान दूसरे नंबर का राज्य है.

अब आगे क्या होगा ?

सरकारी वकील ने अदालत में आसाराम को लेकर गंभीर टिप्पणी की है. इनका कहना है कि संत के वेश में आसाराम एक रेपिस्ट के अलावा कुछ और नहीं है. हालांकि आसाराम के वकील अदालत के फैसले को षड़यंत्र बताने से भी नहीं चूके. वकीलों ने अब हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने का ऐलान कर दिया है. जमानत के लिए याचिका गुरुवार को दायर की जाएगी.

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हालांकि अगर हाईकोर्ट से जमानत मिल भी जाती है तो भी आसाराम को इतनी जल्दी बाहर का सूरज देखना नसीब नहीं होगा. आसाराम पर सूरत की 2 बहनों के यौन शोषण का मामला भी चल रहा है. हाईकोर्ट से जमानत मिलने के आसार कम ही हैं. लेकिन कानून के जानकारों का कहना है कि अगर जमानत मिल भी जाती है तो भी गुजरात पुलिस आसाराम को प्रोडक्शन वारंट पर ले जा सकती है. यानी वो जेल से तो अब किसी भी तरह नहीं निकल सकेगा.

वैसे, पिछले साढ़े 4 साल में आसाराम ने हर उस तिनके को पकड़ने की पूरी कोशिश की, जहां से भी उसे डूबने से बचने का सहारा दिखा. राम जेठमलानी, सुब्रह्णण्यम स्वामी और सलमान खुर्शीद जैसे देश के सबसे महंगे वकीलों को उसने अपनी जमानत के लिए जोधपुर बुलाया. साढ़े 4 साल में कम से कम 12 बार जमानत के लिए याचिकाएं लगाई. बार-बार बीमारी का बहाना बनाया. लेकिन न्याय की देवी के सामने इसकी एक नहीं चली.

केस स्टडी बनेगा आसाराम मामला

आसाराम मामला कानून की कई धाराओं में दर्ज किया गया था. यौन शोषण से बच्चों को बचाने वाले कानून यानी पॉक्सो एक्ट, 2012 और 2013 में प्रभाव में आए द क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट एक्ट के तहत ये मामला दर्ज किया गया था. आसाराम पर लगी धाराओं में 376, 376 (D), 376 (2)(F) शामिल हैं. ऐसे में बताया जा रहा है कि ये केस पूरे देश की ज्यूडिशियल और पुलिस अकादमियों में पढ़ाने के लिए केस स्टडी के तौर पर शामिल किया जा सकता है.

कठुआ और उन्नाव बलात्कार मामलों में जन आंदोलनों के बाद इसी महीने राष्ट्रपति ने एक नए अध्यादेश पर दस्तखत किए हैं. इस अध्यादेश के मुताबिक 12 साल से कम उम्र की बच्ची के यौन शोषण के दोषी को फांसी और 12 से 16 तक की बच्ची के यौन शोषण पर भी सजा को बढ़ाया गया है. पिछले महीने राजस्थान विधानसभा भी उस बिल को पारित कर चुकी है जिसमें 12 साल तक की बच्चियों से रेप के दोषियों को फांसी की सजा दी जानी है.

इसी सबके दौरान, आसाराम को मिली सज़ा भी समाज के लिए एक नजीर बनेगी. कई लोगों की राय में 77 साल की उम्र में मरने तक जेल की सज़ा आसाराम के लिए फांसी से भी ज्यादा असहनीय होगी. पीड़िता के पिता का भी यही कहना है कि इस मामले में दी गई सज़ा से समाज में बच्चियों के खिलाफ होने वाले यौन शोषण के मामलों में कमी आने की उम्मीद की जा सकती है.

लेकिन, हैरानी उस आस्था रूपी अंधविश्वास पर होती है, जब बेटी-पोती की उम्र की बच्चियों से संत बने ये शैतान दरिंदगी करते हैं. तब भी इन शैतानों के भक्तों की आंखें क्यों नहीं खुलती. आज भी देश में कई जगह आसाराम की रिहाई के लिए लोग आंसू बहाते और यज्ञ तक करते देखे गए.

शायद महात्मा बुद्ध ने ऐसे ही लोगों के लिए अपने परम शिष्य आनंद से कहा था- तुम किसी बात को सिर्फ इसलिए मत मान लो कि उसे मैंने कहा है. किसी बात को सिर्फ इसलिए भी मत मान लो कि वह किसी ग्रंथ में लिखी है. न ही किसी बात पर सिर्फ इसलिए भरोसा कर लो कि दूसरे भी ऐसा कर रहे हैं. आधुनिक भारत के आध्यात्मिक पिता स्वामी विवेकानंद ने भी कहा कि अपने लिए सत्य की स्वयं ही उपलब्धि करो. उसे तर्क की कसौटी पर कसो. यही आध्यात्मिक अनुभूति है.